नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है वैसे-वैसे राजनीतिक बयानबाजी भी जोर पकड़ रही है। दिल्ली पर देश भर की निगाहें लगी हैं। लोगों के जेहन में यह सवाल कौंध रहा है कि क्या अरविंद केजरीवाल अपना ताज बचा पाएंगे या दिल्ली की कुर्सी पर किसी और का कब्जा होगा? फिलहाल, इसका निर्णय तो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की जनता 8 फरवरी को करेगी। जनता जनार्दन के फैसले का परिणाम 11 फरवरी को सामने होगा। लेकिन कांग्रेस–भाजपा दोनों अपने को दिल्ली की कुर्सी का स्वाभाविक दावेदार बता रहे हैं। दिल्ली के तीनों प्रमुख दलों में जुबानी जंग तेज हो गई है। कांग्रेस–भाजपा ने आम आदमी पार्टी के खिलाफ विरोध का नगाड़ा बजा दिया है। दोनों दलों का आरोप है कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली की जनता के साथ छल किया था। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से किए वादों को पूरा नहीं किया और अब उनकी असलियत सामने है। ऐसे में जनता अपने को ठगा महसूस कर रहा है और इस बार राजधानी का जागरूक मतदाता केजरीवाल के बहकावे में नहीं आएगा।
भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी कहते हैं, “दिल्ली की जनता ने गत पांच साल में आम आदमी पार्टी की सरकार और उसके छलावों को देखा है। दिल्ली की जनता ने देखा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव तक अरविंद केजरीवाल केवल अराजकता और विवादों की राजनीति करते रहे, लेकिन लोकसभा चुनाव की हार के बाद उन्होनें प्रलोभनों की राजनीति का रास्ता अपनाया है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के पांच साल और कांग्रेस के पंद्रह साल की सरकार में झूठ, भ्रम, छलावे की राजनीति देखी जा सकती है। दिल्ली में बसे लगभग दो करोड़ लोग यह भलिभांति जानते हैं कि यह प्रलोभन चुनावी रेवड़ियों से अधिक कुछ नहीं और वह दिल्ली के विकास और अपने समग्र विकास को ध्यान में रखते हुये मतदान करेंगे।”
अरविंद केजरीवाल ने चुनाव की अधिसूचना शुरू होने के पहले से दिल्ली भर में कार्यक्रम आयोजित कर अपना रिपोर्ट कार्ड पेश किया। लगभग हर कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि 2015 में पार्टी द्वारा किए वादे के मुताबिक उन्होंने पानी, बिजली के बिल को माफ किया और शिक्षा-स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार की कोशिश जारी है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों को पब्लिक स्कूलों के टक्कर का बताया। दिल्ली में जगह-जगह मोहल्ला क्लीनिक की शुरूआत की है। हां! दिल्ली की जनता को साफ पानी मुहैया कराने में अपने असफल बताते हुए केजरीवाल ने इसके लिए पांच साल और मांगें। दिल्ली की अनाधिकृत कॉलोनियों में विकास और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की बात भी वह करते हैं। आम आदमी पार्टी ने पानी, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो काम किया है, कांग्रेस-भाजपा के पास उसका कोई जवाब नहीं है। दोनों दल केजरीवाल के नेतृत्व और सरकार के काम को नकारते हैं।
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा कहते हैं कि,“दिल्ली में पिछले 5 साल केजरीवाल के झूठे प्रचार के साल रहे। उनके पिछले मेनिफेस्टों के ज्यादातर वायदे केवल कागजों पर पूरे हुए हैं और अब उन्होंने जनता को भ्रमित करने के लिए गांरटी कार्ड का ड्रामा किया है। आज प्रश्न तो यह है कि गांरटी कार्ड जारी करने वाले केजरीवाल की अपनी गारंटी क्या है?”
कांग्रेस-भाजपा के नेता अपने बयान में लगातार आम आदमी पार्टी को कमजोर बता रहे हैं। दोनों दलों ने इस बार केजरीवाल को नई दिल्ली विधानसभा में घेरने की रणनीति पर काम कर रहे थे। दोनों दल लगातार यह संदेश दे रहे थे कि अरविंद केजरीवाल के सामने मजबूत प्रत्याशी को उतारा जाएगा। जिससे वह अपने विधानसभा में सिमट कर रह जाएं।
पिछले दिनों जहां भाजपा में नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से संभावित उम्मीदवारों की सूची में कुमार विश्वास से लेकर सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी तक के नाम चर्चा में थे वहीं कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की बेटी लतिका सैय्यद और निर्भया की मां के नाम पर विचार कर रही थी। लेकिन नामांकन के अंतिम दिन दोनों दलों ने दो अनजाने और अपेक्षाकृत कमजोर उम्मीदवार को केजरीवाल के सामने उतार दिया। इसके बाद से ही दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा आम है कि कांग्रेस-भाजपा ने चुनाव के पहले ही हार मान लिया है। यहां के उम्मीदवार को देखकर आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता सौरभ भारद्वाज ने तंज कसते हुए कहा कि भगवा दल ने पहले ही समर्पण कर दिया है।
राजधानी की सबसे हॉट सीट नई दिल्ली सीट से भाजपा ने सुनील यादव और कांग्रेस ने रोमेश सभरवाल को टिकट दिया है। यह कहा जा रहा है कि दोनों उम्मीदवार गुटबाजी की उपज हैं।
दरअसल सच्चाई यह है कांग्रेस-भाजापा का कोई वरिष्ठ नेता केजरीवाल के खिलाफ ताल ठोकना तो दूर इस बार विधानसभा का चुनाव लड़ना ही नहीं चाहता है। दोनों दलों में गुटबाजी चरम पर है। भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी को पार्टी का वैश्य-पंजाबी नेतृत्व पचा नहीं पा रहा है तो कांग्रेस में जितने नेता हैं उतना गुट। सबसे बड़ी बात यह है कि दिल्ली में कांग्रेस-भाजपा के पास सर्वमान्य नेतृत्व का भी अभाव है।
फिलहाल, दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार सबाब पर आ रहा है। पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे पर हमलावर हैं। इन सबके बीच अरविंद केजरीवाल किसी नए नहीं बल्कि एक पुराने हथियार के साथ चुनावी मैदान में हैं। इस चुनाव में वह वहीं दांव खेलते नजर आ रहे हैं जो 1971 में इंदिरा गांधी और 2019 में नरेंद्र मोदी ने चला था। इंदिरा ने 1971 में ‘गरीबी हटाओं’ का नारा दिया और विरोधियों को धूल चटा दी थी वहीं 2019 में मोदी ने भ्रष्टाचार हटाने का नारा देते हुए दोबारा सत्तारूढ़ हुए। तीसरी बार दिल्ली के सीएम बनने की रेस में शामिल केजरीवाल भी कुछ इसी तर्ज पर बढ़ते दिख रहे हैं।
केजरीवाल ने भी दिल्ली चुनाव में भ्रष्टाचार हटाने का नारा दिया है। उन्होंने विपक्षी दलों पर तंज सकते हुए ट्वीट किया, एक तरफ- भाजपा, जेडीयू, एलजेपी, जेजेपी, कांग्रेस, आरजेडी। दूसरी तरफ, स्कूल, अस्पताल, पानी, बिजली, फ्री महिला यात्रा, दिल्ली की जनता। मेरा मकसद है, भ्रष्टाचार हराना और दिल्ली को आगे ले जाना, उनका सबका मकसद है, मुझे हराना।अपनी बात को विस्तार देते हुए वह कहते हैं कि, “दिल्ली में एक तरफ आम आदमी पार्टी है तो दूसरी तरफ सारे दल हैं। यह विधानसभा चुनाव “केजरीवाल बनाम ऑल” है।”
पिछले एक दशक में दिल्ली के राजनीतिक समाकरण में भी बदलाव आया है। कांग्रेस-भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इसे नजरंदाज करता रहा है। राजधानी में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है। जिसे दिल्ली में पूर्वांचली कहते हैं। लेकिन भाजपा की अपने परंपरागत पंजाबी–वैश्य आधार और कांग्रेस शहरी मध्यवर्ग, मुस्लिम औऱ दलित वर्ग को ध्यान में रख कर राजनीतिक समीकरण बनाते रहे। लेकिन केजरीवाल ने भाजपा के वैश्य आधार को तोड़ कर, पूर्वांचलियों को अपने पक्ष में मोड़ कर और दलितों-मुस्लिमों को पार्टी में जगह देकर कांग्रेस-भाजपा की जमीन को ही खिसका दिया है।
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