रांची। गौरतलब है कि हेमंत सोरेन सरकार के पिछले कार्यकाल में 11 मार्च 2024 को झारखंड सरकार के महिला एवं बाल विकास तथा समाज कल्याण विभाग ने एक पत्र जारी कर राज्य के सभी आंगनबाड़ी केंद्रों को प्रतिदिन अंडा देने को कहा था।
इस योजना को लागू करने के लिए दूसरा पत्र जुलाई 2024 में भेजा गया था। इसके बाद सितंबर 2024 में विभाग ने तीसरा पत्र भेजा, जिसमें कहा गया कि ऐसा न करने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। लेकिन पहले पत्र को 9 महीने, दूसरे पत्र को 5 महीने तथा तीसरे पत्र को 2 महीने बीत चुकने के बाद भी अभी तक राज्य भर के आंगनबाड़ी केंद्रों में अंडा नहीं दिया जा रहा है।
एक सर्वे के मुताबिक आंगनबाड़ी केंद्रों में से 75% केंद्रों में बच्चों को अंडे नहीं खिलाये जा रहे हैं।
सर्वे रिपोर्ट में आंगनबाड़ी सेविकाओं को अंडे वितरित करने में आने वाली समस्याओं के बारे में बताया गया है, जिसमें अंडा खरीदने के लिए अपर्याप्त बजट और समय पर पैसे नहीं दिया जाना शामिल है।
वर्तमान व्यवस्था के अनुसार सेविकाओं को पहले अंडे खरीदने हैं, जिसके बाद उन्हें बिल के आधार पर पैसे दिए जायेंगे। लेकिन इसमें कई समस्या हैं-जैसे बाज़ार के अंडे के दर और सरकारी दर में फर्क और पैसे आने में देरी आदि।
रिपोर्ट में एक और चिंताजनक खुलासा है जिसके अनुसार अंडे आपूर्ति के लिए एजेंसियों को तय किया गया है जिनसे सेविकाओं को अंडे खरीदने है। इससे ठेकेदारी और गड़बड़ी होने की प्रबल संभावना है।
राज्य के 15 जिलों के 150 आंगनबाड़ी केंद्रों के हुए सर्वे के बाद यह मामला सामने आया है।
राज्यराष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में 5 साल से कम उम्र के बच्चों में 40% बच्चे छोटे कद के हैं और उनका वजन कम है। साथ ही 22% बच्चे कमजोर हैं। 5 साल से कम के बच्चों में मृत्यु दर तकरीबन 45% हैं।
ऐसी स्थिति में झारखंड सरकार ने राज्य को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए पर्याप्त राशि अपने बजट में प्रावधान किया था, लेकिन हकीकत यह है कि महिला एवं बाल विकास विभाग के पैसे खर्च नहीं हो पा रहे हैं।
2022-23 के बजट में महिला एवं बाल विकास विभाग को 1399 करोड़ दिए गए थे। जिसमें से केवल 906 करोड़ ही आवंटित हुए और उसमें से केवल 763 करोड़ खर्च किए गए।
सनद रहे वर्ष 2019 में ही सरकार ने घोषणा थी कि आंगनबाड़ी केंद्रों में सप्ताह में पांच दिन अंडों का वितरण किया जायेगा। राज्य के 38,432 आंगनबाड़ी केंद्रों में इस योजना को पहुंचाना था। लेकिन यह योजना अभी तक अधर में लटकी हुई है।

ज्ञातव्य झामुमो ने इस विधान सभा चुनाव के मैनिफेस्टो में भी इस बात को दोहराया है। ऐसे में अब भी अंडा न दिया जाना सरकार और प्रशासनिक व्यवस्था की प्रतिबद्धता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।
इस बाबत भोजन का अधिकार अभियान ने बताया है कि पिछले कई वर्षों से अभियान ने कई बार झारखंड सरकार को याद दिलाया है कि आंगनबाड़ी केंद्रों में हर दिन अंडे दिए जायें। अक्टूबर 2023 में अभियान ने अंडा अभियान के तहत राज्य की सैकड़ों आंगनबाड़ी केंद्रों में अंडे बांटे।
इस साल अभियान ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और अल्बर्ट एक्का चौक पर अंडा-प्रदर्शन का आयोजन किया। इसके अलावा, सितंबर 2024 में अभियान व झारखंड जनाधिकार महासभा के सदस्यों ने मुख्यमंत्री से मिलकर इस स्थिति से अवगत कराया था।
जिसके बाद मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया था कि बच्चों को तुरंत अंडे दिए जायेंगे। इसके बाद अभियान झारखंड सरकार के महिला एवं बाल विकास और समाज कल्याण विभाग के सचिव से भी मिला और आंगनबाड़ी केंद्रों में अंडे न दिए जाने का मुद्दा उठाया।
बैठक के दौरान सचिव ने अभियान को बताया कि अंडे के लिए पैसा पहले ही जारी कर दिया गया है और एक नया पत्र भेजकर आंगनबाड़ी केंद्रों को तुरंत अंडे देने का आग्रह किया गया है।
भोजन का अधिकार अभियान ने बताया कि अभियान फिर से मांग करता है कि आंगनबाड़ी केंद्रों में प्रति दिन अंडे दिए जायें। इसके लिए, सेविकाओं को पर्याप्त राशि उपलब्ध करवायी जाये जिससे वे बाज़ार से, बिना किसी एजेंसी पर निर्भर हुए, समय पर अंडे खरीद सकें।
अगर फिर से यह वादा खोखला साबित हुआ, तो राज्य भर के बच्चे व अभिभावक मुख्यमंत्री को अंडे भेजेंगे और मुख्यमंत्री आवास पहुंच कर अंडे मांगने के लिए विवश होंगे।
भोजन का अधिकार अभियान ने कहा है कि हम हेमंत सोरेन सरकार की बच्चों के पोषण के प्रति ऐसी उदासीन रवैये का कड़ा विरोध करते हैं।
(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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