Wednesday, April 24, 2024

राकेश टिकैत का हस्र दिखाने गए गोदी मीडिया का ही हो गया संधान

26 जनवरी की दोपहर के बाद से ही मानो अभी तक बेबस टीवी मीडिया के पत्रकारों को एक नई जान मिल गई थी। सभी मीडिया चैनलों ने एक के बाद एक ट्रैक्टर पर बैठे किसानों की बैरिकेड तोड़े जाती तस्वीरों को दिखाना शुरू कर दिया था। दोपहर तक होते-होते दिल्ली के विभिन्न इलाकों में तोड़-फोड़ की घटनाओं, दो ट्रैक्टर सवार उद्दंड किसानों द्वारा सड़क पर मौजूद पुलिस को खदेड़ते और डराते सबसे अधिक बार दिखाया गया।

इसके बाद सबसे अधिक तस्वीरें नांगलोई में एक फ्लाईओवर के नीचे से निकलते ट्रैक्टर जुलूस पर पीछे से लाठी मारते पुलिस के जवानों को देखा जा सकता था, लेकिन न्यूज़ 24 का पत्रकार बता रहा था कि यहाँ पर सैकड़ों आंसू गैस और रह-रहकर लाठीचार्ज का इस्तेमाल दरअसल फ्लाईओवर के नीचे जमा हो रही भीड़ को तितर-बितर करने के लिए किया जा रहा है। पता नहीं यह उसके मालिक का आदेश था, या उसे भी पुलिसिया लाठी का डर था, जो उसके आस-पास चल रही थी।

न्यूज़ 24 को कांग्रेस समर्थक चैनल माना जाता है, लेकिन उसके भीतर अगर एक मुख्य पत्रकार को छोड़ दें, तो बाकी सभी का रुख सरकार समर्थक और अपनी रोजी-रोटी से सरोकार से अधिक नहीं दिखता। इसके बाद तो तमाम हिंदी चैनलों की तो क्या ही कहने। ज़ी न्यूज़, आज तक, इंडिया न्यूज़, रिपब्लिक भारत सहित सैकड़ों कुकुरमुत्तों की तरह उग आये मीडिया चैनलों से वैसे भी कोई उम्मीद शायद ही किसी को हो।

लेकिन सबसे अधिक निराशा आम लोगों को किसी ने किया तो वह एनडीटीवी की पत्रकारिता ने किया है। यह सभी लोग जानते हैं कि एनडीटीवी के मालिक प्रणव रॉय के खिलाफ मोदी सरकार ने कई बार दबिश की है, और कई प्रकार से दबाव डालने के प्रयास किये हैं। सरकारी विज्ञापनों का टोटा एनडीटीवी के सामने रहा है। लेकिन यदि बारीकी से देखें तो पता चलेगा कि इन वर्षों में अपनी ओर से एनडीटीवी ने कई बार सरकार के पक्ष में या कहें खुद को तटस्थ दिखाने की कोशिशें की हैं। यह अलग बात है कि मोदी सरकार के लिए उसके प्रति वैर भाव तब तक खत्म नहीं हो सकता, जब तक रवीश कुमार और श्रीनिवासन जैन जैसे निर्भीक पत्रकारों को यह चैनल अपने यहाँ से नहीं निकाल देता।

परसों ही इंडिया टुडे ने देश के वरिष्ठतम पत्रकार राजदीप सरदेसाई को अगले 15 दिनों के लिए निष्काषित कर दिया है। इस बारे में ठोस तौर पर कोई सूचना नहीं है, लेकिन अपुष्ट सूत्रों से उन्हें यह सजा बंगाल चुनावों को कवर करने के कारण दी गई है। आप इस दौर को अब तक के इतिहास का सबसे काला अध्याय कह सकते हैं। अघोषित आपातकाल देश पर तो लगा ही है, लेकिन मीडियाकर्मियों के लिए आज यह सबसे पतित दौर है। इससे अधिक खराब दौर शायद हिटलर के शासनकाल में जर्मनी में ही देखने को मिला हो।

दीप सिद्धू नामक पंजाबी गायक द्वारा किस प्रकार से सिंघु बॉर्डर पर 25 जनवरी की रात को मंच पर पहुँचकर बैरिकेड तोड़कर सुबह ही लाल किले पर धावा बोलना है की खबर आज सारे देश को पता है, लेकिन मीडियाकर्मियों के पास पिछले तीन दिनों से गृह मंत्रालय द्वारा पल-पल की सूचना को अपने चैनलों के जरिये देना, किसानों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की सूचना कुछ इस तरह प्रचारित की जाती रही, मानो देश की आँख, नाक, कान का दावा करने वाले इन चैनलों के पास सिर्फ सरकारी चाकरी और उसके छोटे एक्शन को कई गुना दिखाने का ही काम बचा है। उन्हें तनख्वाह मानो चैनल द्वारा न देकर सरकार द्वारा ही दी जा रही हो।

कल सुबह से ही सभी मीडिया चैनल गाजीपुर बॉर्डर में यूपी सरकार के एक्शन प्लान की पल-पल की खबरें बढ़-चढ़कर देते रहे। रैपिड एक्शन फ़ोर्स की तैनाती, पुलिस के मार्च पास्ट इत्यादि से लेकर गाजियाबाद प्रशासन द्वारा किसानों को दी जाने वाली पानी, बिजली के कनेक्शन को काटने की खबरें ब्रेकिंग न्यूज़ बन रही थीं। सभी सीमाओं पर पिछले 65 दिनों से डटा किसान मानो एक अपराधी था इनके लिए। ये सभी किसान जो 8 साल के बच्चे से लेकर 80 साल तक के बुजुर्ग को एक अवांछित अपराधी के तौर पर दिखा रहा था, इस बात को सबसे अधिक किसानों ने महसूस किया। उन्होंने भी मान लिया कि शायद हम से ही कोई भूल हुई, जो हम अपने युवाओं को ऐसी हरकतों से रोक नहीं सके।

27 जनवरी से ही किसानों का रेला अपने-अपने गाँवों की ओर लौटने लगा था। इसमें कई ट्रैक्टर 26 जनवरी के लिए विशेष तौर पर लाये गए थे, जिसमें गाँव के बड़े बूढ़े, बच्चे और महिलाओं को वापस भेजा जा रहा था। सरकारी सूत्रों और न्यूज़ मीडिया ने इसे किसान नेताओं की नैतिक हार समझा और करीब-करीब इस बात को मान लिया कि अब सरकार को इस किसान आन्दोलन से निपटने में कोई दिक्कत नहीं होने जा रही है।

28 तारीख की दोपहर को सिंघु बॉर्डर पर कुल जमा 100 लोगों की भीड़ को सभी मीडिया चैनलों ने खूब बढ़-चढ़कर दिखाया। बताया गया कि सिंघु बॉर्डर के आस-पास के कई गावों के ग्रामीण इस पंजाब के आन्दोलन को अपने यहाँ अब और अधिक बर्दाश्त नहीं कर सकते। जबकि उस छोटी सी भीड़ में बड़ा तबका भाजपा समर्थकों का था, और कुछ ही लोग आसपास के इलाकों से जमा हुए थे। लेकिन ठीक उसी समय सिंघु बॉर्डर पर जमे किसानों की ओर से जो विशाल तिरंगे के साथ ट्रैक्टर रैली निकाली जा रही थी, उसे किसी भी मीडिया चैनल द्वारा नहीं दिखाया गया। हालाँकि रात 9 बजे के रवीश कुमार के प्राइम टाइम पर उसकी कुछ झलकियाँ देखने को मिल ही गईं।

सबसे अजीबोगरीब दृश्य और निर्णायक मोड़ गाजीपुर बॉर्डर में देखने को मिला। सभी मीडिया चैनलों ने अपनी गिद्ध दृष्टि गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों के तम्बू-कनातों को उखाड़े जाते देखने पर लगा रखी थी। राकेश टिकैत जिन्होंने कल खुद स्वीकारा कि उन्होंने भाजपा को ही वोट दिया था, और जिनके बारे में यह चर्चा आम थी कि सभी किसान नेताओं में उनका चरित्र सबसे अधिक संदेहास्पद और सरकार के साथ सांठ-गाठ वाला रहा है, 180 डिग्री बदलता हुआ दिखा। उनके बड़े भाई नरेश टिकैत और भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष ने भी अपनी हार को स्वीकार कर लिया था, और सुबह ही अपने दल-बल के साथ वे गाजीपुर धरना स्थल से रवाना हो चुके थे।

राकेश टिकैत के खिलाफ गिरफ्तारी का दबाव बढ़ता जा रहा था, और आशंका थी कि गाजीपुर से किसानों के ट्रैक्टर मार्च के अक्षरधाम से रास्ता आनंद विहार की ओर न मिलने पर उन्होंने जब आईटीओ की ओर रुख किया तो इसे ही गाजीपुर धरना स्थल के नेता के तौर पर राकेश टिकैत के खिलाफ हिंसा भड़काने और लाल किले के मुख्य आरोपी के तौर पर अंजाम दिया जाना तय है। उनके खिलाफ यूएपीए के तहत लंबी हिरासत की खबरें भी हवा में तैर रही थीं। किसान एक-एक कर धरना स्थल से निकलने लगे थे, वहीं यूपी प्रशासन ने सभी इलाकों और राजमार्ग को पूरी तरह से सील कर दिया था।

किसी बड़ी घटना की आशंका हवा में तैर रही थी। किसी भी पल इस बड़ी गिरफ्तारी को लेकर मीडिया के सभी चैनल बड़ी बेसब्री से इन्तजार में थे। लेकिन यही पल किस प्रकार से उनके ही इरादों के खिलाफ गया, यह बात मीडियाकर्मियों को कभी सपने में भी समझ में नहीं आ सकती है। जैसे ही मंच से किसान नेताओं ने अपने बचे- खुचे किसानों को सम्बोधित करने में विलंब लगाया, कुछ पुलिस के जवान मंच पर पहुँच गए, और बताया जा रहा है कि उन्होंने राकेश टिकैत से गिरफ्तारी देने के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया।

इसी बीच मंच पर और आसपास यह खबर तेजी से फ़ैल गई कि लोनी के विधायक नंद किशोर गुजर, अपने 100 से अधिक गुंडों की फ़ौज के साथ सभा-स्थल के आस पास घूम रहे हैं। राकेश टिकैत के पास यह अंतिम उपाय था, जब उनके मुँह के पास मीडियाकर्मियों की लपलपाती माइक घुसेड़ी जा रही थी। अचानक से उन्होंने रुंधे गले से बताया कि किस प्रकार से किसान आन्दोलन को खत्म करने की सरकार और गुंडों की सेना भेजी गई है। मीडियाकर्मियों को लगातार दूसरे सवाल पूछे जाते देखा जा सकता है, लेकिन राकेश टिकैत ने घोषणा कर दी कि वे गिरफ्तारी नहीं देने जा रहे हैं, यदि इसके लिए मजबूर किया गया तो वे मंच पर ही फाँसी लगा लेंगे। क्योंकि उनके समर्थक किसान भाइयों को वापस लौटते समय लाठी डंडों से गुजर विधायक के लठैतों द्वारा पीटे जाने की योजना का खुलासा हो चुका है। उन्होंने प्रशासन द्वारा पानी और बिजली काटे जाने पर ऐलान कर दिया कि वे तब तक जल ग्रहण नहीं करेंगे, जब तक कि उनके गाँव से पीने मुहैय्या नहीं होता।

इस रहस्योद्घाटन ने जंगल में आग की तरह देश भर में फैलने का काम किया। जैसे ही यह खबर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में पहुंची, नरेश टिकैत ने अपने गाँव में पंचायत बुला ली, और अगले ही दिन दिल्ली कूच करने की मुनादी कर डाली। रात 11 बजे ही उनके गाँव से सैकड़ों ग्रामीणों के रणसिंघे की मुनादी के साथ दिल्ली कूच अभियान की शुरुआत हो चुकी थी। करीब 100 युवा किसानों का जत्था राकेश टिकैत के लिए पीने के पानी के साथ दिल्ली की ओर निकल पड़ा था।

कुछ ही पलों में राष्ट्रीय लोक दल के नेता अजित सिंह द्वारा पहली बार राकेश टिकैत को फोन करने और समर्थन दिए जाने के आश्वासन के बाद जहाँ राकेश टिकैत को आवश्यक संजीवनी मिली, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित हरियाणा के जाट बहुल विभिन्न जिलों से किसानों का रेला गाजीपुर बॉर्डर की ओर कूच कर चुका था। आज देश के तमाम हिस्सों से समर्थन जिसमें अखिलेश यादव, दिल्ली आप सरकार, प्रियंका गांधी सहित तमाम नेताओं के ट्वीट रात भर आने लगे थे। सरकार की उम्मीदों को एक करारा झटका कुछ ही घंटों में लग चुका था। जो मीडिया किसान आन्दोलन की कब्र खोदने के लिए कई दिनों से बैचेन था, राकेश टिकैत की एक संवेदनापूर्ण अपील ने उस पर मानो मट्ठा डाल दिया था।

कुल मिलाकर कहें कि जो काम गृह मंत्रालय और यूपी सरकार ने तय मान लिया था, उसे उनके ही चारण मीडिया चैनलों द्वारा ही अति उत्साह में देखते ही देखते किस प्रकार बर्बाद कर दिया, इसे समझने में अभी उन्हें कई दिनों का वक्त लगने जा रहा है।

आज सुबह छह बजे से ही यदि कोई एक हिंदी चैनल ने अपने संवाददाता को गाजीपुर स्थल पर भेजा था तो वह था एबीपी न्यूज़। लेकिन ऑफिस में बैठे एक पुरुष मीडियाकर्मी और दो ऊँची कुर्सियों पर लिपी-पुती दो महिला संवावदाताओं की भाव-भंगिमा को देखने से साफ़ पता चल रहा था कि उन्हें किस प्रकार के स्पष्ट निर्देश चैनल प्रबंधकों द्वारा दिए गए हैं। कम से कम दो बार जब घटनास्थल की रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकार ने वहां पर मौजूद लोगों से बातचीत करनी चाही, और उन्होंने जैसे ही हजारों ट्रैक्टरों और किसानों के जत्थे के जत्थे पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के गाँवों से हुजूम के साथ दिल्ली में दोपहर तक आने की बात कही, झट से बाईट को हटाकर विज्ञापन जारी किये जाने लगे।

आज इन धूर्त मीडिया चैनलों के कारण देश रसातल में डूब रहा है। किसान, मजदूर, दलित, महिला, बेरोजगार, छात्र इनकी दोजख की आग को पूरा करने के लिए खाक में मिलाया जा रहा है। आज जरूरत है वैकल्पिक मीडिया की। यह जरूरत आज से अधिक कभी नहीं महसूस की गई। जो भी आन्दोलन चल रहा है वह स्वतंत्र मीडिया चैनलों, वेब पोर्टलों और सोशल मीडिया में जागरूक लोगों के द्वारा ही मुहैय्या कराया जा पा रहा है।

इस बीच घटनाक्रम के इस नाटकीय मोड़ से यूपी सरकार में मौजूद योगी आदित्यनाथ की किरकिरी होनी स्वाभाविक है। केंद्र सरकार की ओर से अपरोक्ष तौर पर जरूरत से अधिक सख्त रुख दिखाने के आरोप और सरकारी स्मूथ दमन पर पलीता लगाने की जल्दबाजी के लिए योगी सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाना तय है।

लेकिन किस प्रकार से विपरीत परिस्थितयों में भी हिम्मत और सूझ-बूझ के साथ आन्दोलन को एक बार फिर से पुनर्जीवित किया जा सकता है, और सरकारी दमन को धता बताई जा सकती है इस बात को किसान नेता राकेश टिकैत ने एक बार सोदाहरण प्रस्तुत किया है। यह देश में मौजूद तमाम परिवर्तनकामी नेतृत्व को जो थकाव-घिसाव की जमीनी लड़ाई तो ईमानदारी से दशकों से लड़ रहे हैं, लेकिन उनके पास टिकैत जैसी अपील और जनभावनाओं को कैसे आन्दोलन के पक्ष में किया जाता है, को समझने के लिए इससे अच्छा उदाहरण सिर्फ गांधी जी के आंदोलनों के इतिहास में ही मिल सकता है।

(रविंद्र सिंह पटवाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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