अलविदा! समाजवादी योद्धा मुलायम सिंह

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उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे एवं देश के रक्षा मंत्री रहे समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव का 10 अक्तूबर को मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। नौ अक्तूबर को मैं मेदांता अस्पताल नेताजी को देखने गया था। वहां लंबे समय तक अखिलेश जी, रामगोपाल जी, रामगोविन्द चौधरी जी, ओम प्रकाश जी और शिवपाल जी और अरुण श्रीवास्तव जी के साथ कई घंटे बैठा। सभी को उम्मीद थी कि नेताजी कुछ दिनों में स्वस्थ हो जाएंगे। मन को तमाम शंकाएं घेरे हुए थीं फिर भी ग्वालियर में कार्यक्रम के चलते लौट आया।

रात को नेताजी के साथ बिताया समय याद आने लगा, नींद बिल्कुल नहीं आई। सुबह रणवीर यादव ने फोन करके बतलाया नेताजी नहीं रहे। मुझे लगा जैसे जेपी की मृत्यु की खबर फैल गई थी वैसा ही हुआ होगा। फिर अखिलेश जी का ट्वीट देखा । लगा जैसे पैर के नीचे से जमीन खिसक गई । पर मौत एक अटल सत्य है जानता हूं, जिसे सभी को स्वीकार करना पड़ता है । मैंने भी स्वीकार कर लिया। अंतिम दर्शन के लिए सैफई गया था।

मुलायम सिंह जी जिन्हें नेताजी या धरतीपुत्र कहा जाता था, उनकी खासियत यह थी की वे मानसिक तौर पर सदा समाजवादी आंदोलन के स्वर्णिम काल के दौर में ही जिया करते थे,जब डॉ लोहिया सोशलिस्ट पार्टी के नेता हुआ करते थे। जीवन में मैं जितनी बार भी नेताजी से मिला या दौरे में साथ रहा वे समाजवादी आंदोलन के साथ साथ सैफई , इटावा और अपने परिवार से जुड़े किस्से सुनाया करते थे। देश में आजादी के बाद तमाम विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और प्रधानमंत्री बने लेकिन कोई भी अपने पैतृक गांव को उस मुकाम तक नहीं पहुंचा पाया, जिस मुकाम पर नेताजी ने सैफई को पहुंचा दिया। सभी जिले स्तर की सुविधाएं अपने ग्राम वासियों को मुहैया कराई। नेताजी कार्यकर्ताओं को एक साथ भावनात्मक तौर पर जोड़े रहते थे, उनकी मदद करते थे और उनकी सलाह माना करते थे इसके हजारों उदाहरण मिल जाएंगे।

बैतूल के पाथाखेड़ा में मुझे मारने की मंशा से मेरी मोटरसाइकिल को टक्कर मारी गई, पैर का पूरा मांस बाहर निकल गया तथा गैंगरीन का संक्रमण हुआ। नेता जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने मिलने पर मेरे हाथ को सिर पर रख कर कहा कि मैंने अपने बहुतों को खोया है, मैं तुम्हें नहीं खोना चाहता। अब कभी मोटरसाइकिल से और डिब्बी जैसी मारुति से नहीं चलना। मैंने कहा- नेताजी जीप नहीं हो तब! उन्होंने कहा – मैं आज ही नई जीप का इंतजाम करता हूं। हालांकि तब मैं विधायक बन चुका था। जीप मैंने बैंक से फाइनेंस करा ली थी इसलिए नेताजी से लेने की जरूरत नहीं पड़ी।

इसी तरह जब मुलताई गोली चालन को लेकर मुझ पर चल रहे मुकदमे में फैसले निर्णायक दौर में चल रहे थे, तब नेताजी चिंतित हो गए। उन्होंने कई बार मुझसे कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हें षड्यंत्र करके सजा दी जाएगी। तुम कुछ करो! हर बार मैं कहता था कि निर्णय तो न्यायालय को करना है, मैं क्या कर सकता हूं? तब वे शिवपाल जी का किस्सा सुनाते थे, जब उन्हें हत्या के मामले में झूठे केस में फंसा दिया गया था। मैं उनसे कहता था कि जैसे आपने शिवपाल जी की मदद की थी, वैसी मेरी कीजिए। तब उन्होंने मेरा केस लड़ रही एडवोकेट आराधना भार्गव को बुलाया, केस समझा तथा कुछ बड़े वकीलों से बात की लेकिन इस बीच मेरे ही 24 किसानों के शहीद होने के बावजूद मुझे ही 52 वर्ष की सजा सुनाई गई। तब नेता जी ने अखिलेश जी को कहकर जमानत कराने के लिए आर्थिक मदद की थी।

नेताजी अपने कार्यकर्ताओं को बहुत मान दिया करते थे। जब भी वे मेरा परिचय नए लोगों से कराते थे तो वे कहते थे कि डॉ सुनीलम बहुत विद्वान नौजवान हैं। इन्होंने डी.लिट. किया है। हर बार मैं उन्हें बाद में कहता था कि आप मेरा परिचय इस तरह क्यों कराते हैं? मैंने डी.लिट नहीं पीएचडी किया है। तब वे कहते थे कि यह सम्मान देने का तरीका है। साथ में यह भी कहते थे कि डॉ.लोहिया ने एक बार मेरी प्रशंसा करते हुए भाषण दिया था, तो मैं 3 बार मुख्यमंत्री बन गया लेकिन तुम इतनी प्रशंसा के बाद भी मुझसे बहस करते हो! इस बात को अमर सिंह जी बहुत हवा दिया करते थे। वे कहते थे कि मैं सपने में भी कभी ऐसा नहीं सोचता लेकिन तुम नेताजी से जबान लड़ाते हो। तुम्हारा पार्टी में कोई भविष्य नहीं है। तब नेता जी कहते थे कि अमर सिंह जी डॉ सुनीलम लोहिया वादी हैं। अमर सिंह जी उलाहना देते हुए कहते थे, लोहिया वादियों के सौ खून माफ हैं।

तमाम लोग यह आरोप लगाते हैं कि नेता जी यादववादी थे लेकिन यदि उनके मुख्यमंत्री के तीनों कार्यकाल देखे जाएं तो पता चलेगा कि उन्होंने विभिन्न जातियों के नेताओं को अपने मंत्रिमंडल में स्थान दिया। सभी जातियों के कार्यकर्ताओं को संगठन में स्थान दिया।

मुझे याद है जब समाजवादी चिंतक मधु लिमये जी सक्रिय राजनीति से अलग हो चुके थे, तब नेताजी जब भी दिल्ली आते थे मधु लिमये जी से उनके पंडारा पार्क स्थित आवास में मिला करते थे।

छोटे लोहिया के नाम से मशहूर जनेश्वर जी के जन्मदिन पर सदा दिन भर बैठा करते थे। बृजभूषण तिवारी जी, मोहन सिंह जी, रामजी लाल सुमन जी इनके प्रिय साथी थे। नेताजी ने लखनऊ में जो लोहिया पार्क बनवाया था, उसमें 7 नेताओं की मूर्तियां लगवाई, जिनका समाजवादी आंदोलन में अभूतपूर्व योगदान रहा, उनमें से एक मामा बालेश्वर दयाल जी भी थे।

एक दिन देर रात नेता जी का फोन आया कि मामा बालेश्वर दयाल जी की दो फोटो लेकर तुरंत लखनऊ आओ! मैंने रात को ही राजेश बैरागी को झाबुआ में फोन किया। 2 दिन बाद हम लखनऊ में नेता जी से मिले। उन्होंने कहा कि मुझे घर में और पार्टी कार्यालय में फोटो लगानी थी इसीलिए फोन किया था। हमारे सामने ही उन्होंने घर में मामा जी की फोटो लगवाई।

यूं तो मेरी मुलाकात नेता जी से बहुत पुरानी थी। लेकिन प्रगाढ़ता तब बनी जब नेता जी से मेरी आमने- सामने की मुलाकात किसान, मजदूर, आदिवासी क्रांति दल के समाजवादी पार्टी में विलय को लेकर जनेश्वर मिश्र जी के निवास पर  चार बार विस्तृत तौर पर बातचीत हुई। नेता जी का कहना था कि किसी भी परिवर्तन के लिए राजनीतिक औजार की जरूरत होती है। किसान संगठन से आंदोलन तो खड़ा किया जा सकता है, कुछ मांगें मनवाई जा सकती हैं लेकिन बुनियादी परिवर्तन के लिए राजनीतिक पार्टी होना चाहिए।

वे इस तरह से उदाहरण देते थे कि महेंद्र टिकैट, नन्जूल स्वामी और शरद जोशी ने बड़े आंदोलन खड़े किए लेकिन वे राजनीतिक ताकत नहीं बना पाए, ना ही अपने प्रभाव क्षेत्र में विधायक- सांसद जिता पाए। वे कहते थे कि आंदोलन सतत रूप से चलना संभव नहीं होता। सरकार द्वारा मांगें माने जाने पर आंदोलन समाप्त हो जाता है और लंबे समय तक मांगें न माने जाने पर भी आंदोलन समाप्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में राजनीतिक हथियार की जरूरत होती है। मैंने जब नेता जी से पूछा था कि आप मुझे जनेश्वर जी के यहां क्यों बुलाते हैं, अपने घर पर क्यों नहीं?

तब वे कहते थे कि यदि समाजवादी चिंतक मधु लिमये जी जिंदा होते तो मैं उनसे कहकर तुम्हारे कान पकड़वाकर सब कुछ करवा सकता था, लेकिन अब वे नहीं हैं। मुझे मालूम है कि तुम अगर सुनोगे तो जनेश्वर जी की बात सुनोगे, इस कारण तुम्हें यहां बुलाता हूं। तीन बार बात होने के बाद चौथी बार जब बात हुई तब जनेश्वर जी ने कहा कि अब कोई बात नहीं होगी। किसान मजदूर आदिवासी क्रांति दल का भोपाल में विलय होगा। मैं और मुलायम सिंह आएंगे जनेश्वर जी ने नेता जी से कहा कि तुम्हारे पास सुनीलम की शिकायतें लेकर बहुत सारे लोग आएंगे। जरा फास्ट है ,बहुत नेताओं से मिलता जुलता है। तुम उन पर ध्यान मत देना, मन में गलतफहमी मत पालना, सीधे बुला कर पूछ लेना। मुझे भरोसा है कि वह तुमसे झूठ नहीं बोलेगा। जो लाइन बताओगे उसी पर काम करेगा, फिर भी यदि कभी गड़बड़ करे तो मुझे बताना, मैं कान पकड़कर सब करवा लूंगा। भोपाल में विलय की तारीख तय हो गई। तब से आज तक मैं समाजवादी पार्टी में हूं।

अन्ना आंदोलन के दौरान जब मैं पार्टी का राष्ट्रीय सचिव था, तब मैंने प्रयास किया कि समाजवादी पार्टी, अन्ना आंदोलन का समर्थन करे। नेता जी ने कहा कि समाजवादी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने में सक्षम है, आपको किसने रोका है। तब मैं अन्ना आंदोलन में सक्रिय रहा तथा मुझे अन्ना आंदोलन की कोर कमेटी में शामिल किया गया।

जब तक मैं पार्टी का राष्ट्रीय सचिव रहा तथा मध्य प्रदेश में 8 विधायकों के विधायक दल का नेता रहा, कई बार ऐसे अवसर आए, जब मैंने नेताजी को जनेश्वर जी की बात याद दिलाई। असल में किसान संघर्ष समिति को लेकर तमाम लोग गलतफहमी पैदा करने की कोशिश करते थे। अमर सिंह तो नेताजी के सामने जितनी बार मिले होंगे, उतनी बार कहते थे कि तुम हरा गमछा क्यों डालते हो? मैं बराबर कहता था कि यह किसानों के संघर्ष की शहीदों की निशानी है तथा मैं कौन से कपड़े पहनूं यह मेरा अपना निर्णय है, मैं आपके कपड़ों को लेकर कभी टिप्पणी नहीं करता, आपको भी मेरे कपड़ों को लेकर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।

दूसरी गलतफहमी पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के साथ तमाम कार्यक्रमों में शामिल होने को लेकर होती थी। मेरे सामने ही कहा कि वीपी सिंह लगातार आप के खिलाफ काम करते हैं।

उन दिनों दादरी का आंदोलन चल रहा था। नेता जी मुख्यमंत्री थे। मैंने नेता जी से कहा कि अमर सिंह जी पार्टी के महामंत्री और कर्ताधर्ता हैं लेकिन वे सभी पार्टियों से मिलते जुलते हैं तथा मुझे पता है कि वीपी सिंह जी के साथ भी मुलाकात करते हैं। उनकी मुलाकात ठाकुर होने के चलते होती है। मैंने कहा कि पार्टी का अनुशासन सब पर एक जैसा लागू होना चाहिए। इस तरह की नोक झोंक मेरी नेताजी के सामने अमर सिंह जी के साथ चलती रहती थी।

अमर सिंह जी ने एक बार सीधे-सीधे राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मुझ पर बड़ा आरोप लगा दिया। उन्होंने कहा कि कार्यकारिणी में एक ऐसा व्यक्ति भी बैठा है, जो मुझे जेल पहुंचाने का षड्यंत्र कर रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को पार्टी से निकाला जाना चाहिए। उन्होंने नेताजी को धमकाते हुए कहा कि यदि मैं जेल जाऊंगा तो आप भी नहीं बचेंगे। असल में अमर सिंह जी पूर्व विधायक किशोर समरीते की शिकायत कर रहे थे, क्योंकि उन्होंने पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए आयी राशि को छापा डालकर पकड़वाने की कोशिश की थी। किशोर को पार्टी से निकाल दिया गया। मैंने पर्ची लिख कर भेजी यह ठीक नहीं हुआ।

उन्होंने कहा अमर सिंह से बात कर लो। मैंने बात की, किशोर से माफी मंगवाई ,पार्टी से बर्खास्तगी वापस हो गई । नेताजी ने किशोर की पीठ ठोककर कहा – पार्टी के सभी नेताओं का सम्मान करना सीखो!

नेताजी अपने निर्णय को बदलने में भी कभी पीछे नहीं हटते थे यदि उन्हें यह भरोसा हो जाता था कि उन्हें किसी कार्यकर्ता द्वारा दिया गया सुझाव बेहतर या उपयुक्त है।

नेता जी के प्रिय साथी पांच बार सांसद रहे बृज भूषण तिवारी जी का जब अचानक देहांत हो गया, खबर पाते ही वे अस्पताल पहुंचे तथा शरीर पर लेप लगवाने और हेलीकॉप्टर से बस्ती भिजवाने का इंतजाम करके चले गए। मैं जब वहां पहुंचा तो मैंने प्रोफ़ेसर उदय प्रताप जी को सुझाव दिया कि लंबे समय तक बृजभूषण जी दिल्ली में रहे हैं, उनके पार्थिव शरीर को समाजवादी पार्टी कार्यालय में रखा जाना चाहिए। प्रोफेसर साहब ने कहा कि मैं नेता जी से बात करता हूं। नेताजी ने तुरंत उनका सुझाव मान लिया। पार्थिव शरीर समाजवादी पार्टी कार्यालय दिल्ली लाया गया, जहां लगभग सभी पार्टी के नेताओं एवं केंद्र सरकार के मंत्रियों और उपराष्ट्रपति ने आकर उन्हें पुष्पांजलि दी।

मुझे याद है जब मैंने डॉ. लोहिया के जन्म शताब्दी वर्ष पर यूसुफ मेहेर अली सेंटर और राष्ट्र सेवा दल के 30 युवाओं के साथ देश भर की सप्तक्रांति विचार यात्रा की तब उन्होंने कानपुर में शिवपाल जी को भेजा। अंबिका चौधरी जी , नीरज जी को बलिया में यात्रा की अगवानी के लिए भेजा। कानपुर में शिवपाल जी आए ,उन्होंने पार्टी की तरफ से यात्रा के लिए पांच लाख रुपए देने की घोषणा की लेकिन यात्रा के लिए यह नियम तय किया गया था कि किसी से भी 50 हजार से ज्यादा नहीं लिया जाएगा। इसलिए मैंने साढ़े चार लाख रुपये वापस किया।

जब जॉर्ज फर्नाडीज ज्यादा बीमार हुए और उन्हें अचानक हरिद्वार रामदेव बाबा के पास ले जाया गया, तब मैंने नेता जी से कहा कि आप बाबा से बात कीजिए । उन्होंने तुरंत फोन लगाकर कहा कि जॉर्ज साहब मेरे नेता हैं उनका ख्याल रखना, उन्हें 15 दिन में ठीक करके भेजना। बाबा ने कहा कि मैं उन्हें दौड़ा दूंगा। तब नेता जी ने हंसते हुए कहा कि तुम दौड़ा पाओ या ना दौड़ा पाओ लेकिन अगर जॉर्ज साहब को कुछ हो गया तो मैं तुम्हें दौड़ा दूंगा।

नेताजी का सबसे बड़ा वैचारिक योगदान यह रहा कि उन्होंने 1977 में सोशलिस्ट पार्टी के विलय के बाद 4 अक्टूबर 1992 को लोहिया को प्रतीक बनाकर समाजवादी पार्टी का गठन किया। जिसने सामाजिक न्याय और सांप्रदायिकता के मुद्दे पर स्थापना से लेकर आज तक कोई समझौता नहीं किया। संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए उन्होंने सरकार को लात मार दी लेकिन मुसलमानों की सुरक्षा और सम्मान पर आंच नहीं आने दी। इसका परिणाम यह रहा कि उन्हें मुल्ला मुलायम तक कहा गया।

राजनीतिक स्तर पर अपने विरोधी रहे बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम जी को उन्होंने अपने क्षेत्र इटावा से तन-मन-धन लगाकर जितवा कर  सांसद बनवाया। सामाजिक उत्पीड़न की प्रतीक फूलन देवी को भी संसद में पहुंचाया। इसी तरह मुंबई ब्लास्ट में झूठे आरोपी बनाए गए अबू आज़मी को उन्होंने राज्यसभा में भेजने के साथ-साथ उन्हें महाराष्ट्र पार्टी की कमान सौंप दी।

आज़म खान जी के साथ आजीवन उनका अटूट रिश्ता रहा। बीच में आज़म खान नाराज हो गए थे, मुझे याद है जब गोरखपुर सम्मेलन में आज़म खान लौटे तब दोनों ने एक ही बात कही कि हम एक दूसरे से अलग नहीं रह सकते।

नेताजी का देहांत होने से समाजवादी आंदोलन को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई करना किसी भी नेता के लिए संभव नहीं होगा।

(डॉ. सुनीलम पूर्व विधायक और समाजवादी पार्टी के पूर्व सचिव हैं।)

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