नई दिल्ली। आखिरकार विपक्षी दलों और सामाजिक न्याय की शक्तियों के दबाव के आगे केंद्र सरकार को झुकना पड़ा। उसने केंद्रीय लोक सेवा आयोग को लैटरल एंट्री के विज्ञापन को रद्द करने का निर्देश दिया है। लैटरल एंट्री को लेकर पूरे देश में राजनीतिक बवाल खड़ा हो गया था। कांग्रेस से लेकर बीएसपी तक तमाम विपक्षी दलों ने इसका विरोध शुरू कर दिया था। इस बीच, सरकार के घटक दल जेडीयू और एलजेपी (पासवान) ने भी इसका विरोध किया था।
यूपीएससी की चेयरपर्सन प्रीति सुदान को लिखे गए एक पत्र में डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि हाशिये के समुदायों के योग्य अभ्यर्थियों को सरकारी सेवाओं में उचित प्रतिनिधित्व दिलाने के लिए सामाजिक न्याय को बनाए रखने की दिशा में संवैधानिक जनादेश बेहद महत्वपूर्ण है। इसलिए इन नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।
सिंह ने कहा कि सामाजिक न्याय के प्रति पीएम मोदी के फोकस को ध्यान में रखने के संदर्भ में इस पहलू की समीक्षा की जरूरत है। इसलिए मैं यूपीएससी से निवेदन करता हूं कि वह लैटरल एंट्री से होने वाली नियुक्तियों के विज्ञापन को रद्द कर दे। जिसे 17 अगस्त को जारी किया गया था। यह पहल सामाजिक न्याय को मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम होगा।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक्स पर लिखा कि पीएम मोदी हमेशा पूरी दृढ़ता के साथ सामाजिक न्याय में विश्वास करते थे। उनके कार्यक्रम समाज के कमजोर तबकों के कल्याण के लिए होते हैं। लैटरल एंट्री को रिजर्वेशन के सिद्धांतों के साथ जोड़कर पीएम मोदी ने सामाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दिखाया है।पत्र में उन्होंने कहा कि क्योंकि इन पदों को स्पेशल कटेगरी के तौर देखा जाता है और ये एक सिंगल कैडर पोस्टों के तौर पर निर्धारित हैं
इस विज्ञापन के आने के बाद ही विपक्षी दलों और उसके नेताओं ने सरकार पर हमला करना शुरू कर दिया था। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इसे दलित, ओबीसी और आदिवासियों पर हमला करार दिया था। इसके साथ ही जेडीयू और लोकजनशक्ति (राम विलास) ने भी इसका विरोध किया था।
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