विधानसभा चुनाव में जनता राष्ट्रीय संप्रभुता और लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ करने वाली भाजपा को करारी शिकस्त देगी

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घरेलू और विदेशी दोनों मोर्चों पर मोदी सरकार की हालत खस्ता है और उसकी छवि लगातार धूमिल हो रही है। रूस और यूक्रेन मामले में मोदी सरकार की और मोदी की निजी तौर पर जो फजीहत हुई है, वह काबिले गौर है। पहले तो यूक्रेन में राष्ट्रपति जेलेंस्की ने पत्रकार वार्ता में मोदी की रूस यात्रा की लानत मलामत की।

अब मोदी के दूत के बतौर NSA अजीत डोभाल का पुतिन के समक्ष यूक्रेन यात्रा की सफाई पेश करने का जो वीडियो वायरल हो रहा है, वह सचमुच एक स्वाभिमानी राष्ट्र के नागरिकों के लिए बेहद अपमानजनक है। हमारे राष्ट्र की संप्रभुता का क्या हुआ? क्या आजाद भारत की सरकार अपने फैसले राष्ट्रीय हितों के अनुरूप स्वयं नहीं ले सकती? क्या वह अपने कदमों की महाशक्तियों के आगे सफाई देने के लिए मजबूर है?

इस मामले में यह साफ है कि मोदी जी पहले रूस गए। फिर तुरंत बाद पोलैंड से लंबी रेल यात्रा करके उसे बैलेंस करने के लिए यूक्रेन गए, क्योंकि दरअसल यूक्रेन के पीछे नाटो और अमेरिका खड़े हैं, उन्हें नाराज करने का साहस मोदी सरकार के अंदर नहीं है।लेकिन वहां रूस यात्रा के लिए यूक्रेनी राष्ट्रपति ने, बेशक नाटो और अमेरिका की बैकिंग की ताकत पर, पत्रकार वार्ता में जबर्दस्त झाड़ लगाई।

उधर यूक्रेन यात्रा से जब रूस नाराज हो गया तो वहां सफाई देने भागते हुए भारत के NSA पहुंच गए। पुतिन के सामने कुर्सी पर उचक कर बैठे डोभाल की वायरल वीडियो हर देशभक्त को शर्मसार करने वाली है। यह साफ है मोदी सरकार ने देश की संप्रभुता का समर्पण कर दिया है।

मोदी जी का मुख्य न्यायाधीश के घर निजी धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होना देश में सार्वजनिक बहस का मुद्दा बना हुआ है। दरअसल इससे पूरा देश चौंक गया है। इसके ठोस नतीजे तो भविष्य में पता लगेंगे। लेकिन तात्कालिक तौर पर मोदी यह संदेश देते प्रतीत होते हैं कि न्यायपालिका के सर्वोच्च पदों पर विराजमान लोगों से उनके रिश्ते बेहद आत्मीय हैं।

अब तक देश में एक परसेप्शन था कि चुनाव आयोग या अन्य तमाम संवैधानिक संस्थाओं में ऐसे लोग बैठे हैं जो रूलिंग पार्टी के अनुरूप फैसले करते हैं लेकिन सर्वोच्च न्यायपालिका इनसे अलग है। मोदी जी ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि सर्वोच्च न्यायपालिका से भी उनके रिश्ते वैसे ही हैं। जाहिर है ऐसे दौर में जब यह माना जा रहा था कि मोदी राजनीतिक तौर पर कमजोर हुए हैं, यह तस्वीर हर खासो आम, दोस्त दुश्मन सबको यह बताने के लिए है कि उन्हें कमजोर समझने की कोई भूल न करे, न्यायपालिका से भी उनके रिश्ते गहरे हैं।

भ्रष्टाचार के सवाल पर जिस तरह का दोहरा मानदंड मोदी और संघ भाजपा ने अपनाया है, वह बेमिसाल है। मोदी पिछले दस साल से भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने को मसीहाई अंदाज में पेश करते रहे हैं। बेहयाई की हद यह है कि विपक्ष के जिन नेताओं को वे सबसे बड़े भ्रष्टाचारी बताते थे, भाजपा में शामिल होते ही वे सदाचारी हो जाते थे और उनके मामले ठंडे बस्ते में चले जाते हैं या वापस हो जाते हैं। सबसे ताजा उदाहरण मधु कोड़ा का है।

इनके ऊपर लोअर कोर्ट में अपराध सिद्ध हो चुका है। इन्हें 4 हजार करोड़ के खनन घोटाले का आरोपी बताते हुए मोदी शाह संसद के अंदर से बाहर तक इन्हें कांग्रेस के चरम भ्रष्टाचार का प्रतीक बताते नहीं थकते थे।उन्हीं कोड़ा के साथ मंच साझा करने के लिए मोदी सड़क मार्ग से सैकड़ों किमी की यात्रा तय करके जमशेदपुर पहुंचे।

पाखंड की पराकाष्ठा यह थी कि उस मंच से भी मोदी जी ने हेमंत सोरेन सरकार के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ लम्बा चौड़ा भाषण दे डाला, जिसके बारे में सोरेन को जमानत देते हुए न्यायालय ने माना कि उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है। मजेदार यह है कि इसी दौर में भाजपा ने ऐसे ही मामले में केजरीवाल को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया है।वहां नए मुख्यमंत्री को चार्ज लेना पड़ा है।

इस बीच सर्वोच्च न्यायालय ने अपने बेहद महत्वपूर्ण आदेश में बुलडोजर न्याय पर रोक लगा दिया है, हालांकि सार्वजनिक जगह पर अवैध अतिक्रमण गिराने पर रोक नहीं है। इससे वास्तविक व्यवहार में कितना फर्क पड़ेगा, यह अभी देखने की बात है क्योंकि सरकारें आम तौर पर अवैध निर्माण के नाम पर ही ऐसा करती हैं। लेकिन  अवधारणा के स्तर पर बुलडोजर न्याय पर जरूर चोट हुई है। जिस तरह बुलडोजर न्याय का महिमा मंडन हो रहा था, पता चला भाजपा के प्रचार में भी बुलडोजर खड़ा रहता है, इस पर अब न्यायालय ने रोक लगा दी है।

जाहिर है यह कानून व्यवस्था के बुलडोजर मॉडल पर सर्वोच्च न्यायालय की ओर से तमाचा है। दरअसल बुलडोजर और एनकाउंटर गवर्नेंस के योगी मॉडल का प्रतीक बना हुआ था। इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले से झटका लगा है। क्या एनकाउंटर राज पर भी न्यायालय रोक लगाएगा? हाल ही में UP के सुल्तानपुर में हुआ मंगेश यादव का कथित एनकाउंटर सुर्खियों में है।उनके परिजनों का आरोप है कि उन्हें घर से ले जाकर हत्या कर दी गई।

आज लाख टके का सवाल यह है कि क्या जनता इन सारे धतकर्मों को आंख मूद कर स्वीकार कर लेगी ?

हरियाणा और कश्मीर के चुनाव और फिर उसके बाद महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली के चुनाव में क्या भाजपा की जनविरोधी पाखंडी राजनीति को जनता नकारेगी? जनता के मन में क्या चल रहा है हरियाणा की घटनाएं उसकी बानगी हैं। जिस तरह भाजपा और उसके साथ रहे नेताओं का गांवों में जबर्दस्त विरोध हो रहा है, वह चुनाव नतीजों की झांकी है। किसानों और बेरोजगार नौजवानों का गुस्सा चरम पर है।

हरियाणा के चुनाव पर ग्राउंड रिपोर्टिंग करते हुए मनदीप पुनिया ने लिखा,” BJP नेता कुलदीप बिश्नोई ने आदमपुर सीट के गांव कुतियावाली में हुई घटना पर मांगी माफी! गांव कुतियावाली में कुलदीप बिश्नोई और किसानों के बीच धक्कामुक्की और तीखी नोंकझोंक भी हुई जिसमें एक व्यक्ति का मोबाइल भी तोड़ा गया था। “

शिगूफेबाजी का आलम यह है कि सरकार/चुनाव आयोग चार राज्यों का चुनाव एक साथ नहीं करवा सके लेकिन एक देश एक चुनाव का प्रस्ताव कैबिनेट से पास करवा लिया गया ! यह फैसला लोकतंत्र और संघवाद के मूल्यों के खिलाफ तो है ही, यह अव्यावहारिक है और इसका क्रियान्वयन असंभव है।

आशा की जानी चाहिए कि हरियाणा और जम्मू कश्मीर में भाजपा को करारी शिकस्त देकर जनता कड़ा संदेश देगी कि वह मोदी सरकार द्वारा राष्ट्रीय संप्रभुता और लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ को स्वीकार करने को तैयार नहीं है।

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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