मैं उनके बारे में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जब पढ़ रहा था 80 के दशक में तब जान सका था। हिंदी में साँचा नामक एक पत्रिका उन्होंने शुरू की थी दिल्ली से। हिंदी के पाठकों के लिए वह पत्रिका किसी रेगिस्तान में प्यासे मरते इंसान के लिए पानी की बूंद की तरह थी।
नवलखा मेरी समझ में जिस क्लास से आते हैं, वह उसके ही खिलाफ लड़ रहे हैं। उनके पास पहले से ही दुनिया की सारी सुख सुविधाएं, मौजूद हैं। वे शायद किसी भी वाम पार्टी के सक्रिय सदस्य होते तो उसके शीर्ष पर होते, लेकिन बिना रहे भी जितनी पैनी नजर देश पर और सर्वहारा किसान वर्ग पर उनकी रहती है, शायद इक्के दुक्के पत्रकार ही उनके जैसे होंगे। राजनीतिक पार्टियों में तो अब ये सब काफी विरला ही है।
परसों जब देश इस लॉक डाउन के मौके पर अम्बेडकर जयंती मना रहा था, उनकी बातों को असल में जमीन पर लागू कराने वाले लोगों में सबसे अग्रणी रहे गौतम नवलखा एनआईए ऑफिस में अपनी गिरफ्तारी देने के लिए दोपहर अपने घर से निकले थे।
मजे कि बात ये है कि पिछले हफ्ते ही उन्होंने जो लेख न्यूज़क्लिक के लिए लिखा था, उसमें उन्होंने आशा की थी कि दुनिया में जारी युद्ध में फिलहाल युद्धविराम लगेगा। और शायद दुनिया के शक्तिशाली लोग गंभीरता से अपनी भूलों पर पुनर्विचार करेंगे। दुनिया में युद्ध विराम की घोषणा भी कई जगह हुई है।
मजे की बात तो ये है कि जहाँ इन पर माओवादी समर्थक होने का आरोप लगता रहा है, उन्हीं द्वारा हाल में छत्तीसगढ़ में सशस्त्र बल पर हमले पर उनकी प्रतिक्रिया काफी तीखी थी, और उनका मानना था कि इन माओवादी संगठनों को इस महामारी के समय भी देश दुनिया की कोई फ़िक्र नहीं, इसका अर्थ यह है कि जो सरकार कहती आई है, ये वही खुद के बारे में साबित कर रहे हैं।
लेकिन दो दिन पहले ही माओवादी संगठनों की अपील अख़बारों में देखने को मिली है कि उन्होंने अपनी ओर से संघर्ष विराम की घोषणा की है।
सबसे खूबसूरत पहलू जो गौतम नवलखा के व्यक्तित्व में मुझे दिखा, वह था उनका कश्मीर मामले में फ़ौज के प्रति। सारे भारत में उन्हें माओवादी से अधिक कश्मीर समर्थक और उग्रवाद समर्थक के रूप में चित्रित किया जाता है।
जबकि गौतम ने फौजी बैरकों के बारे में जो चित्रण किया था, वह वाकई में हृदय विदारक था। शायद ही कोई ऐसा लेख किसी ने लिखा हो। उन्होंने साफ़ लिखा था कि लाखों की तादाद में आज कश्मीर में बैरकों, टेंट में रखे जा रहे मिलिटरी के लोगों (मुंह से मुंह सटा कर सोने की जगह) में यदि कोरोना वायरस गलती से भी चला जाता है तो वह दृश्य भयावह होगा।
जो खुद देश की रक्षा करते हैं, उनके लिए बाकी जगह से स्वास्थ्य कर्मियों और डॉक्टरों की टीम भेजनी पड़ेगी। इसलिये सरकार को यहाँ कम से कम जवानों को रखना चाहिए। अब वही गौतम नवलखा खुद जेल की बैरक में चले गए।
जबकि ईरान सहित दुनिया के कई देशों में अपनी जेलों को खाली किया जा रहा है। भारत एकमात्र दुनिया में ऐसा देश होगा, जिसकी रुचि मेडिकल किट में, वेंटिलेटर में नहीं बल्कि ऐसे शानदार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विश्व नागरिकों को जेल की सलाखों के पीछे बंद करने में है।
क्योंकि क्या पता इनकी लेखनी से वे इस बात को बता दें दुनिया को कि जो फेस मास्क आपको घर पर बनाने के लिए कहा जा रहा है, वो सिर्फ इसलिये है क्योंकि वह बेहद चंद लोगों के लिए रिज़र्व है, और देश उसे अफ्फोर्ड नहीं कर सकता।
(Girda Jagar की ओर से Himanshu Kumar जी द्वारा प्रस्तुत ऑडियो को अपने आप वीडियो में जिस खूबसूरती से तब्दील किया गया है।)
(रविंद्र सिंह पटवाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)
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