केवल चुनाव से लोकतंत्र नहीं बनता, लोकतंत्र तभी बन पाता है जब उसमें जनता की आवाज सुनी जाती है: वांगचुक

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नई दिल्ली। पिछले 14 दिनों से दिल्ली में अनशन पर बैठे क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक ने कहा है कि चुनाव से ही किसी देश का लोकतंत्र नहीं बनता, वह तब ही लोकतंत्र बन पाता है जब उसमें जनता की आवाज़ सुनी जाती है। 

लेह से दिल्ली तक पदयात्रा करने वाले वांगचुक को पिछले महीने उनके कई समर्थकों के साथ हिरासत में ले लिया गया था हालांकि बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। उसके बाद वह दिल्ली स्थित लद्दाख भवन पर अनशन पर बैठ गए। उनके साथ दो दर्जन से ज्यादा कार्यकर्ता भी अनशन पर बैठे हैं। वह सरकार के उच्च पदस्थ लोगों से बात करना चाहते हैं। 

हालांकि अभी तक सरकार ने उनके अनशन का संज्ञान नहीं लिया है। और न ही उनकी कोई बात हो पायी है।

6 अक्टूबर से केवल और केवल नमक-पानी के घोल पर जिंदा वांगचुक ने इस बात के लिए भी अफसोस जताया कि भारी बैरिकेडिंग के चलते उनके समर्थकों को उनसे मिलने से रोका जा रहा है। उन्होंने इशारों में दिखाते हुए बैरिकेडिंग को दिखाया जो इमारत के चारो ओर लगायी गयी थी। 

हालांकि कई दिनों के उपवास के बाद वांगचुक की आवाज कमजोर हो गयी है लेकिन उनकी दृढ़ता में कोई कमी नहीं आयी है। उन्होंने पीटीआई द्वारा पूछे गए सवालों का पूरी बेबाकी से जवाब दिया।

वांगचुक ने पीटीआई से कहा कि जैसा कि आप देख सकते हैं, यहां (लद्दाख भवन में) पाबंदियां हैं। वे नियंत्रित कर रहे हैं कि कौन अंदर आ सकता है और कौन नहीं। वे लोगों को यहां के पार्क में इकट्ठा होने की भी अनुमति नहीं दे रहे हैं। शायद उन्हें उस समर्थन से कुछ डर है जो हमें मिल रहा है। वे उन लोगों से डरते हैं जो शांति से अनशन पर बैठना चाहते हैं।

30 सितंबर को, वांगचुक को उनके साथ आए 150 अन्य लोगों के साथ दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर हिरासत में लिया गया। इस मौके पर सैकड़ों पुलिस कर्मियों की तैनाती की गयी थी।

पुलिस ने उन्हें दो दिनों तक हिरासत में रखने के बाद 2 अक्तूबर को गांधी जयंती के दिन राजघाट ले जाने का फैसला किया। हालांकि उन्हें शीर्ष नेतृत्व के साथ मिलने का भरोसा दिलाया गया और फिर रिहा कर दिया गया। लेकिन वह मुलाकात आज तक नहीं हुई। 

मुलाकात न होने की स्थिति में वांगचुक ने अनिश्चितकालीन अनशन की घोषणा कर दी। इसके लिए वह जंतर-मंतर चाहते थे। लेकिन उन्हें वहां भी नहीं बैठने दिया गया। बाद में मजबूर होकर उन्हें लद्दाख भवन में बैठना पड़ा। 

वांगचुक ने सरकार पर एक गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उन्हें लद्दाख भवन में “वर्चुअल हिरासत” में रखा जा रहा है।

पिछले रविवार को, कार्यकर्ताओं ने अपने समर्थकों से भवन के बाहर पार्क में ‘मौन व्रत’ (शांतिपूर्ण विरोध) में शामिल होने का आह्वान किया, लेकिन इसकी अनुमति नहीं दी गई नतीजतन जो लोग आए थे उन्हें हिरासत में ले लिया गया।

वांगचुक ने कहा कि उनके साथ दिल्ली आने के बाद जो हुआ उसे लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता।

उन्होंने कहा कि यह लोकतंत्र के लिए बेहद पीड़ादायक है। नागरिक देश के एक कोने से, सरहदी क्षेत्र से, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली आए… 150 लोग, जिनमें 80 साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग, महिलाएं और सेवानिवृत्त सैनिक शामिल थे। जिन्होंने पूरी ताकत के साथ भारत की सीमाओं की रक्षा की। दिल्ली आने के बाद उन्हें हिरासत में लिया गया और फिर अनशन पर बैठने के लिए मजबूर किया गया। 

उनका कहा था कि इन सबके बावजूद सरकार सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। मुझे नहीं पता कि इसे लोकतंत्र कैसे कहा जाए… केवल चुनाव ही किसी देश को लोकतंत्र नहीं बनाते, आपको लोगों और उनकी आवाज़ का सम्मान करना होता है। मुझे लोकतंत्र के लिए दुख है, वह भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए।

वांगचुक का कहना था कि सरकार को लोकतंत्र में इतना कठोर नहीं होना चाहिए, खासकर ऐसे समय में जब बात उन लोगों की हो जो सरहदी इलाके से आए हैं। हमने वर्षों तक, 5-6 युद्धों में अपनी सरहदों की रक्षा की है। इस तरह के रवैये से लोगों के मनोबल पर असर पड़ सकता है, और उनकी देशभक्ति पर भी असर पड़ सकता है।

उनका जनता के लिए संदेश है कि वे डरें नहीं

उन्होंने कहा कि लोगों से मैं कहना चाहूंगा कि मत डरो, तुम एक लोकतंत्र में जी रहे हो… सिर झुकाकर मत जियो, यह अपमानजनक है।

वैकल्पिक शिक्षा और जलवायु संरक्षण के क्षेत्र में काम के लिए जाने जाने वाले रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित वांगचुक पर सोशल मीडिया पर भी हमले हो रहे हैं, यहाँ तक कि उन्हें “राष्ट्रविरोधी” भी कहा जा रहा है।

जब उनसे इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो लोग देशभक्त हैं, उन्हें राष्ट्रविरोधी कहा जा रहा है। उन्हें इसके बजाय उन लोगों को देशभक्त बनाने पर काम करना चाहिए जो राष्ट्रविरोधी हैं। यह गलत जगह की गई मेहनत है।

कार्यकर्ता अब भी रातें खुले में बिता रहे हैं। वे दिन के समय लद्दाख भवन के गेट के पास एक छोटे से पार्क में बैठते हैं, जहां कुछ साधारण गद्दे और मच्छरदानी हैं, जो कई दिनों के विरोध के बाद उन्हें आराम के साधन के रूप में मिलीं।

पिछले कुछ दिनों में मच्छरों और उच्च तापमान ने उन प्रदर्शनकारियों के लिए और भी मुश्किलें पैदा कर दी हैं, जो एक ठंडे और अधिक शुद्ध जलवायु से आए हैं।

फिर भी, वांगचुक कहते हैं कि वे वहीं डटे रहेंगे।

सरकार के साथ बातचीत के सवाल पर उनका कहना था कि अब तक कोई भी उनसे मिलने नहीं आया। वे वहीं बैठे रहेंगे। उन्हें कोई जल्दबाज़ी नहीं है। जैसे-जैसे विरोध जारी रहेगा, शायद सरकार उनकी बात सुने।

उन्होंने आगे कहा कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि आज ही अंतिम फैसला दें, हम सिर्फ उनसे बातचीत फिर से शुरू करने की अपील कर रहे हैं।

आपको बता दें कि पहले, केंद्रीय गृह मंत्रालय लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस के प्रतिनिधियों के एक समूह के साथ उनकी मांगों को लेकर बातचीत कर रहा था, जिसमें छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा उपायों की मांग भी शामिल है।

प्रदर्शनकारी राज्य का दर्जा, लद्दाख के लिए एक सार्वजनिक सेवा आयोग और लेह और कारगिल जिलों के लिए अलग-अलग लोकसभा सीटों की भी मांग कर रहे हैं।

जब वांगचुक से उनके लद्दाख में हुए प्रदर्शन और यहां के प्रदर्शन में अंतर के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि लद्दाख में कम से कम लोगों के अनशन में शामिल होने पर कोई पाबंदी नहीं थी।

“लोग इकट्ठा होते थे, कोई परेशानी नहीं थी, लोग बैठते थे, प्रार्थना करते थे और उपवास रखते थे।

“यह राष्ट्रीय राजधानी है, और हम इसे देखकर स्तब्ध हैं,” उन्होंने कहा।

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