वो खुद के लिए गाय का दूध और जनता के लिए गोमूत्र चाहते हैं

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हिंदू महासभा के स्वघोषित आचार्य चक्रपाणि ने गोमूत्र पार्टी का आयोजन किया और उसकी फ़ोटो, वीडियो सोशल मीडिया पर जम कर वायरल हो रही हैं। यह पार्टी कोरोना वायरस के प्रकोप से बचने के लिए एक औषधि पान के रूप में आयोजित की गई थी।

इस गौमूत्र पान आयोजन के समय गौमूत्र पान का आनंद लेते हुए चक्रपाणि के कुछ चेले भी दिखे। यह वही चक्रपाणि हैं जो आसाराम और चिन्मयानंद की गिरफ्तारी पर टीवी चैनलों में बैठ कर इन गिरफ्तारियों को हिंदू धर्म, संतों का अपमान बताया करते थे। प्रज्ञा ठाकुर की बमबाजी को भी सही ठहराते थे। 

चक्रपाणि के अनुसार, गौमूत्र पान कोरोना वायरस के प्रकोप से मुक्त रखता है। इसका कोई वैज्ञानिक शोध उनके पास है या यह केवल एक मूढ़ आस्थावाद है यह तो वही जानें। चक्रपाणि ने आगे कहा कि हवाई अड्डों पर भी विदेशों से आने वाले लोगों के लिए गोमूत्र की व्यवस्था करने को सरकार से अनुरोध किया है। 

उनका कहना है कि, भारत आने वाले सभी लोगों को गौमूत्र पिला देना चाहिए, इससे कोरोना का संक्रमण उन्हें नहीं होगा। यह संत हैं या भगवा पाखंडी यह तो समय बताएगा, पर फिलहाल इस पार्टी से देश, धर्म और संत समाज की क्षवि पूरी दुनिया मे धूमिल हो रही है। सोशल मीडिया पर इसका जम कर मज़ाक़ उड़ रहा है। 

सनातन धर्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह एकेश्वरवाद से निरीश्वरवाद तक, मूर्तिपूजा से निराकार ब्रह्म की आराधना तक, सगुण से निर्गुण तक, आस्तिकता से नास्तिकता तक, भक्तियोग से ज्ञानयोग होते हुए वैराग्य तक, अत्यंत नैतिक वैष्णव मार्ग से पंचमकार के पूजकों तक, सात्विक राजाधिराज की पूजा से लेकर अघोर तंत्र तक, सबको अपनी-अपनी इच्छानुसार उपासना और  उसे मानने का स्पेस देता है।

यही विविधता, यही बहुलतावाद, यही वैचारिक उदारता, यही शास्त्रार्थ जन्य दार्शनिक खोज ही इस धर्म को तमाम आक्रमक झंझावातों से बचाए हुए है, और यही इसे आगे भी शाश्वत बनाए रखेगी। क्या विडंबना है, आज दार्शनिक रूप से विश्व के सबसे समृद्ध धर्म को हिदुत्व के नाम पर कट्टरपंथी तत्वों ने गाय, गोबर और गोमूत्र तक सीमित कर दिया है।

धर्म के सबसे बड़े शत्रु धर्म के पाखंडी धर्माचार्य होते हैं और वे जिस अंधानुगामी और अतार्किक समाज का निर्माण करते रहते हैं, वह अंततः उनके धर्म को ही हानि पहुंचाता है। वे सच में अपने धर्म के ही दुश्मन हैं। अब न दर्शन पर कोई चर्चा करता है और न धर्म के विभिन्न रूपों पर बहस करता है।

जिस धर्म में एकेश्वरवाद से लेकर निरीश्वरवाद तक तार्किक बहसों की एक बेहद समृद्ध परंपरा है वहां धर्म बस गाय, गोबर और गोमूत्र तक ही रह गया है। इन फ़र्ज़ी बाबाओं ने धर्म को एक तबेला बना कर रख दिया है। 

अजीब पागलपन का दौर है। जिस बड़े नेता मंत्री को देखिए वह हर बीमारी का इलाज गोमूत्र से शुरू कर रहा है। वह गाय के दूध की बात नहीं करते हैं। वह दूध खुद के हिस्से और मूत्र जनता के हिस्से में डाल देना चाहते हैं! अश्विनी चौबे मंत्री हैं और वे गौमूत्र के औषधीय गुण पर शोध करा रहे हैं।

शोधों पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन शोध का परिणाम क्या निकला? दरअसल उनका उद्देश्य रोग का निदान या गौमूत्र गोबर का औषधीय गुण नहीं ढूंढना है बल्कि यह उन्मादित हिंदुत्व को गाय के इर्दगिर्द समेट कर सीमित रख देने और जनता को भावुकता में उलझाए रखने और खुद को सत्ता में बनाए रखने का है। 

आज कोरोना वायरस के प्रकोप से बचने के लिए दुनिया भर में लोग तरह-तरह के वैज्ञानिक उपाय अपना रहे हैं, वहीं चक्रपाणि नामक एक धर्माचार्य गोमूत्र पार्टी कर रहे हैं। दुनिया के हर रोग का इलाज वे गोमूत्र और गोबर में ढूंढ रहे हैं, पर काश वे अपनी बौद्धिक नासमझी का इलाज भी गोमूत्र में ढूंढ लेते!

यह मानसिक व्याधि केवल हिंदू धर्म में ही नहीं व्याप्त है, बल्कि अन्य धर्मों में भी है। ईरान से भी एक खबर आई है कि तारों पर एक बंडल में कुरान की प्रतियां बांध कर कोरोना का संचार रोकने की उम्मीद की जा रही है। ईसाई धर्म में भी ऐसे ही एक चंगाई सभा है, जो ईसा के नाम पर तरह-तरह चमत्कारों की बात करती रहती है, और इस इलाज की आड़ में धर्म परिवर्तन कराती है। 

संसार के सारे धर्म मुक्ति की बात करते हैं। पर वे और ईश्वर खुद भी आज़ाद नहीं हैं। दुनिया भर के सभी धर्मों के पौरोहित्यवाद, धर्म का नहीं बल्कि धर्म की आड़ में अधार्मिक अंधविश्वास का प्रचार प्रसार करते हैं। धर्म और ईश्वर,  इन्ही पोंगापंथी धार्मिक गुरुओं के बंधक बन गए हैं। धर्म और ईश्वर जिसे मानना हो मानें, यह उसकी निजी आस्था की बात है पर अंधविश्वास फैलाने वाले ऐसे ऐय्यारों की मक्कारी से जनता को दूर रहना चाहिए।

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।) 

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