गृहमंत्रीजी! नागरिकता संशोधन कानून 2003 की नियमावली में लिखा है पहले एनपीआर फिर एनसीआर

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नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पूरे देश में उबाल जारी है। लेकिन जबसे कांग्रेस, विशेषकर राहुल गांधी ने मोर्चा सम्भाला है तबसे भाजपा और सरकार बैकफुट पर है और जवाब में तर्क नहीं कुतर्क गढ़ रही है।
एक बार फिर से गृह मंत्री अमित शाह ने राहुल गांधी और कांग्रेस पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ऐंड कंपनी अफवाह फैला रही है कि यह ऐक्ट अल्पसंख्यकों की नागरिकता को छीन लेगा। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी पर वार करते हुए उन्होंने कहा, ‘राहुल बाबा मैं आपको चैलेंज देता हूं कि इस कानून में एक भी जगह किसी की भी नागरिकता लेने का प्रावधान है तो दिखाइए।
दरअसल कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कई मौकों पर नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करते हुए कहा था कि यह असंवैधानिक है। उन्होंने कहा है कि एनआरसी हो या फिर एनपीआर यह गरीबों पर टैक्स की तरह है। राहुल गांधी ने कहा कि नोटबंदी गरीबों पर टैक्स की तरह था। गरीब लोगों पर हमला था और अब आम लोग पूछ रहे हैं कि हमें नौकरियां कैसे मिलेंगी?’
दरअसल गृहमंत्री अमित शाह के नागरिकता संशोधन कानून पर हालिया दावों के बाद जब सरकारी दस्तावेजों की पड़ताल होने लगी तो पता चला कि 2014 के बाद मोदी सरकार ने संसद के दोनों सदनों के भीतर 8 मौकों पर साफ साफ कहा है कि जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) एनआरसी की पहली सीढ़ी है। गृह राज्य मंत्री रहते हुए किरण रिजीजू ने कहा है कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर तैयार कर नागरिकता रजिस्टर बनाने का फैसला किया है।गृहमंत्रालय की वेबसाइट पर 2018-19 की सालाना रिपोर्ट है। उसके पेज नंबर 262 पर साफ लिखा है कि एनपीआर एनआरसी की दिशा में पहला कदम है। यानि दोनों के संबंध हैं। जबकि अमित शाह कहते हैं कि दोनों के संबंध नहीं हैं। इससे स्पष्ट है कि देश भर में एन आर सी तभी शुरू होगी जब एनपीआर का काम पूरा हो जाएगा। इस हकीकत पर गृहमंत्री कोई सफाई या स्पष्टीकरण नहीं देते।
यही नहीं जनगणना की वेबसाइट पर एनआरसी वाले कॉलम को क्लिक करने पर एनपीआर का पेज खुल जाता है। लिखा है कि भारत में रहने वाले सभी लोगों को एनपीआर में अपनी जानकारी दर्ज करानी होगी। उस जानकारी में बायोमेट्रिक जानकारी भी होगी यानि आंखों की पुतली और उंगलियों के निशान भी लिए जाएंगे। 2003 की नियमावली में लिखा है कि इसी जनसंख्या रजिस्टर में जो लोग दर्ज होंगे उन्हीं में से उन्हें अलग किया जाएगा जिनकी नागरिकता संदिग्ध होगी। ज़ाहिर है नागरिकता की जांच के लिए आपसे दस्तावेज़ मांगे जाएंगे। तभी तो संदिग्ध नागरिकों की सूची बनेगी।
गौरतलब है कि 2010, 2015 में भी एनपीआर की गई थी। सीमित अर्थ में। सारी आबादी शामिल नहीं थी। पिछली बार15 सवाल थे। इस बार 7 नए सवाल जुड़े हैं। इनमें से एक नया सवाल है माता-पिता के जन्मस्थल की जानकारी देना। इसी को लेकर आरोप लग रहे हैं कि इसका सवाल का संबंध एनआरसी से है। क्योंकि भारत के नागरिकता कानून के नियमों में माता पिता के जन्मस्थान पूछे जाते हैं।
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीज़न (एनआरसी) और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) में क्या संबंध है? हाल ही में केंद्र सरकार ने अप्रैल 2020 में होने वाले एनपीआर के लिए चार हज़ार करोड़ रुपए का बजट मंज़ूर किया और गृहमंत्री अमित शाह और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर दोनों ने कहा कि एनसीआर और एनपीआर में आपस में कोई संबंध नहीं है। लेकिन ये बयान न केवल संसद में आए उन नौ अवसरों के विपरीत है, जबकि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने सदन में कहा कि एनपीआर, एनआरसी की दिशा में पहला कदम है, बल्कि कानून में जो लिखा है, उसके भी खिलाफ है।
दरअसल वर्ष 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने नागरिकता अधिनियम में बदलाव किए। अधिनियम की धारा 14 (ए) के तहत एनआरसी को एक कानूनी ढांचा दिया गया। इसके बाद नागरिकता संशोधन अधिनियम 2003 के रूल्स पास हुए, जिनमें ये साफ लिखा है कि एनपीआर के तहत हर एक परिवार और व्यक्ति के बारे में जानकारी एकत्रित की जाएगी। इस जानकारी की जांच एक सरकारी अधिकारी (लोकल रजिस्ट्रार) द्वारा की जाएगी। रूल्स के अनुसार यह जांच एनआरसी करवाने के लिए की जाएगी।
इतना ही नहीं, अगर उस जांच करने वाले अधिकारी को यह लगे कि किसी के द्वारा दी गई जानकारी में कोई अंतर आ रहा है तो वह अधिकारी उसको संदिग्ध नागरिक के रूप में चिन्हित कर सकता है और जब एनआरसी की प्रक्रिया शुरू होगी तो उसको नोटबंदी में नोट बदलवाने के लिए बैंकों के बाहर लाइन लगाने की तरह सरकारी ऑफ़िसों के चक्कर लगाने पड़ेंगे। किसी का नाम एनआरसी में आने के बाद भी सिटीज़नशिप रूल्स धारा 4 (6) के तहत कोई भी व्यक्ति उसके नाम एनआरसी में होने के खिलाफ आपत्ति दर्ज करवा सकता है। आपत्ति के बाद उसे फिर से अपनी नागरिकता साबित करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने होंगे।
वास्तविकता यही है कि जनगणना के रूल्स में जबतक सम्यक संशोधन नहीं होता तो तय प्रक्रिया के अनुसार पहले एनपीआर आएगा, एनपीएआर के तहत जो जानकारी ली जाएगी, उसके आधार पर लोगों को संदिग्ध नागरिक के रूप में चिन्हित किया जाएगा और फिर जब एनआरसी आएगा तो इन सभी लोगों को सरकारी कार्यालयों में जाकर अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। इतना ही नहीं, एनआरसी में नाम आने के बाद, अगर एनआरसी में नाम आने पर किसी ने आपत्ति दर्ज करवाई तो नागरिकता साबित करने की प्रक्रिया फिर से शुरू होगी।
वास्तव में अप्रैल 2020 में शुरू होने वाला एनपीआर जनगणना की तरह नहीं है, बल्कि यह एनआरसी का पहला कदम है।ये सभी प्रक्रिया और नियम नागरिकता कानून में लिखे हुए हैं। यह बात हवा-हवाई नहीं है बल्कि असम में हुई एनआरसी के दौरान यह देखने को मिला कि सरकारी अधिकारियों को संदिग्ध नागरिकों को चिन्हित करने की शक्ति और नागरिकता पर आपत्ति की प्रक्रिया के कारण जहाँ लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा वहीं भारी भ्रष्टाचार के कारण इसमें लगे अधिकारी और कर्मचारी मालामाल हो गये।

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