इंडिया गठबंधन को दिल्ली से मिला सबक   

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पिछले दिनों दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल सरकार की हार पर कई समाजवादी लोग बहुत पीड़ा का अनुभव कर रहे हैं। उन्हें मलाल है कि कांग्रेस ने यदि किनारा ना किया होता तो भाजपा दिल्ली ना जीतती। उन्हें इस बात पर गौर करना चाहिए कि इंडिया गठबंधन का रुख खुद केजरीवाल ने किया था उन्हें किसी ने भी पटना में हुई प्रथम बैठक में नहीं बुलाया था। स्वयं संयोजक नीतीश कुमार ने उन्हें बुलाना उचित नहीं समझा था। वजह साफ थी कि वे संघ के उस कुंड से निकले थे जो समाजवादियों और कांग्रेस से बुनियादी तौर पर नफ़रत करते रहे हैं।

मगर इंडिया गठबंधन की दरियादिली थी कि उन्हें साथ लिया उनके रास्तों में आए कंटकों को दूर करने में हमेशा सहयोग दिया। लेकिन वे चुनाव में अपने गठबंधन प्रमुख कांग्रेस को ही भुला बैठे। ये हालांकि पहला अवसर नहीं था उन्होंने गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, हरियाणा में कांग्रेस और अन्य दलों की उपेक्षा की। वे अपनी पार्टी को बड़ी राष्ट्रीय पार्टी समझने लगे थे और उनका मुख्य लक्ष्य कांग्रेस को मिटाकर अपना वर्चस्व कायम करना था। वे संघ की बी टीम के सदस्य थे और कांग्रेस को हर जगह से उखाड़ फेंकने के काम में लगे थे। जो राष्ट्र प्रमुख मोदी जी की भावना को पुष्ट करता है। जो कांग्रेस साफ करने का मकसद लेकर चुनाव लड़ते हैं।

इसी के तहत उन्होंने लगभग 90%कांग्रेस नेताओं पर पहले आपराधिक मामले दर्ज कराए उन्हें परेशान किया फिर सुलह कर उन्हें भाजपा में ना केवल प्रवेश दिया बल्कि उन्हें मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान भी दिया। लोगों का कहना सच है कि भाजपा वाशिंग मशीन में सब पाप धुल जाते हैं।

ये और बात है कि शेष जो 10%लोग हैं वे फिलहाल कठिन परिस्थितियों से जूझ रहे हैं इनमें वर्तमान प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी, उनकी मां सोनिया गांधी जी और बहिन प्रियंका के परिवार पर भी आपराधिक मामले दर्ज किए गए, राहुल गांधी की सांसदी भी ख़त्म की गई पर वे अभी तक सुरक्षित हैं। राहुल पर चाहे जब राष्ट्रद्रोह की एफआईआर दर्ज की जाती है। ये राहुल गांधी की छाती है जो महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा और भाईचारे की भावना लेकर कांग्रेस की पुनर्वापसी के अपने चंद कार्यकर्ताओं के साथ ऐसी तानाशाह पार्टी से लोहा ले रहे हैं जिसने समस्त लोकतांत्रिक संस्थाओं को खरीद रखा है। चुनाव आयोग से लेकर न्याय व्यवस्था भी गुलाम है सरकार की। झूठ और छल का गठजोड़ हर जगह कांग्रेस को समाप्त करने के लिए बेताब है।

ऐसे ही एक छली अरविंद केजरीवाल की जब असलियत उजागर होती है तो कांग्रेस को मजबूरन अपने प्रत्याशी यहां प्रमुख सीटों पर खड़े करने पड़े। कांग्रेस के अचानक प्रवेश को दलित और मुस्लिम समझ नहीं पाए उन्होंने यह समझा केजरीवाल जीत ही रहे हैं इसलिए जो वोट मिले हैं वह कांग्रेस के वोट हैं। बड़ा खेल भाजपा ने अपने चुनाव पूर्व बजट से खेला है जिसमें आयकर छूट की सीमा बढ़ाकर 12 लाख करना प्रमुख है। कर्मचारी बहुल दिल्ली ने भाजपा का दामन थामा। चुनावी प्रलोभन का यह मामला बनता है। बजट को चुनाव के बाद आना चाहिए था।

केजरीवाल सरकार की हार का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ने वाले लोगों को इस तरफ भी सोचना होगा। आम आदमी के शीशमहल, शराब नीति और भ्रष्टाचार ने केजरीवाल के दंभ को तोड़ा है ।

यह एक सबक राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस के लिए तो है ही गठबंधन के वे सदस्य जो भाजपा के साथ सरकार में शामिल रहे हैं अविश्वसनीय हैं। कांग्रेस को अब एक नई सोच के साथ ही मेहनत करनी होगी। छली, भगोड़ों, पद लोलुपों और डरे हुए लोगों से कांग्रेस को मुक्त करना ही होगा। गठबंधन से सावधानी बरतनी होगी।

(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)

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