इलाहाबाद शहर मुख्यालय से दूर यमुनापार के वशिष्ठ वात्सल्य पब्लिक स्कूल गौहनिया में आरएसएस के आला अधिकारियों की दो दिवसीय बैठक (22-23 नवंबर) आयोजित की गई। आरएसएस ने इसे अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल पूर्वी क्षेत्र नाम दिया। इसमें आरएसएस, विहिप के पदाधिकारी और सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ खुद शामिल हुए। योगी आदित्यनाथ पहले दिन के उद्घाटन सत्र में शामिल होने के लिए आए थे। जबकि आरएसएस की ओर से संघ प्रमुख मोहन भागवत, सर कार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी के अलावा काशी, अवध, गोरक्ष एवं कानपुर क्षेत्र के प्रमुख पदाधिकारी शामिल हुए। सात-आठ सत्रों वाले इस बैठक में सर सहकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले, डॉ. कृष्ण गोपाल, डॉ. मनमोहन जी, वैद्यमुकुंद, अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख सुरेश चंद्र, अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख राजकुमार मटाले, प्रचार प्रमुख डॉ. अरुण कुमार के शामिल होने की सूचना है।
आरएसएस की इस गुप्त बैठक में बाहरी व्यक्तियों के लिए सख़्त पाबंदी लगाई गई थी। गोहनिया में वशिष्ठ वात्सल्य पब्लिक स्कूल के आसपास का क्षेत्र शनिवार को ही छावनी में तब्दील हो गया। इस दौरान यहां काफी संख्या में पुलिस के जवान तैनात हो गए। स्कूल परिसर के आस पास भी किसी को नहीं आने जाने दिया गया।
2022 यूपी विधानसभा चुनाव की रणनीतिक तैयारी
अगर आरएसएस के इस दो दिवसीय बैठक के मुख्य मुद्दों का विश्लेषण किया जाए तो काफी कुछ स्पष्ट हो जाएगा। जनसंख्या नियंत्रण, राममंदिर निर्माण में हर एक हिंदू की सहभागिता के लिए चंदा संग्रह, धर्मांतरण, लव जिहाद, गो संरक्षण, धर्म जागरण, स्वदेशी और कुटुम्ब प्रबोधन जैसे सांप्रदायिक हिंदुत्ववादी मुद्दे मुख्य हैं साथ ही बैलेंसिंग और आरएसएस के असली चेहरे को छिपाने के लिए पर्यावरण, जल संरक्षण, सामाजिक समरसता, पॉलिथिन का प्रयोग कम करने और आत्मनिर्भर भारत के लिए ग्राम्य विकास जैसे मुद्दे मीडिया में बयानबाजी के लिए शामिल किए गए हैं।
साल 2022 की शुरुआत में ही उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव होना है। और आरएसएस ने इस बैठक के साथ ही यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरु कर दिया है। इस दो दिवसीय बैठक में आरएसएस-विहिप-यूपी सरकार ने अपनी-अपनी भूमिकाएं बांट ली हैं। इस बैठक का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसमें काशी, अवध, प्रयागराज जैसे धार्मिक महत्व के क्षेत्रों के प्रतिनिधि शामिल हुए। ये वो क्षेत्र हैं जहां से हिंदुत्व व सांप्रदायिकता का शोर उठता है। जहां से श्री राम, और राम मंदिर का शोर उठता है। ऐसा बताया जा रहा है कि अयोध्या और कानपुर दो क्षेत्रों से दो मुद्दे निकालकर आरएसएस जनता के बीच जाएगी। कानपुर की ज़मीन पर आरएसएस की कपोल कल्पित ‘लव जिहाद’ को लोकमानस में उतारा जाएगा जबकि अवध से राम मंदिर के निर्माण को उपलब्धि के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाएगा और चंदे की शक्ल में हर हिंदू की राम मंदिर निर्माण में भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी।
शताब्दी वर्ष 2025 तक गांव-गांव तक शाखा पहुंचाने का लक्ष्य
दो दिवसीय बैठक में आरएसएस की शाखा को गांव-गांव ले जाने के मुद्दे पर भी चर्चा हुई। बता दें कि 2025 आरएसएस की स्थापना का शताब्दी वर्ष है और उससे पहले 2024 में लोकसभा चुनाव भी होना है। इसी के मद्देनज़र आरएसएस लगातार अपना विस्तार भी करता चल रहा है। आरएसएस की मंशा है कि हर गांव में शाखा लगे। 2025 में अपने शताब्दी वर्ष को ध्यान में रखकर आरएसएस का जोर है कि हर गांव में उसकी शाखा लगे। संघ ने ग्रामीण इलाके की एक और शहर की तीन प्रतिशत आबादी को स्वयं सेवक बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। बताया जा रहा है कि वर्तमान में हर न्याय पंचायत में एक शाखा का लक्ष्य पूरा हो चुका है।
संघ प्रमुख से मुख्यमंत्री की मंत्रणा
सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार की शाम बैठक में पहुंचकर संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की। मीडिया सूत्रों के मुताबिक सीएम और संघ प्रमुख के बीच करीब 45 मिनट तक वार्ता हुई। इस दौरान सर कार्यवाह भैयाजी जोशी भी मौजूद रहे। समझा जाता है कि लव जिहाद को लेकर यूपी सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से जुड़े मुद्दों पर उनमें बातें हुई होंगी। और यूपी चुनाव में कैसे इसका प्रभावी इस्तेमाल किया जाये इस योजना पर कार्य करने की ज़रूरत पर बल दिया गया होगा।
देश भर में बैठकें कर रहा है आरएसएस
इलाहाबाद में हुई इस बैठक के चार दिन पूर्व ही यानि 18- 19 नवंबर को गाजियाबाद में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राष्ट्रीय कार्यकारी मंडल (पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्षेत्र) की बैठक आयोजित की गई थी। यह बैठक देश के 11 स्थानों पर आयोजित की जा चुकी है। इसके पूर्व जयपुर में भी संघ के पदाधिकारियों की बैठक हुई। उत्तर प्रदेश समेत सात राज्यों में 2022 में चुनाव होना है जिसमें पंजाब, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और गुजरात, हिमाचल प्रदेश शामिल हैं।
आरएसएस-भाजपा का यही पैटर्न है। वो जहां जिस राज्य में चुनाव होता है उसकी तैयारी बहुत पहले शुरू कर देती है। जैसे बिहार चुनाव को ही देख लें। बिहार में चुनाव अक्तूबर- नवंबर में हुए लेकिन भाजपा आरएसएस ने इसकी तौयारी बहुत पहले शुरू कर दी थी। देश जब कोरोना और लॉकडाउन से जूझ रहा था देश के नरेंद्र मोदी और अमित शाह मई-जून में बिहार में ऑनलाइन रैली कर रहे थे। जबकि आरएसएस के कैडर उससे भी पहले से ज़मीन पर लगे हुए थे। अभी पश्चिम बंगाल और तमिलानाड़ु चुनाव में 5-6 महीने का समय है और नरेंद्र मोदी टैगोर लुक के लिए 6 महीने से दाढ़ी बढ़ा रहे थे। इसी तरह अमित शाह और आरएसएस-भाजपा कैडर के लोग 6 महीने पहले से ही पश्चिम बंगाल में ज़मीन पर लगे हुए हैं। आरएसएस और भाजपा के एडेंजे मुद्दे को बंगाली जन के बीच फैलाने में।
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की इलाहाबाद से रिपोर्ट।)
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