संघी डीएनए और संयुक्त राज्य अमेरिका से भारतीय नौजवानों की वापसी

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डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति के पद की शपथ लेने के तुरंत बाद लिए जा रहे फैसलों से वैश्विक संकट खड़ा होने जा रहा है। ट्रंप यूएस राष्ट्रपति की सीमा का अतिक्रमण करते हुए रिंग मास्टर की भूमिका में दिखाई दे रहे हैं। शपथ लेते ही उनके द्वारा लिए गए फैसले और उन्हें लागू करने की अमानवीय प्रक्रियाओं ने कई देशों को हिला दिया है। 

ट्रंप ने आते ही टैरिफ वार शुरू कर दिया। साथ ही राष्ट्र राज्य के रूप में ‘अमेरिका के होने की बुनियादी अवधारणा” का निषेध करते हुए लाखों विदेशी कामगार नौजवानों को यूएसए से खदेड़ना शुरू कर दिया है। ये कामगार जो अमेरिकी समृद्धि की कहानी को सुनकर जिंदगी को दांव पर लगा कर अवैधानिक रूप से अमेरिका में घुसे थे और पकड़े जाने के बाद या तो जेल में बंद हैं या सरकार द्वारा घुसपैठिए के बतौर चिन्हित किए गए हैं। 

यहां हमें अमेरिकी साम्राज्यवादी सत्ता के चरित्र को अवश्य ही ध्यान में रखना चाहिए। अमेरिका अपने को चाहे जितना बड़ा जनतांत्रिक देश कहे। लेकिन मानव तस्करी से लेकर मानव विरोधी विचारों, संस्थाओं और युद्ध लोलुप क्रूरतम कार्रवाइयों के लिए दुनिया भर में कुख्यात रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने दुनिया पर जितने युद्ध थोपे और नरसंहार किए हैं। शायद राष्ट्र राज्यों के अभ्युदय के बाद इतिहास के किसी कालखंड में किसी एक देश या एक राजवंश द्वारा ऐसा नहीं किया गया हो। 

सिर्फ हिटलर और मुसोलनी के एक छोटे से काल खंड को छोड़कर दुनिया में अमेरिकी बर्बरता के समतुल्य कोई और इतिहास नहीं मिलता। अमेरिकी सरकार द्वारा सम्पूर्ण 20वीं सदी से लेकर आज (ताजा  फिलिस्तीनियों के नस्लीय जेनोसाइड) के दौर के कारनामे दुनिया के लिए डरावने सबक हैं। अमेरिका के इसी नकारात्मक प्रवृत्ति के प्रतिनिधि के रूप में डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति की भूमिका में हैं। (निश्चय ही दुनिया को ट्रम्प के विध्वंसक इरादों को गंभीरता से लेना चाहिए।)

ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को उनके देश भेजने के लिए बेड़ियों हथकड़ियों में जकड़ कर दुर्दांत अपराधी की तरह अमेरिकी सैन्य विमान का प्रयोग किया। जिसको लेकर कोलंबिया, होंडुरास, ग्वाटेमाला और मैक्सिको जैसे देशों ने भारी प्रतिवाद किया और सैन्य जहाज को अपने देश के हवाई अड्डे पर उतरने से मना कर दिया। इन देशों के राष्ट्रपतियों ने रीढ़ की हड्डी दिखाते हुए ट्रंप की बड़े भाई की दबंग भूमिका को चुनौती दे डाली और कहा कि हम अपने नागरिकों को सम्मानित नागरिक की तरह अमेरिका से वापस लायेंगे। 

आप न उन्हें अपमानित कर सकते हैं न सैन्य विमानों में कैदियों और अपराधियों की तरह भेज सकते हैं। इन देशों ने अमेरिका की साम्राज्यवादी दादागिरी और रिंग मास्टर की भूमिका को धता बताते हुए अपने देश के नागरिक विमान को भेज कर अपने नागरिकों को सम्मान पूर्वक वापस बुलाना शुरू कर दिया है। 

इस संदर्भ में  कोलंबिया के वामपंथी राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो और पनामा की राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम द्वारा दिखाए गए साहस और ट्रंप को दिये गए जवाब को दुनिया के राष्ट्र राज्यों के प्रधानों को सुनना चाहिए। इन देशों की दृढ़ता में विकासशील देशों के लिए एक संदेश छिपा है। अमेरिका मुनरो थ्योरी के तहत लैटिन अमेरिका को अपना पिछवाड़ा या डंपिंग ग्राउंड समझता है। 

पिछली एक सदी से अमेरिका ने लैटिन अमेरिकी देशों के राष्ट्रीय स्वाभिमान को रौंदते हुए वहां की खनिज और प्राकृतिक संसाधनों को लूटने और सरकारों को गिराने बनाने के खेल में आपराधिक भूमिका निभाई है। चुनी हुई सरकारों को सैन्य विद्रोहों द्वारा कुचलना राष्ट्रवादी वामपंथी नेताओं की हत्या कराना और इन देशों पर वर्चस्व कायम करने के लिए कठपुतलियों को सत्ता में बिठाने का खेल करता रहा है। जैसे  भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद से लड़कर भारतीय राष्ट्रवाद में आकर ग्रहण किया है। ठीक उसी तरह अमेरिका से लड़कर लैटिन अमेरिकी देशों में राष्ट्रवाद नया आकार ग्रहण कर रहा है। लैटिन अमेरिका में अमेरिका विरोधी राष्ट्रवादी नवजागरण के उभार में छिपे भविष्य के संदेश को एशियाई देशों को समझना चाहिए। खैर इस संदर्भ को यहीं छोड़ते हैं।‌

दुर्भाग्य से विगत एक दशक से हमारे देश में हिंदू राष्ट्रवाद का स्वर्ण काल चल रहा है। जो दशक की समाप्ति तक अमृत काल में बदल गया है। लेकिन उद्दंड ट्रंप द्वारा जिस तरह से भारतीय नागरिकों को मोदी की मौजूदगी में हथकड़ियों बेड़ियों में जकड़ कर सैन्य विमान द्वारा भारत में भेजने का अपराध किया गया। उसने बता दिया है कि संघी चाहे जितना ही राष्ट्रवादी चिल्ल-पों करें। 

वास्तव में साम्राज्यवादी लुटेरों के सामने आत्मसमर्पण करने में उन्हें गौरव अनुभव होता है। मोदी ने अमेरिकी स्वामिभक्ति का प्रदर्शन करते हुए भारत की संप्रभुता पर किए गए हमले को गर्व के साथ स्वीकार कर लिया। संघियों के शब्दकोश में गौरव और गर्व दो ऐसे शब्द हैं जो प्रति क्षण उछाले जाते हैं। अमेरिकी यात्रा में ट्रंप द्वारा किए गए व्यवहार पर अंध भक्तों को गर्व ज़रूर करना चाहिए।

जिस समय मोदी ट्रंप के समक्ष‌ समर्पण कर रहे थे। ठीक उसी समय अमेरिका के पिछवाड़े के छोटे देश अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय गौरव की रक्षा करते हुए तनकर खड़े थे। विश्व गुरु का स्वांग करने वाले संघी विश्व मंच पर हो रहे भारत के अपमान पर भी कीर्तन करने में व्यस्त हैं। संघ और उसके प्रचारक इस तरह की बेशर्मी का प्रदर्शन क्यों करते हैं? 

इसके बुनियादी कारणों पर निश्चय ही विचार करना होगा। इसके लिए संघ के 100 वर्ष के इतिहास की गंभीर छानबीन करने की जरूरत है। संघ ने शुरुआत में मराठा साम्राज्य अभ्युदय के दौर में बनी पेशवा शाही को पुनः स्थापित करने को अपना लक्ष्य बनाया था। इसलिए संघ के दिन के चिंतन प्रक्रिया में राजशाहियों का ही मुख्य स्थान है। जिन राजशाहियों के ध्वंस पर ही लोकतंत्र का निर्माण हुआ है। आज भी संघ को अपने नायकों के लिहाज से वही मध्यकालीन राजशाहियां आकर्षित करती रहती हैं।

मोदी के नेतृत्व में सरकार किन मूल कारणों और वैचारिक “भावों” के चलते अमेरिका के सामने समर्पण कर रही है। निश्चय ही आज का समय भारत के लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष और राष्ट्र प्रेमी नागरिकों से इस त्रासदी के कारणों के विश्लेषण और मंथन की मांग कर रहा है। तभी लोकतांत्रिक भारत अतीत के महान साम्राज्यवाद विरोधी गौरवशाली इतिहास को विश्व पटल पर पुनर्स्थापित कर सकेगा।

ट्रंप चुनाव के दौरान बार-बार यह ऐलान कर रहे थे कि उनकी नीतियों में अमेरिका फर्स्ट का केंद्रीय तत्व काम करेगा। साथ ही वह अमेरिका को महान बनायेंगे और विश्व में उसकी महानता को पुनर्स्थापित करेंगे। वह अमेरिका के अंदर मौजूद घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए कठोर कदम उठाएंगे। जो कीड़े की तरह अमेरिका को खा रहे हैं। 

इसके साथ अमेरिका को व्यापारिक और आर्थिक शक्ति बनाने के लिए कठोर करों का प्रयोग करेंगे। विदेशी मालों पर एकतरफा टैरिफ लगाएंगे। सीधे-सीधे वह पड़ोसी देशों सहित चीन भारत जैसे देशों को धमकी दे रहे थे कि वह उनके कर आतंक को कुचल देंगे। उनके वक्तव्य में श्वेत श्रेष्ठतावाद के वे सभी तत्व मौजूद थे। जो दक्षिणपंथी फासिस्ट राजनीतिज्ञों की कार्य शैली की बुनियादी विशेषताएं हैं।

अब यहां मोदी के भाषणों को भी आप रख कर देख सकते हैं। जैसे इंडिया फर्स्ट।भारत को महान बनाना है। भारत के गौरव को वापस लाकर भारत की महानता दुनिया में स्थापित करना है। विश्व में महान शक्ति के साथ विश्व गुरु होने का दावा करना और भारत को दुनिया की पांच विकसित शक्तिशाली देशों की श्रेणी में लाना है। (पांचवीं आर्थिक शक्ति का ढिंढोरा तो पीटना शुरू हो गया है)। भारत में भी घुसपैठियों का सवाल चुनाव का प्रधान मुद्दा बना रहता है। 

पिछले 5 वर्षों से घुस पैठिए-घुस बैठिए का शोर चारों तरफ गूंज रहा है। जैसे बांग्लादेशी और रोहिंग्या के सवाल को बिना तथ्य के जोर -जोर से उछाला जाता है। इसके साथ ही हिंदू श्रेष्ठता हिंदू भारत और हिंदुत्व के गौरव की पुनर्वापसी की कसमें खाई जा रही हैं। जिसे भारतीय संस्कृति की महानता की चासनी में लपेट कर जनता के समक्ष परोसा जाता है। 

मुसलमानों के साथ प्रगतिशील तर्क वादी नागरिकों को देश के लिए दुश्मन के रूप में चिन्हित कर इन पर लगाम लगाने की घोषणाएं सुनाई देती रहती हैं। पड़ोसी मुल्कों के साथ बड़े भाई जैसा व्यवहार तो मोदी की कार्य शैली की विशेषता है। ट्रंप और संघ स्वयं सेवक मोदी की नीतियों और कार्यशैली में इस कदर समानता आपको आश्चर्यचकित कर देगी।

इसलिए ट्रंप और मोदी दोनों एक दूसरे को अपना अभिन्न मित्र कहते रहे हैं।

आज का भारत अंग्रेजों से 200 वर्षों तक युद्ध लड़कर बना है। जिसे भारत का महान स्वतंत्रता संघर्ष  कहा‌‌ गया है। जिसके स्वाभाविक परिणाम स्वरूप लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में हम संगठित हुए और सक्रिय हैं। इसकी बुनियाद भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान अंग्रेज उपनिवेशवादियों से लड़कर पड़ी थी। यह हिन्दुस्तान के अब तक के ज्ञात इतिहास की महानतम गौरव गाथा है। जिसमें चकित कर देने वाली विविधता और विशिष्टता है। 

विचार चिंतन ज्ञान और तर्क की बहुलता के कारण भारतीय जीवन के हर क्षेत्र में महान उपलब्धियों से भरा हुआ इतिहास है। इस संघर्ष से साहित्य कला संस्कृति के साथ-साथ देश के लिए त्याग  बलिदान की उदात्त परंपरा निकली है। अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष हमारे पूर्वजों ने जो  बलिदान की राह रोशन की वह मनुष्यता के इतिहास की सबसे गौरवशाली परंपराओं में से एक है। 

आधुनिक भारत के निर्माण के लिए चले स्वतंत्रता संघर्ष में सभी प्रकार की विचार धाराओं और चिंतन परंपराओं वाले व्यक्तियों और संगठनों का महान योगदान है।सिर्फ संघ और हिंदुत्व वादियों को छोड़कर। स्वतंत्रता आंदोलन के प्रारंभ में हिंदू महासभा ने स्वतंत्रता संघर्ष में हिस्सा लिया था। लेकिन जब सावरकर महासभा के नेता बने तो महासभा ने स्वतंत्रता संघर्ष से किनारा कर लिया और अंग्रेजों की सहयोगी संस्था के रूप में पतित हो गई। 

संघ शुरू से गोरों के खिलाफ चलने वाले आंदोलनों का विरोधी रहा है। असहयोग आंदोलन से लेकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के नेता भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के संघर्ष का आलोचक रहा है। 1930 के बाद  जब पूर्ण स्वराज की मांग स्वतंत्रता आंदोलन के झंडे पर आ गई तो आरएसएस के लट्ठबाज स्वयंसेवक ने कभी भी पूर्ण स्वराज की मांग के आंदोलन का समर्थन नहीं किया। यही कारण है कि सम्पूर्ण स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लट्ठधारी स्वयं सेवकों के साथ अंग्रेजों की कहा सुनी भी कभी नहीं देखी गई।

हमारे देश का राष्ट्रवाद अंग्रेजों के साथ संघर्ष के दौरान ही विकसित हुआ ।लेकिन संघी राष्ट्रवाद “देशभक्ति नहीं राजभक्ति” है। जो राजाओं के दरबारियों के राजभक्ति के समतुल्य है। इसलिए आप देखेंगे कि 1857 से लेकर 1946 के नौसेना विद्रोह और आजाद हिंद फौज के बलिदानियों को संघ ने 1947 तक अपना समर्थन नहीं दिया। यही कारण है कि आजादी के बाद बने संविधान और तिरंगे झंडे को संघ ने हृदय से कभी स्वीकार नहीं किया। 

स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान जब  राजशाही और जमींदारी विनाश के लिए चलने वाले आंदोलनों के दमन में राजाओं और जमींदारों का सहयोग किया। आप अलवर से लेकर कश्मीर, टिहरी, दरभंगा राज तक संघ की भूमिका को देख सकते हैं। आजादी के बाद आरएसएस ने जिमींदारी उन्मूलन और राजाओं के प्रिवी पर्स खत्म करने का विरोध किया।सुधारवादी कानूनों की खिलाफत की। हिंदू धर्म के अंदर चलने वाले सभी सुधार वादी आंदोलनों की दिशा को पलट देने की कोशिश की।

दूसरी बात यूरोप के औद्योगिक क्रांति के गर्भ से निकली जन क्रांतियों ने दुनिया में  नए सामाजिक मूल्यों और व्यवस्थाओं को जन्म दिया। 1789 की फ्रांसीसी क्रांति से स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व जैसे महान मूल्य निकले। यही नहीं बाद में पेरिस कम्यून से लेकर रूसी मजदूर क्रांति तक से न्याय और समानता की नई परिभाषाएं विकसित हुईं। 

यूरोपीय नवजागरण ने यूरोप के अंदर धर्म और व्यक्ति के बीच के संबंधों को बदल दिया। धर्म को सामाजिक जीवन से बाहर कर उसे व्यक्ति के निजी जीवन के क्षेत्र तक सीमित कर दिया गया। व्यक्ति की सामुदायिक पहचान की जगह स्वतंत्र नागरिक ने ले ली। आरएसएस ने कभी भी इन मानवीय मूल्यों से कोई सबक लेने की कोशिश नहीं की। बल्कि इनके विरोध में लगातार सक्रिय रहा।

संघ के संस्थापक और सिद्धांतकार पहली बार यूरोप से सीखने के लिए मुसोलिनी और हिटलर के पास गए। फासीवाद और नाजी दर्शन से भारत को सीखने की सलाह दी। उन्होंने नाजी राष्ट्रवाद के नस्लीय सफाया से भारतीय (हिन्दू) राष्ट्रवाद को सकारात्मक शिक्षा लेने‌ का आवाहन किया। ब्रिटिश विरोधी राष्ट्रवाद की निंदा की और कहा कि राष्ट्रवाद को अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष के समतुल्य कर हिन्दुस्तान का भारी नुकसान किया गया है।

इसलिए आप संघ और उसके नेताओं में कभी भी किसी सकारात्मक मानवीय मूल्य के प्रति समर्पण नहीं देख सकते। हिटलर जब यहूदियों का नरसंहार कर रहा था। तो आरएसएस हिटलर के साथ खड़ा था और उससे सीखने का आवाहन कर रहा था। लेकिन ज्यों हि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका साम्राज्यवादी दुनिया का सरगना बना और उसके नेतृत्व में इसराइल नामक एक अस्वाभाविक देश की आधारशिला रखी गई। 

निर्दोष फिलिस्तीनियों का कत्लेआम शुरू हुआ। संघ ने पलटी खाई और जीओन वादिओं तथा अमेरिका के साथ खड़ा हो गया। स्पष्ट है इतिहास के किसी कालखंड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्पीड़त दमित और कमजोर वर्गों के साथ नहीं रहा है। उसकी राजभक्ति हर समय ताकतवर लोगों के चरणों में समर्पित रही है।

यही कारण है कि मोदी भारत में नमस्ते ट्रंप आयोजन कराकर गदगद महसूस करते हैं। अमेरिका में मोदी की मौजूदगी में गुस्ताख़ ट्रंप ने भारत का अपमान किया।भारतीय नागरिकों को मोदी के अमेरिका जाने के पहले और आने के तुरंत ही बाद बेड़ियों हथकड़ियों में जकड़ कर अपराधियों की तरह सैनिक विमान से भारत भेजा गया। एलन मस्क ने भारतीय प्रवासियों की बेड़ियों हथकड़ियों में जकड़ी तस्वीर को ट्वीट करते हुए एलियंस शब्द का प्रयोग किया था। मोदी द्वारा इसका विरोध करने की तो बात छोड़िए।मोदी सहित संघी प्रचारक और प्रवक्ता ट्रंप के इस कार्रवाई का कानूनी आधार समझाने लगे। खुद मोदी इस अपमान पर इधर-उधर की बात कर रहे हैं। 

जब हम भारत के लोग अमेरिका के भारत को अपमानित करने वाले व्यवहार को लेकर आक्रोशित और चिंतित थे। उसी समय मोदी ट्रंप को आश्वस्त कर रहे थे कि वह 30 से ज्यादा खाद्य वस्तुओं पर बजट में ही टैरिफ घंटा चुके हैं। आगे भी वह इस कार्रवाई को जारी रखेंगे। यही नहीं एलन मस्क के टेस्ला को भारत में आने के अवरोधों को हटाया जा रहा ‌था। शायद मस्क के द्वारा भारतीयों को एलियन घोषित करने पर उन्हें पुरस्कृत किया गया है। यही नहीं कबाड़ हो चुके यफ-35 लड़ाकू विमान को ट्रंप ने भारत की बांह मरोड़ कर खरीदने के लिए मजबूर कर दिया ।

भारत के स्वतंत्र सार्वभौम राष्ट्र की पहचान को जिस तरह से मोदी ने धूमिल किया है। वह अक्षम्य है। ट्रंप मोदी के सामने ही भारत पर टैरिफ लगाने की धमकी देता रहा। ब्रिक्स के मौत की घोषणा करता रहा और मोदी खिसियाहट में हंसते रहे। ताकतवर के सामने समर्पण और कमजोरों को धौंस-धमकी। यही संघी चरित्र व संस्कार का बुनियादी तत्व है।

एक बार बिहार के चुनाव में भाषण देते हुए मोदी ने बिहार के डीएनए का जिक्र किया था। अगर मोदी के ही तर्क़ को स्वीकार कर लिया जाए तो ट्रंप के सामने मोदी का समर्पण संघ के डीएनए को ही प्रकट करता है। जो लगातार साम्राज्यवादी जालिमों की खुशामद और सेवा में प्रकट होता रहा है। कल की ही घटना है कि कतर के बादशाह के समक्ष मोदी‌ लहालोट होते जा रहे थे और ठीक उसी समय उनका एक मुख्यमंत्री विधानसभा में देश के मुसलमान को अपमानित करने की धृष्टता कर रहा था। सच कहा जाए तो आज के राष्ट्रवादियों के डीएनए में ही वह तत्व छुपा है। जो उन्हें दोहरे आचरण के लिए मजबूर करता है और जालिमों के समक्ष समर्पण के लिए बाध्य करता है।

(जयप्रकाश नारायण राजनीतिक कार्यकर्ता हैं।) 

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