महाकुंभ के बाद भी प्रयागराज संगम की जल गुणवत्ता और कचरा प्रबंधन पर क्यों उठ रहे विवाद?

Estimated read time 3 min read

प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज का संगम तट केवल एक भौगोलिक स्थल नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र भी है। यहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में लोग स्नान करते हैं, लेकिन हाल ही में महाकुंभ 2025 के बाद संगम की जल गुणवत्ता और कचरा प्रबंधन को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की जा रही है। सरकारी दावों और वास्तविकता के बीच बढ़ते अंतर ने इस पवित्र स्थल की स्वच्छता और संरक्षण को लेकर नई बहस छेड़ दी है।

महाकुंभ 2025 के समापन से पहले संगम क्षेत्र में गंगा-यमुना के जल की शुद्धता पर दो अलग-अलग रिपोर्ट सामने आई हैं, जिससे विवाद खड़ा हो गया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) की रिपोर्टों में अंतर के कारण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने यूपीपीसीबी से स्पष्टीकरण मांगा है। इस रिपोर्ट के आधार पर 16 फरवरी, 2025 को एनजीटी की प्रधान पीठ ने यूपीपीसीबी को फटकार लगाई और कहा कि “पचास करोड़ लोगों को सीवेज से दूषित जल में स्नान करना पड़ा, जो नहाने योग्य भी नहीं था”।

सीपीसीबी ने फरवरी 2025 को एनजीटी को सौंपी रिपोर्ट में कहा था कि संगम क्षेत्र में जल में फ़ीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया तय मानकों से कई गुना अधिक हैं। संगम क्षेत्र, श्रृंगवेरपुर घाट, लॉर्ड कर्जन ब्रिज, नागवासुकी मंदिर, दीहा घाट और नैनी ब्रिज से लिए गए सैंपलों में फ़ीकल कोलीफॉर्म की मात्रा 13,000 से 33,000 एमपीएन प्रति 100 मिलीलीटर तक पाई गई, जबकि स्नान के लिए 2,500 एमपीएन से अधिक नहीं होना चाहिए। यूपीपीसीबी ने 18 फरवरी 2025 को एनजीटी को सौंपी रिपोर्ट में इन दावों को खारिज किया और जल को स्नान योग्य बताया। इस पर एनजीटी ने नाराजगी जताते हुए यूपीपीसीबी से स्पष्टीकरण मांगा है।  

आस्था की डुबकी ने बढ़ाई चिंता

 महाकुंभ के दौरान लाखों श्रद्धालुओं ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई, लेकिन जल परीक्षण रिपोर्टों ने अब चिंता बढ़ा दी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट के अनुसार, संगम का जल मानकों के अनुरूप स्नान योग्य नहीं पाया गया।

फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया का स्तर निर्धारित मानकों से कहीं अधिक दर्ज किया गया, जिससे जल जनित रोगों का खतरा बढ़ जाता है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को सौंपी गई रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया कि प्रयागराज संगम का पानी बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और फेकल कोलीफॉर्म स्तर की दृष्टि से सुरक्षित नहीं है।

विशेषज्ञों के अनुसार, महाकुंभ के दौरान अस्थायी टॉयलेट्स से निकले अपशिष्ट, औद्योगिक इकाइयों से उत्सर्जित रसायन और स्थानीय सीवर लाइनों के संगम में मिलने से जल की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। प्रशासन ने गंगा और यमुना में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) के माध्यम से शुद्ध जल छोड़ने का दावा किया था, लेकिन हकीकत में इस पर अमल नहीं हो सका। प्रयागराज नगर निगम और उत्तर प्रदेश जल निगम की संयुक्त टीमों ने सफाई की निगरानी की, लेकिन महाकुंभ समाप्त होते ही इनकी सक्रियता भी कम हो गई।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को आश्वासन दिया है कि यदि प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान खुले में शौच करने के सबूत मिलते हैं, तो आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। इस मामले में 24 फरवरी, 2025 को सुनवाई हुई थी, जिसमें एनजीटी ने आवेदक निपुण भूषण को निर्देश दिया कि वे अपने आरोपों के समर्थन में सभी सबूत यूपीपीसीबी के सदस्य सचिव के समक्ष पेश करें।

आवेदक ने महाकुंभ के दौरान स्वच्छ जैव-शौचालयों की कमी के कारण खुले में शौच की समस्या का आरोप लगाया। उनके द्वारा दो वीडियो फुटेज पेश किए गए, लेकिन उनमें भौगोलिक निर्देशांक नहीं थे। यूपीपीसीबी का कहना है कि उन्हें यह वीडियो फुटेज प्राप्त नहीं हुए हैं।

एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव ने इस मामले को समय के लिहाज से संवेदनशील बताते हुए जमीनी स्तर पर जांच की आवश्यकता पर जोर दिया। वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार ने 21 फरवरी, 2025 को एक प्रेस विज्ञप्ति में दावा किया था कि गंगा जल की शुद्धता बनी हुई है। वैज्ञानिक अजय कुमार सोनकर के अनुसार, विभिन्न स्नान घाटों से लिए गए जल के नमूनों में किसी भी प्रकार के बैक्टीरिया की वृद्धि नहीं देखी गई।

हालांकि, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की 03 फरवरी, 2025 को एनजीटी में दाखिल रिपोर्ट के अनुसार, महाकुंभ के दौरान संगम समेत अन्य स्थलों पर जल गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं पाई गई। रिपोर्ट में जल में उच्च जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) और फीकल कोलीफॉर्म का स्तर सामान्य से कई गुना अधिक दर्ज किया गया।

 कचरा प्रबंधन की स्थिति

 महाकुंभ के दौरान लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति के चलते प्रयागराज में रोजाना टनों कचरा उत्पन्न हुआ। नगर निगम द्वारा ठोस कचरा प्रबंधन के लिए विशेष एजेंसियों को नियुक्त किया गया था, लेकिन रिपोर्टों के अनुसार, यह व्यवस्था पूरी तरह से प्रभावी नहीं रही।

महाकुंभ समाप्त होने के महीनों बाद भी संगम और आसपास के क्षेत्रों में प्लास्टिक, पूजन सामग्री और अन्य अपशिष्ट फैला हुआ देखा गया। विशेषज्ञों का कहना है कि कचरा निस्तारण की सुचारू व्यवस्था न होने के कारण यह गंगा-यमुना में प्रवाहित हो रहा है, जिससे जल प्रदूषण और अधिक बढ़ रहा है।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) और नगर निगम का दावा है कि संगम की सफाई और जल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए लगातार निगरानी रखी जा रही है। उनका कहना है कि महाकुंभ के दौरान चलाए गए स्वच्छता अभियानों ने कचरा प्रबंधन को प्रभावी बनाया है, लेकिन स्वतंत्र पर्यावरण विशेषज्ञों और स्थानीय निवासियों का कहना है कि स्थिति इतनी संतोषजनक नहीं है।

एनजीटी ने प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिया है कि संगम क्षेत्र में जल शुद्धीकरण और कचरा प्रबंधन को लेकर प्रभावी कदम उठाए जाएं। इसके बावजूद, जल की गुणवत्ता में कोई बड़ा सुधार देखने को नहीं मिल रहा।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा है कि संगम का जल न केवल स्नान बल्कि आचमन और पीने योग्य भी है। उन्होंने कहा कि सभी नालों को टैप कर दिया गया है और जल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए लगातार निगरानी हो रही है।

वहीं, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सरकार को चुनौती देते हुए कहा कि यदि जल वास्तव में स्वच्छ है तो भाजपा नेता इसे पीकर दिखाएं। सपा नेता शिवपाल यादव ने आरोप लगाया कि सरकार ने गंगा को सिर्फ़ इवेंट मैनेजमेंट का केंद्र बना दिया है।

 स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं

महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाने पहुंचे लाखों श्रद्धालु पवित्र स्नान के बाद विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। प्रयागराज से लौटने के बाद कई लोगों ने सर्दी, खांसी, बुखार और गले में संक्रमण जैसी परेशानियों की शिकायत की है।

गाजीपुर की मिथिलेश पांडेय बताती हैं कि, “13 फरवरी 2025 को अपने परिवार के 09 सदस्यों के साथ उन्होंने संगम में स्नान किया था, लेकिन घर लौटने के कुछ ही दिनों बाद सभी की तबीयत बिगड़ गई। गले में इंफेक्शन, बुखार और सर्दी-जुकाम के कारण परिवार के सभी लोगों को चिकित्सकीय उपचार लेना पड़ा।”

बनारस के नदी विशेषज्ञ यू.के. चौधरी के अनुसार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट में प्रयागराज के जल में प्रदूषण की पुष्टि की गई है। वे मानते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों के स्नान करने से जल में प्रदूषण बढ़ना स्वाभाविक है। वे बताते हैं, “स्नान के बाद बीमारियों का होना पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता। स्नान करने वाले श्रद्धालु वहां स्थायी रूप से नहीं रहते, बल्कि घर लौटते हैं और बीमारी का असर बाद में दिखता है।”

“महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में हर दिन लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान कर रहे थे। ऐसे में जल की गुणवत्ता को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। सरकारी एजेंसियां जहां संगम के जल को स्नान योग्य बता रही हैं, वहीं स्वतंत्र विशेषज्ञ और तमाम रिपोर्ट्स बढ़ते प्रदूषण की ओर इशारा कर रही हैं। फ़ीकल कोलीफ़ॉर्म बैक्टीरिया के कारण कई लोगों को पेट संबंधी बीमारियां, डायरिया, उल्टी, खांसी, बुखार और गले में संक्रमण जैसी समस्याएं हो रही हैं।”

नदी विशेषज्ञ प्रो. चौधरी का मानना है कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों के स्नान करने से जलाशयों में जैविक और रासायनिक प्रदूषण बढ़ जाता है, जिससे जलजनित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, कुंभ में स्नान करने वाले लगभग 20 फीसदी लोगों में संक्रमण के लक्षण देखे गए हैं। इतनी भीड़ में संक्रमण को पूरी तरह टाल पाना असंभव है, लेकिन सतर्कता और स्वच्छता उपायों से इसका प्रभाव कम किया जा सकता है।

 क्या हो सकते हैं समाधान?

सख्त जल गुणवत्ता परीक्षण– संगम के जल का नियमित परीक्षण किया जाए और इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए, ताकि लोगों को जल की वास्तविक स्थिति की जानकारी मिल सके।

स्थायी सफाई व्यवस्था- कचरा प्रबंधन की सख्त व्यवस्था हो और जल में गिरने वाले कचरे को रोकने के लिए कठोर नियम लागू किए जाएं।

स्वास्थ्य जागरूकता अभियान: स्नान के बाद स्वास्थ्य समस्याओं से बचने के लिए लोगों को सावधानियां बरतने की सलाह दी जाए।

प्रदूषण नियंत्रण उपाय- गंगा जल में गिरने वाले अनुपचारित सीवेज और अन्य हानिकारक तत्वों को रोकने के लिए प्रशासन को ठोस कदम उठाने होंगे।

अगर इन उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले वर्षों में संगम का जल न केवल स्नान योग्य, बल्कि उपयोग योग्य भी नहीं रह जाएगा। यह न केवल पर्यावरणीय संकट को जन्म देगा, बल्कि लोगों की धार्मिक आस्था को भी गहरा आघात पहुंचाएगा।

(आराधना पांडेय स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author