कोरोना काल के दौरान जारी लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की मौत के मुआवजे पर केंद्र सरकार ने कहा कि हमारे पास आंकड़े नहीं हैं तो मुआवजा कैसे दें। बात सही भी है। मजदूर विरोधी किसी सरकार के पास मजदूरों की मौत की जानकारी हो भी कैसे सकती है?
जिस सरकार के शासनकाल में बेरोजगारी दर सबसे अधिक हो, उस सरकार को किसान-मजदूर और बेरोजगारी के कारण मारे गये लोगों की जानकारी हो भी नहीं सकती। बेरोजगारी और महामारी के संकट की इस घड़ी में किसी एक जीवन को भी मरने से बचा पाना भी बहुत बड़ी उपलब्धि है।
बीते दो दिनों से सोशल मीडिया पर एक ढाबे की तस्वीर खूब चर्चा में है। राजधानी दिल्ली के मालवीय नगर स्थित एक बाबा के ढाबे की तस्वीर इस समय सोशल मीडिया पर वायरल है। दरअसल दो दिन पहले किसी ने मालवीय नगर में ढाबा चलाने वाले एक वृद्ध व्यक्ति को रोते हुए एक वीडियो ट्विटर पर लगाया था। इस वीडियो में कहा गया था कि एक बुजुर्ग ढाबा चलाकर जिन्दगी गुजार रहे थे किन्तु लॉक डाउन और कोरोना के चलते अब कोई नहीं आता ढाबे पर।
इसके बाद उस वीडियो को कई लोगों ने शेयर करते हुए उस ढाबे पर खाना खाने के लिए अपील किया था। देखते ही देखते वह वीडियो वायरल हो गया और अब सोशल मीडिया की ताकत से उस वृद्ध दम्पत्ति की जिन्दगी में ख़ुशी लौटने का जश्न मनाया जा रहा है। यह अच्छी बात है। लेकिन प्रश्न यहां एक जिन्दगी का नहीं, करोड़ों जिन्दगियों का है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार 2019 में दिहाड़ी मजदूरों, विवाहिता महिलाओं के बाद बेरोजगारों और विद्यार्थियों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति सबसे अधिक देखी गई है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी, 2019) की रिपोर्ट कहती है कि 2019 में कुल 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की जिनका रिकॉर्ड दर्ज हुआ। इन 1,39,123 लोगों में से 10.1% यानी कि 14,051 लोग ऐसे थे, जो बेरोजगार थे। मतलब हर रोज लगभग 38 बेरोजगारों ने आत्महत्या की।
बेरोजगार लोगों की आत्महत्या का यह आंकड़ा पिछले 25 सालों में सबसे अधिक है और इन 25 सालों में पहली बार बेरोजगार लोगों की आत्महत्या का प्रतिशत दहाई अंकों (10.1%) में पहुंचा है। 2018 में आत्महत्या करने वाले बेरोजगार लोगों की संख्या 12,936 थी। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार दिहाड़ी मजदूरों (23.4%), विवाहिता महिलाओं (15.4%) और स्व रोजगार करने वाले लोगों (11.6%) के बाद सबसे अधिक आत्महत्या बेरोजगारों (10.1%) ने ही की।
कोरोना और मोदी सरकार की गलत नीतियों की वजह से देश में 12 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हो चुके हैं और सैकड़ों लोग आत्महत्या कर चुके हैं। वहीं विश्व बैंक ने महामारी के कारण 150 मिलियन (15 करोड़) लोगों के साल 2021 तक अत्यंत गरीबी से जूझने की आशंका जताई है।
गौरतलब है कि बीते 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन को देश के युवाओं ने ‘राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस’ के रूप में मनाया था।
कोरोना संक्रमण से भारत में अब तक एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और रोज औसतन एक हजार लोग आज भी मर रहे हैं। दरअसल ये मौतें केवल कोविड-19 से नहीं बल्कि सही इलाज और समय पर अस्पताल में जगह नहीं मिलने के कारण अधिक हो रही हैं।
आपदा में अवसर खोजना मोदी सरकार और बीजेपी से बेहतर कौन जानता है भला। जिस तरह से संसद में कृषि बिल पारित किया गया उसे लोकतंत्र में काला दिवस के रूप में याद किया जायेगा। कुल मिलाकर मोदी सरकार को सिर्फ सत्ता से मतलब है। वह किसी भी कीमत पर सत्ता चाहती है और उसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं।
(नित्यानंद गायेन कवि और पत्रकार हैं। आप आजकल दिल्ली में रहते हैं।)