प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वाराणसी जिला प्रशासन से कहा है कि यदि सर्व सेवा संघ द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज उसके स्वामित्व के दावे को साबित करते हैं तो गांधी विद्या संस्थान की संपत्ति और जमीन को सर्व सेवा संघ को लौटा दी जाए।
गांधीवादी सामाजिक सेवा संगठन सर्व सेवा संघ ने सोमवार को प्रशासन द्वारा कथित तौर पर गांधी विद्या संस्थान को अपने कब्जे में लेने के बाद अदालत का रुख किया था, गांधी विद्या संस्थान जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित है, जो सामाजिक आंदोलनों का सामाजिक अध्ययन करता है। गांधीवादी विचारों पर आधारित यह संस्थान वाराणसी में सर्व सेवा संघ के परिसर में स्थित है।
न्यायमूर्ति आलोक माथुर की एकल-न्यायाधीश पीठ ने अपने आदेश में कहा, “अगर यह पाया जाता है कि याचिकाकर्ता ( सर्व सेवा संघ) उक्त संपत्ति ( गांधी विद्या संस्थान) के असली मालिक हैं, तो उक्त संपत्ति का कब्जा याचिकाकर्ता को वापस कर देना चाहिए।”, अदालत ने यह फैसला 16 मई को दिया और शुक्रवार को फैसला प्रकाशित हुआ।

वाराणसी के कमिश्नर कौशलराज शर्मा के निर्देश पर जिला प्रशासन भारी संख्या में पुलिस बल के साथ सोमवार को संस्थान में घुसकर गांधी विद्या संस्थान की लाइब्रेरी पर कब्जा कर इसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को सौंप दिया था, जो केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के तहत काम करता है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र का मुख्यालय नई दिल्ली में है। और इसके क्षेत्रीय कार्यालय के लिए गांधी विद्या संस्थान के भवन पर कब्जा किया गया है।
अदालत का फैसला आने के बाद गांधीवादी कार्यकर्ता और सर्व सेवा संघ से जुड़े राम धीरज कहते हैं कि-सर्व सेवा संघ ने संस्थान को पट्टे पर जमीन दी थी और गांधीवादी लोग ही इसे चलाते रहे हैं। हालांकि, उन्होंने कहा है, जब तक संस्थान उनके संगठन की संपत्ति पर स्थित है, तब तक वह सरकार को संस्थान में हस्तक्षेप नहीं करने देंगे।
उच्च न्यायालय ने जिला अधिकारियों को “याचिकाकर्ताओं द्वारा बताए गए लीज डीड सहित विभिन्न दस्तावेजों, जिनके आधार पर यह वाद याचिकाकर्ता और प्रतिवादी (यूपी राज्य) के बीच निष्पादित किया है, को देखने के लिए कहा है, और दो महीने के भीतर मामला सुलझाने को कहा है।”
अदालत के आदेश के बाद राम धीरज और उनकी टीम ने अधिग्रहण के खिलाफ अपना धरना बंद कर दिया है।
(जनचौक की रिपोर्ट।)
इलाहाबाद उच्च न्यायालय को साधुवाद। देर आए दुरुस्त आए। लेकिन सरकारी मिशनरी जिस तरह काम करता है उससे जरुरी लगता है कि न्यायालय भी अपने आदेश का अनुश्रवण करता रहें।