Thursday, April 25, 2024

यह भारतीय लोकतंत्र की परीक्षा की घड़ी है: सोनिया गांधी

प्रधानमंत्री मोदी की भावभंगिमा और उनकी हरकतें उनके शब्दों से अधिक उनकी भावनाओं और विचारों को अभिव्यक्त करती हैं, यह बात भारत के लोग जान गए हैं। खासकर तब जब लोग आज के भारत की स्थिति समझना चाहते हैं। प्रधानमंत्री लोगों का ध्यान भटकाने के लिए तुच्छता और मौखिक बाजीगरी का इस्तेमाल करते हैं। यह काम वे तब करते हैं, जब वे विपक्ष पर गुस्सा निकाल रहे होते हैं, या आज के भारत की समस्याओं के लिए पिछले नेताओं को दोष दे रहे होते हैं, या उस दिन उन पर दबाव डालने वाले सबसे बड़े मुद्दे को अनदेखा कर रहे हों या इन मुद्दों से बचना चाहते हों या ध्यान भटकाना चाहते हों।उनके कार्य सरकार का असली इरादा क्या है, इसके बारे में सोचने के लिए बहुत कम गुंजाइश छोड़ते हैं।

लोकतांत्रिक संस्थानों पर हमला 

पिछले महीनों में हमने प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को भारतीय लोकतंत्र के तीनों स्तंभों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से ध्वस्त करते देखा। वे और उनके कार्य भारतीय लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति जवाबदेही के प्रति एक गहरी अवमानना प्रदर्शित करते हैं। संसद में घटी हाल की घटनाओं पर विचार करें।

संसद के हालिया बीते सत्र में सरकार ने संसद को बाधित किया। विपक्ष को बेरोजगारी, महंगाई और सामाजिक विभाजन जैसे गंभीर मुद्दों को उठाने से रोका। सरकार ने बजट और अडानी घोटला पर चर्चा करने की विपक्ष की हर कोशिश को नाकाम कर दिया। इसके साथ अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर विपक्ष को चर्चा नहीं करने दिया। दृढ़ता के साथ खड़े विपक्ष का मुकाबला करने के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार ने ऐसे उपाय अपनाए, जो अब तक संसदीय इतिहास में देखे नहीं गए।

इन उपायों में शामिल है, भाषणों को मिटाना, चर्चा को रोकना, संसद सदस्यों पर हमला करना और आनन-फानन में कांग्रेस के एक सांसद को अयोग्य घोषित करना। नतीजा यह हुआ कि जनता के पैसे के 45 लाख करोड़ रुपये का बजट बिना किसी बहस के पास हो गया। सच तो यह है कि जब वित्त विधेयक लोकसभा के माध्यम से पास किया गया, उस समय प्रधानमंत्री अपने निर्वाचन क्षेत्र में मीडिया के तामझाम के साथ परियोजनाओं का उद्घाटन करने में व्यस्त थे। 

नरेन्द्र मोदी की सरकर ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय ( ED) का कितना दुरूपयोग किया है, सर्वविदित सच्चाई है। 95 प्रतिशत से अधिक मामले केवल विपक्षी दलों के खिलाफ दायर किए गए हैं। विपक्षी पार्टियों को छोड़कर जो लोग भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाते हैं, उनके खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार के मामले रातों-रात खत्म हो जाते हैं। पत्रकारों, एक्टिविस्टों और प्रतिष्ठित थिंक टैंक के लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग इस तरह का कोई उदाहरण पहले नहीं मिलता है।

प्रधान मंत्री ने अपने निकटस्थ कारोबारी (अडानी) के खिलाफ लगे धोखाधड़ी के आरोप को नजरअंदाज कर दिया है। उसके बाद भी वे सच्चाई और न्याय के बारे में बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं। इंटरपोल भगोड़े मेहुल चोकसी के खिलाफ जारी नोटिस वापस ले लेता है। बिलकिस बानो के दोषी बलात्कारियों को मुक्त कर दिया जाता है। सिर्फ उन्हें मुक्त ही नहीं किया जाता है, भाजपा नेता उन बलात्कारियों के साथ मंच भी साझा करते हैं।

न्यायपालिका की विश्वसनीयता को कम करने के लिए सरकार हर संभव कोशिश कर रही है, यह काम बहुत व्यवस्थित तरीके से किया जा रहा है। यह कोशिश संकट के बिंदु पर पहुंच गया है। केंद्रीय कानून मंत्री ने कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को ‘राष्ट्र-विरोधी’ कहा और चेतनावनी दी कि ‘वे कीमत चुकाएंगे।” इस तरह की भाषा का इस्तेमाल जानबूझकर लोगों को गुमराह करने और उनकी भावनाओं को भड़काने के लिए किया जाता है। साथ ही सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को डराया भी जाता है। 

एक हमला और धमकी

मीडिया ने अपने स्वतंत्रता के साथ समझौता कर लिया है। यह काम लंबे समय से भाजपा के दोस्तों की आर्थिक ताकत और सरकार की राजनीतिक धमकी के मेल से किया जा रहा है। मीडिया की शाम की बहस सरकार पर सवाल उठाने वालों पर चिल्लाने और उन्हें चुप कराने के लिए गाली-गलौच का इस्तेमाल करने में तब्दील होती दिख रही है। नरेंद्र मोदी सरकार मीडिया के सिर्फ इस समझौतावादी चरित्र से संतुष्ट नहीं है, उसने ‘फेक न्यूज’ को नियंत्रित करने के नाम पर जो भी खबर उसे नापसंद है, उसे हटाने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के नियमों में संशोधन करके खुद को कानूनी शक्तियों से लैस कर लिया है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल में ही स्पष्ट किया है कि सिर्फ सरकार की आलोचना करने के चलते किसी को दंडित नहीं किया जा सकता है। क्या इस बात को सरकार सुन रही है? ज्यों ही कोई मीडिया या अन्य संस्थान ‘महान नेता’ ( नरेंद्र मोदी) की आलोचना प्रकाशित करता है, उसे उत्पीड़ित करने के लिए भाजपा और आरएसएस के वकीलों की एक सेना सामने आ जाती है।

लोगों का चुप रहने के लिए बाध्य करना भारत की समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता है। प्रधानमंत्री उन वाजिब सवालों पर चुप हैं, जो लाखों लोगों की जिंदगी को प्रभावित करते हैं।

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में बेरोजगारी या महंगाई का कोई जिक्र नहीं किया। उनके भाषण से ऐसा लगा, जैसा ये कोई समस्याएं हैं, ही नहीं। दूध, सब्जियों, अंडे, रसोई गैस और तेल जैसी दैनिक वस्तुओं की महंगाई पर उनकी चुप्पी से करोड़ों लोगों की कोई मदद नहीं होती है। उन युवाओं को कोई राहत नहीं मिलती है, जो रिकॉर्ड बेरोजगारी दर का सामना कर रहे हैं। 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने के अपने वादे के मामले में प्रधानमंत्री पूरी तरह विफल हो गए, लेकिन प्रधानमंत्री ने आराम से इस पर चुप्पी साध लिया।

प्रधानमंत्री भाजपा और आरएसएस के नेताओं के भड़काऊ भाषणों, घृणा फैलाने वाली बातों और हिंसक गतिविधियों को अनदेखा करते हैं। वे एक बार भी शांति और सद्भावना की बात नहीं करते हैं। ऐसे अपराधियों को नियंत्रित करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। इसकी जगह अपराधियों को दोषमुक्त करार दे दिया जाता है।

ऐसा लग रहा है कि धार्मिक त्यौहार दूसरों को डराने-धमकाने का अवसर बन गए हैं। कभी ये आनंद और उत्सव का अवसर होते थे, अब इनका नाता उससे टूट सा गया है। लोगों को केवल उनके धर्म, भोजन, जाति, लिंग या भाषा के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है और डराया जा रहा है।

चीन के साथ चल रहे सीमा पर तनाव और चीनी घुसपैठ को नकारना एक तमाशा बन गया है। सरकार संसद में इस मुद्दे पर चर्चा को रोक रही है। विदेश मंत्री चीन की बात आने पर पराजय का रवैया अख्तियार कर लेते हैं। जो चीन के हौसले को और बढ़ा देता है। यह सरकार की हठधर्मिता है।

आने वाले दिन, देश के लिए बहुत ही निर्णायक हैं

प्रधानमंत्री की सारी कोशिशों के बावजूद भारत के लोग चुप नहीं रह सकते और न ही होंगे। अगले कुछ महीने हमारे लोकतंत्र की परीक्षा की अहम घड़ी हैं। हमारा देश दोराहे पर खड़ा है। नरेन्द्र मोदी की सरकार हर तरह की शक्ति का दुरूपयोग करने पर आमादा है। कई अहम राज्यों में चुनाव है। 

कांग्रेस पार्टी अपने संदेश सीधे लोगों तक पहुंचाने के लिए हर संभव प्रयास करेगी। जैसा पार्टी ने भारत जोड़ो यात्रा में किया था। कांग्रेस पार्टी भारत के संविधान और उसके आदर्शों की रक्षा के लिए सभी समान विचारधारा वाले दलों से हाथ मिलाएगी।

हमारा संघर्ष लोगों की आवाज का गला घोटने से बचाने का है। 

कांग्रेस पार्टी प्रमुख विपक्षी दल के रूप में अपने पवित्र कर्तव्य को समझती है। हम अपने इस कर्तव्य को पूरा करने के लिए सभी समान विचारधारा वाले दलों के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार हैं।

( सोनिया गांधी कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष हैं। यह लेख द इंडियन एक्सप्रेस में An enforced silence cannot solve India’s problems शीर्षक से प्रकाशित। द इंडियन एक्सप्रेस से साभार। अनुवाद- डॉ. सिद्धार्थ )

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