बड़े नेताओं के भगदड़ से भाजपा के लिए सौ वर्तमान विधायकों का टिकट काटना हुआ मुश्किल

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केंद्र की मोदी सरकार हो या योगी की राज्य सरकार, अपनी असफलताओं, अपने कुशासन का ठीकरा सांसदों-विधायकों पर फ़ोड़ने की रणनीति उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उलटी पड़ती नजर आ रही है। जहां केंद्र की मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की असफलताओं और कुशासन का ठीकरा सौ से देढट सौ विधायकों के टिकट काटकर उनके सिर फोड़ने की कवायद चल रही थी कि तभी योगी सरकार में श्रम मंत्री और जमीनी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंत्री पद से इस्तीफा देकर सपा में शामिल होने की घोषणा करके भाजपा की कवायद को पलीता लगा दिया है। हो सकता है आज की बदली परिस्थिति में भाजपा सौ से डेढ़ सौ विधायकों के टिकट काटने की अपनी रणनीति छोड़ने पर विवश हो जाए। स्वामी प्रसाद मौर्य को तभी अपने को हाशिये पर फेंके जाने का अंदाज लग गया था, जब चुनाव अभियान समिति में भाजपा ने उन्हें शामिल नहीं किया था।

विधानसभा चुनाव 2022 के ऐलान के साथ ही प्रदेश में जमीन पर भाजपा की आसन्न पराजय देख कर उथल-पुथल और दल-बदल का दौर शुरू हो गया है। प्रदेश में योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री स्‍वामी प्रसाद मौर्य ने पद से इस्‍तीफा देने के साथ ही समाजवादी पार्टी ज्वॉइन कर ली है। वहीं चर्चा है कि अकेले स्वामी प्रसाद मौर्य ही नहीं बल्कि कई बड़े ओबीसी नेता भी बीजेपी को अलविदा कहने की तैयारी में हैं। स्‍वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद बीजेपी सकते में आ गई है।

भाजपा को पता है कि स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ बड़ा वोट बैंक खिसक जाएगा। वैसे तो जातियों के आधार पर कोई डेटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन एक अनुमान है कि यूपी में पिछड़े वर्ग (ओबीसी) का वोट 53 फीसद है। वहीं फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, बदायूं, फिरोजाबाद, एटा, मिर्जापुर, प्रयागराज,भदोही, मैनपुरी, हरदोई, कन्नौज, कानपुर देहात, जालौन, हमीरपुर, झांसी,ललितपुर और कुशीनगर जिलों में मौर्य, कुशवाहा समाज का अच्छा दबदबा है। ऐसे में चुनाव से ठीक पहले बीजेपी के बड़े कैबिनेट मंत्री और पिछड़ा वर्ग नेता के रूप में स्वामी प्रसाद मौर्य का जाना बड़ा झटका होगा।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा अपने वर्तमान विधायकों का टिकट काटेगी, लेकिन उनकी संख्या सीमित हो सकती है। इससे पहले खबर आई थी कि बीजेपी सरकार विरोधी लहर को दबाने के लिए बड़ी संख्या में (लगभग 150विधायकों) के टिकट काटेगी, लेकिन अब अमित शाह ने साफ कर दिया है कि जरूरत के मुताबिक ही टिकट कटेंगे वहीं सीएम योगी ने कहा था कि नए लोगों को मौका देना होगा। तो क्या इस बार उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा सीएम योगी की सलाह पर टिकट देगी और काटेगी या फैसला अमित शाह लेंगे। हालाँकि स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से भाजपा को इस रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा और घोषणा करनी पड़ेगी की किसी का टिकट नहीं कटेगा।

सितम्बर से ही कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में प्रदेश में एक बार फिर सरकार बनाने के लिए भाजपा ने विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण का फार्मूला तय कर लिया है। पार्टी के फार्मूले के अनुसार टिकट वितरण हुआ तो विधानसभा चुनाव-2022 में 150 से अधिक उम्मीदवार बदल जाएंगे। इनमें 2017 में चुनाव जीते और हारे उम्मीदवार भी शामिल हैं। कहा जा रहा है कि साढ़े चार वर्ष तक संगठन व सरकार की गतिविधियों में निष्क्रिय रहने वाले विधायकों का टिकट कटेगा। वहीं, साढ़े चार वर्ष में समय-समय पर अनर्गल बयानबाजी कर संगठन व सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाले विधायकों पर भी गाज गिरेगी। 70 वर्ष की उम्र पार कर चुके, विभिन्न प्रकार की गंभीर बीमारी से जूझ रहे विधायकों का टिकट भी कटेगा।

मीडिया में ख़बरें आई थीं कि पार्टी का मानना है कि जिन विधायकों से स्थानीय जनता, कार्यकर्ता, संगठन पदाधिकारी नाराज हैं उनकी जगह नए चेहरे को मौका देने से फायदा होगा। साथ ही जिन विधायकों पर समय-समय पर अलग-अलग तरह के आरोप लगते रहे हैं उन विधायकों को भी टिकट देने से पार्टी परहेज करेगी। विधानसभा चुनाव 2017 में ज्यादा अंतर से हारे उम्मीदवारों को भी पुन: मैदान में उतारने का जोखिम मोल लेने से पार्टी बचेगी।

चर्चा थी कि भाजपा में प्रत्याशी चयन के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की ओर से सर्वे कराया जा रहा है। गृहमंत्री अमित शाह के स्तर पर भी विभिन्न एजेंसी के जरिये सर्वे कराया जा रहा है। इधर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिलों का दौरा कर चुनावी फीडबैक लेने के अलावा विभिन्न स्तर से सर्वे करा रहे हैं।

विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में कहा था कि इस चुनाव में बीजेपी किसी भी विधायक का टिकट नहीं काटेगी। संसदीय बोर्ड उम्मीदवार तय करेगा।

पांच राज्यों में चुनाव तारीखों के ऐलान के साथ भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लग गयी है और उत्तर प्रदेश सहित अपनी चार सरकार बचाना भाजपा और प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी चुनौती है। प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर, जहाँ भाजपा की सरकारें हैं तथा और पंजाब जहाँ कांग्रेस की सरकार है के विधानसभा चुनाव पिछले पौने आठ साल के मोदी राज के रिपोर्ट कार्ड पर जनमत संग्रह माना जा रहा है, क्योंकि देश इस समय भयावह आर्थिक दुरावस्था, भीषण मंहगाई, बेरोजगारी, अंधाधुंध निजीकरण, सरकारी साम्प्रदायिकता और सरकार के कुशासन(बैड गवेर्नेंस) के दौर के चरम पर है।

जब भाजपा के ही सांसद सुब्रमण्यम स्वामी मोदी सरकार को हर मोर्चे पर फेल बता रहे हैं तो इसी से समझा जा सकता है कि स्थिति कितनी खराब है। उन्होंने ट्वीट किया है, ‘अर्थव्यवस्था में फेल, सीमा सुरक्षा में फेल, विदेश नीति में अफगानिस्तान में विफलता मिली, राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर पेगासस का मामला, आंतरिक सुरक्षा में कश्मीर में छाई निराशा, इन सबके लिए कौन उत्तरदायी? – सुब्रमण्यम स्वामी”

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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