किसान आंदोलन की जमीन पर फिर से लहलहाने लगी है भाईचारे की फसल

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किसान आंदोलन ने जहां किसानों की ताकत का एहसास मोदी सरकार को कराया है, वहीं पश्चिमी उत्तर के बिगड़े भाईचारे को फिर से लौटा दिया है। जिस मुजफ्फरनगर के दंगे के नाम पर भाजपा ने 2014 में न केवल केंद्र की सत्ता हथियाई थी, बल्कि 2017 में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश पर भी फतह हासिल की थी, उसी मुजफ्फरनगर के किसान नेता राकेश टिकैत ने किसान आंदोलन से ऐसा माहौल बना दिया है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सत्ता के लिए मुस्लिम-हिंदुओं में पैदा की गई नफरत भाईचारे में बदल रही है।

किसान आंदोलन में जहां जाटों के साथ विभिन्न वर्गों के जुड़े किसान भारी संख्या में भागीदारी कर रहे हैं, वहीं जाटों से दूरी बनाकर चल रहे मुस्लिम भी आंदोलन में आ डटे हैं। भाकियू के संस्थापक राकेश टिकैत के पिता महेंद्र टिकैत के समय के जिन मुस्लिम किसान नेताओं ने मुजफ्फरनगर दंगों के बाद भाकियू से दूरी बना ली थी।

अब आंदोलन का हॉटस्पाट बन चुके गाजीपुर बार्डर पर पहुंचकर ये हिंदू-मुस्लिम एकता को फिर से संजोने का प्रयास कर रहे हैं। जिस पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हिंदू-मुस्लिम एकता देश के बंटवारे के समय देश में फैले दंगें भी न प्रभावित कर पाए थे, उसी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हिंदू-मुस्लिम एकता सत्ता के सौदागरों ने बिगाड़ दी थी, जो फिर से कायम हो रही है। इस हिंदू-मुस्लिम एकता के सूत्रधार राकेश टिकैत और उनके भाई नरेश टिकैत साबित हो रहे हैं।

दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोग बड़े भावुक माने जाते हैं। यही वजह है कि राजनीतिक दल यहां के लोगों की भावनाओं से खेलते रहे हैं। चाहे केंद्र की सरकारें बनती हों या फिर उत्तर प्रदेश की सरकार। हर बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश निर्णायक भूमिका निभाता है। इस क्षेत्र की गंगा-जमुनी तहजीब ही है कि तमाम हथकंडों के बावजूद यहां के भाईचारे को ज्यादा दिनों तक नहीं बिगाड़ा जा सकता है।

90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन की आड़ में देश में फैले दंगों में भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था। राजनीतिक दल ज्यादा दिनों तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों में नफरत का जहर न घोल सके। मुजफ्फरनगर में दोहरे हत्याकांड के बाद राजनीतिक दलों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश का भाईचारा बिगाड़ दिया था।

किसान आंदोलन जहां भाजपा के लिए एक बड़ी आफत बनकर उभरा है। जहां यह आंदोलन भाजपा की हिंदू-मुस्लिम के नाम पर तैयार की गई वोटबैंक की फसल को रौंद रहा है, वहीं सत्ता की जड़ों में मट्ठा डाल रहा है। किसान आंदोलन से जहां सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा बेचैन है, वहीं विपक्ष में बैठी सपा और बसपा के लिए भी राकेश टिकैत का बढ़ा कद दिक्कतभरा है। यही वजह है कि बसपा मुखिया मायावती ने मोदी और योगी सरकार पर किसान आंदोलन को बढ़ावा देने का आरोप लगाना शुरू कर दिया है।

पश्चिमी उत्तर में हो रही महापंचायतों में चौधरी चरण सिंह के पौते और अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी शिरकत करते देखे जा रहे हैं। किसान आंदोलन ने जिस तरह से विश्वस्तरीय लोकप्रियता बटोरी है, उससे राजनीतिक दलों को यह चिंता सताने लगी है कि कहीं किसान नेता राजनीतिक दल बनाकर चुनावी समर में न उतर जाएं।

वैसे भी भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत के 27 तारीख को मंच से रोने के बाद देश में जिस तरह से किसान आंदोलन ने जोर पकड़ा है, उससे राकेश टिकैत का कद देश में लगातार बढ़ रहा है। जिस तरह से राजनीतिक दल लगातार किसानों की उपेक्षा करते चले आ रहे हैं ऐसे में एक किसान राजनीतिक दल की मांग भी देश में लगातार उठ रही है।

भाजपा के साथ ही बसपा और सपा के लिए चिंता की बात यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान तबका सबसे अधिक है। यही किसान तबका जाति और धर्म के नाम पर लगातार बंटता आ रहा है। दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के राजनीतिक एक ही तरह के माने जाते हैं। भाजपा की चिंता यह भी है कि पश्मिची उत्तर प्रदेश के साथ ही हरियाणा में भी किसान आंदोलन चरम पर है।

27 अगस्त 2013 को जानसठ कोतवाली क्षेत्र के गांव कवाल में दोहरे हत्याकांड के बाद सियासतदानों ने ऐसा माहौल बनाया कि वहां दंगे भडक़ उठे थे। दंगों की आड़ में वोटबैंक की फसल तैयार करने में 62 लोगों की कुर्बानी ली गई, वहीं 40 हजार से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे। यह उत्पातियों को बढ़ावा देने की ही फितरत है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार दंगों के दौरान दर्ज 131 मामलों को लगातार वापस कर रही है।

इसमें 13 हत्या, 11 हत्या की कोशिश के मामले हैं। 16 ऐसे मामले हैं, जिसमें लोगों पर धार्मिक उन्माद फैलाने का आरोप है, जबकि दो ऐसे मामले भी हैं, जिसमें जानबूझकर लोगों की धार्मिक भावनाएं को भड़काने का आरोप है। ये मामले अखिलेश सरकार में दर्ज किए गए थे।

भाजपा की बेचैनी यह भी है कि अगले साल उत्तर प्रदेश में विधनानसभा चुनाव हैं। भाजपा पूरा खेल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बल पर करती है। राकेश टिकैत न केवल भाजपा, सपा-बसपा बल्कि रालोद के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राकेश टिकैत और हरियाणा में गुमनाम चढ़ुनी का अच्छा खासा प्रभाव बन चुका है।

(चरण सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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