‘राजाजी’, यानि चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के नाती और महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी ने कहा है कि गृहमंत्री अमित शाह ने ‘सेंगोल’, यानि राजदंड की ऐतिहासिकता को दिखाने के लिए जो वीडियो दिखाया, वह कलाकारों से अभिनय करा कर तैयार कराया गया है, लेकिन उस वीडियो में इस बात का जिक़्र नहीं है कि यह नाटकीय प्रस्तुति है। जिस तरह से सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया के संबंध में राजाजी और नेहरू के बीच विचार-विमर्श, धार्मिक व्यक्तियों द्वारा नेहरू को वस्त्र पहनाने, अभिसिंचित करने व सेंगोल भेंट करने के दृश्यों को कलाकारों से अभिनय कराकर फिल्माया गया है, और इन दृश्यों के बीच-बीच में नेहरू से संबंधित पुराने ऐतिहासिक फोटोग्राफ डाले गये हैं, उनसे तमाम दर्शक आज भी, और भविष्य में भी, इसे वास्तविक दस्तावेज़ी फिल्म समझने की ग़लती कर सकते हैं। वे समझ सकते हैं कि वे नेहरू और राजाजी के बीच सचमुच के वार्तालाप और सचमुच के धार्मिक समारोह देख रहे हैं।
राजमोहन गांधी ने कहा कि राजाजी के नाती और उनके जीवनीकार की हैसियत से मैं बताना चाहूंगा कि गृहमंत्री शाह की प्रेस कॉन्फ्रेंस की रिपोर्टें मीडिया में आने से पहले तक इस सेंगोल की कहानी में राजाजी की इस कथित भूमिका के बारे में मैंने कभी कुछ सुना तक नहीं था। 1947 से आज तक न केवल मैंने, बल्कि बहुत सारे अन्य लोगों ने भी इस कहानी के बारे में कुछ भी नहीं सुना है, इसलिए सरकार को चाहिए नेहरू, माउंटबेटन और राजाजी के संबंध में, इस कहानी के बारे में सभी दस्तावेज़ों को जल्द से जल्द सार्वजनिक करे।
राजमोहन गांधी ने ‘राजाजी : अ लाइफ’ शीर्षक से राजाजी की जीवनी लिखी है, जिसे 2001 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है। राजमोहन गांधी ने इस अभिनीत वीडियो की पूरी कहानी को प्रश्नांकित किया है और कहा है कि सरकार के पास अगर इस कहानी को पुष्ट करने वाले दस्तावेज़ हैं तो उन्हें सामने लाना चाहिए। अगर यह मान भी लिया जाए कि 14 अगस्त 1947 की रात को कुछ सम्मानित धार्मिक लोगों का कोई प्रतिनिधि मंडल नेहरू के आवास पर गया था और उन लोगों ने वहां पर कुछ धार्मिक आयोजन किये हों, तो इससे न तो यह सरकारी समारोह बन जाता है, न ही राजकीय समारोह।
राजमोहन गांधी ने कहा कि एक चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री, उप राष्ट्रपति, राष्ट्रपति तक सभी सरकारी सेवक होने के साथ-साथ स्वतंत्र व्यक्ति भी होते हैं। वे लोग एक व्यक्ति के रूप में, और अपने घरों में अपनी पसंद के अनुष्ठान कर सकते हैं, या उनकी अनुमति दे सकते हैं। लेकिन एक लोकसेवक के रूप में, और सार्वजनिक स्थलों पर संविधान के प्रति प्रतिबद्धता के कारण उन्हें किसी धर्म को बढ़ावा देने या तिरस्कृत करने वाले आयोजनों में भागीदारी से परहेज करना होता है। उनके घरों में हुआ कोई भी समारोह राज्य का या राष्ट्रीय समारोह नहीं होता। अतः इस सेंगोल को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बना देना तथा इसे लोकसभा में स्थायी रूप से स्थापित कर देना संविधान की भावना के खिलाफ होगा।
(शैलेश की रिपोर्ट)