Saturday, April 27, 2024

“लोकतान्त्रिक भारत की हत्या कर रहा है कार्पोरेटी हिंदुत्व”

भोपाल। “कार्पोरेटी हिंदुत्व लोकतान्त्रिक भारत की ह्त्या कर रहा है। संवैधानिक मूल्यों को ध्वस्त किया जा रहा है। असहमति रखने वाले व्यक्तियों, संगठनों को फासीवादी औजारों से खामोश किया जा रहा है; समाज के लोकतांत्रिक माहौल – डेमोक्रेटिक स्पेस – को ख़त्म किया जा रहा है।” यह बात संजय पराते ने 19 वें शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान में बोलते हुए कही। उन्होंने कहा कि जो भी जायज बात रखता या उठाता है उसे नक्सल या पाकिस्तानी करार देकर निशाने पर ले लिया जाता है। बस्तर का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वहां के नौजवान संविधान में लिखी बातों को पोस्टर की तरह हाथ में लेकर जुलूस निकालते हैं या किसी प्रशासनिक अधिकारी को संविधान की पुस्तक भेंट करते हैं तो उन्हें भी जेल में डाल दिया जाता है। समूचे छत्तीसगढ़ में आदिवासियों ने संविधान की मुख्य बातों को पत्थर पर उकेर कर शिलालेख बनाये थे जिसे 15 वर्षों के भाजपा राज में तोड़ दिया गया।

“बस्तर से सरगुजा तक ; स्थगित संविधान, निलबित लोकतंत्र” पर बोलते हुए सीपीआई (एम) छत्तीसगढ़ राज्य सचिव संजय पराते ने कहा कि छत्तीसगढ़ की दो तिहाई से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे बसर करती है। खाद्य सुरक्षा और न जाने किन-किन मामलों में देश भर में अव्वल प्रदेशों में होने का दावा करने वाले छग में भूख से मौतों की घटनाएं इन दावों की सच्चाई बयान करती हैं। आदिवासी आवाज उठाता है तो सिलगेर जैसे काण्ड करके उन्हें गोलियों से भून दिया जाता है। स्वास्थ्य व्यवस्था की बुरी हालत के चलते एक ओर जहां कोरोना में सरकारी दावे से कई गुनी मौतें हुयीं वहीं दूसरी ओर निजी अस्पतालों ने जमकर लूट मचाई और एक एक मरीज से लाखों वसूले। खुद सरकार द्वारा तय की गयी दरें भी अनाप शनाप थीं।

संजय पराते ने कहा कि सरकारें चाहे भाजपा की हों या कांग्रेस की कारपोरेट की लूट के रास्ते आसान करने और उसके लिए लोकतंत्र को लाठीतन्त्र में बदलने के लिए दोनों ही तत्पर हैं। असली सवालों की बजाय एक राम वनपथगमन का रास्ता ढूंढने पर करोड़ों रुपये फूंक देता है तो दूसरा गाँव-गाँव में रामायण बंटवाकर और जबरिया उसका पाठ करवाकर आदिवासियों की संस्कृति नष्ट कर उन्हें हिन्दू बनाने पर तुला है। गाय के बहाने दलितों और धर्मांतरण के बहाने ईसाइयों पर हमले बढ़े हैं। बुनियादी समस्या या मांगों को उठाने पर सुधा भारद्वाज की तरह जेल में डाले रखना या स्टेन स्वामी की तरह सांस्थानिक हत्या का शिकार बनाना आम रवैया है। जंगलों के विनाश पर सहज आक्रोश व्यक्त करने पर आदिवासी दमन का शिकार बनाये जा रहे हैं। असली लड़ाई इस शुद्ध तानाशाही से है।

बोधघाट परियोजना का उदाहरण देते हुए संजय ने कहा कि असली इरादा किसी भी तरह कारपोरेट के मुनाफे को बढ़ाने का है।
संजय पराते ने कहा कि उदारीकरण के दौर में, आजादी के बाद की चिंतन प्रणाली को सबसे पहले नष्ट किया गया। कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ने रोजी रोटी छीनने और आदिवासी गरिमा को कुचलने का रास्ता अख्तियार किया है। सलवा जुडूम के मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस निर्णय में कहा गया था कि “क्या सत्ताधारी नीति निर्माता भारत के संविधान से संचालित हो रहे हैं?” इसका जवाब नहीं में देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि “यह विकास आतंकवाद है। यह वैश्वीकरण की लागत गरीबों पर थोपकर इसका फ़ायदा कार्पोरेट्स को पहुंचाना है। प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट कर, उन पर कारपोरेट का कब्जा कराकर दरबारी पूँजीवाद के लिए आदिवासियों की बलि ली जा रही है।

संजय पराते ने आदिवासियों को सभ्य बनाने के दावे को धूर्तता बताते हुए कहा कि सभ्यता का कोई एक पैमाना नहीं हो सकता- संस्कृतियों को नष्ट कर एक तरह की संस्कृति थोपकर तथाकथित एकरूपी सभ्यता नहीं गढ़ी जा सकती।
(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles