पंजाब में बाढ़: जगह-जगह कुदरत लिख रही है तबाही की इबारतें

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आधे से ज्यादा पंजाब इस वक्त बाढ़ में डूबा हुआ है और बेशुमार इंसानी जिंदगियां बेहाल हैं। हजारों की तादाद में पशु मर चुके हैं। भगवंत मान सरकार और आम आदमी पार्टी के तमाम विधायकों समेत पूरा सरकारी अमला खुद मैदानी दौरे करके स्थिति पर निगाह रखे हुए हैं। हालांकि यह सरकारी दावे जगह-जगह हांफ रहे हैं कि लोग संयम रखें, हालात काबू में हैं और यथाशीघ्र सब सामान्य हो जाएगा। ऐसे दावों/आश्वासनों की हकीकत से वे सभी बखूबी वाकिफ हैं जो बाढ़ के कहर से गुजर रहे हैं या उसका शिकार हुए हैं।

सूबे की तीन प्रमुख नदियां उफान पर हैं। घग्गर, सतलुज और ब्यास मौसमी बरसात रुकने के बावजूद उफान पर हैं और खतरे का निशान तो बहुत पहले पार कर चुकी हैं। उनका पानी अब खेतों और घरों को तबाह कर रहा है। तेज वेग के चलते तटबंध टूट रहे हैं और ऐसे में इंसानी मजबूरी का कोई अंत नहीं। कहा गया था कि पटियाला राजघराने के वंशजों की पूजा के बाद बड़ी नदी कमोबेश ‘शांत’ हो गई लेकिन यह शांति ज्यादा समय बरकरार नहीं रही। उसका कहर भी जारी है।

उधर, घग्घर ने राज्य के तीन जिलों में जबरदस्त उत्पाद मचाया हुआ है। इस नदी ने पटियाला, संगरूर और मानसा जिलों में हालात खासे नासाज कर दिए हैं। तटबंध ने आईं दरारों के बाद मानसा के कुछ गांव पूरी तरह पानी में डूब गए हैं। 500 एकड़ से ज्यादा फसल पूरी तरह तबाह हो गई है। नदी का पानी जब गांवों की तरफ बढ़ा तो ग्रामीणों को इतना मौका भी नहीं मिला कि वे अपना कीमती तथा जरूरी सामान साथ उठा ला पाते। पशुओं तक को मरने के लिए छोड़ जाने की मजबूरी झेलनी पड़ी।

इलाके के जो गांव बचे हुए हैं, वहां के बाशिंदे इसलिए खौफज़दा हैं कि राज्य मौसम विभाग ने आगामी चार दिनों के लिए भारी बारिश की चेतावनी देते हुए यह येलो अलर्ट जारी किया है। सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने किसानों के लिए कंट्रोल रूम बनाया है लेकिन वह करेगा क्या? बारिश रोकेगा या बाढ़ को थाम लेगा? यह हमारा नहीं बल्कि जालंधर जिले के एक गांव माणक के युवा किसान जगजीत सिंह गिल का सवाल है।

सरकार की आश्वस्ति किसी के कितना काम आती है, यह अलहदा बहस का मुद्दा है लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार हकीकत से पूरी तरह नावाकिफ हो। पंजाबी विश्वविद्यालय की परीक्षाएं अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गईं हैं। मॉनसून की भारी बरसात के बाद कॉलेजों और स्कूलों में कई-कई फुट पानी भरा हुआ है। पानी की निकासी तक शिक्षण संस्थान बंद रहेंगे।

उधर, हिमाचल प्रदेश को पंजाब से जोड़ने वाला चक्की पुल पिलर पी-1 और पी-2; छह मीटर तक टूट गया है। पुल की मरम्मत की गई थी लेकिन कारगर साबित नहीं हुई। इंजीनियरों का मानना है कि यह पुल किसी भी समय गिर सकता है। जिसका मतलब होगा वाया पठानकोट, हिमाचल प्रदेश की आवाजाही अनिश्चितकाल के लिए बाधित होना। इससे दोनों ओर फंसे हुए लोग तो प्रभावित होंगे ही, रोज होने वाले करोड़ों रुपए के व्यापार पर भी खासा नागवार फर्क पड़ेगा।

पटियाला में संगरूर-दिल्ली नेशनल हाईवे अभी भी बंद है। भले ही इसकी मरम्मत का काम युद्ध स्तर पर चल रहा है लेकिन अवरोध के चलते रोजाना करोड़ों रुपए का नुकसान अलग से हो रहा है। पंजाब-हरियाणा सीमा से सटे कस्बे सरदूलगढ़ को खाली कराया जा रहा है। घर छोड़कर लोग राहत कैंपों में जा रहे हैं।

सरदूलगढ़ एक नीम कस्बा है। यहां एक हजार से ज्यादा एकड़ फसल को नुकसान हुआ है। कुछ पोल्ट्री और बकरी फार्म भी पानी से तबाह हो गए हैं। चांदपुरा बांध हरियाणा से लगता है। वहां की दरारें भरने का काम भी शुरू किया गया है। हरियाणा के अधिकारियों ने बांध को लेकर सहमति बना ली है। इसकी पुष्टि हलका विधायक और आम आदमी पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रिंसिपल बुधराम ने की। वह कहते हैं कि, “हम किसी भी कीमत पर लोगों की जान माल की हिफाजत करेंगे।”

आम आदमी पार्टी पंजाब के कार्यकारी प्रधान विधायक बुधराम

गौरतलब है कि प्रिंसिपल बुधराम अपने इलाके में बाढ़ से निपटने और बाढ़ पीड़ितों की राहत के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। इस बाबत प्रतिद्वंदी भी उनकी सराहना करते हैं। पार्टी की राज्य इकाई के कार्यकारी प्रधान होने के नाते वह तमाम ‘आप’ विधायकों और मंत्रियों के संपर्क में भी हैं। उनका फोन दिन- रात चलता है। उधर, बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने अपने कर्मचारियों का एक दिन का वेतन देने की घोषणा की है। एसजीपीसी के सेवानिवृत्त कर्मचारियों ने भी 51 रुपए का योगदान दिया है।

दिक्कत यह है कि नदियों के उफान व तटबंधों में दरार पर फौरी तौर पर काबू पा लिया जाता है लेकिन हल्का दबाव भी सारे किए-कराए पर अपना काला पानी फेर देता है। जलभराव वाले क्षेत्रों में संक्रमण अथवा बीमारियां तेजी के साथ फैल रही हैं। सर्पदंश की घटनाएं बढ़ रही हैं और अस्पतालों में इसके इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाइयों की कमी है। बाढ़ में डूबने या तेज बहाव में बहने से अब तक 40 से ज्यादा लोग मृत्यु को हासिल हो चुके हैं। उनका आंकड़ा आना अभी बाकी है जो बीमारियों के चलते दुनिया को अलविदा कह रहे हैं। इनमें छोटे बच्चों और बुजुर्गों की तादाद ज्यादा है। बेहद दुखद यह कि गांव के श्मशान घाट भी पानी में लबालब डूबे हुए हैं और लोग सड़क किनारे मुर्दों का संस्कार कर रहे हैं।

जानकारों का मानना है कि अगर मॉनसून की बारिश पहले की मानिंद प्रचंड रूप में हुई तो पटियाला, संगरूर, मानसा, फिरोजपुर, रोपड़, मोहाली, टेस्ट जालंधर, तरनतारन, गुरदासपुर और कपूरथला जिलों में पहले से भी ज्यादा नुकसान होगा। गौरतलब यह भी है कि बाढ़ से 18 जिलों में 2 लाख, 37 हजार, 457 हेक्टेयर रकबे में धान की फसल प्रभावित हुई है। खिलाफ हालात का मुकाबला जुझारू अवाम कैसे करता है, यह इन दिनों के पंजाब को देखकर बखूबी जाना-समझा जा सकता है।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

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