कल गणपति बप्पा धूमधाम से मोरया हो गए। अब अगले बरस तक इंतज़ार करना होगा लेकिन अपने रहते वे गुजरात के मुख्यमंत्री सहित पूरे मंत्रियों और पंजाब के मुख्यमंत्री को भी मोरया कर गए हैं। गणनायक ने दो प्रांतों में जो कुछ किया भी वह अप्रत्याशित नहीं है। जब जब चुनाव करीब आते हैं तो इस तरह बदलाव होते हैं लेकिन गुजरात में कुछ ज्यादा हाई-फाई हो गया। तालाब का सारा गंदा पानी बदल दिया गया। ये कैसा गुजरात मॉडल? एक साथ सब दोषी। विरोध की कहीं से कोई आवाज़ नहीं उठी। भाजपा के अनुशासन की सराहना हो रही है लेकिन यह चुप्पी ख़तरनाक है।
दूसरी ओर पंजाब के कैप्टन अमरिंदर जी हैं जो सोनिया के पति राजीव गांधी के अभिन्न मित्र रहे। उनके सोनिया से सीधे ताल्लुकात भी रहे। बताते हैं राजीव जब सोनिया को लेकर आए तो उन्होंने पटियाला हाउस में उन्हें ठहराया और दिलोजान से सत्कार किया था। विदित हो, अमरिंदर सिंह पटियाला के बड़े सामंत घराने से हैं और उनमें वहीं ठसक अब तलक है। एक लंबे समय से वे मनमानी करते रहे। राजीव के मित्र को सोनिया ने काफ़ी वक्त भी दिया लेकिन जब विधायकों का विरोध बढ़ा तो यह फैसला उन्हें मज़बूरन लेना पड़ा। कहते हैं सोनिया उन्हें हटाने में संकोच कर रही थीं तो हरीश रावत ने नवजोत सिद्धू को प्लांट किया और इस तरह उनको हटाया जा सका।
यह इसलिए भी ज़रूरी था क्योंकि विधानसभा चुनाव फरवरी मार्च में होने हैं और जनता ही नहीं बल्कि मंत्री विधायक सब मुख्यमंत्री से परेशान थे। वे किसी से मिलते जुलते नहीं थे। सारे काम ब्यूरोक्रैट अपने ढंग से चला रहे थे। दूसरे वे पार्टी संगठन के आदेशों पर ध्यान नहीं दे रहे थे। सिद्धू के प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद जहां सोचा गया था यह कलह खत्म होगी वह निरंतर बढ़ती गई। अमरिंदर ने किसानों के साथ सहानुभूति रखी सदाशयता का व्यवहार भी किया पर उनके आंदोलन को ज़रूरी सहयोग ना देकर भाजपा के तरफ अपने रुझान के कई बार संकेत दिए। टोका टाकी हुई पर अमरिंदर जी बेपरवाह रहे। आप पार्टी के प्रति भी उनके झुकाव ने कांग्रेस को सतर्क किया। इन्हीं वजहों से अमरिंदर के जाने की राह बनी।
गुजरात में वजहें दूसरी थीं कोरोनाकाल में सम्पूर्ण सरकार पूरी तरह फेल रही। इसलिए सब को हटाकर नये लोगों को स्थान दिया गया जो राजनीति का क ख ग भी भली-भांति नहीं जानते। उनसे मनमाफिक काम लेना केन्द्र को आसान होगा। इतना ही नहीं वे अपने को हमेशा बोझ से दबा महसूस करेंगे। ऐसे आज्ञाकारी लोग चुनाव के लिए उपयोगी होंगे ही। अन्य राज्य भी बदलाव की लाईन में लगे हैं। देखिए आगे क्या क्या होता है?
बहरहाल, अब राजनैतिक दल अपनी चतुराई दिखाने के लिए सक्रिय हो चले हैं। आश्वासनों का दौर, अनाज वितरण, उद्घाटनों का सिलसिला अविरल गति से जारी है। मंत्रमुग्धकारी लच्छेदार भाषणों का कार्यक्रम सुनने के अवसर मिलने लगे हैं। चुनाव आते आते विरोधियों की ऐसी छुपी बातें सामने आएंगी कि आप सकते में आ जाएंगे। दामों को घटाने की घटनाएं इस बीच हो सकती हैं। इस बीच सबसे तीव्र गति से नेताओं का पलायन भी होगा। किसी के चेहरे पर नहीं दिखता वह कल कहां होगा?
दिल थाम के बैठिए कई झन्नाटेदार ख़बरें तैयार हो रही हैं। चारण कवि कविताएं लिखने लग गए हैं। गायक कलाकार भी काम की तलाश में जुट गए हैं। मत घबराएं काम मिलेगा। मंहगाई का सितम कुछ कम होगा। नेताओं के दर्शन का सुयोग मिलेगा। सीजन कुछ कुछ मिलने का आने वाला है। आपको बस अपना वोट देना है। इन अच्छे दिनों का फायदा लेना ना भूलें। क्योंकि दिन बदलते देर नहीं लगती। कहा भी जाता है सब दिन एक जैसे नहीं होते। इतने बड़े नेताओं को भी चरण वंदन करना होता है। तो इस आने वाले लोकतांत्रिक उत्सव के अवसर का भरपूर लाभ लें। शुभास्तु।
(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र लेखिका हैं और आजकल मध्य प्रदेश में रहती हैं।)