गांधी की दांडी यात्रा-6: छात्रों, व्यापारियों और जनता को युद्ध में शामिल होने का आह्वान

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इकतीस हजार की आबादी वाले शहर नदियाड में गांधी लोगों को संबोधित करते हुए कह रहे हैं,  “मैं अक्सर नदियाड आया हूं और यहां कई भाषण दिए हैं, लेकिन इससे पहले मैंने जनता का इतना बड़ा जनसमूह कभी नहीं देखा है।  गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए, आज हम कुचले जा रहे हैं और हम उन जंजीरों को हटाना चाहते हैं। मुझे यकीन है कि आप आज यहां, मेरी खातिर या मेरे साथ चल रहे अस्सी लोगों की टुकड़ी के लिए नहीं आए हैं, बल्कि इसलिए हैं कि, आप पूरी आजादी चाहते हैं। जब से मैंने अहमदाबाद छोड़ा है, रास्ते में बड़ी संख्या में लोगों ने मुझ पर और मेरे इस अभियान पर अपना आशीर्वाद बरसाया है। जैसा कि यह दिख रहा है, एक हल्की सी बारिश, बढ़ियाई नदी में बदल गई है, और आप भी, ऐसा ही कुछ देख रहे हैं।”

खेड़ा सत्याग्रह की बार बार याद दिलाते हुए, गांधी आगे कहते हैं, “खेड़ा जिले के लिए वल्लभभाई की सेवाएं कई तरह से विविधता भरी रही हैं। बाढ़ के समय उन्होंने,  हजारों आदमियों को बचाया। अब, वल्लभभाई, जेल की सलाखों के पीछे हैं। मैंने भी इस जिले में कुछ काम किया है। आप का तीन गुना कर्तव्य था कि आप, वल्लभभाई की गिरफ्तारी का विरोध करते। वल्लभभाई को जेल, तुम्हें, दी गई कैद है। खेड़ा में उनको गिरफ्तार करना, पूरे खेड़ा को ही, गिरफ्तार करने जैसा है। निःसंदेह, सरकार ने वल्लभभाई को कैद करके, उनका सम्मान ही बढ़ाया है, लेकिन आपने, उनकी गिरफ्तारी पर चुप रह कर, उनका अपमान किया है।”

लोग स्तब्ध, सुन रहे थे, और निर्भीक गांधी, बोलते जा रहे थे, “उनके इस अपमान पर, आपका क्या जवाब होना चाहिए ? आपका उत्तर, केवल पूर्ण स्वतंत्रता पाना हो सकता है। लेकिन, तुम ऐसा कैसे पा सकते हो?”

फिर खुद ही उत्तर भी देते हैं,

“मेरे बताए रास्ते पर चल कर ही।”

और आगे कहना जारी रखते हैं,  “मैं चाहता हूं कि सभी सरकारी कर्मचारी अपनी नौकरी छोड़ दें। आखिर सरकारी सेवा की क्या कीमत है?  सरकारी नौकरी आपको दूसरों पर अत्याचार करने की शक्ति और अवसर देती है। और आप नौकरी में क्या कमाते हैं?  स्वतंत्र श्रम के बल पर, एक व्यक्ति यदि चाहे तो हजारों कमा सकता है। कुछ स्थानीय मुखियाओं ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। लेकिन क्या बस इतना ही, काफी है ?”

अब वे नाडियाड शहर के कुछ महत्वपूर्ण नागरिकों की चर्चा करते हुए लोगों को उस शहर का अतीत याद दिलाते हैं, “नाडियाड का निर्माण, गोवर्धनराम और मणिलाल नभुभाई द्वारा किया गया है। यह विद्वानों का शहर रहा है। क्या अब इन विद्वानों के कोई वारिस, शहर में हैं?  पढ़े-लिखे लोगों के इस शहर के छात्रों का क्या कर्त्तव्य है ? और उनकी बहनों और माताओं का कर्तव्य क्या है?  इन सवालों का जवाब देना, आप सभी पर निर्भर है। आप सभी को, स्वयं को, स्वयंसेवकों के रूप में सूचीबद्ध कराना है। जैसे ही मैं, गिरफ्तार होकर, सलाखों के पीछे पहुंचा दिया जाता हूँ, या जैसे ही अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का फोन आता है, आपको स्वयं ही, स्वयंसेवकों के रूप में प्रस्तुत करने के लिए आगे आना होगा। जैसे ही समिति, (एआईसीसी) बुलाती है, आपको जेल जाने के लिए खुद को पेश करते हुए आगे आना चाहिए। तभी मुझे विश्वास होगा कि, नाडियाड ने हमारे संघर्ष में अपना योगदान दिया है।”

गांधी को सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रारंभ से ही यह उम्मीद थी कि, उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। वे मानसिक रूप से दांडी यात्रा की शुरुआत यानी 12 मार्च की सुबह ही खुद को बंदी बनाए जाने की आशा किए बैठे थे। पर यात्रा के चार दिन बीत चुके थे, और यह पांचवां दिन था, फिर भी उनकी गिरफ्तारी की बात कहीं हवा में भी नहीं थी। कांग्रेस नेतृत्व भी गांधी जी की संभावित गिरफ्तारी को लेकर सतर्क था, और आगे की योजना बना रहा था। पर वायसरॉय और बॉम्बे के गवर्नर, गांधी की दांडी यात्रा को लेकर क्या सोच रहे थे, यह अभी, सबके सामने नहीं आ पाया था। उधर नाडियाड की सभा में अपने भाषण का समापन करते हैं।

नाडियाड तक, यात्रा के चार दिन बीत चुके थे। गांधी की दांडी यात्रा को लेकर, जनता में प्रत्यक्ष रूप से, उत्साह देखा जा रहा था। गुजरात ही नहीं, देश के लगभग हर कोने से, जनता इस यात्रा से, उत्साहित थी। ‘महात्मा जी उनकी आजादी के लिए सड़कों पर हैं,’ यह भावना जनता को अंदर तक प्रभावित करने लगी थी। बंबई का अखबार, बॉम्बे क्रॉनिकल, जिसके रिपोर्टर, यात्रा के साथ-साथ ही चल रहे थे, ने अब तक की यात्रा को सारांशित करते हुए, जो रिपोर्ट भेजी, उसका कुछ अंश पढ़ें, “यात्रा के चौथे दिन स्वराज सेना की इस प्रयाण की प्रगति को, उत्साह के अवर्णनीय दृश्यों के रूप में देखा जा सकता है। क्या अमीर और क्या गरीब, क्या करोड़पति और क्या मजूर, क्या सवर्ण हिंदू और क्या तथाकथित अछूत, सब एक स्वर और लय से मिलजुलकर, अपनी आजादी के संघर्ष के लिए संकल्पबद्ध हैं। भारत के महान मुक्तिदाता के सम्मान में एक, दूसरे को ठेलते हुए, … ‘मैं कैसे बापू के “दर्शन” कर सकता हूं, यही सबकी चिंता थी,  भीड़ में धंसे जा रहे थे। सभी जातियों, पंथों, धर्मों और हितों को देशभक्ति की एक अप्रतिरोध्य लहर में, गांधी के इस सविनय अवज्ञा आंदोलन ने एकजुट कर दिया। सभी जगह एक आदर्श गांधी राज दिखाई दे रहा है। ब्रिटिश सरकार का अधिकार लगभग न के बराबर दिखाई दे रहा था।”

इसी तरह के माहौल में गांधी उनका यात्रा दल, 15 मार्च की रात, गुजरात के एक प्रमुख शहर, आणंद पहुंचा। यह वही आणंद है, जहां आजकल श्वेत क्रांति का ब्रांड अमूल का मुख्यालय स्थित है। पर तब, न श्वेत क्रांति जैसी कोई चीज अस्तित्व में थी, और न ही अमूल के बारे में कोई जानता था। अगले दिन सोमवार था। और यह गांधी जी के मौनव्रत का निर्धारित दिन था। 17 सितंबर 1930 को गांधी जी, साबरमती आश्रम में स्थित मीरा बेन को लिखे, एक पत्र में उल्लेख करते हैं, “पांच दिन की यात्रा की थकान ने मुझे सोने के लिए बाध्य कर दिया और मैं दिन में सोता रहा।”

उसी दिन उन्होंने जयप्रकाश नारायण को भी एक पत्र लिखा, जिसमें वे कहते हैं,

“यज्ञ (सविनय अवज्ञा आंदोलन) के प्रति ऐसा जोश मैंने, और कहीं नहीं देखा, जैसा कि, आश्रम की महिलाओं ने प्रदर्शित किया है। आजकल, महिलाएं काफी हद तक आश्रम के आंतरिक मामलों का प्रबंधन कर रही हैं। इस तरह का अनुभव, प्राप्त करने का मौका, आगे कभी दोहराया नहीं जाएगा। इसलिए मैं आपको सलाह दूंगा कि आप, प्रभावती (प्रभावती जी जेपी की पत्नी थीं) को वहां भेजें। मेरी गिरफ्तारी, (यदि हो जाती है तो) के बाद आश्रम की महिलाओं को भी जेल की सजा होगी। मुझे लगता है कि प्रभावती को उनके साथ जाना चाहिए। वह हर दृष्टि से योग्य हैं। मुझे आशा है कि आपका काम पहले से अच्छा चल रहा है।”

अगली जनसभा आणंद में आयोजित की गई। सभा में एक स्थानीय व्यक्ति ने गुजराती में गीत गया और उसके गीत का उल्लेख करते हुए कहा,

“आपने अभी-अभी पंडित जी का गीत सुना है कि, प्रेम का मार्ग ज्वाला के समान होता है। सत्याग्रही का मार्ग प्रेम का मार्ग है, शत्रुता का नहीं। सत्याग्रही की यह महत्वाकांक्षा होनी चाहिए कि, वह प्रेम से कठोरतम शत्रुओं को भी जीत ले। कोई कैसे प्रदर्शित कर सकता है कि सविनय अवज्ञा के अंतर्गत प्रेम के सिवा कुछ नहीं है?  इसका प्रत्यक्ष अनुभव तो, प्रीतम को हुआ होगा, जिसका परिणाम यह हुआ कि, यह भजन उनके हृदय से निकला।”

गांधी एक राजनीतिक आंदोलन का नेतृत्व करते हुए जब वे अपनी बात कहते हैं तो, वह एक प्रवचन की तरह नजर आती है। धर्म, धार्मिक प्रतीकों, और तमाम धर्म ग्रंथों से चुनी हुई प्रेरक कथाओं के साथ वे अपनी बात जनता में रखते हैं। सत्याग्रही और सत्याग्रह, कैसा होना चाहिए इसे वे समझाते हुए कहते हैं,

“बीमार भावना की तुलना शायद आग से की जा सकती है। इसे प्यार के बारे में कैसे कहा जा सकता है?  जबकि दुर्भावना दूसरों को जलाती है, प्रेम स्वयं को जलाता है और दूसरे को पवित्र करता है। जब प्रेम इतना तीव्र रूप धारण कर लेता है, तो कुछ लोगों को यह आग की तरह लग सकता है, लेकिन आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि अंत में यह अपने शीतलन प्रभाव को ही प्रदर्शित करेगा। सत्याग्रहियों की यह टोली जो, दांडी के लिये, निकल चुकी है, वह कोई नाटक नहीं कर रही है;  इसका प्रभाव केवल अस्थायी नहीं होगा;  मृत्यु के द्वारा भी, यह अपनी प्रतिज्ञा निभाएगी, यदि मृत्यु आवश्यक हो जाती है तो। अंत में सरकार को यह स्वीकार करना होगा कि सत्याग्रह करने वाले, यह लोग सत्य और अहिंसा के पथ पर चलने वाले लोग थे। यदि सत्याग्रहियों का यह गिरोह नष्ट हो जाए तो, इससे बेहतर कुछ नहीं होगा। यदि सत्याग्रहियों की मृत्यु हो जाती है, तो यह उनके दावे पर मुहर लगा देगा।”

सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा के इस आह्वान के बीच गांधी का दार्शनिक स्वरूप, उजागर हो रहा था, जब वे कह रहे थे कि,”मृत्यु के समय न केवल किसी के हृदय में क्रोध होना चाहिए, बल्कि इसके विपरीत, उसे यह महसूस करना और प्रार्थना करना चाहिए: ‘जो मुझे मारता है उसका भला हो!’  जब कोई इस तरह से मृत्यु से मिलता है, तो मैं, इसे सत्याग्रही की मृत्यु कहूंगा और ऐसी मृत्यु में ही मरने वाला व्यक्ति, अपनी प्रतिज्ञा के प्रति सच्चा माना जाएगा। अपने संबंध में भी, मैं आज कोई आश्वासन नहीं दे सकता। यह केवल अन्य लोग हैं जो किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद इस परीक्षण से उसका न्याय कर सकते हैं।”

अब आणंद के बारे में चर्चा करते हुए कहते हैं,  यहाँ आणंद में, आपके पास नरसिंहभाई की कुटिया है। आनंद पाटीदारों का शिक्षा केंद्र है। खेड़ा जिला पाटीदारों का, वल्लभभाई का, मोतीभाई अमीन का, और चरोतार एजुकेशन सोसाइटी के स्वयंसेवकों का गृह नगर है। ऐसे शहर की जनसभा में आप के सामने नहीं तो,  मैं अपने भीतर की भावनाओं को, कहां अभिव्यक्त कर सकता हूं ? मैं बड़ी उम्मीदों से, आपके पास आया हूं।”

अब वे अपने मिशन पर आते हैं,  “मैंने कई जगहों पर जोर देकर कहा है कि, इस बार मैं, भीख मांगने के लिए नहीं आया हूं।  मुझे पता है कि, यह कैसे किया जा सकता है। यह संघर्ष पैसों के लिए नहीं है। पैसे के बिना इसे, चलाया जा रहा है। आज सुबह, बंबई के सूत व्यापारियों ने मुझे रु. 2,501, डायमंड एसोसिएशन ने मुझे रु. 2,000 भेजे हैं। इसके अलावा, अगर मैं फंड के लिए एक मामूली अपील भी करूँ, तो गुजरात और भारत मुझ पर पैसे बरसाने लगेंगे। मैं उनके आभार के बोझ तले दब जाता हूं। मैं, आपसे बड़ा योगदान मांगने आया हूं। आपके हाथ में चरोतर के पाटीदारों की इज्जत है। आप पाटीदारों के समंदर में नमक की तरह हो। यदि नमक अपना स्वाद खो देता है, तो उसे कौन नमकीन कर पाएगा ? नमक चीनी या गुड़ की तुलना में अधिक रसीला होता है। एक चुटकी नमक, भोजन में स्वाद ला देता है। यदि आप का शहर, आणंद, अपना स्वाद छोड़ देता है, यदि साहस और इस तरह के अन्य गुण, जो पाटीदारों में हैं, इस समय आणंद के लोग उन्हें, प्रदर्शित नहीं करते हैं, तो, उन्हें और कहां, पाया जा सकता है?”

गांधी, शांत जनसमूह को देखते हैं, थोड़ा विराम लेते है, फिर बोलना जारी रखते हैं, “इस विस्तार से आणंद के बारे में अपनी बात कहने का कारण तो आप समझ ही गए होंगे। क्या आणंद और खेड़ा जिले के छात्र, अपनी किताबें लेकर बैठ जाने वाले हैं, या वे विद्यापीठ के बताए मार्ग पर चलेंगे? विद्यापीठ के लिए डॉ. मेहता द्वारा खर्च किए गए ढाई लाख रुपये और अन्य शुभचिंतकों द्वारा किए गए योगदान के लिए, ब्याज के साथ रिटर्न हमें पहले ही मिल चुका है। आज विद्यापीठ ने अपनी पुस्तक-शिक्षा को समाप्त कर दिया है और अपने आदर्श वाक्य को सिद्ध कर दिया है: वह विद्या है जो मुक्त करती है। सा विद्या विमुक्तये।

अब वे विद्यार्थियों से आह्वान करते हैं,  “सोलहवीं वर्ष में प्रवेश करने वाले सभी छात्र, अपनी पढ़ाई छोड़ने के लिए एकजुट हो गए हैं, और शिक्षक भी उनके साथ जुड़ गए हैं। उस जगह से और क्या उम्मीद की जा सकती है जहां सभी छात्र और शिक्षक शत-प्रतिशत अंक प्राप्त करते हैं? आप भी यह रास्ता क्यों नहीं अपनाते?”

सविनय अवज्ञा की चर्चा करते हुए, वे कहते हैं,  “मुझे उम्मीद है कि गुजरात देश के बाकी हिस्सों के लिए एक वस्तु-पाठ (उदाहरण) स्थापित करेगा।  अभी यह नहीं कहा जा सकता कि, लड़ाई लंबी चलेगी या जल्दी खत्म हो जाएगी।  हालांकि, अगर हमने आंदोलन में अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया है, तो हमें इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि यह लंबा होगा या छोटा।  मुझे खेड़ा जिले के पाटीदारों के प्रति, ऐसी आशायें पालने का अधिकार है। वे मेरे दक्षिण अफ्रीका के दिनों से ही, मुझे उम्मीद पर खरे उतरते आ रहे हैं। खेड़ा सात लाख की आबादी का जिला है, जिसमें हमारे ठाकोर भाई भी शामिल हैं। अगर पाटीदार रास्ता दिखाते हैं तो, गरासिया उनके पीछे पीछे आयेंगे ही। क्या तुलसीदास ने यह नहीं कहा है कि, ‘आधार धातु परसमणि के स्पर्श से चमकती है।’

विद्यार्थियों और विद्यालयों को सविनय अवज्ञा आंदोलन से जोड़ने की उनकी पुरानी रणनीति रही है। असहयोग आंदोलन के काल में भी, उन्होंने विद्यार्थियों को, स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को छोड़ कर, आजादी की लड़ाई में शामिल होने का आह्वान किया था। तब भी भारी संख्या में छात्रों, और सरकारी कर्मचारियों ने नौकरी छोड़ कर असहयोग आंदोलन में गांधी जी का साथ दिया था। अब फिर वे एक बार आह्वान कर रहे हैं,

“जब तक यह संघर्ष जारी है, आप, विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई स्थगित कर देनी चाहिए। इस समय मुझे स्वर्गीय देशबंधु (बंगाल के कांग्रेस के बड़े नेता, चितरंजन दास जिन्हे देशबंधु कहा जाता है और संक्षिप्त में, सीआर भी। सीआर दास, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के राजनीतिक गुरु भी थे) के शब्द याद आ रहे हैं। वह स्कूलों में, असहयोग आंदोलन से, नाखुश थे। वे कहते थे कि अंतिम संघर्ष का समय आने पर हमें छात्रों को अवश्य बुलाना चाहिए लेकिन हमें, उन्हें इस समय अकेला छोड़ देना चाहिए। मैंने उनकी बात नहीं मानी और, स्कूलों के बहिष्कार का आह्वान किया। लेकिन यह बात 1920 की थी। तब से अब तक पांच नहीं, दस साल बीत चुके हैं। अब हमें, अंतिम लड़ाई लड़नी है। इसलिए, अब कोई कारण नहीं है कि, छात्र अब स्कूलों में क्यों रहें।”

गांधी, सविनय अवज्ञा आंदोलन को एक युद्ध की संज्ञा देते हैं, एक अहिंसक युद्ध, एक ऐसा युद्ध, जो, नैतिक मूल्यों, सत्य, अहिंसा, और शत्रु के विरुद्ध, मन में, बिना किसी दुर्भावना के, खुद, आजाद होने के लक्ष्य के लिए लड़ा जा रहा है। गांधी इस आंदोलन को, समय की पुकार के रूप में घोषित करते हैं और आगे कहते हैं,  “आज मैं केवल एक युद्धक्षेत्र तैयार करने के लिए नहीं कह रहा हूं।  आज कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक और कराची से डिब्रूगढ़ तक हर कोई व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से असहयोग का अभ्यास कर सकेगा। पिछले दिसंबर तक, मुझे लगा कि सविनय अवज्ञा के लिए माहौल अनुकूल नहीं है और मैंने वही किया, जो मैंने महसूस किया। मैं अब दावा करता हूं कि यदि परिस्थितियां कभी अनुकूल हैं, तो वे आज हैं। यह शुभ क्षण है। यदि इस शुभ समय पर, हम सविनय अवज्ञा की शक्ति विकसित नहीं करते हैं तो, हम ऐसा कभी नहीं करे सकेंगे।

अब वे विद्यार्थियों द्वारा स्कूल कॉलेज छोड़ने के मुद्दे और उसकी जरूरत को रेखांकित करते हैं,  “वह कौन सा छात्र है जो ऐसे समय में पढ़ना जारी रखेगा?  पूर्व में, मैंने छात्रों को स्कूल छोड़ने और राष्ट्रीय स्कूल स्थापित करने के लिए कहा था।  आज मैं उन्हें स्कूल छोड़कर युद्ध के मैदान में आने के लिए कहता हूं, देश के लिए भिखारी बनो। यदि कोई व्यवसायी आज भी अपना व्यवसाय जारी रखता है, तो उसकी प्रतिष्ठा में वृद्धि नहीं होगी।  यदि भारत, व्यापक स्तर पर सत्याग्रह शुरू करना चाहता है, तो यही समय है कि, उसे, ऐसा करना चाहिए। परमेश्वर, भोजन और पानी प्रदान करेगा;  अनगिनत लोग इसे प्रदान करेंगे। यदि पूरे देश में भगदड़ मच जाती है, और यदि पूरा भारत सविनय अवज्ञा शुरू कर देता है, तो 30 करोड़ लोगों को अपने आप को एक लाख अंग्रेजों के प्रभुत्व से मुक्त होने में कितना समय लगेगा?  स्कूली बच्चे इसे तीन के नियम से हल करेंगे। सेना में 70 हजार अंग्रेज और सिख, पठान, गोरखा और मराठा सहित अन्य शामिल हैं। यह सेना हमारे दोनों कंधों पर सवार है। हमें उन कानूनों के पीछे और कुछ नहीं दिखता जो हमें दबाते हैं। इस सेना के समर्थन के बल पर अंग्रेज हमें, अपनी धुन पर नचाते हैं।”

अंत में समापन करते हुए कहते हैं, “कृपया फिर से याद रखें, मैं आपको अपनी पढ़ाई को हमेशा के लिए छोड़ने के लिए नहीं कह रहा हूं, बल्कि संघर्ष जारी रहने तक केवल, पुस्तक-शिक्षा को छोड़ने के लिए कह रहा हूं।  यह आप पर निर्भर है कि, यह लंबा चलेगा या नहीं।  यूथ लीग- यानी आप छात्र-छात्राएं-कई बड़ी-बड़ी बातें करते हैं।  इस साल हमारे कांग्रेस अध्यक्ष घोड़े की सवारी करने वाले युवक हैं।  इसलिए इस संघर्ष का एक बड़ा हिस्सा, आप छात्रों को ही वहन करना है। ईश्वर आपको आंतरिक शक्ति दे।  यह आपकी बुद्धि के उपयोग का प्रश्न नहीं है।  यदि किसी चीज़ को बुद्धि के उपयोग से आश्वस्त करना है, तो उसे उसी तरह से निर्धारित किया जा सकता है जैसे ज्यामिति का प्रस्ताव।  इसके अंत में।  परन्तु यहाँ बुद्धि का बल न होने पर बुद्धि असहाय हो जाती है।  बुद्धि हृदय की दासी है।

फिर अपनी बात कहते हुए अपना संबोधन समाप्त करते हैं,

“मैं असहाय हूं, हालांकि, अगर आप दिल से महसूस करते हैं कि इस आदमी ने केवल एक स्टंट शुरू किया है, कि एक महीने के अंत में वह इस बात को बंद कर देगा कि उसने हिमालय जैसी, एक बड़ी गलती की है और, साबरमती के तट पर चुपचाप वापस चला गया है। हालांकि, आप इस मामले में विश्वास नहीं करते हैं, तो निश्चिंत रहें कि जहां तक ​​​​आप और मेरा संबंध है, यह वास्तव में अंतिम संघर्ष है और इस युद्ध में, अपनाए जाने वाले साधन शांतिपूर्ण हैं, जिसमें सविनय अवज्ञा आदि शामिल हैं।”

(गुजराती पत्र नवजीवन, 23-3-1930)

आणंद की जनसभा जो देर तक चली थी और गांधी जी का लम्बा संबोधन भी हुआ था, के बाद, अगले दिन सुबह, यह यात्रा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ चली।

….क्रमशः

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।)

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