गिद्धों के साये में एक दिन के हरेला मनाने से क्या होगा! 

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कल जब पूरे उत्तराखण्ड में हरेला मनाया गया और वृक्षारोपण की बाढ़ लायी गयी तब रात्रि में कुछ वीडियो शेयर किए थे। जिसमें सर्वाधिक वायरल वीडियो , जिसमें एक महिला के घास के बोझ को बहुत सी पुलिस और औद्योगिक पुलिस बल मिलकर नीचे रखवा रहे हैं, को लेकर सवाल था कि आखिर वे ऐसा कर क्यों रहे हैं ? 

क्यों एक महिला की मेहनत को छीना जा रहा है? उस महिला के बगल में खड़ी दूसरी महिला के आंख में आंसू हैं। जो आंख की कोर से फिसल कर टपकते कि उसने पोंछ लिए हैं। वीडियो एक दिन पहले का है और जोशीमठ से 13 किलोमीटर पहले हेलंग का है। यूं अब हेलंग एक छोटा सा कस्बा ही हो गया है पर यह गांव है और ग्राम सभा का हिस्सा है। हेलंग अलकनन्दा और कल्पगंगा का मिलन बिंदु भी है। यहां आकर तपोवन विष्णुगाड परियोजना समाप्त होती है और भविष्य में कभी तपोवन विष्णुगाड परियोजना पूरी हुई और उससे उत्पादन हुआ तो उसकी सुरंग का पानी यहीं हेलंग में बाहर निकलेगा । 

यह धौली गंगा का पानी यहां सुरंग से निकल कर अलकनन्दा कल्पगंगा से मिलेगा और थोड़ी सांस भर लेगा कि आगे एक और सुरंग… विष्णुगाड पीपलकोटी परियोजना की सुरंग में प्रवेश कर जाएगा। जिसको टिहरी डुबाने वाली सॉरी टिहरी डैम बनाने वाली प्रसिद्ध कम्पनी टीएचडीसी बना रही है। यहां सुरंग का ठेका एचसीसी कम्पनी के पास है। 

सुरंग बनाने में बहुत सा मलवा निकलता है। जिसके लिए डम्पिंग क्षेत्र की व्यवस्था करनी होती है। जो पहले ही डीपीआर में इंगित होता है। कहां-कहां बनेगा। कितना बनेगा। जितने मलवे का अनुमान होगा उतना ही डम्पिंग क्षेत्र की जरूरत होगी। डम्पिंग से क्योंकि प्रदूषण भी होता है अतः यह आबादी क्षेत्र से दूर ही बनाया जाएगा। इसकी सारी व्यवस्था परियोजना कार्य प्रारंभ होने से पहले ही की जाएगी। ध्यान रहे इस परियोजना को कार्य करते हुए 14 से अधिक वर्ष हो चुके हैं। 

इस कम्पनी ने जहां पूर्व में डम्पिंग क्षेत्र बनाया वह पर्याप्त नहीं था। इस कम्पनी पर पूर्व में और अब भी मलवे को नदी में डंप करने के आरोप लगते रहे हैं। जिस पर जुर्माना भी हुआ है। 

इस कम्पनी का ग्रामीणों से टकराव पुरानी बात है। यह हर कम्पनी का ही मसला है। वे परियोजना किसी भी तरह बनाने के क्रम में नियम कायदों की धज्जियां उड़ाती हैं। इसमें गांव वालों को भी तरह-तरह के प्रलोभन में फंसाते हैं। झूठे वादे करते हैं। अपना काम बनाने के लिए गांव की सामुदायिकता खत्म करते हैं। कुछ ठेकेदारनुमा लोगों को अपने साथ करके बाकी गांव को प्रताड़ित करते हैं उनके संसाधनों को नष्ट करते हैं। 

इस किस्से में यही बात है। सन 2007 में जब इस परियोजना की शुरुआत हो रही थी तभी हमने देखा कि जनसुनवाई के नाम पर किस तरह लोगों को छला गया। उसके बाद जाने कितने टकराव गांव वालों और कम्पनी के बीच हुए। केस मुकदमे लड़ाई-झगड़े और धोखे दलाली के अनन्त किस्से हैं। 

अब उस दिन का किस्सा। इसमें जो महिला का घास छीना जा रहा है उसका कसूर बस इतना है कि वह अपने एकमात्र बचे हुए चारागाह को डम्पिंग क्षेत्र बनाने का विरोध कर रही थी। 

क्योंकि जहां हजारों टन प्रदूषित मलवे को डाले जाने की कम्पनी की योजना है उसके बाजू में 100 मीटर से कम दूरी पर उसका घर है। जहां यह हजारों टन मलवा डाला जाना है वह हरा घास और वृक्षों से भरा बचा रह गया एक मात्र क्षेत्र है। 

इसलिए इस महिला को शांति भंग करने का अपराधी माना गया। इन पर धारा 107, 116  के तहत कार्यवाही की गई। इनको गिरफ्तार कर जोशीमठ थाना लाया गया। 6 घण्टे बैठाने के बाद छोड़ा गया। कसूर वही अपनी भूमि के नजदीक अपने चारागाह पर डम्पिंग क्षेत्र नहीं बनाने की मांग। 

प्रशासन और कम्पनी का तर्क है कि गांव वालों ने ही सहमति दी है खेल का मैदान बनाने की। 22 जून को डम्पिंग क्षेत्र के विरोध में एक पत्र जिलाधिकारी को गांव वालों ने लिखा है जिसमें 50 लोगों के हस्ताक्षर हैं। इस पत्र में वे कह रहे हैं कि पूर्व में एक और भूमि खेल मैदान बनाने के नाम पर ली गयी थी। ऐसा कम्पनियां करती ही हैं। जिस सहमति की बात हो रही है उस पर बहुत से लोग सवाल उठा रहे हैं। ऐसी किसी बैठक के होने पर ही सवाल है जिसमें ऐसी सहमति बनी। इस बारे में प्रशासन को बार-बार बताया गया। पर स्थानीय प्रशासन जिला प्रशासन के निर्देश पर ऐसा कहा जा रहा है । 

काटे जाने वाले पेड़ गांव वालों ने कभी ऐसे ही किसी हरैला के मौके पर लगाए होंगे। अब उन कटे हुए पेड़ों को डम्पिंग के मलबे के नीचे दफ्न कर दिया गया है।

वीडियो में पेड़ों को देखने से नहीं लगता कि उनको काटने या उड़ाने की कोई व्यवस्थित प्रक्रिया अपनाई गई होगी। 

जिनके घर के बगल में यह चरागाह है, जिसमें मलवा डाला जाना है, वे मात्र 5 परिवार हैं…..तो क्या उनको दफ्न कर दोगे क्योंकि वे बहुत ही कम हैं? 

जहां हजारों टन मलवा डाल-डाल के डाल-डाल के खेल मैदान बनाने के ख्वाब है वह जगह सड़क से इतना नीचे है कि लाखों टन मलवे के भरान से भी यह ख्वाब पूरा नहीं होगा। और इससे भी बड़ी बात कि इस क्षेत्र के ठीक नीचे अलकनन्दा बहती है। किसी भी ठीक या हल्की बरसात में यह सारा मलवा बह कर सीधे अलकनन्दा में समा जाएगा। जो ऐसा बड़ा रहस्य नहीं है कि सिर्फ मैं ही जानता होऊं और कम्पनी के चंट चालाक इस रहस्य से अनभिज्ञ हों। तो न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी। मतलब न मलवा रहेगा न मैदान और न सार्वजनिक सुविधा केंद्र जो एक और बड़ी गोली है जो कम्पनी दे रही है। 

किसी जमाने में सन 2001 में जय प्रकाश कम्पनी ने हमारे आंदोलन के बाद चाईं गांव वालों के साथ एक लिखित समझौते में गांव वालों को  खेल का मैदान अस्पताल स्कूल आदि देने का वायदा किया था। प्रशासन मध्यस्थ था …जेपी की परियोजना पूरी हुए 15 साल हो गए। वो वायदे उसी कागज के टुकड़े पर हैं। एनटीपीसी ने 2010 में हमारे आंदोलन के बाद केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे की मध्यस्थता में हमसे समझौता किया जिसमें सुरंग के 250 मीटर के दायरे में आने वाले घर मकानों का बीमा होना था। वह समझौता है पर अमल नहीं ..! 

इसलिए अपना जल-जंगल-जमीन किसी लालच में आकर गंवाना मूर्खता है। जो लड़ रहे हैं इसे बचाने का उनके साथ मजबूती से खड़ा होना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। यही इस धरती के प्रति हमारी असल जिम्मेदारी है सिर्फ एक दिन का हरैला मनाना नहीं ..!

(अतुल सती जोशीमठ राजनीतिक और पर्यावरण एक्टिविस्ट हैं।)

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