कैसे ट्रांसजेंडर बच्चों को सबल, सक्षम और सामर्थ्य बनाएं

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भारतीय समाज में बेटे के जन्म पर उछलना और बेटी के जन्म पर सिसकना आम बात रही है। जो बेटा और बेटी के बीच फर्क की गहरी खाई बनाता है। लेकिन बेटा और बेटी के अलावा हमारे समाज में एक और लिंग है जो पुरूष और स्त्री के पहचान से परे हैं और जिसे आज भी समान नजरों से नहीं देखा जाता। और वह है ट्रांसजेंडर लिंग। आप समझ सकते हैं कि एक पूर्ण लिंग यानि स्त्री के पैदा होने पर जब आंसू बहाया जाता है तब एक ऐसे लिंग के पैदा होने पर क्या होता होगा जिसकी अपनी कोई स्थायी पहचान ही नहीं है।  

हमारी तरह ही उन्हें भी एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है जो अभी तक उन्हें नहीं मिल पाया है। वे भी समान प्रेम, आदर, सामाजिक स्वीकृति के हकदार हैं लेकिन इससे ठीक उल्टा वे जहां भी जाते हैं उन्हें तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता है जैसे न जाने किस ग्रह से आया हुआ प्राणी हो। 

सवाल यह है कि कैसे सामाजिक नागरिक संगठन, अभिभावक, समुदाय, स्कूल और मानसिक स्वास्थ्यकर्मी  लैंगिक विविधता से भरे समाज में ट्रांसजेंडर बच्चों को सबल, सक्षम और सामर्थ्य बनाएं।

माता-पिता क्या करें?

• जब बच्चे अपनी लैंगिक रूझान बतायें तब माता-पिता को बहुत पॉजीटिव रिएक्शन देना चाहिए और बच्चों की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए। 

• माता-पिता को अपने ट्रांसजेंडर बच्चे को ज्यादा समय देना चाहिए और यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि बच्चे क्या महसूस कर रहे हैं और क्या अनुभव कर रहे हैं। किसी वजह से माता-पिता अगर परेशान भी हों तो अपने ट्रांसजेंडर बच्चे के सामने कभी जाहिर ना करें। उन्हें यह महसूस ना कराएं कि आप उनकी वजह से परेशान हो रहे हैं। 

• माता-पिता को हर उस मोड़ पर बच्चे के साथ खड़ा होना चाहिए जहां बच्चे को सामाजिक रूप से अपमान, तिरस्कार और उदासीनता का सामना करना पड़ रहा हो। माता-पिता को समाज के किसी भी समूह के दबाव का विरोध करना चाहिए। अगर उनके बच्चे के साथ कहीं भी कुछ भी गलत हो रहा है तो उसका पूरा विरोध करें।  

• माता-पिता को खतरे के लक्ष्णों को भांपते रहना चाहिए कि बच्चा कहीं किसी तरह की चिंता, असुरक्षा, अवसाद और आत्मग्लानि की गिरफ्त में तो नहीं फंस रहा है। अगर ऐसा कोई लक्षण दिखे तो फौरन डॉक्टरी सलाह लें। 

• माता-पिता अपने ऐसे बच्चे को अन्य ट्रांसजेंडर समूहों की एक्टिविटी से जोड़ना चाहिए ताकि बच्चे को लगे कि वो अकेला ही ऐसा नहीं हैं, उनकी तरह संसार में और लोग भी हैं। इससे बच्चा खुद को अकेला महसूस नहीं करेगा। 

• माता-पिता लैंगिक विविधता को बताने वाली पुस्तकें बच्चों को पढ़ने के लिए दें, कार्टून दिखाएं, फिल्में दिखाएं। इससे बच्चे की जागरूकता बढ़ेगी। 

• माता-पिता ऐसे शख्सियतों से अपने बच्चों को मिलवाएं जिन्होंने सामाजिक बहिष्कार और लांछन का डट कर मुकाबला किया हो और खुद को मजबूती से स्थापित किया हो। 

• माता-पिता बच्चे के साथ लगातार बातचीत करते रहें और उन्हें बोलने और अभिव्यक्त करने का मौका दें। बच्चे के पसंद और नापसंद के बारे में उससे पूछें और यह भी देखें कि बच्चे के दोस्त कौन-कौन हैं। बच्चे के दोस्तों से भी बातचीत करें और समय-समय पर उन्हें घर बुलायें।

• माता-पिता अपने ट्रांसजेंडर बच्चे के लिए अच्छी से अच्छी शिक्षा का प्रबंध करें और उन्हें दूसरी एक्टीविटी के लिए प्रोत्साहित करें। 

• माता-पिता बच्चे के लिए कभी भी जजमेंटल ना हों, अपने फैसले उन पर ना थोपें। 

शिशु चिकित्सक और मानसिक स्वास्थ्यकर्मी क्या कर सकते हैं?

  • लैंगिक विविधता आधारित पहचान और अभिव्यक्तियां कहीं से भी मानसिक विकार नहीं हैं, लेकिन जब इस पहचान और अभिव्यक्तियों पर गहरी चोट लगती है और उनका दमन किया जाता है तो अलगाव और अवसाद जैसे लक्षण सामने आने लगते हैं। स्थिति आत्महत्या तक भी पहुंच जाती है। ट्रांसजेंडर बच्चे ऐसी स्थिति तक ना पहुंचें इसके लिए माता-पिता, रिश्तेदार, स्कूल, समाज और समुदाय के साथ-साथ शिशु चिकित्सकों और मानसिक स्वास्थ्यकर्मियों की एक अहम भूमिका होती है। 

• शिशु चिकित्सक और मानसिक स्वास्थ्यकर्मी एक ऐसे सकारात्मक, स्वीकारात्मक और सुरक्षित परिवेश बनाते हैं जहां बच्चे खुलकर अपनी मुश्किल से मुश्किल भावनाओं को जताते हैं और अपनी परेशानियों के साथ जीने के एहसास को बताते हैं। जब बच्चे ऐसा कर पाते हैं तब  शिशु चिकित्सक और मानसिक स्वास्थ्यकर्मी ट्रीटमेंट के तरीके से बच्चे को तनाव और अलगाव से बचा लेते हैं। इस तरह न सिर्फ बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा होती है बल्कि उनका मानसिक विकास भी होता है। 

(रंजीत अभिज्ञान सामाजिक विकास क्षेत्र से जुड़े हैं।)

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