हरियाणा चुनाव: कांग्रेस की सरकार आ तो रही है, लेकिन मूलभूत कमजोरियां बरकरार हैं

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हरियाणा विधान सभा की 90 सीटों के लिए 5 अक्टूबर को होने वाले चुनाव में कांग्रेस सरकार बनाने की ओर बढ़ती हुई दिख रही है। इसकी कई वजहें हैं।

एक बड़ी वजह तो यह है कि आम मतदाताओं का बड़ा हिस्सा कुछ साझी वजहों के चलते भाजपा सरकार से मुक्ति चाहता है। वह भाजपा के खिलाफ वोट करना चाहता है।

करीब 5 दिन हरियाणा में बिताने और आम मतदाताओं से बात करने पर सामान्य तौर पर दो बातें सामने आईं।

पहली तो यह कि बड़े हिस्से ने कहा कि कांग्रेस की सरकार आ रही है, कम लोगों ने यह कहा कि भाजपा की वापसी हो रही है, भले ही उन्होंने यह कहा हो कि वे भाजपा को वोट देंगे।

मतलब साफ है कि भाजपा के वोटर भी कांग्रेस की सरकार आते हुए देख रहे हैं। किसी भी चुनाव में किसी भी पार्टी के पक्ष में ऐसा परसेप्शन (धारणा) उसकी चुनावी जीत की संभावना को बढ़ा देता है।

हरियाणा में कांग्रेस की एक सबसे बड़ी ताकत यह है कि हरियाणा के मतदाताओं का सबसे बड़ा और सबसे समरूप समूह जाट मजबूती से उसके साथ लामबंद हो रहे हैं। जो हरियाणा की करीब 25 प्रतिशत आबादी है।

जाट वोटों में सिर्फ कुछ विधान सभा क्षेत्रों में इनेलो (अभय सिंह चौटाला) कुछ सेंध लगा रही है। बसपा से उनका गठबंधन कुछ जाटवों ( च.) का वोट तो इनेलो को प्रत्याशियों को उनके मजबूत गढ़ों में दिला सकता है।

लेकिन बसपा के प्रत्याशियों को इनेलो जाटों का वोट ट्रांसफर करा पाएगा, इसकी संभावना करीब शून्य है, विशेषकर दलित प्रत्याशियों के संदर्भ में। 

करीब-करीब सभी जाटों की एक साथ एकजुटता कांग्रेस की एक बड़ी ताकत है, गांवों में, कस्बों और कुछ शहरों में वर्चस्वशाली समूह होने के चलते उनकी आवाज भी बहुत मुखर होती है और है।

यह भी कांग्रेस की जीत का परसेप्शन बनाने में मदद कर रहा है। जाट समुदाय के बीच से ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे अनुभवी और ताकतवर नेता की उपस्थिति जाटों के बीच कांग्रेस को और अधिक सशक्त बना दे रही है।

एक अन्य सामाजिक समूह जिसका बड़ा हिस्सा कांग्रेस के साथ खड़ा है, वह एससी (दलित) समुदाय है।

2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने संविधान बचाने और जाति जनगणना, आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व आदि को जो देशव्यापी मुद्दा बनाया उनसे हरियाणा के दलितों को भी अपनी ओर आकर्षित किया है।

राहुल गांधी का लगातार संविधान हाथों में लेकर चलना भी दलितों के लिए आकर्षण का विषय रहा है। हरियाणा के दलितों का बड़ा हिस्सा आज की तारीख में कांग्रेस के साथ खड़ा है। लोकसभा चुनावों में भी यह पैटर्न दिखा था। 

दो अन्य चीजों ने भी दलितों को कांग्रेस की ओर धकेला है। एक तो यह कि दलितों के एक बड़े हिस्से में यह बात घर कर गई है कि भाजपा संविधान विरोधी और ब्राह्मणवादी पार्टी है। वे उसे आंबेडकर के विचारों के खिलाफ मानते हैं।

उसे सत्ता से हटाना चाहते हैं। दूसरे दलितों के बीच जिस पार्टी ने हरियाणा में एक समय जगह बनाई थी, वह बसपा थी। बसपा हरियाणा में अपना वजूद करीब खो चुकी है। उसे भाजपा को मदद पहुंचाने वाली पार्टी के रूप में देखा जा रहा है।

इनेलो के साथ उसके गठबंधन को भी भाजपा को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार गठबंधन के रूप में लोग देख रहे हैं। यही समझ अच्छे-खासे जाटव मतदाताओं की भी है।

दूसरा उनका कहना है कि जब बसपा जीत ही नहीं रही है, तो उसे वोट देना बेकार है। उसको वोट देने का मतलब है, भाजपा की मदद करना और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाना।

इस स्थिति ने दलित मतदाताओं के सामने एक ही विकल्प छोड़ा है, वह है कांग्रेस।

7 प्रतिशत मुस्लिम और करीब 5 प्रतिशत सिख तो पूरी तरह कांग्रेस के साथ हैं ही। हालांकि एक सीट पर इनेलो के मुस्लिम प्रत्याशी की स्थिति मजबूत है। मुसलमानों और सिखों को भाजपा ने खुद ही अपने घोषित शत्रुओं की सूची में डाल दिया है।

इन सामाजिक समीकरणों के अलावा हरियाणा के विधान सभा चुनाव को सबसे निर्णायक तरीके से प्रभावित करने वाले तीन मुद्दों-किसान, जवान और पहलवान पर कांग्रेस ने मजबूती से स्टैंड लिया है।

कांग्रेस घोषित तौर पर किसान आंदोलन और उनके न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी बनाने की मांग साथ खड़ी रही है। कांग्रेस ने शुरु से ही अग्निवीर की मुखालफत की। राहुल गांधी ने सड़क और संसद दोनों जगहों पर अग्निवीर योजना के खिलाफ मोर्चा खोले रखा।

इस चुनाव में भी उन्होंने इसे मुद्दा बनाया है और इसे खत्म करने की मांग की है। यह भी कहा है कि उनकी सरकार केंद्र में बनती है तो इस योजना को खत्म कर दिया जाएगा।

राहुल गांधी इसके साथ हरियाणा के नौजवानों के यूरोप-अमेरिका में पलायन की विवशता को भी संवेदनशील तरीके प्रस्तुत कर रहे हैं।

पहलवानों, महिला पहलवानों के मुद्दे पर कांग्रेस पूरी तरह महिला पहलवानों के साथ खड़ी रही है। प्रियंका गांधी और कांग्रेस के नेता जंतर-मंतर पर महिला पहलवानों के संघर्ष में उनके साथ थे।

विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया के कांग्रेस में शामिल होने के चलते यह मुद्दा पूरी तरह कांग्रेस का मुद्दा बन गया। विनेश फोगाट के चुनाव लड़ने के चलते भी कांग्रेस को फायदा हो रहा है।

संक्षेप में कहा जाए तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राहुल गांधी के प्रयासों ने कांग्रेस को हरियाणा में भाजपा के खिलाफ मजबूत और एकमात्र विकल्प बना दिया। भाजपा को हराने का मन बना चुके मतदाताओं के सामने कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प है।

इस स्थिति ने कांग्रेस की जीत की संभावना को करीब-करीब निश्चित सा बना दिया है।

भले कांग्रेस यह चुनाव जीत ले और अपनी सरकार बना ले, लेकिन कांग्रेस के सांगठनिक और वैचारिक ढांचे की कमजोरियां अभी भी करीब जस की तस हरियाणा में बरकरार हैं।

जो भूपेंद्र सिंह हुड्डा एकतरफा हरियाणा में कांग्रेस की जीत के लिए अपरिहार्य बन गए हैं, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के सांगठनिक ढांचे और वैचारिक अवस्थिति की बुनियादी कमजोरी के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार भी हैं। 

हुड्डा कांग्रेस को सभी सामाजिक समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी बनाने के मार्ग में अवरोध बनकर खड़े हैं। वे मुख्यत: जाटों के नेता हैं, उनका मजबूत आधार भी उन्हीं के बीच है।

लेकिन यह भी सच है कि जाट हरियाणा में अधिक से अधिक 25 प्रतिशत हैं।

सिर्फ इनको केंद्र में रखकर मजबूत आधार लंबे समय के लिए नहीं बनाया जा सकता है, ऐसी स्थिति में तो बिलकुल ही नहीं, जब भाजपा जैसी मजबूत पार्टी गैर-जाटों को अपने साथ खड़ा करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हो। 

हुड्डा केवल सांगठनिक तौर पर कांग्रेस को जाटों की पार्टी ही नहीं बना रखे हैं या बनाना चाहते हैं। वे वैचारिक तौर पर जाट सेंटीमेंट के आधार कांग्रेस के शीर्ष स्तर के स्टैंड का विरोध भी करते रहे हैं।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म करने का समर्थन किया था। जब कांग्रेस पार्टी का ऑफिशियल स्टैंड अनुच्छेद 370 खत्म करने के खिलाफ था।

हुड्डा भाजपा के अन्य हिंदू राष्ट्रवादी कदमों का साथ देते रहे हैं, या स्वागत करते रहे हैं या चुप रहे हैं। हुड्डा राहुल गांधी के संविधान बचाओ और जाति जनगणना जैसे मुद्दों पर भी कमोबेश चुप्पी साधे रहते हैं। उसे जोर-शोर से कभी नहीं उठाते।

यहां भी वे खुद को जाटों के वर्चस्व और संवेदना तक सीमित रखते हैं, यहां तक कि वे दलितों की संविधान के समर्थक भावना का भी इस मामले में खास खयाल नहीं रखते।

संविधान और जाति जनगणना अन्य पिछड़े वर्गों और दलितों के लिए बड़ा मुद्दा है, राहुल गांधी ने इसे राष्ट्रव्यापी मुद्दा बना दिया है, लेकिन हुड्डा के नेतृत्व मे हरियाणा कांग्रेस इसे बड़ा मुद्दा नहीं बनाना चाहती।

कांग्रेस हरियाणा में स्थायी मजबूत आधार बनाना चाहती है, तो उसे दलितों के साथ अन्य पिछड़े वर्गों के बीच भी अपनी पैठ मजबूत करनी होगी। अन्य पिछड़े वर्गों को भाजपा ने करीब-करीब अपने साथ कर लिया है।

इस स्थिति को तोड़ने के लिए दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों को हरियाणा कांग्रेस के सांगठनिक ढांचे और उम्मीदवारी में आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व देना होगा।

इतना ही नहीं, उनके बीच से कोई मुख्यमंत्री भी बन सकता है, इस संभावना को सिद्धांत में नहीं व्यवहार में लागू करना होगा।

लेकिन हुड्डा के नेतृत्व और वर्चस्व में कांग्रेस लिए ऐसा करना मुश्किल है, क्योंकि वे केवल खुद ही मुख्यमंत्री नहीं होना चाहते, भविष्य में यह विरासत अपने बेटे को सौंपने के लिए सब कुछ कर रहे हैं।

उनके लिए कांग्रेस तभी तक मायने रखती है, जब तक वह उन्हें और उनके बेटे को केंद्र में रखकर हरियाणा में राजनीति करे। इससे विपरीत स्थिति में वे कांग्रेस से बगावत भी कर सकते हैं।

यह संकेत वह बार-बार देते रहे हैं। इस चुनाव में यह स्थिति बनी थी। कांग्रेस नेतृत्व को एक तरह से उनके सामने फिलहाल आत्मसमर्पण करना पड़ा।

कांग्रेस का सभी सामाजिक समूहों में आधार बने, सभी समूहों से नेतृत्व सामने आए और नया नेतृत्व भी पनपे इसके बिना कांग्रेस अपनी बुनियादी सांगठनिक कमजोरी दूर नहीं कर सकती।

अतीत में भी कांग्रेस इस या उस जाट नेता पर ही निर्भर रही है। उन नेताओं ने कांग्रेस के खिलाफ बगावत करके अपनी पार्टी बनाई, वे चाहे बंसीलाल हों या भजनलाल और कांग्रेस हाशिए पर जाती रही है।

बात केवल सांगठनिक ढांचे तक सीमित नहीं है। हरियाणा में करीब 50 प्रतिशत से अधिक मतदाता अन्य पिछड़ा वर्ग, दलित और मुस्लिम वर्ग हैं। राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस जो वैचारिक स्टैंड ले रही है और जिन चीजों को एजेंडा बना रही है। उसके मुख्य आधार अन्य पिछड़ा वर्ग और दलित हैं।

अभी तक हरियाणा में कांग्रेस पार्टी इन समुदायों को अपना मजबूत आधार बनाने में सफल नहीं रही है। सारी राजनीति जाट और जाट नेताओं के इर्द-गिर्द सिमटी रही है।

भले ही विभिन्न कारणों से यह समुदाय समय-समय पर कांग्रेस को वोट देते रहे हों। इस बार दे रहे हैं, खासकर दलित। भाजपा को किसी शर्त पर हराने के लिए। 

कांग्रेस पंजाबी हिंदुओं और शहरों में केंद्रित बनिया समुदाय पर भरोसा नहीं कर सकती है। यह हरियाणा के निर्माण के समय से ही जनसंघ और बाद में भाजपा के आधार रहे हैं।

ये दो समुदाय हैं, जो हिंदू राष्ट्र और कार्पोरेट राष्ट्र की भाजपा की केंद्रीय परिकल्पना के पूरी तरह साथ खड़े हैं। फिलहाल भले ही किन्हीं हालातों में इनका एक हिस्सा कांग्रेस को वोट देता है, जैसा कि इस बार भी दे रहे हैं, लेकिन इनके आर्थिक और वैचारिक हित पूरी तरह भाजपा के साथ जुड़े हुए हैं।

हरियाणा के जाटों की स्थिति इस मामले में भिन्न है। वे वैचारिक-सांस्कृतिक तौर पर न तो हिंदू राष्ट्र के पक्ष में हैं और न उनके आर्थिक हित कार्पोरेट के साथ मेल खाते हैं, बल्कि ये दोनों चीजें उनके खिलाफ हैं।

लेकिन यह भी सच है कि जाटों के न केवल राजनीतिक हितों, बल्कि सामाजिक-आर्थिक हितों का अन्य पिछड़े वर्गों और दलितों के साथ एक अन्तर्विरोध है। हालांकि यह अंतर्विरोध यूपी-बिहार के सवर्णों के साथ दलितों-अन्य पिछड़े वर्गों के जैसा अन्तर्विरोध नहीं है।

यह गुणात्मक तौर भिन्न है, क्योंकि जाट मेहनतकश उत्पादक समूह हैं, जमीन के बड़े हिस्सा का मालिक होते हुए भी। दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों का जाटों से अन्तर्विरोध ऐसा नहीं है कि इसे हल न किया जा सके।

लेकिन इसकी पहल जाट समुदाय और उसके नेतृत्व को करनी है। उन्होंने अन्य पिछड़े वर्गों और दलितों पर अपने राजनीतिक और सामाजिक वर्चस्व की चाहत को छोड़ना पड़ेगा।

उनके हर स्तर पर राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सामाजिक बराबरी की मांग को मानना पड़ेगा। इसके लिए जाटों को अपने विशेषाधिकार की संवेदना-चेतना की जगह बराबरी की संवेदना-चेतना के साथ इन तबकों के साथ रिश्ता कायम करना पड़ेगा।

यह असंभव नहीं है, भले ही थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि जाटों का अन्य पिछड़े वर्गों और दलितों के साथ अन्तर्विरोध आज की तारीख में दुश्मनों जैसा नहीं है, हालांकि इसकी कई परतें जरूर हैं।

यह काम राहुल गांधी कांग्रेस को जैसा शक्ल देना चाहते हैं, उस रास्ते तो हो सकता है, लेकिन हुड्डा जैसा चाहते और सोचते हैं, उस रास्ते नहीं हो सकता है।

फिलहाल राहुल गांधी के सारे प्रयासों के बावजूद भी हरियाणा कांग्रेस की बागडोर हुड्डा के हाथ में है, उसकी बुनियादी कमजोरियां बरकरार हैं। जो इस चुनाव में भी दिख रही हैं।

कांग्रेस भविष्य में जाटों को अपने साथ रखते हुए कैसे बराबरी के स्तर पर दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों को अपने साथ करती है और बनाए रखती है, यह उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती है।

भाजपा के सामाजिक आधार को हरियाणा में कमजोर करने के लिए जरूरी भी है। आज की तारीख में दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों की जो राजनीतिक-सामाजिक चेतना है, उसमें किसी जाट वर्चस्व वाली पार्टी के मातहत वोटर समूह बनाकर यह काम नहीं किया जा सकता है।

आबादी के अनुपात में राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सामाजिक जीवन में बराबरी का व्यवहार करके ही इस काम को किया जा सकता है।

(हरियाणा के दौरे से लौटकर डॉ. सिद्धार्थ की रिपोर्ट।)

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