Saturday, April 20, 2024

किसी दुरूह सपने से कम नहीं है पेट्रोल के लिए श्रीलंकाई जतना का अंतहीन इंतजार

2022 में श्रीलंका के राजनीतिक- आर्थिक संकट को देख रहे लोग यह समझने में सक्षम होंगे कि दोनों पहलू निकट से जुड़े हुए हैं। अप्रैल के बाद से श्रीलंका में जो राजनीतिक उभार देखे जा रहे हैं, आमतौर पर उनके बाद तीव्र आर्थिक अभाव के दौर आते हैं। मार्च में 12 घंटे की जीवन अस्त-व्यस्त करने वाली बिजली कटौती थी, जिसके परिणामस्वरूप कई छोटे- छोटे प्रदर्शन हुए, जो 9 अप्रैल को तब समाप्त हुए, जब हजारों लोग गैले फेस ग्रीन्स में एकत्र हुए। यह “अराघालया” (सिंहली भाषा में-संघर्ष) की शुरुआत थी । अप्रैल और मई की शुरुआत में रसोई गैस और भोजन की भारी कमी ने लाखों लोगों को परेशान किया।

हालांकि 9 मई की हिंसा को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है – वह राजपक्षे पार्टी के कार्यकर्ताओं का एक समूह था जिन्होंने प्रदर्शनकारियों पर हमला किया था – इससे हिंसा भड़की, जिसके परिणामस्वरूप महिंदा राजपक्षे को (प्रधानमंत्री के रूप में) इस्तीफा देना पड़ा। 9 जुलाई को सबसे हालिया विरोध की कार्रवाई – राष्ट्रपति सचिवालय पर कब्जा करने वाले लोगों के दृश्यों के साथ –  ईंधन की भयंकर कमी के बाद हुई।

ईंधन की कमी ने श्रीलंका में जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। पेट्रोल पंपों के बाहर हर दिशा में एक किलोमीटर या उससे अधिक समय तक वाहनों की कतार लग जाती है। दोपहिया वाहनों, टुक-टुक और चार पहिया वाहनों के लिए अलग-अलग कतारें हैं। वाहन मालिक सप्ताह में दो बार अपनी नंबर प्लेट के अंतिम अंक के अनुसार ईंधन प्राप्त कर सकते हैं: 0,1,2 में समाप्त होने वाले नंबर प्लेट के लिए सोमवार और मंगलवार; 3,4,5 के लिए मंगलवार और शुक्रवार और 6,7,8,9 के लिए बुधवार, शनिवार और रविवार। लोग नियत दिन पर अपना कोटा प्राप्त करने के लिए एक या दो दिन पहले अपनी कार पार्क कर जाते हैं, पर यह भी सुनिश्चित नहीं होता कि ईंधन मिलेगा। आमतौर पर, पेट्रोल पंप के ईंधन समाप्त होने से पहले लगभग 150 वाहन भरे जा सकते हैं। कीमती ईंधन प्राप्त करने की संभावना बढ़ाने के लिए लोग पिछले दिन जल्दी लाइन में लग जाते हैं और अपनी कारों को रात भर छोड़ देते हैं।

 जिसने असाधारण रूप से लंबी ईंधन कतारों का अनुभव नहीं किया है उसका वर्णन करना मुश्किल है कि सामान्य जीवन के लिए क्या- क्या व्यवधान हैं। कतार में प्रतीक्षा करना श्रीलंका में किसी के भी जीवन का केंद्रीय आयोजन सिद्धांत बन गया है। बाकी सब कुछ – काम, परिवार, दोस्ती – इसी के इर्द-गिर्द पुनर्व्यवस्थित है। शारीरिक और मनोवैज्ञानिक खामियाजा (टोल) बहुत अधिक है। जून के अंत और जुलाई की शुरुआत में तंगी जब ज्यादा थी, ईंधन की कतारों में कम से कम 20 मौतों को रिकॉर्ड किया गया, जब चार अथवा पांच दिनों का प्रतीक्षा समय सामान्य हो गया था। लोग चटाइयां लाते हैं और उन्हें अपनी कारों के बगल में फुटपाथ पर बिछाते हैं।

यह जगह एक अस्थायी कार्य केंद्र (temporary workplace) बन जाता है क्योंकि वे अपने लैपटॉप और उपकरणों को फैला कर रखते हैं और कॉल लेते रहते हैं। बताया जाता है कि लोगों ने कतारों में प्रतीक्षा करते हुए नौकरी के लिए इंटरव्यू दिए हैं और उन्हें काम पर रखा गया है। नई दोस्तियां और रिश्ते बनाए जाते हैं, जब लोग डेक कुर्सियाँ लाते हैं, और कतार के आगे बढ़ने की प्रतीक्षा करते हुए समाचार और गपशप का आदान-प्रदान होता रहता है। हमेशा राजनीति और अर्थव्यवस्था की स्थिति पर चर्चा होती है।

‘पीक तेल’ और ‘पीक गैस’ की चर्चा उस बिंदु के रूप में की गई है जहां पेट्रोलियम की निकासी कम होने लगती है। कई अध्ययनों ने इंगित किया है कि मानवता को जलवायु-ताप बढ़ाने वाले जीवाश्म ईंधन (climate-heating fossil fuels) की खपत में भारी कमी लाने की जरूरत है। हालांकि, इस तरह के किसी भी अभ्यास के दौरान ऊर्जा उपयोग और राजनीतिक स्थिरता की गणना को ध्यान में रखना होगा। श्रीलंका इस बात का एक प्रमुख उदाहरण है कि कैसे राजनीतिक स्थिरता आर्थिक संसाधनों की उपलब्धता या कमी से नज़दीकी तौर पर जुड़ी हुई है। हालाँकि, यह सच है कि श्रीलंका के राजनीतिक संकट के लिये केवल अर्थशास्त्र को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

2019 में गोटाबाया राजपक्षे ने द्वीप राष्ट्र के राष्ट्रपति बनने के लिए अभियान चलाया। उनका अभियान नस्लवादी था और उन्होंने अपने को एक तकनीकी-सैन्यवादी के रूप में पेश करने की कोशिश की, जो श्रीलंका की समस्याओं का समाधान करेगा और देश को दूसरे सिंगापुर में बदल देगा। वास्तव में, गोटाबाया कह रहे थे कि वह वहां सफल होंगे जहां संसद तक विफल रही थी। ईस्टर संडे बम धमाकों ने सिंहली बहुसंख्यकों में भय का माहौल पैदा कर दिया था । गोटाबाया ने इसका फायदा उठाया और भारी चुनावी जीत के ज़रिये राष्ट्रपति बने। उनके कार्यों ने एक निरंकुश मानसिकता और संसदीय प्रक्रिया की अवमानना का प्रदर्शन किया। 2020 के संसदीय चुनावों में उनकी पार्टी, श्रीलंका पोदुजना पेरामुना ने दो तिहाई बहुमत हासिल किया।

इसने गोटाबाया को और भी अधिक उत्साहित किया। उभरते हुए आर्थिक संकट के संकेतों के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से संपर्क करने से इनकार, रासायनिक उर्वरकों पर रातोंरात प्रतिबंध, बड़े पैमाने पर कर कटौती और सरकारी खजाने को भरने के लिए पैसे की छपाई का एक कार्यक्रम कुछ नीतिगत गलतियाँ थीं। इन सभी के संचयी प्रभाव के परिणामस्वरूप श्रीलंका का आर्थिक पतन हुआ, जिसके बाद राजनीतिक उथल-पुथल शुरू हुई।

ईंधन की कतारों में इनका खास मतलब नहीं है। यह अतीत में रही हैं और लोग वर्तमान में ईंधन प्राप्त करने की कोशिश में लगे हुए हैं। एक ईंधन ‘बाउज़र’ के आगमन का बहुत खुशी के साथ स्वागत किया जाता है, क्योंकि एक बार जब बाउज़र अपनी सामग्री को पेट्रोल पंप के टैंकों में खाली कर देता है, तो लाइन चलने लगती है। चार पहिया वाहन एक बार में 7,000 LKR तक भर सकते हैं, और कारों के लिए आवंटन 20 लीटर प्रति सप्ताह है। लोगों को लंच और डिनर पैक मिलता है और कुछ अपनी कारों में रात भर रुकते हैं, जबकि अन्य घर जाते हैं और अगली सुबह लौटते हैं। जुलाई की गर्मी और उमस में कारों में रहना मुश्किल होता है।

आयातित ईंधन पर श्रीलंका की निर्भरता ही सबसे पहले संकट का कारण बना, लेकिन वह जीवाश्म ईंधन के बिना भी नहीं चल सकता। 2005 में महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति बनने और 2009 में गृहयुद्ध समाप्त होने के बाद, घरेलू बुनियादी ढांचे के निर्माण की एक नई आर्थिक रणनीति को प्राथमिकता दी गई और निर्यात-उन्मुख फोकस कम हो गया। विशाल सड़कें, एक्सप्रेस वे और बंदरगाह बनाए गए। नई सड़कों का मतलब था नई कारों की खरीद और ईंधन के आयात में वृद्धि। श्रीलंका की प्रति व्यक्ति आय बढ़ने का मतलब यह भी था कि लोग अधिक उपभोक्ता वस्तुओं की मांग कर रहे थे, जिसे आयात के माध्यम से पूरा किया जाना था। 1990 और 2000 के बीच कुल ऊर्जा उपयोग के प्रतिशत के रूप में श्रीलंका का शुद्ध ऊर्जा आयात 20% से 40% तक (दोगुना) हो गया।

2021 में देश ने तेल और कोयले के आयात में 3.7 अरब डॉलर खर्च किए। श्रीलंका में सौर और पवन ऊर्जा की अच्छी क्षमता है, लेकिन इसका विकास भी नहीं हुआ है। यह अपनी बिजली का एक तिहाई आयातित तेल से, एक तिहाई आयातित कोयले से और बाकी घरेलू जल विद्युत से उत्पन्न करता है।

और अब श्रीलंका के पास आयात का भुगतान करने के लिए विदेशी मुद्रा डॉलर खत्म हो गए हैं। अंतिम गणना में, देश के पास बमुश्किल 50 मिलियन डॉलर का फोरेक्स था, और इसे अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजारों से बंद कर दिया गया था क्योंकि यह अपने कर्ज अदायगी पर चूक रहा था। ईंधन की कमी इसके पर्यटन उद्योग, जो इसके सबसे बड़े राजस्व अर्जक में से एक है, को प्रभावित कर रही है। कैब्स नेगोंबो हवाई अड्डे से कोलंबो की यात्रा के लिए, यानि 30 किलोमीटर की दूरी के लिए LKR 15,000 (यूएसडी 40) चार्ज कर रहे हैं। यह महज एक साल पहले की कीमत का तीन गुना है। एक फलता-फूलता काला बाजार सामने आया है जहां ईंधन LKR 2,000 से 3,000  प्रति लीटर के हिसाब से बिक रहा है। 92 ऑक्टेन पेट्रोल के लिए पंप दर LKR 450 है।

श्रीलंका की कहानी एक सतर्क करने वाली कहानी है, जो बताती है कि क्या होता है जब किसी देश की बुनियादी राजनीतिक और आर्थिक प्रक्रियाओं के बदले ‘शानदार प्राचीन अतीत’ की पौराणिक कथाओं, धार्मिक राष्ट्रवाद या नस्लीय श्रेष्ठता की मौलिक भावनाओं को परोसा जाता है। किसी भी आधुनिक समय की आबादी के लिए अंततः जो मायने रखता है वह यह है कि उन्हें वर्तमान में जीवित रहने के लिए क्या चाहिए – भोजन, ईंधन और बिजली।

(जे जी पण्डित एक लेखक और पत्रकार हैं जो वर्तमान में श्रीलंका से रिपोर्टिंग कर रहे हैं। काउंटर करेंट में अंग्रेजी में प्रकाशित इस रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद कुमुदिनी पति ने किया है।)

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