Friday, March 29, 2024

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे: अभिव्यक्ति की आजादी पर बढ़ते खतरे  

भारत समेत विश्व के कई देशों में अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरे बढ़ गए हैं। इसी बीच, तीन देश: ताजिकिस्तान, भारत और तुर्की जो अभी तक समस्याग्रस्त स्थिति में थे, से सबसे निचली श्रेणी में पहुंच गये हैं। खासकर, भारत में तेज गिरावट देखने को मिल रही है। यहां पर पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी ओलिगार्च द्वारा मीडिया के अधिग्रहण के बाद से भारत 11वें स्थान से  लुढ़ककर 161वें स्थान पर आ गया है।

भारत हाल के दिनों तक बेहद प्रगतिशील स्वरुप में देखा जाता था, लेकिन हिंदू राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री के सत्ता में आने के बाद से चीजें पूरी तरह से बदल गई हैं। इस वर्ष बीबीसी के ऊपर देश की वित्तीय अपराध जांच एजेंसी द्वारा छापा मारा गया, जिसकी व्यापक स्तर पर निंदा की गई और इसे बीबीसी की एक डॉक्यूमेंटरी में मोदी की आलोचना के जवाब में धमकी के रूप में देखा जा रहा है। 

ताजातरीन वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार रिकॉर्ड संख्या में कई देशों में मीडिया की स्वतंत्रता बेहद खराब हालत में है, जिसमें पत्रकारिता के लिए दुष्प्रचार एवं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरे हैं।

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की एक स्तब्ध कर देने वाली स्लाइड से खुलासा होता है कि वर्तमान में अभूतपूर्व संख्या के साथ 31 देश “बेहद गंभीर स्थिति”  वाली निम्नतम रैंकिंग में पहुंच गये हैं। दो वर्ष पहले तक ऐसे देशों की संख्या 21 थी।  

प्रेस फ्रीडम की वकालत करने वाले समूह रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ़) के द्वारा जारी की गई सूची के मुताबिक, निरंकुश सरकारों की बढ़ती आक्रामकता, जिनमें से कुछ देशों को लोकतांत्रिक माना जाता रहा है, के साथ-साथ “बड़े पैमाने पर दुष्प्रचार अथवा भ्रामक प्रचार अभियानों” के चलते हालात बद से बदतर हो गये हैं।

गार्डियन के साथ अपनी बातचीत में आरएसएफ़ के महासचिव क्रिस्टोफ डेलोइर ने बताया, “इस वर्ष आरएसएफ़ के मानचित्र पर जितने लाल निशान लगे हैं, उतने आज से पहले कभी नहीं लगे थे, क्योंकि प्रेस को खामोश करने के प्रयासों में निरंकुश नेता अधिकाधिक बेधड़क होते जा रहे हैं। इस खतरनाक प्रवृत्ति पर रोकथाम लगाने और स्थिति को उलटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को इस कड़वी सच्चाई से रूबरू होना होगा, और निर्णायक रूप से एकजुट होकर काम करना होगा।”

बुधवार का दिन वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे की 30वीं वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है, जिसे सरकारों को अभिव्यकित की आजादी को बनाये रखने के उनके कर्तव्यों की याद दिलाने के लिए स्थापित किया गया था। आरएसएफ़ के मुताबिक, हालांकि आज पत्रकारिता के लिए स्थिति यह है कि हर 10 देशों में से सात में यह “खराब” की श्रेणी में है, और मात्र तीन में ही इसे संतोषजनक कहा जा सकता है।  संयुक्तराष्ट्र का कहना है कि दुनिया में 85% लोग उन देशों में रह रहे हैं, जहां मीडिया फ्रीडम पिछले पांच वर्षों में घटी है। 

इस सर्वेक्षण में कुल 180 देशों में मीडिया की स्थिति का आकलन किया गया है, जिसमें पत्रकारों द्वारा जन हित में बिना किसी हस्तक्षेप और स्वंय की सुरक्षा की परवाह किये बगैर खबरें प्रकाशित करने की क्षमता को आंका गया है।   

यह दर्शाता है कि  तकनीक में तेजी से हो रही प्रगति ने विभिन्न सरकारों एवं राजनेताओं को वास्तविकता को विकृत करने की छूट दे दी है, और फेक कंटेंट को प्रकाशित करना आज हर कालखंड से कहीं ज्यादा आसान हो गया है। 

रिपोर्ट में कहा गया है, “सच और झूठ के बीच के फर्क को धुंधला किया जा रहा है, वास्तविक और नकली, तथ्यों एवं चालाकी, सूचना के अधिकार को खत्म कर रही हैं। कंटेंट के साथ छेड़छाड़ की अभूतपूर्व क्षमता का इस्तेमाल उन लोगों को कमजोर करने के लिए किया जा रहा है, जो गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता के प्रतीक माने जाते हैं, और इस प्रकार स्वंय पत्रकारिता को ही कमजोर किया जा रहा है।”

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रादुर्भाव ने मीडिया की दुनिया पर और कहर बरपा करने का काम किया है। एआई उपकरण कंटेंट को हजम कर जाते हैं और इसमें मिलावट कर इसे पुनः व्यवस्थित करते हैं जो दृढ़ता एवं विश्वसनीयता के सिद्धांतों का खुलेआम उल्लंघन करते हैं।”

ऐसा सिर्फ लिखित एआई सामग्री में ही नहीं है, बल्कि विजुअल में भी समान रूप से मौजूद है। वास्तविक लोगों को दर्शाने वाली हाई-डेफिनिशन छवि को कुछ सेकंड में ही तैयार किया जा सकता है। इसके साथ ही, सरकारें लगातार प्रचार युद्ध में लगी हुई हैं। यूक्रेन पर आक्रमण के बाद पिछले साल से ही रूस पहले ही रैंकिंग में  लुढ़क गया था, की रैंकिंग में नौ पायदान की और गिरावट आई है, क्योंकि राजकीय मीडिया क्रेमलिन लाइन की गुलाम बन गई है, जबकि विपक्षी आवाजों को निर्वासन में जाना पड़ा है। पिछले माह मास्को ने वाल स्ट्रीट जर्नल के रिपोर्टर इवान गेर्शकोविच को गिरफ्तार किया था, जो शीत युद्ध के बाद जासूसी के इल्जाम में रूस में हिरासत में लिए जाने वाले पहले अमेरिकी पत्रकार बन गये हैं। 

आरएसएफ़ ने कहा है कि तुर्की में कट्टर राष्ट्रपति रेसेप तय्यप एर्दोगन के प्रशासन ने 14 मई को होने वाले चुनावों से पहले पत्रकारों के खिलाफ हमलों को तेज कर दिया है। किसी भी अन्य लोकतंत्र की तुलना में तुर्की सबसे अधिक पत्रकारों को जेलों में रखता है। 

2023 के सूचकांक में कुछ सबसे बड़ी गिरावट अफ्रीका में देखने को मिली है। अभी हाल के दिनों तक एक क्षेत्रीय मॉडल के रूप में स्थापित सेनेगल की स्थिति 31 पायदान लुढकी है। इसके पीछे की मुख्य वजह दो पत्रकारों, पापे अले नींग और पापे निदाए के खिलाफ आपराधिक आरोप लगाया जाना है। इसी प्रकार ट्यूनीशिया में राष्ट्रपति कैश सैयद के बढ़ते अधिनायकवाद के नतीजे के तौर पर देश 27 स्थान गिर गया है।  

मध्य पूर्व का क्षेत्र पत्रकारों के लिहाज से विश्व का सबसे खतरनाक क्षेत्र है। लेकिन अमेरिका क्षेत्र में भी प्रेस की आजादी के नक्शे पर अब हारे रंग का कोई देश नहीं बचा है। संयुक्त राज्य अमेरिका तीन स्थान लुढ़ककर 45वें स्थान पर आ गया है। एशिया प्रशांत क्षेत्र को म्यांमार (173) और अफगानिस्तान (152) जो पत्रकारों के प्रति शत्रुतापूर्ण शासन माने जाते हैं, ने नीचे की श्रेणी में डाल दिया है। 

यूनेस्को में फ्रीडम ऑफ स्पीच पर वैश्विक स्तर पर नेतृत्वकारी गुइलहर्मे कैनेला ने कहा है, “हम बेहद चिंताजनक रुझान देख रहे हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या ये रुझान एक हिचकी भर है या यह दुनिया के पीछे जाने का संकेत है। शारीरिक हमले, डिजिटल हमले, आर्थिक हालात एवं क़ानूनी जकड़ने बताती हैं कि हम एक बड़े तूफान का सामना कर रहे हैं।”

बुधवार को जारी यूनेस्को की एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वस्थ स्वतंत्रता ने कई अन्य मौलिक अधिकारों को फलने-फूलने में मदद प्रदान की है। 

नॉर्डिक देशों ने लंबे समय से आरएसएफ रैंकिंग में शीर्ष स्थान पर काबिज बने हुए हैं, और नॉर्वे लगातार सातवें साल प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में पहले स्थान पर बना हुआ है। लेकिन एक गैर-नॉर्डिक देश आयरलैण्ड इस बार दूसरे स्थान पर पहुंचा है। क्राइम रिपोर्टर पीटर आर डी व्रीस की 2021 में हुई हत्या के बाद इस वर्ष नीदरलैंड 22 स्थानों की बढ़त के साथ शीर्ष 10 में वापस आ गया है। ब्रिटेन को 26वें स्थान पर रखा गया है।

Read m: Power, corruption and fury: the killing of Percy Lapid

आरएसएफ सहित अन्य प्रेस फ्रीडम समूहों के अनुसार, पश्चिमी दुनिया का मीडिया का परिदृश्य राजनीतिक एवं वित्तीय दबावों के चलते जड़वत बना हुआ रहता है। एक प्रेस गजट विश्लेषण में पाया गया है कि, इस साल की पहली तिमाही में, ब्रिटेन और उत्तरी अमेरिका में न्यूज़ मीडिया की नौकरी में कटौती एक महीने में 1,000 नौकरियों की दर से हुई है। 

पिछले हफ्ते, न्यूयॉर्क स्थित कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें यूरोपीय संघ में आत्मतुष्टि के खिलाफ चेतावनी जारी की गई थी, जिसे अभी तक पत्रकारों के लिए दुनिया की सबसे सुरक्षित एवं मुक्त क्षेत्रों में से एक माना जाता रहा है।

ग्रुप ने हंगरी और पोलैंड जैसे अनुदार सरकारों में बढ़ते लोकलुभावनवाद के बीच प्रेस की स्वतंत्रता का गला घोंटने के बारे में चिंता व्यक्त की है। इधर माल्टा के पत्रकार डाफ्ने कारुआना गैलिज़िया और स्लोवाकियाई पत्रकार जान कुसियाक की उनके काम के सिलसिले में हत्या कर दी गई थी।

(रविंद्र पटवाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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