Wednesday, April 24, 2024

कश्मीर पर एजेंडाविहीन बैठक का नतीजा सिफ़र

हुर्रियत कांफ्रेंस को कश्मीर पर वार्ता में शामिल किए बिना क्या शांति समाधान संभव है? जब कश्मीर में सबसे बड़ी स्टेक होल्डर सेना है, जिसके लगभग पौने दो लाख सैनिक वहां तैनात हैं और आतंकी कार्रवाई पर अंकुश लगाने और शांति बनाये रखने में जुटे हैं, के राजनीतिक प्रमुख रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को वार्ता में न शामिल करने से कोई सार्थक परिणाम निकल सकता है? इसका एक ही जवाब है नहीं। क्या बिना एजेंडे के वार्ता का अर्थ अनौपचारिक बातचीत थी, जिसमें दोनों पक्ष अंदाजा लगा रहे थे कि कौन कितना झुक सकता है? क्या इससे यह माना जा सकता है कि कश्मीर में लोकतंत्र बहाली का यह गंभीर प्रयास था या अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण यह दिखाने की कोशिश थी कि सरकार इस दिशा में काम कर रही है? ये सभी प्रश्न फिलहाल अनुत्तरित हैं। 

प्रधानमन्त्री से मीटिंग के बाद कश्मीरी नेता बोले, 3 घंटे की बैठक में ठोस जवाब नहीं मिला, 370 हटाने से पहले हमें बुलाते तो अच्छा होता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कश्मीरी नेताओं के साथ जम्मू-कश्मीर पर बातचीत के कई पहलू सामने आ रहे हैं। प्रधानमंत्री परिसीमन जल्द चाहते हैं ताकि चुनाव भी जल्द हों। दूरी मिटाने की बात कही, जिस पर उमर कहते हैं कि ये एक मुलाकात में मुश्किल है। महबूबा कहती हैं कि पाकिस्तान से भी बातचीत शुरू करनी चाहिए। पीपुल्स अलायंस के संयोजक और प्रवक्ता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने कहा कि ये बैठक धारा-370 हटाए जाने के पहले बुलाई जाती तो अच्छा रहता। 3 घंटे की मीटिंग में वो ठोस जवाब नहीं मिला, जिसकी हमें उम्मीद थी।

मो. यूसुफ तारिगामी ने कहा कि हमें अपनी बात रखने का पूरा मौका मिला। प्रधानमंत्री ने हमारी बातों को ध्यान से सुना और भरोसा दिया कि इन पर अमल किया जाएगा। पर, 3 घंटे चली इस बैठक में हमें ठोस जवाब नहीं मिला है, जैसी कि हमें उम्मीद थी। ये बैठक अनुच्छेद-370 हटाने से पहले बुलाई, हमें इस फैसले की जानकारी दी जाती तो नतीजे बेहतर होते।

मीटिंग के बाद कांग्रेस लीडर गुलाम नबी आजाद ने बताया कि हमने 5 बड़ी मांगें सरकार के सामने रखीं हैं। पहली: जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा जल्दी दिया जाना चाहिए। सदन के अंदर गृहमंत्री जी ने हमें आश्वासन दिया था कि राज्य का दर्जा वक्त आने पर बहाल किया जाएगा। हमने तर्क दिया कि अभी शांति है तो इससे ज्यादा अनुकूल वक्त नहीं हो सकता। दूसरी: आप लोकतंत्र की मजबूती की बात करते हैं। पंचायत और जिला परिषद के चुनाव हुए हैं और ऐसे में विधानसभा के चुनाव भी तुरंत होने चाहिए। तीसरी: केंद्र सरकार गारंटी दे कि हमारी जमीन की गारंटी और रोजगार की सुविधा हमारे पास रहे। चौथी: कश्मीरी पंडित पिछले 30 साल से बाहर हैं, जम्मू-कश्मीर के हर दल की जिम्मेदारी है कि उन्हें वापस लाया जाए और उनका पुनर्वास कराया जाए और पांचवीं: 5 अगस्त को राज्य के दो हिस्से किए थे। हमने इसका विरोध जताया।

बैठक के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया पर लिखा कि जम्मू-कश्मीर पर आज (उस दिन की) की बैठक बेहद सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई। सभी ने लोकतंत्र और संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। साथ ही जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने पर जोर दिया गया। उन्होंने कहा कि हम जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमने जम्मू और कश्मीर के भविष्य पर चर्चा की। परिसीमन और चुनाव संसद में किए गए वादे के अनुसार राज्य का दर्जा बहाल करने में महत्वपूर्ण मील के पत्थर हैं।

प्रधानमन्त्री ने कहा कि राजनीतिक दलों के साथ आज की बैठक विकासशील जम्मू-कश्मीर के लिए जारी प्रयासों की दिशा में अहम कदम हैं। जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को बहाल करना हमारी प्राथमिकता है। परिसीमन की प्रक्रिया तेज गति से होनी चाहिए ताकि विधानसभा चुनाव हो सकें और सरकार चुनी जा सके, जो जम्मू-कश्मीर के विकास को मजबूती दे। हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत ये है कि हम आपस में अपने नजरिए को साझा कर सकते हैं। मैंने जम्मू-कश्मीर के नेताओं से कहा है कि अवाम खासतौर से युवाओं को जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक लीडरशिप दी जानी चाहिए। यह निश्चित करना चाहिए कि उनकी उम्मीदें भी पूरी हों।

दरअसल बिना एजेंडे के हुई इस बैठक को लेकर राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार के इस फैसले के पीछे अमेरिका का दबाव है। इसलिए कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की चिंताओं को स्वीकार करते हुए अमेरिका भारत पर कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करने की एक कार्य योजना देने और उसके बाद पाकिस्तान से फिर से बातचीत शुरू करने के लिए दबाव डाल रहा है।

अमेरिका के राष्ट्रपति पद के चुनाव के पहले डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन जो इस समय राष्ट्रपति हैं, ने चुनाव पूर्व एक पॉलिसी पेपर जारी किया था । इसमें उन्होंने मोदी सरकार के कश्मीर और सीएए से संबंधित फैसलों की आलोचना की थी। बाइडेन ने कहा था कि भारत की परंपरा में सांप्रदायिकता का कोई स्थान नहीं रहा है। ऐसे में सरकार के यह फैसले विरोधाभासी दिखते हैं। उन्होंने कहा था कि वह जब सत्ता में आएंगे तो इन मामलों पर भारत के साथ कड़ा रवैया अपनाएंगे।

पॉलिसी पेपर में यह भी कहा गया था कि कश्मीर में स्थानीय लोगों के अधिकारों का पुन:स्थापन हो, इसके लिए भारत सरकार को हर संभव प्रयास करना चाहिए। विरोध की आवाज दबाना, इंटरनेट बंद करना अलोकतांत्रिक है।एनआरसी और सीएए मामले में भारत सरकार का रवैया निराशाजनक है। वहां की परंपरा सदियों से सांप्रदायिक से दूर रही हैं। ऐसे में यह नीतियां विरोधाभासी हैं। दरअसल राष्ट्रपति पद पर जो बाइडेन के पदारूढ़ होने के कारण ही मोदी सरकार ने एनआरसी और सीएए को ठंडे बस्ते में मोदी सरकार ने डाल दिया है।  

अमेरिका के 46वें राष्ट्रोपति बनते ही जो बाइडेन ने अपने इरादे उस समय जाहिर कर दिए थे जब उन्होंने अपनी टीम में ऐसे लोगों को जगह नहीं दी है जिनके तार भारत में आरएसएस या फिर बीजेपी से जुड़े थे। बराक ओबामा के कार्यकाल के दौरान उनके साथ रहने वाले सोनल शाह को बाइडेन की टीम में मौका नहीं मिला है।इसके अलावा चुनाव प्रचार के दौरान बाइडेन के साथ काम करने वाले अमित जानी को भी बाहर रखा गया है। कहा जा रहा है कि जानी के तार बीजेपी और आरएसएस से जुड़े हैं।वहीं सोनल शाह के पिता का भी बीजेपी-आरएसएस से पुराना नाता है। जो बाइडेन ने अपनी टीम में लगभग 20 भारतीय-अमेरिकियों को अहम पदों पर नियुक्त किया है।

जो बाइडेन की टीम में दो कश्मीर मूल की लड़कियों को अहम जगह मिली है। जम्मू-कश्मीर मूल की समीरा फाज़िली को जो बाइडेन की राष्ट्रीय आर्थिक परिषद की उप निदेशक के रूप में बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। यह अमेरिका के बाइडेन-कमला शासन में कश्मीर मूल के विशेषज्ञ की दूसरी नियुक्ति है। इससे पहले कश्मीर में ही जन्म लेने वाली आयशा शाह को व्हाइट हाउस की डिजिटल रणनीति टीम में एक प्रमुख अधिकारी शामिल की गई थी।

जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 और पूर्ण राज्य का दर्जा हटने के एक साल 10 महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य की 8 पार्टियों के 14 नेताओं से प्रधानमंत्री आवास पर गुरुवार को साढ़े तीन घंटे की मैराथन बैठक की। बैठक के बाद महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला समेत कश्मीर के नेता पूर्ण राज्य का दर्जा लौटाने के साथ ही आर्टिकल-370 की बहाली पर अड़े दिखे। हालांकि, घाटी में विश्वास बहाली का फॉर्मूला अब अनुच्छेद-371 बन सकता है। महबूबा मुफ्ती ने बैठक में भी पाकिस्तान से बातचीत का मुद्दा उठाया। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया जल्द पूरी करने पर जोर दिया ताकि चुनाव का रास्ता साफ हो सके।

राजनितिक हलकों में कहा जा रहा कि आर्टिकल-370 की वापसी के बजाय जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों में आर्टिकल-371 के विशेष प्रावधान लागू करने का हो सकता है। आर्टिकल-371 हिमाचल, गुजरात, उत्तराखंड समेत देश के 11 राज्यों में लागू है। चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार राज्य के परिसीमन का काम 31 अगस्त तक पूरा हो जाएगा। तब तक आर्टिकल-371 के फॉर्मूले पर सहमति बनाने की कोशिश जारी है।

आर्टिकल-371 अभी देश के 11 राज्यों के विशिष्ट क्षेत्रों में लागू है। इसके तहत राज्य की स्थिति के हिसाब से सभी जगह अलग-अलग प्रावधान हैं। हिमाचल में इस कानून के तहत कोई भी गैर-हिमाचली खेती की जमीन नहीं खरीद सकता। मिजोरम में कोई गैर-मिजो आदिवासी जमीन नहीं खरीद सकता, मगर सरकार उद्योगों के लिए जमीन का अधिग्रहण कर सकती है। स्थानीय आबादी को शिक्षा और नौकरियों में विशेष अधिकार मिलते हैं। इस कानून के तहत मूल आबादी की परंपराओं से विरोधाभास होने पर केंद्रीय कानूनों का प्रभाव सीमित हो सकता है। जम्मू-कश्मीर के कुछ विशिष्ट इलाकों में ऐसे प्रावधान लागू किए जा सकते हैं, जिससे आर्टिकल-370 बहाली की क्षेत्रीय दलों की मांग कमजोर पड़ सकती है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles