Friday, March 24, 2023

उत्तराखण्ड में हरक सिंह ने गड़बड़ा दिया भाजपा का चुनावी गणित

जयसिंह रावत
Follow us:

ज़रूर पढ़े

उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव से पहले हरक सिंह रावत के पार्टी से अलग हो जाने से सत्ताधारी भाजपा की चुनावी रणनीति गड़बड़ा गयी है। अब तक पार्टी गढ़वाल मण्डल में अधिक से अधिक सीटें जीतने के प्रति आश्वस्त हो कर कुमाऊं पर ज्यादा फोकस कर रही थी। चूंकि भाजपा का असली मुकाबला पूर्व मख्यमंत्री हरीश रावत से ही है और हरीश का गृह क्षेत्र कुमाऊं मण्डल में ही है, इसलिये भाजपा कुमाऊं में हरीश का ज्यादा असर देख रही थी, जबकि गढ़वाल क्षेत्र में उसके पास हरक सिंह रावत, सतपाल महाराज, रमेश पोखरियाल निशंक और विजय बहुगुणा जैसे कद्दावर नेताओं के बलबूते अपनी जीत सुनिश्चित नजर आ रही थी। इसीलिये भाजपा नेतृत्व गढ़वाल से अधिक कुमाऊं पर ध्यान दे रहा था।

अब तक जितने भी चुनावी सर्वेक्षण आये उनमें हरीश रावत को मुख्यमंत्री के तौर पर सबसे पसंदीदा नेता माना गया। हरीश रावत के बारे में मतदाताओं की ऐसी राय को प्रायोजित चुनावी सर्वेक्षण भी नहीं झुठला पाये। बात अजीब ही है जिस कुमाऊं ने देश को गोविन्द बल्लभ पंत, नारायण दत्त तिवारी, डा0 मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता दिये उस कुमाऊं में भाजपा को हरीश रावत के मुकाबले का एक अदद नेता नहीं मिल रहा। हरीश रावत की काट के लिये भाजपा के पास कुमाऊं में अकेले भगत सिंह कोश्यारी थे, जिन्हें मोदी जी ने राज्यपाल बनवा कर महाराष्ट्र भेज दिया। कोश्यारी के राज्यपाल बनने के बाद अन्य दमदार नेताओं में बच्ची सिंह रावत और प्रकाश पन्त का निधन हो गया। यशपाल आर्य जैसे बड़े राजनीतिक कद के नेता वापस कांग्रेस में लौट गये। वहीं कांग्रेस के पास कुमाऊं में हरीश रावत के अलावा गोविन्द सिंह कुंजवाल, करन महरा और प्रदीप टमटा जैसे नेता मौजूद हैं। कुंजवाल, महरा और हरीश धामी का जनाधार ही है जो कि वे 2017 की प्रचण्ड मोदी लहर में भी कांग्रेस के टिकट पर जीत गये थे।

कुमाऊं में कोश्यारी की कमी पूरी करने के लिये ही उनके राजनीतिक चेले पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया। जबकि गत लोकसभा चुनाव में हरीश रावत को हराने वाले अजय भट्ट को रमेश पोखरियाल निशंक को हटा कर केन्द्र में राज्यमंत्री बनाया गया। मुख्यमंत्री बनने के बाद धामी भी कुमाऊं मण्डल का व्यापक दौरा करते रहे हैं और अपना आधार मजबूत करने के लिये वह वहां सौगातों की झड़ी लगाते रहे। तराई में सिख मतदाताओं को प्रभावित करने और किसान आन्दोलन का असर खत्म करने के लिये राज्यपाल के तौर पर ले.जनरल (रिटा) गुरुमित सिंह को नियुक्ति किया गया। धामी इसी मकसद से राज्यपाल के साथ नानकमत्ता गुरुद्वारे में मत्था टेक चुके हैं। वर्तमान में 12 सदस्यीय धामी कैबिनेट में मुख्यमंत्री समेत कुल 6 मंत्री कुमाऊं मण्डल से रखे गये जबकि गढ़वाल से भाजपा के 34 विधायक थे।

पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने गढ़वाल की कुल 41 विधानसभा सीटों में से 34 सीटें जीत कर एक नया रिकार्ड कायम किया था। जबकि उस चुनाव में गढ़वाल से काग्रेस को मात्र 6 सीटें मिलीं थीं। उत्तरकाशी जिले की पुरोला और रुद्रप्रयाग की केदारनाथ सीट के अलावा पहाड़ों से कांग्रेस की झोली खाली रही थी। कांग्रेस को पौड़ी, चमोली और टिहरी जिलों से एक भी सीट नहीं मिली थी।

गढ़वाल मण्डल में 2017 के चुनाव में कांग्रेस के सबसे खराब प्रदर्शन का कारण मोदी लहर के अलावा सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत और विजय बहुगुणा जैसे वोट जुटाऊ बड़े नेताओं का कांग्रेस छोड़ कर भाजपा के पाले में आना भी था। इसलिये इस बार भी एण्टी इन्कम्बेंसी के बावजूद भाजपा को गढ़वाल में इन वोट जुटाऊ नेताओं और अपनी पिछली शानदार उपलब्धि पर काफी आत्मविश्वास था। भाजपा को लगता था कि उसका गढ़वाल का मोर्चा अभेद्य है और कुमाऊं के मोर्चे पर खास फोकस कर अपना जनाधार कायम रखने में सफल हो जायेगी और पुनः सत्ता में काबिज हो जायेगी।

लेकिन आज की तारीख में 2017 के चुनाव की तुलना में हालात काफी बदल गये हैं। पिछली बार भाजपा से जितनी अपेक्षाऐं थीं वे पूरी नहीं हुयीं। ऊपर से महंगाई-बेरोजगारी ने लोगों की कमर तोड़ दी। इस बार हरक सिंह जैसे नेता भाजपा से अलग हो गये। सतपाल महाराज और विजय बहुगुणा की घोर उपेक्षा कर भाजपा ने उनको राजनीतिक तौर पर बौना बना दिया। ये नेता कभी त्रिवेन्द्र के द्वारा तो कभी तीरथ के द्वारा अपमानित होते रहे। कांग्रेस की 2016 की बगावत के सूत्रधार विजय बहुगुणा राज्य सभा का रास्ता ताकते ही रह गये। भुवनचन्द्र खण्डूड़ी और मनोहरकान्त ध्यानी जैसे बड़े व्यक्तित्व और जनाधार के नेता वृद्ध होने के कारण निष्क्रिय हो गये। रमेश पोखरियाल निशंक जैसे नेता को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल से हटा कर उनका आभामण्डल भी चैपट कर दिया। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत में अगर दम होता तो वह चुनाव से पहले ही डोइवाला का मैदान छोड़ कर नहीं भागते। भाजपा ने अति आत्मविश्वास में पार्टी अध्यक्ष मदन कौशिक को बनाया, जिन्हें उनके बड़बोलेपन और ऊलजुलूल बयानों के कारण गढ़वाल में गंभीरता से नहीं लिया जाता। ले दे कर हरक सिंह रावत थे जिनको जेपी नड्डा से लेकर मोदी-शाह तक उत्प्रेरित कर रहे थे, लेकिन वह भी भाजपा की नैया छोड़ कांग्रेस की नाव में बैठ गये।

हरक सिंह रावत अपनी कमियों के बावजूद व्यापक जनाधार वाले नेता हैं। जनाधार न होता तो वह निरन्तर इतने अधिक चुनाव क्षेत्रों से नहीं जीतते। वह दो बार लैंसडौन से चुनाव जीते थे। इससे पहले वह पौड़ी सीट से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिये चुने गये थे। राज्य बनने के बाद वह लैंसडौन के अलावा रुद्रप्रयाग और फिर कोटद्वार से भी चुनाव जीते। इसलिये कम से कम 5 सीटों पर उनका असर माना जाता है। वह डोइवाला और विकासनगर से भी चुनाव लड़ने का प्रयास करते रहे। बिना जनाधार के वह इन दो सीटों पर चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकते थे। भाजपा हरीश रावत को कुमाऊं का नेता मानने की भूल कर रही थी। जबकि हरीश का सारे उत्तराखण्ड में अपना जनाधार है। वह पिछले विधानसभा चुनाव में भले ही हरिद्वार ग्रामीण सीट से हार गये थे, लेकिन वह उसी हरिद्वार जिले से 2009 में भारी मतों से लोकसभा चुनाव जीते थे।

कुल मिला कर देखा जाये तो अब तक गढ़वाल से जीत के प्रति आश्वस्त और कुमाऊं पर पूरा ध्यान केन्द्रित कर रही भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ रही है। कुमाऊं की कुल 29 सीटों में से 24 सीटें भाजपा के पास हैं। लेकिन कई चुनावी सर्वेक्षण इस बार भाजपा के 24 से सिमट कर 10 तक और कांग्रेस के 5 से उछलकर 20 तक पहुंचने का पूर्वानुमान लगा रहे हैं। जबकि जिस गढ़वाल मण्डल के बारे में भाजपा का अति आत्मविश्वास था वहां भी इस बार अप्रत्याशित नतीजे आने की संभावना चुनावी ज्योतिषी व्यक्त कर रहे हैं।

(देहरादून से वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest News

चंदौली के गणवा में चल रहा अनिश्चितकालीन धरना अब आमरण अनशन में बदला

चंदौली। उत्तर प्रदेश के चंदौली जनपद स्थित चकिया क्षेत्र के गणवा में वन व गांव की जमीन पर वर्षों...

सम्बंधित ख़बरें