राज्य उपभोक्ता आयोग ने चिकित्सा में लापरवाही बरतने के कारण सहारा हास्पिटल के विरूद्ध विभिन्न मदों में कुल 8797026/- रुपये क्षतिपूर्ति, हर्जाना आदि के रूप में भुगतान इस निर्णय के आठ सप्ताह के अन्दर करने हेतु आदेश दिया और कहा कि यदि इस निर्णय का अनुपालन आठ सप्ताह में नहीं किया जाता है तब सम्पूर्ण धनराशि पर 17जून 2017 से 15प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज देना होगा और यदि समय के अन्दर भुगतान किया जाता है तो ब्याज की दर 10 प्रति वार्षिक होगी। यह आदेश आयोग के सदस्य राजेन्द्र सिंह और सदस्य विकास सक्सेना की अदालत द्वारा पारित किया गया।
विकास कुमार अस्थाना और कविता अस्थाना ने सहारा हास्पिटल लखनऊ और उसके डॉ. संदीप अग्रवाल के विरूद्ध चिकित्सा में लापरवाही दिखाए जाने के कारण एक परिवाद राज्य उपभोक्ता आयोग, लखनऊ के समक्ष प्रस्तुत किया। परिवादी के अनुसार परिवादी की मॉं श्रीमती उर्मिला अस्थाना आयु 78 वर्ष जो प्रतापगढ़ राजकीय कन्या इण्टरमीडिएट कालेज से सेवा निवृत्त अध्यापिका थीं, उनको दिनांक 16 जून 2014 को चेहरे के बायीं ओर पक्षाघात हुआ और वह आंशिक रूप से अचेत हो गईं तथा बोलने में लड़खड़ाहट होने लगी तथा उनको गम्भीर इश्चेमिक स्ट्रोक हुआ और मस्तिष्क में खून का प्रवाह रूकने के कारण उन्हें तुरन्त सहारा हास्पिटल में दिनांक 17/18जून 2014 को रात्रि 12.15 बजे भर्ती कराया गया। वहां पर मौजूद जूनियर डॉक्टर ने उनको देखा और कहा कि चिन्ता की कोई बात नहीं है।
इसके पश्चात् वरिष्ठ डॉक्टर संदीप अग्रवाल न्यूरोलाजिस्ट द्वारा सुबह मरीज को देखा और उन्होंने बताया कि चार-पांच दिन बाद स्थिति सँभल जाएगी। दिनांक 28जून 2014 को परिवादी ने फिर अपनी मॉं के बारे में पता किया तब बताया गया कि स्वास्थ्य के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। जब परिवादी को लगा कि उसके मॉं के इलाज में लापरवाही हो रही है तब वह अपनी मॉं को 01जुलाई 2014 को अपने घर ले आया जहॉं पर 15जुलाई 2014 को उनकी मृत्यु हो गई। चिकित्सा में लापरवाही बरतने के कारण सहारा हास्पिटल के विरूद्ध राज्य उपभोक्ता आयोग में परिवादी ने एक परिवाद सं0-36/2015 मु0 87,47,226/- रू० के लिए प्रस्तुत किया जिसकी सुनवाई सदस्य राजेन्द्र सिंह और सदस्य विकास सक्सेना द्वारा की गई।
राजेन्द्र सिंह ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि विपक्षी सहारा हास्पिटल ने अपने कथन में यह माना कि उनके पास डी0एस0ए0 तथा आर0टी0पी0ए0 इन्फ्यूजन वाया डी0एस0ए0 कैथेटर की सुविधा नहीं है जो केवल एस0जी0पी0जी0आई0 में उपलब्ध है। सहारा हास्पिटल ने यह भी माना कि उनके यहॉं पूर्ण रूप से समर्पित स्ट्रोक यूनिट भी नहीं है। मात्र इण्ट्रावेनस थाम्बोलेसिस की सुविधा अस्पताल में मौजूद है। सहारा हास्पिटल द्वारा यह कहा गया कि इण्ट्रावेनस थाम्बोलेसिस इसलिए नहीं की गई क्योंकि वह घातक सिद्ध हो सकती थी।
निर्णय में यह कहा गया कि जब सहारा हास्पिटल के पास स्ट्रोक के सम्बन्ध में उपरोक्त सुविधाऐं नहीं थीं तब मरीज को अविलम्ब एस0जी0पी0जी0आई0 में क्यों नहीं भेजा गया और उसे अनावश्यक सहारा हास्पिटल में रोक कर उनसे तमाम दवाइयों के बिलों का भुगतान तथा विभिन्न प्रकार के परीक्षणों का भुगतान कराया गया। इससे स्पष्ट होता है कि सहारा हास्पिटल द्वारा इस मामले में घोर लापरवाही और उपेक्षा का परिचय दिया गया है। यह भी पाया गया कि थाम्बोलेसिस लगभग 10 प्रतिशत तक लाभकारी होता है किन्तु यह तथ्य भी मरीज के घरवालों से छिपाया गया जबकि इस तथ्य को मरीज के घर वालों को बता देना चाहिए था और यदि घर वाले अपनी सहमति देते तब थाम्बोलेसिस की प्रक्रिया अपनाई जा सकती थी।
निर्णय में राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग द्वारा सहारा इण्डिया के मामले में ही दिए गए एक निर्णय (ज्ञान मिश्रा बनाम सहारा इण्डिया, डॉ0 संदीप अग्रवाल, डॉ0 मुफज्जल अहमद तथा डॉ0 अंकुर गुप्ता आदि, वाद सं0-998/2015 निर्णय दिनांक 07नवम्बर 2019 का भी उल्लेख किया है। इस मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने चिकित्सा में लापरवाही के सम्बन्ध में डॉ. सन्दीप अग्रवाल पर 20 लाख रुपये तथा डॉ. मुफज्जल अहमद पर 10 लाख रुपये का हर्जाना लगाया और यह भी आदेश दिया कि इसका भुगतान सहारा हास्पिटल करेगा क्योंकि उपरोक्त दोनों डॉक्टर सहारा हास्पिटल के कर्मचारी हैं। इसके अतिरिक्त 25,000/- रुपये वाद व्यय के रूप में भी देने का आदेश दिया।
वर्तमान मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग ने विभिन्न न्यायिक दृष्टान्तों और विभिन्न चिकित्सा सम्बन्धी लेखों का विवरण देते हुए कहा कि इस मामले में सहारा हास्पिटल और उसके डॉ. सन्दीप अग्रवाल यह जानते थे कि उनके यहां इस तरह के स्ट्रोक की चिकित्सा करने की पूर्ण यूनिट नहीं है और यह केवल एस0जी0पी0जी0आई0 में ही सम्भव है, इसके बावजूद भी मरीज को आपने रोके रखा जिससे मरीज द्वारा सहारा हास्पिटल में लगभग 2,27,000/- रुपये का व्यय किया गया और निष्कर्ष कुछ नहीं निकला। यह घोर चिकित्सीय उपेक्षा और लापरवाही का द्योतक है तथा सेवा में गम्भीर कमी है।
निर्णय में कुल 8797026 /- रुपये क्षतिपूर्ति, हर्जाना आदि के रूप में भुगतान इस निर्णय के आठ सप्ताह के अन्दर करने हेतु आदेश दिया और कहा कि यदि इस निर्णय का अनुपालन आठ सप्ताह में नहीं किया जाता है तब सम्पूर्ण धनराशि पर 17जून, 2017 से 15 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज देना होगा और यदि समय के अन्दर भुगतान किया जाता है तो ब्याज की दर 10 प्रतिशत वार्षिक होगी। यह भी आदेश दिया गया कि विपक्षी सहारा हास्पिटल इस सम्पूर्ण धनराशि का भुगतान करने के पश्चात् अपनी बीमा कम्पनी से नियमानुसार बीमा प्रावधानों के अन्तर्गत इसकी प्रतिपूर्ति के लिए दावा कर सकता है।
पंचशील बिल्डटेक प्रा. लि. नोएडा पर 37,50,000 का जुर्माना
राकेश कुमार अग्रवाल एवं श्रीमती प्रगति स्वरूप ने विपक्षी मैसर्स पंचशील बिल्डटेक प्रा०लि० नोएडा के यहां सन 2011 में एक फ्लैट बुक कराया और फ्लैट की कुल कीमत 26,89,764/-रुपये के स्थान पर 31,04,425/-रुपये जमा की गयी। पंचशील बिल्डटेक प्रा०लि० नोएडा द्वारा 24 माह में फ्लैट देने का वादा किया गया था जिसे वह नहीं दे पाए। तब परिवादीगण ने यूपी राज्य उपभोक्ता आयोग के समक्ष एक परिवाद संख्या- 283/2016 प्रस्तुत किया जिसमें दोनों पक्षों को सुनने के उपरान्त पीठ के सदस्य राजेन्द्र सिंह द्वारा मैसर्स पंचशील बिल्डटेक प्रा०लि० को आदेश दिया गया कि वह कुल 37,50,000/-रुपये बतौर हर्जाना परिवादीगण को अदा करें और इसके अतिरिक्त 60 दिन के अन्दर उपरोक्त फ्लैट का कब्जा परिवादीगण को दें और उनके द्वारा जमा की गयी धनराशि 31,04,425/-रुपये पर दिनांक 01अप्रैल 2014 से कब्जा देने की तिथि तक 10 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करें। इन समस्त धनराशियों का भुगतान अगर विपक्षी द्वारा 60 दिन के अन्दर नहीं किया जाता है तब ब्याज की दर 15 प्रतिशत वार्षिक होगी।
(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)
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