कहाँ नेहरू और बोस की ईगो… और कहाँ उसकी ईगो?

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बात 1937 की है।

महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और नेताजी सुभाष चंद्र बोस कलकत्ता में रवींद्र नाथ टैगोर से मिलने पहुँचे और बंगाल के हालात पर चर्चा की। 

गांधी नेताजी के भाई शरत चंद्र बोस के घर पर ठहरे थे। वहाँ वो बीमार पड़ गए।

टैगोर को जब गांधी जी के बीमार होने का पता चला तो वो फ़ौरन उन्हें देखने के लिए शरत के घर भागे।

वहाँ जाकर टैगोर को पता चला कि गांधी जी तो ऊपरी मंज़िल पर हैं। बुजुर्ग होने की वजह से वो सीढ़ी तो चढ़ ही नहीं सकते। 

तब उनके लिए एक कुर्सी का इंतज़ाम किया गया। टैगोर उस पर खड़े हुए। अब उस कुर्सी को पकड़कर हर सीढ़ी पर रखा जाता और टैगोर गांधी जी तक उनका हाल-चाल जानने पहुँच गए। 

पर…सवाल ये है कि उस कुर्सी को किन चार लोगों ने पकड़ा था और एक- एक सीढ़ी पर उठाकर रखा था?

वो चार लोग थे- नेहरू, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, शरत बोस और गांधी जी के सहायक महादेव देसाई। … ये नाम कितने बड़े और किसी में कोई ईगो नहीं। 

यह जानकारी दस्तावेज़ों के ज़रिए जॉय भट्टाचार्यजी ने दी है। जिनके पास इसके सबूत मौजूद हैं। जॉय भट्टाचार्यजी लेखक-पत्रकार थे। महादेव देसाई ने भी इस संस्मरण को लिखा है।

इस ऐतिहासिक घटना का ज़िक्र ज़रा मौजूदा दौर से जोड़कर देखिए। हमारे जैसे तमाम पत्रकार अब ऐसे क्षणों के गवाह बन रहे हैं और इस इतिहास को लिख रहे हैं कि आज हम सभी एक ऐसे शख़्स से रूबरू हैं जो महा ईगोइस्ट (Biggest Egoistic) है।

और यह वर्तमान इतिहास लिखा ही जाना चाहिए।

उस शख्स का ईगो देखिए कि वो फ़ोन पर एक मुख्यमंत्री को इसलिए झिड़क देता है कि उसने उस मीटिंग को लाइव ब्राडकास्ट कर दिया था जिसमें वह मुख्यमंत्री ऑक्सीजन की याचना कर रहा था। बाद में ऑक्सीजन के बिना गंगाराम अस्पताल और बत्रा अस्पतालों में बिना ऑक्सीजन कई मरीज़ों की मौत हो जाती है।

उस शख़्स के ईगो पर एक और राज्य के मुख्यमंत्री ने रोशनी डाली। उसने ट्वीट किया कि शासक का फ़ोन आया था, जिसमें उन्होंने सिर्फ़ अपने मन की बात कही, हमारी एक बात नहीं सुनी।

ईगो की वजह से वह शख़्स प्रेस कॉन्फ़्रेंस नहीं करता। वो सवालों से रूबरू नहीं होना चाहता। वो उन दरबारी पत्रकारों को पसंद करता है जो उसके साथ सेल्फी खिंचवाकर उसकी और अपनी ईगो शांत करते हैं। 

उसकी ईगो को ऐसे अभिनेता और गीतकार पसंद हैं जो उसकी कथित फ़क़ीरी पर मरमिटे हैं या क़सीदे लिखने को तैयार रहते हैं। उसके समय का बंबईया महानायक इस ईगो के सामने भीगी बिल्ली बना हुआ है।

उसकी ईगो दस लाख का सूट पहनकर हवाई चप्पल वालों को हवा में उड़ने के सपने दिखाता है।

उसकी ईगो के हिमायती चंद क्रोनी कैपटलिस्ट्स हैं। लैटरल एंट्री वाले चंद अर्थशास्त्री भी इस गिरोह में शामिल हैं। 

उसके ईगो की दास्तान लंबी है। आडवाणियों और मुरली मनोहर जोशियों को भी कुछ कुछ उन दास्तानोँ का पता है। लेकिन वे दधीचि न बन सके जो हमारी पीढ़ी को उसकी ईगो से सावधान करते। …और वो कड़ी निन्दा के नाते तो उस ईगो के डर से कहीं दुबक कर बैठ गया है।

हमारा अतीत गौरवशाली था, हमारे वर्तमान को उसकी ईगो ने फीका कर दिया है। 

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं) 

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