बुधवार को द हिन्दू की लीड स्टोरी है, यह लीड स्टोरी बताती है ‘घर में शादी है पैसे नहीं हैं’ ( यह वाक्य मोदी जी ने नोटबंदी के तुरंत बाद जापान दौरे पर कहा था।)। इस खबर में बताया गया है कि मोदी सरकार ने राज्यों को चिठ्ठी भेजी है कि उसके पास कम जीएसटी कलेक्शन के कारण पैसे ही नहीं हैं अब आप ही बताओ कि क्या करना है?
आपको याद दिला दूं कि जुलाई 2017 में जब 17 विभिन्न केंद्रीय और राज्य करों को जीएसटी में समाहित किया गया था तब राज्यों को आश्वासन दिया गया था कि जीएसटी की वजह से राज्यों को राजस्व में होने वाले नुकसान की भरपाई की जाएगी। तब राज्यों को जीएसटी लागू होने के बाद शुरुआती पांच साल तक यह मुआवजा देने का आश्वासन दिया गया था।
अब केंद्र सरकार वादा खिलाफी कर रही है। शुरू में प्रति माह के आधार पर मुआवजा दिया गया, लेकिन बाद में एक माह की यह अवधि बढ़ा कर दो माह कर दी गई। दरअसल नोटबंदी और जीएसटी के बाद केंद्र की मोदी सरकार के लिए राजस्व जुटाना अब मुश्किल होता जा रहा है।
जब जीएसटी को लागू करने की मांग की जा रही थी तब ही लगभग सभी बड़े अर्थशास्त्रियों ने कहा था कि जल्दबाजी में इसे लागू करने से अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। यही हुआ है। जो लोग एक लाख करोड़ के जीएसटी कलेक्शन पर उछल पड़ते हैं, उन्हें यह जान लेना चाहिए कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान ही औसतन जीएसटी संग्रह 1.10 लाख करोड़ रुपये प्रति महीने रहने का अनुमान लगाया गया था। इसलिए मूल योजना के अनुसार हर माह एक लाख 10 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक होना चाहिए।
चालू वित्त वर्ष में सरकार ने पिछले साल के मुकाबले 14.4 प्रतिशत अधिक राजस्व प्रत्यक्ष करों से जुटाने का लक्ष्य रखा है। शुरुआती चार महीने का ट्रेंड बताता है कि इसमें महज सात फीसदी के आस-पास वृद्धि हो रही है।
सरकार का राजकोषीय घाटा सात महीने में ही पूरे साल के अनुमान को टच कर चुका है। संकट अब बहुत गहन है। अब नोटबंदी ओर जीएसटी के सम्मिलित प्रभाव से जीडीपी ग्रोथ रेट लगातार 6 तिमाही से घट रहा है। देश वित्तीय आपातकाल की तरफ तेजी से बढ़ रहा है।
(गिरीश मालवीय स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और आजकल इंदौर में रहते हैं।)
+ There are no comments
Add yours