भाजपा के नेता मुकुल राय की पत्नी कृष्णा राय बीमार है और एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। उनके काफी बीमार होने की खबर सुनने के बाद सांसद एवं तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी उन्हें देखने के लिए अस्पताल पहुंच गए। इसके बाद तो सियासत में भूचाल ही आ गया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष की बेचैनी बढ़ गई और अभिषेक के निकलते ही वे भी मुकुल की पत्नी का हाल जानने के लिए अस्पताल पहुंच गए। इतना ही नहीं, कुछ ही मिनटों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मुकुल को फोन करके उनकी पत्नी का हाल पूछ लिया। अभिषेक के अस्पताल जाने भर से हुई इस बेचैनी की वजह यह है कि अब भाजपा में खुदा हाफिज कहने का सिलसिला शुरू हो गया है।
अभिषेक बनर्जी जब अस्पताल पहुंचे तो वहां मुकुल राय नहीं थे। उनकी मुलाकात मुकुल के पुत्र एवं पूर्व विधायक शुभ्रांशु राय से हुई। इस बार शुभ्रांशु भाजपा के टिकट पर चुनाव हार गए हैं। जब अभिषेक अस्पताल पहुंचे तो वहां मुकुल का ना होना महज इत्तफाक था या एक सोची-समझी रणनीति थी। अभिषेक को वाई ग्रेड की सुरक्षा मिली हुई है इसलिए उनके अस्पताल पहुंचने की जानकारी काफी पहले अस्पताल वालों को मिल गई होगी। अभिषेक और शुभ्रांशु दोनों ने ही कहा है कि यह एक शिष्टाचार मुलाकात थी।
बहुत पुराना संपर्क होने के कारण अभिषेक कृष्णा दी का हाल जानने आ गए थे। दूसरी तरफ सियासत के जानकार लोगों का कहना है कि अभिषेक बनर्जी यू ही नहीं मिलने चले गए थे। इसके पीछे ममता बनर्जी की सियासत थी तो प्रशांत किशोर की रणनीति भी काम कर रही थी। इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे की तरफ लौटना पड़ेगा। चुनाव परिणाम आने और भारी बहुमत पाने के बाद ममता बनर्जी ने कहा था कि मुकुल उतना बुरा नहीं है। इसके बाद तो यूं लगा जैसे मुकुल खुद अपनी व्यथा ममता बनर्जी की जुबान से कह रहे हों।
ममता बनर्जी ने कहा कि मुकुल का मकान कचरापाड़ा में है, वह डायबिटिक है और उसे कृष्णानगर से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया। बहुत गलत हुए बेचारे के साथ।
यहां गौरतलब है कि मुकुल राय ने अपनी इस व्यथा को विधायक पद की शपथ लेने के दौरान बहुत ही शालीनता, लेकिन बेहद सख्त रुख के साथ जता भी दिया था। विधानसभा भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष भी मौजूद थे। मुकुल राय यहां आने के बाद सीधे तृणमूल कांग्रेस कार्यालय में चले गए और वहीं फार्म भरने की औपचारिकता पूरी की और शपथ लेने के बाद चले गए। भाजपा के कार्यालय में एक बार भी नहीं गए, अलबत्ता तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुब्रत बख्शी के साथ लंबी बातचीत की थी। इसके बाद सियासत गरमा गई, लेकिन मुकुल के एक बयान से ठंडी हो गई।
अभिषेक का आना खबर नहीं बनती अगर मुकुल राय के कद में 2019 के मुकाबले 2021 में भारी बदलाव नहीं आया होता। तब शायद अभिषेक भी कृष्णा दी का हाल पूछने नहीं जाते। मुकुल को 2019 के लोकसभा चुनाव में गृह मंत्री अमित शाह ने चाणक्य की उपाधि दी थी। इसके बाद 2021 के विधानसभा चुनाव में उन्हें 294 उम्मीदवारों में से एक उम्मीदवार बना कर छोड़ दिया। मुकुल राय के राजनीतिक जीवन में यह पहला चुनाव था जिसमें रणनीति के लिहाज से उनकी कोई भूमिका ही नहीं थी। जब चुनाव परिणाम आया तो पता चला कि मोदी और शाह के दंभ को लोगों ने कुचल कर रख दिया है। बात यहीं नहीं थमी इसके कुछ दिन बाद से ही हैस्टरिंग में भाजपा के भव्य कार्यालय में लगी घड़ी का कांटा अब उल्टा घूमने लगा है।
एक वह भी दौर था जब तृणमूल कांग्रेस सहित अन्य दलों से आने वालों को झंडा थमा कर भाजपा में शामिल करते रहते थे। अब भाजपा को अलविदा कहने वालों की कतार लग रही है। मसलन बसीरहाट के पूर्व विधायक और फुटबॉल खिलाड़ी दीपेंदू विश्वास ने भाजपा का झंडा थाम लिया था पर अब दीदी से वापस दल में लेने की अर्जी लगा रहे हैं। शुभ्रांशु राय ने कहा है कि जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को काम करने का मौका दिया जाना चाहिए। यह भाजपा को उनकी नसीहत है। टॉलीवुड पर कब्जा करने के लिए भाजपा ने बाबुल सुप्रियो को मैदान में उतारा था। श्रवांती चटर्जी, यश दासगुप्ता, तनुश्री चक्रवर्ती और पायल सरकार जैसे अभिनेता एवं अभिनेत्रियों ने भाजपा में नाम लिखाया था। अब भाजपा से मोहभंग हो गया है और दीदी के घर की राह पर हैं। सोनाली गुहा डिप्टी स्पीकर थीं और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ कर हारने के बाद अब दीदी से क्षमा याचना कर रही हैं। मालदह की पूर्व विधायक सरला मुर्मू और अरुण आचार्य भी माफीनामा देते हुए वापसी की गुहार लगा रहे हैं।
दरअसल भाजपा से तृणमूल की तरफ जाने का यह दौर सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में दिख रहा है और वह भी पंचायत स्तर पर। वैसे भी भाजपा का कुछ खास था नहीं पर विधानसभा चुनाव से पहले जो टूट कर भाजपा में आए थे वह अब तृणमूल में जाने वाली राह पर खड़े होकर इशारा मिलने का इंतजार कर रहे हैं। अब ऐसे में मुकुल राय की नाराजगी बहुत मायने रखती है। इसीलिए अभिषेक के अस्पताल में आने के बाद से ही मोदी तक डैमेज कंट्रोल करने के लिए मैदान में उतर आए हैं। अब आगे क्या होगा इसका इशारा शुभ्रांशु ने किया है।
क्या दल बदलने का इरादा है इस सवाल पर शुभ्रांशु ने कहा कि मा घर लौट कर आएगी तब बात करेंगे। दूसरी तरफ भाजपा के 77 विधायक चुने गए थे और दो के इस्तीफे के बाद अब 75 रह गए हैं। उनमें से भी विधानसभा में बुलाए गए भाजपा विधायक दल की बैठक में 22 नहीं आए थे। कहा जाता है कि शुभेंदु अधिकारी को विधायक दल का नेता चुने जाने से उन्हें एतराज था। इसलिए यह कयास लगाया जा रहा है भाजपा में विधायक दल में टूट अब अनिवार्य है। हालांकि ममता बनर्जी को विधायकों की जरूरत नहीं है, लेकिन वे भाजपा को उसी के अंदाज में विधायकों को तोड़कर जवाब देने से गुरेज नहीं करेंगी।
वैसे लगता है कि भाजपा के लिए इतना ही काफी नहीं है। पूर्व राज्यपाल तथागत राय ने भी मोर्चा संभाल लिया है। वे अब सक्रिय राजनीति में आने पर आमादा हैं और दिलीप घोष के साथ उनका 36 का आंकड़ा है। फिलहाल उन्होंने ट्विटर पर अपने जंग की शुरुआत की है। अब आगे हश्र क्या होता है यह देखना है।
(कोलकाता से वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र कुमार सिंह की रिपोर्ट।)