ग्राउंड रिपोर्ट: जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहे हैं बिहार के आम और लीची किसान

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मुजफ्फरपुर। बिहार के कृषि विभाग के मुताबिक बिहार में 8.40 मीट्रिक टन/हेक्टेयर इलाके में लीची उत्पादन होता है। साथ ही बिहार में 40,000 से ज्यादा किसान इस खेती में लगे हुए हैं। जिसमें मुख्य रुप से मुजफ्फरपुर जिले के किसान अग्रिम भूमिका में हैं। मुजफ्फरपुर की लीची, को महंगा खाद्य उत्पाद के रूप में मान्यता मिलती है। यह यहां से निर्यात भी होता है और इससे देश को विदेशी मुद्रा की आय भी होती है। लेकिन इस साल बारिश नहीं होने और अप्रैल में अधिक गर्मी पड़ने से उनकी फसल को काफी नुकसान हुआ है।

मुजफ्फरपुर के लीची किसान नीरज सिंह बताते हैं कि,”आम की बेहतरीन फसल एक साल छोड़कर दूसरे साल आती है। जबकि लीची की फसल हर साल आती रहती है। पर दो साल से मौसम की बेरुखी से लीची बुरी तरह प्रभावित हुई है। इस बार यह हाल है कि लीची के चाइना प्रभेद में मात्र 10% पौधे में ही फल आया है, जो फला भी है, उसमें उपज नाम मात्र का है। इसके उलट शाही लीची जो मुजफ्फरपुर का अपना लीची है, प्रतिकूल मौसम में भी फल ठीक-ठाक मात्रा में आया है, लेकिन तेज धूप व बारिश नहीं होने की वजह से अधिकांश किसानों का शाही लीची का आकार छोटा रह गया व जलने जैसा हो गया। हालांकि जीवामृत के प्रयोग के कारण मेरी लीची ख़राब होने से बच गई।”

अपने बगीचे में लीची किसान नीरज सिंह

मुजफ्फरपुर के तापमान का ग्राफ बताता है कि अप्रैल 2023 में 10 अप्रैल के बाद अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या उससे ऊपर रहा। वहीं कुछ दिन 35 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच रहा। मई और जून के शुरुआती दिनों में भी कुछ दिनों 40 डिग्री सेल्सियस या उससे ऊपर रहा। देश के कई राज्यों की भांति बिहार में भी अप्रत्याशित रूप से लंबी गर्मी की लहर ने मौसमी फल जैसे- लीची और आम की क्वालिटी पर असर डाला है, उनके स्वाद को भी प्रभावित कर दिया है।

फीका पड़ रहा लीची और आम का स्वाद

मुजफ्फरपुर जिले के मुशहरी ब्लॉक के चंदन शाह मुख्य रूप से लीची व्यवसाय पर निर्भर हैं। वो बताते हैं कि, “अप्रैल से मई के बीच में अगर तीन से चार बार बारिश हो जाती तो ठीक रहता। फिर इतना तापमान! 40 डिग्री से ज्यादा तापमान और पछुआ हवा से भी लीची का फल फटने लगता है। ट्रांसपोर्ट एवं पैकेजिंग की व्यवस्था भी बिहार में अच्छी नहीं है। हम लोगों का बहुत नुकसान हुआ है। अभी हम लोग सिंचाई और पानी के छिड़काव को ज्यादा से ज्यादा कर लीची की फसल को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।”

खराब हो रहे हैं लीची के फल

लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष मुजफ्फरपुर निवासी बच्चा सिंह भी कहते हैं कि हम लोगों ने इस साल बेहतरीन फसल की उम्मीद की थी। अभी स्थिति यह है कि किसान लीची को अत्यधिक गर्मी से बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वहीं मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र भी बढ़ते तापमान को देखते हुए किसानों को जागरूक कर रहे हैं। केन्द्र के द्वारा बार-बार लीची के पौधों में सिंचाई करने की सलाह दी जा रही है।

फलों के राजा आम पर इस बार मौसम की मार पड़ी है। सुपौल जिला के आम व्यवसाई बताते हैं कि जरदालु, मालदह व जर्दालु अभी टिकोला से कुछ बड़ा दिख रहा है। इस वजह से बाजार में कीमत नहीं मिल रही है। आम में आकार और मिठास नहीं होने की वजह से ग्राहक भी कम रुचि ले रहे हैं। पिछले दो-तीन वर्षों को देखा जाए तो चार से पांच आम एक किलो होता था। इस बार छह से सात आम भी एक किलो का नहीं हो पा रहा है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक भी इसका वजह गर्मी के तापमान को मानते हैं। कृषि वैज्ञानिक के मुताबिक हवा में नमी की मात्रा कम और तापमान ज्यादा होने की वजह से आम के फल का विकास रुक गया है।

आम की फसल पर मौसम की मार

राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा में पढ़ाई कर रहे छात्र राहुल कुमार बताते हैं कि 85 से 90 प्रतिशत से अधिक आम और लीची के पौधे जिन जिलों में स्थित हैं वो इस समय लू का सामना कर रहे हैं। ऐसे में बढ़ता तापमान और नमी की कमी आम और लीची की खेती के लिए बहुत हानिकारक साबित हो रहा है।

(मुजफ्फरपुर से राहुल की ग्राउंड रिपोर्ट)

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