कितना कारगर हो पाएगा प्लास्टिक पर प्रतिबंध

एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध एक जुलाई से लागू हो गया। प्लास्टिक प्रदूषण का बड़ा स्रोत है और इसका स्वास्थ्य पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की मांग लंबे समय से की जा रही थी।

इस प्रतिबंध का असर प्लास्टिक के उन सभी सामानों पर पड़ेगा जिन्हें एक बार उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है। प्लास्टिक के सामानों में सबसे ज्यादा एकल उपयोग वाले प्लास्टिक का उत्पादन होता है। आस्ट्रेलिया की एक संस्था ने 2021 के एक शोध में बताया था कि प्लास्टिक उत्पादनों में एक तिहाई एकल उपयोग वाला होता है। इसमें 98 प्रतिशत उत्पादन जीवाश्म ईंधन के सहारे होता है। वैश्विक स्तर पर हर साल करीब 13 करोड़ टन एकल उपयोग वाले प्लास्टिक को फेंका जाता है। यह 2019 का आंकड़ा है। इन सभी को जलाया जाता है या जमीन में भरा जाता है या इसी तरह इधर-उधर छोड़ दिया जाता है।      

एकल उपयोग वाले प्लास्टिक में पैकेजिंग के सामान, बोतल, झोला, फेसमास्क आदि शामिल हैं। प्रतिदिन के उपयोग में प्रतिबंध का असर निम्नलिखित पर भी होगा-ईयरबड में व्यवहृत प्लास्टिक की डंटी, सिगरेट की डिब्बी, प्लास्टिक के झंडे, आईसक्रीम व चाकलेट के डब्बे, पॉलिस्टायरीन( थर्मोकोल),बैलून,प्लास्टिक ग्लास,कप, प्लेट,छुरी-कांटा और खिलौने। पैकेजिंग सामग्री, निमंत्रण पत्रों के आवरण, मिठाई के डब्बे, प्लास्टिक बैनर, प्लास्टिक स्टाययर आदि बंद हो जाएंगे। इनके निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री व उपयोग पर प्रतिबंध का यह आदेश केंद्रीय वन, पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बीते साल ही जारी किया था। वह आदेश एक जुलाई 2022 से प्रभावी हो गया है।

प्लास्टिक के अधिकांश सामान बायोडिग्रेडेबल या नष्ट होने वाले नहीं होते। नष्ट होने के बजाए वे महीन कणों में टूट जाते हैं जिन्हें माइक्रो-प्लास्टिक कहा जाता है। यह माइक्रो-प्लास्टिक मानव व जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव डालता है। भोजन और सांस के जरिए वे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और विभिन्न अंगों को क्षति पहुंचाते हैं। इधर-उधर पड़े प्लास्टिक कचरे का जल निकासी व अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली पर खराब असर पड़ता है।

एकल उपयोग वाले प्लास्टिक की वजह से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए इस पर प्रतिबंध लगाना जरूरी समझा गया है। इधर-उधर बिखरे प्लास्टिक कचरे का धरती और समुद्र के जीव-जंतुओं पर बेहद खराब असर पड़ता है। समुद्री पारिस्थितिकी पर इसके हानिकारक प्रभाव को वैश्विक स्तर पर महसूस किया जा रहा है। प्लास्टिक कचरे के महीन कणों में टूटकर माइक्रो-प्लास्टिक बनकर भोजन के साथ मनुष्य व अन्य जीव-जंतुओं के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं जिसका असर जनन-क्षमता पर पड़ता है, फेफड़ा और स्नायु-तंत्र का नुकसान हो सकता है।

उपरोक्त रिपोर्ट के अनुसार,भारत एकल उपयोग वाले प्लास्टिक का कचरा पैदा करने वाले 100 देशों में शामिल है। इसका स्थान 94 वां है। भारत में प्रति व्यक्ति 4 किलोग्राम प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। एक आकलन है कि वैश्विक स्तर पर लगभग 1500 लाख टन प्लास्टिक कचरा विभिन्न जल-स्रोतों में तैर रहा है जो जलीय जीवों को नुकसान पहुंचा रहा है, समुद्री पारिस्थितिकी को बदल रहा है। इस प्रतिबंध के माध्यम से प्लास्टिक कचरे की मात्रा को घटाने में सहायता मिलने की उम्मीद है।

एकल उपयोग वाले प्लास्टिक का पुनर्चक्रण आसान नहीं होता। मोटे तौर पर वह धरती पर इधर-उधर फैला रहता है और मानवीय भोजन-चक्र को प्रभावित करता है। माइक्रो-प्लास्टिक मानवीय भोजन चक्र में मिल जाता है और मानवीय स्वास्थ्य को विभिन्न तरीके से नुकसान पहुचाता है। हम भोजन करने में और सांस लेने में रोजाना माइक्रो-प्लास्टिक को ग्रहण करते हैं। शरीर में पहुंचकर प्लास्टिक के महीन कण विभिन्न अंगों को पहुंचा सकते हैं और स्वास्थ्य के लिए बड़ी समस्या बन सकते हैं जिसमें हार्मोन से संबंधित परेशानियां भी शामिल हैं। इनसे नपुंसकता व स्नायु संबंधी विकार पैदा हो सकता है। माइक्रो-प्लास्टिक विभिन्न रोगमूलक जीवाणुओं के पैदा होने में प्लेटफार्म जैसा काम कर सकता है। माइक्रो-प्लास्टिक की वजह से पैदा कठिनाइयों से मृत्यु भी हो सकती है।

वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक में प्रयोग होने वाली रसायन बिसफेनोल ए की मामूली मात्रा से भी विभिन्न बीमारियों के होने की संभावना व्यक्त की है जिसमें कैंसर, रोग-प्रतिरोधक क्षमता का ह्रास, कम उम्र में ही यौवन का प्रारंभ, मोटापा, डायबिटीज आदि शामिल हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, माइक्रो-प्लास्टिक के कण जिनका आकार 150 माइक्रोग्राम से बड़ा हो, उनका मानव शरीर में अवशोषित होने की संभावना कम होती है। लेकिन एकदम महीन कणों का अवशोषण बड़े पैमाने पर होता है। हालांकि नैनो आकार के माइक्रो-प्लास्टिक कणों का अवशोषण और वितरण अधिक महत्वपूर्ण होता है और इसके बारे में कम ही जानकारी अभी उपलब्ध है। इस बारे में अधिक शोध किए जाने की आवश्यकता बताई जाती है। इसके साथ ही जल-स्रोतों में माइक्रो-प्लास्टिक कणों की उपस्थिति, उनकी मात्रा और प्रभाव को जांचने की प्रक्रिया विकसित करने की जरूरत है।

एक आकलन के अनुसार उपयोग में आए प्लास्टिक का करीब 15 प्रतिशत जला दिया जाता है। प्लास्टिक को जलाने के दौरान नुकसानदेह रसायन उत्सर्जित होते हैं जिसमें डायोक्सीन,फुरान्स,मर्करी और पॉलीक्लोरिनेटेड बाईफेनाइल(पीसीबी) आदि शामिल होते हैं। सभी जहरीले रसायन वायुमंडल में शामिल हो जाते हैं और मनुष्य, मवेशी और पेड़-पौधों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं। प्लास्टिक जलाना वायु प्रदूषण में बढ़ोत्तरी करता है।

प्रतिबंध पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य बोर्ड निगरानी करेंगे। प्रतिबंध के बारे में हर स्तर पर निर्देश भेज दिए गए हैं। पेट्रोकेमिकल उद्योग को कहा गया है कि इसतरह के प्लास्टिक उत्पादकों को कच्चा माल उपलब्ध नहीं कराए। अभी सबसे ज्यादा करीब 95 प्रतिशत प्लास्टिक का उत्पादन पैकेजिंग के लिए होता है।

उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश है। वहां 2002 में ही प्रतिबंध लगा दिया गया। इस वर्ष के प्रारंभ में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एसेंबली जिसमें भारत शामिल है, ने प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने पर सहमति जताई।

एकल उपयोग के प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बाद इसके विकल्प को लेकर नवाचार अपनाने की कोशिश होगी जिससे प्रदूषण से मुकाबला करने का रास्ता खुलेगा। खासकर पौधों से बन सकने वाले विकल्पों जैसे जूट, बांस आदि से बने पदार्थों का प्रचलन बढ़ेगा। जैव-प्लास्टिक का उपयोग अभी ही शुरू हो गया है। हम बोतल बंद पानी की जगह नल से आए पानी का इस्तेमाल शुरू कर सकते हैं। प्लास्टिक के कैरीबैग की जगह जूट व कपड़े के झोले का इस्तेमाल शुरू कर सकते हैं। इस तरह के अनेक नवाचार शुरू किए जा सकते हैं।

(अमरनाथ की रिपोर्ट।)

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