Friday, March 29, 2024

रश्दी पर हमला: धार्मिक आस्था ही नहीं, इतर राय वाली भावनाओं की भी अहमियत

सलमान रश्दी का उपन्यास ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ (आधी रात दी संतान) के मुख्य पात्र सलीम सिनाई का जन्म 14-15 अगस्त 1947 ठीक मध्यरात्रि में 14 अगस्त के समाप्त होने और 15 अगस्त के शुरू होने के समय होता है; जिस समय भारत आजाद हो रहा है। उसके पास टेलीपैथी के माध्यम से लोगों से बात करने की सामर्थ्य है और सूंघने की शक्ति बहुत तेज है। उसे बाद में पता चलता है कि भारत में वह सभी बच्चे जो उस समय (रात बारह बजे से एक बजे के दरम्यान) पैदा हुए थे, उनके पास विशेष शक्तियाँ हैं। यह सब कुछ प्रतीकात्मक है।

इस शैली को ‘जादुई यथार्थवाद’ की शैली कहा गया और इसका केन्द्रीय और अन्य पात्रों का जीवन स्वतंत्र भारत के इतिहास से जुड़ा हुआ है। इत्तफ़ाक़ की बात यह है कि जब भारत अपनी आजादी की 75 वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा था तो 12 अगस्त की शाम को न्यूयॉर्क में हादी मातर (Hadi Matar) नाम के एक युवक सलमान रश्दी पर हमला कर घायल कर दिया।

सलमान रश्दी का उपन्यास ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ डोमिनिक लैपिएर और लैरी कॉलिन्स की ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ (आज़ादी आधी रात को) और गुंटर ग्रास के उपन्यास ‘टिन ड्रम’ (टीन का ढोल) से प्रभावित है पर सलमान रश्दी खास तरह का देसीपन, जटिलता और मौलिकता देने में सफल रहे; जादुई यथार्थ की तकनीक के कारण देश और मनुष्य द्वारा सहे गए दुख-दुश्वारियाँ, दमन, कष्टों और विवशताओं को उनके (देश और लोगों के) उत्सव, कहानियाँ, मिथक, किंवदंतियाँ, यादें, सफलताएँ, असफलताएँ आदि सभी एकमिक हो गए। इस किताब ने सलमान रश्दी और भारतीय अंग्रेजी लेखन को एक विशेष रुतबा प्रदान किया।

सलमान रश्दी ने बाद में कई अन्य उपन्यास, यात्रा वृतांत और अन्य पुस्तकें लिखीं, लेकिन उनका उपन्यास ‘सैटेनिक वर्सेस’ ने उन्हें इस्लामी कट्टरपंथियों और आतंकवादियों का निशाना बना दिया। 1989 में, ईरान में तत्कालीन प्रमुख धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी ने उसकी हत्या के लिए फतवा जारी किया और ईरानी सरकार ने बार-बार उस फतवे का समर्थन किया। यह उपन्यास वैसे तो अप्रवासियों के जीवन के बारे में है लेकिन इसके कुछ हिस्सों में पात्रों के सपनों में कुछ ऐसी कहानियाँ बुनी गईं जिन्हें इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद के संदर्भ को आपत्तिजनक माना गया।

होना तो यह चाहिए था कि विद्वान सलमान रश्दी के लेखन का विरोध लेखन के माध्यम से करते लेकिन ईरानी सरकार द्वारा अपनाए गए हिंसक रुख ने इसे सलमान रश्दी के जीवन का प्रश्न बनाकर मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को और भड़का दिया। भारत ने इस किताब पर भी प्रतिबंध लगा दिया। किताबों पर प्रतिबंध लगता रहा है और लेखक और विद्वान प्रतिबंध लगाने वालों के दमन के शिकार हुए हैं।

यह सच है कि लेखकों और विद्वानों को धार्मिक समुदायों की आस्थाओं को ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए लेकिन धार्मिक हस्तियों को भी इस पर विचार करने की आवश्यकता है। इस दुनिया में धर्म का पालन करने वाले लोगों के साथ-साथ सर्वशक्तिमान शक्ति में विश्वास न रखने वाले लोग भी रहते हैं; अगर धार्मिक विद्वानों को अपनी राय देने की आजादी है तो जिनके पास ऐसी मान्यताएं नहीं हैं उन्हें भी अपनी राय रखने की आजादी मिलनी चाहिए। 

सदियों पहले इटली के ईसाई धार्मिक कट्टरपंथियों ने इटली के चिंतक, पादरी, गणितज्ञ और वैज्ञानिक जियोर्दानो ब्रूनो को जिंदा जला दिया गया था क्योंकि उन्होंने सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के घूमने के कोपरनिकस के सिद्धांत का प्रचार किया था। सलमान रश्दी पर हमला लेखकों की अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है।

विरोधाभास यह है कि प्रगति और आधुनिकता के दावों के बावजूद, संकीर्ण सोच की पकड़ मजबूत हुई है। विचारों का विरोध हिंसा से नहीं, विचारों के माध्यम से होना चाहिए। लेखकों, विचारकों, वैज्ञानिकों, विद्वानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और लोकतांत्रिक ताकतों को इस हमले का विरोध करना चाहिए।

(स्वराजबीर दि ट्रिब्यून के पंजाबी संस्करण के संपादक हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

‘ऐ वतन मेरे वतन’ का संदेश

हम दिल्ली के कुछ साथी ‘समाजवादी मंच’ के तत्वावधान में अल्लाह बख्श की याद...

Related Articles