बिहार में जैसे ही पहले चरण के चुनाव में महागठबंधन की संभावित बढ़त दिखी, बाकी के दो चरणों के वोटरों के ईमान बढ़ने लगे। तेजस्वी की जयकार होने लगी और सुशासन बाबू के ऊपर कई तरह के इल्जाम लगने लगे। बाढ़ ग्रस्त उत्तर बिहार और सीमांचल के लोगों ने बैठकें की और तय किया कि अगर इस बार वे राजनीति पर हमलावर नहीं हुए तो उनका भविष्य समाप्त हो जाएगा और बाढ़ और चचरी पुल के सहारे ही उनकी जिंदगी चलती रहेगी।
उत्तर बिहार और सीमांचल के बाढ़ ग्रस्त इलाके के लोगों ने अब तय कर लिया है कि इस सरकार को बदलकर ही रहेंगे क्योंकि पिछले 15 सालों से यह सरकार नदियों पर पुल बनाने का केवल आश्वासन देती रही है और लोग बाढ़ में जीने को अभिशप्त रहे हैं। बता दें कि मौजूदा सरकार को उत्तर बिहार से काफी आस लगी है लेकिन जिस तरह से यहाँ के लोग अपनी परेशानी को लेकर एकजुट हुए हैं उससे महागठबंधन की राजनीतिक धार और भी तेज हो गई है। लोगों की सोच समझ पर कोई दूसरा असर नहीं पड़ा तो तय मानिये उत्तर बिहार और सीमांचल इलाके में एनडीए को बड़ा झटका लग सकता है।
कोरोना का दंश, प्रवासी मजदूरों की पीड़ा, चीन-नेपाल से भारत के विवाद के बीच बाढ़ से तबाह बिहार में चुनावी घमासान। सब एक साथ ही चल रहे हैं। बिहार के सुशासन बाबू कहे जाने वाले सीएम नीतीश कुमार चुनावी प्रचार में बिहार विकास की गाथा लोगों को सुना रहे हैं तो सूबे के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी बिहार की ‘डबल इंजन’ वाली सरकार की लोक गाथा जनता के बीच प्रसारित कर रहे हैं। लेकिन बिहार का सच यही है कि 15 साल के कथित सुशासन में बिहार की 15 लाख से ज्यादा आबादी बांस की बनी चचरी पुल के सहारे जीने को अभिशप्त है।
जून महीना शुरू होते ही बिहार के लोग बाढ़ से बचाव के इंतजाम में जुट जाते हैं। इस साल परेशानी कुछ ज्यादा ही है। पहले से ज्यादा लोग बिहार में आ गए हैं। जो लोग जीवन यापन के लिए बिहार से बाहर जाकर काम करते थे, कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से वे भी बिहार लौट गए हैं। सरकार को इनके लिए रोजी-रोटी का जुगाड़ करना था जो नहीं हुआ। केंद्र सरकार भी बिहार के लोगों के लिए कुछ करने की इच्छा से कुछ महीने पहले ही कई योजनाओं की शुरुआत की लेकिन बाढ़ से तबाह बिहार में कौन सी योजना कब और किसके लिए चलेगी इस पर राजनीतिक घमासान चलता रहा।
सच यही है कि किसी को कोई काम नहीं मिला। पलायन के शिकार लोग कहीं के नहीं रहे। अब लोग यह कह रहे हैं कि 2015 में भी मोदी जी ने चुनाव से पहले बिहार के लिए सवा लाख करोड़ की योजना का ऐलान किया था, पूरा नहीं हुआ। पता चला कि वे पैसे अभी तक बिहार को मिले ही नहीं। जब मोदी जी ने प्रवासी मजदूरों के लिए बिहार के खगड़िया जिले के तेलिहर गांव से गरीब कल्याण रोजगार योजना की शुरुआत की तो बिहार बाढ़ की चपेट में था। योजना किसके लिए बनी और इसका लाभ किसे मिला कहना मुश्किल है। लेकिन चुनाव में तो इसका हिसाब ज़रूरी है।
लेकिन बिहार का हाल यहीं पर ख़त्म नहीं होता।
बिहार में चुनाव है। चुनाव को लेकर बिहार की जदयू और बीजेपी सरकार विकास की गाथा जनता के बीच रख रही है और लालू प्रसाद के जंगलराज का बखान भी कर रही है लेकिन तेजस्वी के तेज के सामने सब बेकार होता जा रहा है। महागठबंधन की आंधी के सामने सरकार के सारे दावे बेकार होते जा रहे हैं। दरअसल सूबे की जनता और युवाओं ने बदलाव का मूड बना लिया है और इसके कई कारण भी हैं। 15 सालों में बिहार कितना बदल गया, विकास के मामले में बिहार कितना कीर्तिमान स्थापित किया इसकी बानगी बिहार का वह चचरी पुल है जो सरकार की पूरी विकास गाथा को चुनौती दे रहा है। इन बाढ़ ग्रस्त इलाकों के लोग अब तंग आकर सरकार को एक पल बर्दास्त करने को तैयार नहीं।
बिहार के बाढ़ग्रस्त 15 जिलों का सच
आपको बता दें कि बिहार के 15 जिलों में बाढ़ के चार माह नाव और आठ महीने बांस की पुलिया ही लाइफ़ लाइन होती है। कोई इमरजेंसी हो या फिर दाना पानी का इंतजाम करने की बात, हर काम के लिए राज्य की 14 लाख की आबादी चचरी पुलियों के भरोसे ही जीती है। बांस से बनी बिना रेलिंग की ऐसी पुलिया, जिस पर थोड़ा भी संतुलन बिगड़े तो नदी में डूबने का डर बना रहता है। लेकिन इसके सिवा चारा ही क्या है। ये चचरी पुलिया पिछले 20-25 सालों से श्रमदान और चन्दा जुटाकर बनाये जाते हैं। 15 जिलों में बनी सभी पुलियों की एक ही कहानी है। ये हर साल अक्तूबर-नवम्बर में बनाई जाती हैं और जून-जुलाई में बाढ़ में बहते देखना लोगों की नियति है। कटिहार में दस साल पहले तक 150 से ज्यादा चचरी पुलिया थी। सरकारी योजना से पुल बनने के बावजूद 50 से ज्यादा चचरी पुलिया अब भी लोगों की लाइफ़ लाइन हैं।
किशनगंज में 5 लाख लोगों का लाइफ़ लाइन
किशनगंज में सबसे ज्यादा पांच लाख लोगों को इन्हीं पुलों का सहारा है। कटिहार में चार लाख, सुपौल में दो लाख, अररिया में 80 हजार, मधेपुरा में 50 हजार और छपरा में 12 हजार लोगों के लिए यही चचरी पुल लाइफलाइन है। खगड़िया और मुंगेर के बीच करीब 20 हजार की आबादी चचरी पुलिया के भरोसे ही है। बूढ़ी गंडक नदी को पार करने के लिए चचरी पुल ही लोगों की लाइफलाइन है। इसी तरह मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर के सैकड़ों गांव आज भी चचरी पुल के सहारे ही दाना-पानी का इंतजाम करने को विवश हैं।
15 साल के विकास की एक बानगी यह भी
इसी साल के जून -जुलाई महीने की ही बात है। जदयू विधायक नौशाद आलम को इलाक़े के लोगों ने एक पुल के उद्घाटन के लिए बुलाया। विधायक जी तैयार भी हो गए। पुल का उद्घाटन करने आ भी गए। जब वो पहुंचे तो देखा कि उन्हें चचरी पुल का उद्घाटन करना है। नेता जी पहले शर्मा गए लेकिन करते भी क्या? जब विधायक जी उद्घाटन करने पहुंचे तो रिबन काटने के लिए उन्हें कैंची नहीं दी गई। वो दबिया दी गई जिससे पुल का निर्माण हुआ है।

जिन्हें चचरी पुल नहीं मालूम उन्हें बता दें कि देश के कई इलाकों में बांस और उसके फट्टे से नदी के ऊपर स्थानीय लोग पुल का निर्माण करते हैं ताकि नदी को पार किया जा सके और और अपनी जिंदगी को बचाया जा सके। इस पुल के सहारे केवल पैदल और साइकिल की यात्रा ही की जा सकती है। इस बार ज़िला किशनगंज के ठाकुरगंज के लोगों ने अपनी राय बदली उन्होंने विधायक को बुलाकर चचरी पुल का उद्घाटन करवाया। लोगों ने ऐसा करके विधायक को आईना दिखाया और विकास की सच्चाई को सामने रखा। इस मौक़े पर स्थानीय लोगों ने अपने विधायक से कुछ बेहद कड़े सवाल किए। ये वो सवाल हैं जो इस देश की बड़ी आबादी को अपने नेताओं से, अपने जनप्रतिनिधियों से पूछना चाहिए। शायद लोगों ने सवाल पूछना कम कर दिया है इसीलिए 15 साल शासन करने के बाद भी सत्ताधारी पार्टी के विधायक को चचरी से बने पुल का उद्घाटन करने जाना पड़ा। इस बार जनता सरकार के नेताओं को भगा रही है और उसके हर दावे के खिलाफ नारे लगा रही है। जहां जदयू और बीजेपी के झंडे थे, अब महागठबंधन के झंडे लग गए हैं।
पीपा पुल और चचरी पर कट रही जिंदगी
उधर, उत्तर बिहार भी बाढ़ की चपेट में हमेशा से रहते आया है। बाढ़ यहां की नियति है। हर बार केंद्र से लेकर राज्य सरकार बाढ़ के समय बाढ़ रोकने का दावा करती है लेकिन होता कुछ भी नहीं। इस साल भी मुज़फ्फरपुर के कई इलाके बाढ़ में डूब गए और उनका संपर्क भी देश से टूट गया था। औराई ब्लॉक के मधुबन प्रताप व अतरार घाट पर चचरी पुल ध्वस्त होने के बाद नावाें का परिचालन शुरू हाे गया है। अब लाेगाें के लिए केवल नाव ही आवागमन के लिए साधन बचा है। चचरी पुल ध्वस्त हो जाने के कारण औराई दक्षिणी क्षेत्र के अमनौर, अतरार, सरहंचिया, डीहजीवर, सहिलाबल्ली, महेश्वरा समेत कई पंचायतों के लोगों का प्रखंड से संपर्क टूट गया था। इलाके के लोग अब चंदा के जरिये उसे बना रहे हैं और सरकार के लोगों की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि वे आएं और उन्हें सबक सिखाया जाए। डर से कोई उधर जाने को तैयार नहीं।
कटरा प्रखंड के बागमती नदी की मुख्यधारा बकुची व उपधारा बसघट्टा के जलस्तर में कमी के बाद भी बकुची पीपा पुल के दोनों छोर पर पानी चढ़ने के कारण वाहनों का परिचालन बाधित है, लेकिन दाेनाें छाेर पर चचरी जाेड़ कर पैदल चलने लायक बनाया गया है। कटरा प्रखंड के उत्तरी जजुआर समेत 14 पंचायतों के करीब तीन दर्जन से ऊपर गांव समेत औराई, पुपरी, सिंहवाड़ा, गायघाट व आसपास के करीब दो लाख की आबादी के समक्ष आवागमन की समस्या बरकरार है। यहां की पचास हजार की आबादी इसी चचरी पुल के सहारे चलने को विवश है।
तो कहानी ये बनती है कि पिछले 15 सालों में बिहार के लोगों को बाढ़ से बचाने के क्या इंतजाम किये गए? बाढ़ हालांकि प्राकृतिक आपदा है लेकिन सरकारी स्तर पर उसके बचाव के उपाय तो किये ही जा सकते हैं। क्या चचरी पुल की जगह सीमेंटेड पुल नहीं बनाया जा सकता? और बनाया जा सकता है तो इसकी जिम्मेदारी किसकी है? इसका जवाब नीतीश सरकार से ज्यादा कौन देगा? लेकिन चुनाव के इस मौसम में अब खेल बिगड़ गया है। इलाके के लोग इस बार सरकार बदलने को तैयार हैं। और याद रखिये सरकार बदलती है तो इसके लिए जिम्मेदार सूबे की नीतीश सरकार ही होगी जो केवल झूठ वादों पर टिकी रही। न रोजगार मिले और न ही उद्योग खुले। जनता अब इन्हीं सवालों पर सरकार को घेर रही है। सरकार मौन साधे हुए है या फिर गाल बजाती नजर आ रही है।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं और बिहार की जमीनी स्थितियों को अच्छी तरह से जानते और समझते हैं।)