दुमका में कोल माफियाओं का 350 कोयला खदानों पर कब्जा!

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दुमका लोकसभा की सीट हो या विधानसभा की, दोनों सीटों पर लगभग हमेशा से सोरेन परिवार का कब्जा रहा है। लेकिन इसी दुमका के कोयलांचल क्षेत्र में आज कोयला माफियाओं का राज है। इनके आतंक का यह हाल है कि इनकी मर्जी के बगैर कोई भी एक किग्रा कोयला तक नहीं निकाल सकता। बता दें कि कोयला मंत्रालय ने दुमका में 15 कोल ब्लॉक चिन्हित किया था। इनमें से कोल इंडिया की कंपनी ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ईसीएल) को चार, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की बिजली कंपनियों को तीन ब्लॉक आवंटित किए गए। 6 साल बीते गए, मगर इन 7 कोल ब्लॉकों से सरकारी कंपनियां रत्ती भर भी कोयला नहीं निकाल पाई हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि यहां से कोयला नहीं निकाला जा रहा है। वह काम धड़ल्ले से जारी है और उसको अंजाम देने वाले हैं कोयला माफिया। इस कोल ब्लॉक क्षेत्र में 350 अवैध खदानों को संचालित करके इन कोल माफियाओं द्वारा हर दिन तकरीबन 8 करोड़ रुपए से ज्यादा का काला कारोबार किया जाता है।

ईसीएल के अधिकारियों का कहना है कि बिना सुरक्षा यहां खदानें चालू नहीं कराई जा सकतीं। 2016-17 में इन कंपनियों को कोल मंत्रालय ने खदान आवंटित किया था। इनमें से पंचवारा साउथ कोल ब्लॉक में नैवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन ने अभी केवल सर्वे ही कर पाया है। अन्य कंपनियां भी अभी तक काम नहीं कर पाई हैं।

इस संबंध में जिले के डीसी रविशंकर शुक्ला कहते हैं कि मामले की जांच करवाएंगे। वहीं जिला खनन पदाधिकारी प्रेमचंद्र किस्कू बताते हैं कि इस अवैध कोयला निकासी की सूचना मिलने पर खदानों को बंद कराया जाता है, परंतु कुछ दिनों बाद इन माफियाओं की पुन: सक्रियता बढ़ जाती है।

माफियाओं के संरक्षण में 350 खदानों में 17 हजार से ज्यादा मजदूर कर रहे हैं काम

खबर के मुताबिक दुमका जिले में 30 से अधिक गांवों में 350 से अधिक अवैध खदानें हैं। धंधे से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि एक खदान में करीब 50 मजदूर काम करते हैं। इस अवैध 350 खदानों में 17 हजार से ज्यादा मजदूर काम कर रहे हैं। एक खदान से औसतन 40 टन कोयला निकलता है। एक टन कोयला करीब 6 हजार रुपए में बेचा जाता है। इस तरह 350 खदानों से करीब 8.40 करोड़ का कोयला भेजा जा रहा है। सिर्फ नौपहाड़ गांव में 22 अवैध ओपन खदानें संचालित हैं। यहां कोयला निकालने में पोकलेन और जेसीबी का इस्तेमाल किया जाता है।

6 साल में 3 डीसी बदले, पर चालू नहीं करा पाए खदान

छह साल में यहां तीन उपायुक्त आए और चले गए। पर ग्रामीणों से समझौता कर कंपनियों को जमीन दिलाने में नाकाम रहे। ईसीएल के एक अधिकारी ने बताया कि इसके पीछे जिन माफियाओं का हाथ है, उन माफियाओं को राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त है।

जानें कोल ब्लॉक किसे आवंटित

1. पचुवाड़ा साउथ कोल ब्लॉक: गोपीकांदर-नैवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन लिमिटेड और यूपी राज्य विद्युत उत्पादन निगम

2. शहरपुर जमरूपानी कोल ब्लॉक : शिकारीपाड़ा-यूपी राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड

3. कल्याणपुर बादलपाड़ा कोल ब्लॉक : शिकारीपाड़ा – हरियाणा पॉवर जनरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड

4.ब्राह्मणी नॉर्थ चिचरो पाटशिमला कोल ब्लॉक: शिकारीपाड़ा – ईसीएल

5. अमड़ाकुंडा मुर्गादंगाल कोल ब्लॉक: शिकारीपाड़ा- ईसीएल

6. ब्राह्मणी सेंट्रल कोल ब्लॉक : शिकारीपाड़ा – ईसीएल

7. ब्राह्मणी साउथ कोल ब्लॉक : शिकारीपाड़ा- ईसीएल

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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