Saturday, April 27, 2024

बादाम मज़दूरों का अनिश्चितकालीन हड़ताल, 12 सालों से नहीं हुई है वेतन बढ़ोतरी

नई दिल्ली। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में पिछले तीन दशकों से बादाम सफाई, गिरी निकालने, सफाई करने और पैक करने का काम किया जाता है। करावल नगर व दिल्ली के कुछ अन्य इलाकों में छोटे-छोटे ठेकेदारों और मालिकों द्वारा यह काम करवाया जाता है। करावल नगर के प्रकाश विहार, भगतसिंह कालोनी व न्यू सभापुर आदि इलाकों में इनके मालिकों के गोदाम हैं। दिल्ली के कुल बादाम गोदामों का 80 प्रतिशत करावलनगर क्षेत्र में स्थित है। ये गोदाम वास्तव में छोटे कारख़ाने के समान हैं। ये टुटपूंजिया ठेकेदार/मालिक असंसाधित बादाम खारी बावली के बड़े मालिकों से ले आते हैं। खारी बावली के ये बड़े मालिक अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से असंसाधित बादाम आयात करते हैं और उनका संसाधन यहां करवाते हैं। खारी बावली के कई बड़े मालिकों के अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में अपने फार्म हैं जिनपर वे बादाम की खेती करवाते हैं। लेकिन संसाधन के लिए भारत को चुना गया है क्योंकि यहां जितना सस्ता श्रम और भ्रष्ट श्रम विभाग पूरी दुनिया में इन मालिकों को कहीं नहीं मिल सकता है।

यहां पर वे 40 से लेकर 60 तक की संख्या में मजदूरों से काम लेते हैं। ये ठेकेदार पूरी तरह गैर-कानूनी हैं। इनके पास न तो कोई लाईसेंस है और न ही सरकार द्वारा प्राप्त किसी भी किस्म की मान्यता। दिल्ली के श्रम विभाग की नाक के नीचे कई करोड़ रुपये की कीमत का एक अवैध कारोबार पिछले लगभग तीन दशकों से जारी है। इस उद्योग में काम करने वाले मजदूरों को बेहद कम मजदूरी मिलती है और उनकी काम करने की स्थितियां अमानवीय हैं। करावल नगर क्षेत्र में ऐसे करीब 500 मजदूर परिवार हैं जो बादाम संसाधन के काम में लगे हैं। वैश्विक असेम्बली लाइन का एक जीता-जागता उदाहरण हमें बादाम संसाधन उद्योग में मिलता है।

मजदूरों के हालात की वजह

पिछली 1 मार्च से करावल नगर के बादाम मज़दूर अपनी मज़दूरी बढ़ाने की मांग को लेकर करावल नगर मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में हड़ताल कर रहें हैं। इस इलाके में चल रही बादाम के छटाई करने वाली लगभग 95 फ़ीसदी फैक्ट्रियां बन्द हैं। 2012 में हुई हड़ताल के बाद इन मज़दूरों को 2 रुपए प्रति किलो बादाम की छटाई का रेट मिलता है। पिछले 12 सालों में इनकी आमदनी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। काम का स्वरूप और अधिक जटिल और मुश्किल होता गया, महंगाई चार गुनी बढ़ गयी मगर इनकी प्रतिमाह मज़दूरी मात्र 5 से 6 हज़ार तक ही बनी हुई है।

आज बादाम मज़दूरों को एक किलो बादाम सफाई पर मात्र 2 रुपये मिलते है और ये रेट भी 2012 में करावल नगर मज़दूर यूनियन की अगुवाई हुई बादाम मज़दूरों की हड़ताल के बाद प्रति किलो एक से दो रुपए हुए थे। हम जानते है कि 2012 से आज महंगाई चार गुना बढ़ चुकी है, आटा, तेल चावल, सब्जियां और कमरे के किराये तक बढ़ चुके हैं पर बादाम मज़दूरों की मज़दूरी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है, ऐसे में आप खुद सोच सकते है कि ये बादाम मज़दूर कितनी कठिनाई में जिन्दगी गुजार रहे हैं।

करावल नगर मजदूर यूनियन के सदस्य विशाल बताते हैं, “यहां ऐसे कई मजदूर हैं जो पिछले दो दशकों से एक ही छोटे और गंदे कमरे में रह रहे हैं, जबकि गोदाम मालिकों ने कई बंगले बनाए हैं, एक गोदाम से कई गोदाम तक समृद्ध हुए हैं, उन्होंने अपना कारोबार पास में स्थित नई ट्रोनिका सिटी तक बढ़ा दिया है।”

बहुत लम्बे समय से बादाम मज़दूर मज़दूरी बढ़ाने की बात मालिकों से कर रहे थे पर कोई मालिक अपने मन से मज़दूरों की बढ़ोतरी आमतौर पर नहीं ही करता हैं।

हड़ताल से बौखलाये बादाम मालिक ने माहिला मजदूरों पर हमला करवाया

11 मार्च को बादाम मज़दूर भाई- बहनों पर गोदाम मालिक के गुण्डों द्वारा जानलेवा हमला किया गया था। हड़ताल को ख़त्म करने की नाकाम कोशिश की गयी। आज मजदूरों ने एकता का शानदार प्रदर्शन करते हुए ज़बरदस्त रैली निकाली। बादाम मज़दूर पिछले 11 दिनों से अपनी हड़ताल शान्तिपूर्वक तरीके से चला रहे थे। कल शाम को जब मज़दूर मंगल बाजार की तरफ़ से आ रहे थे तभी मालिकों और उनके गुण्डों ने बूढ़ी महिलाओं, बूढ़े पुरुषों पर लाठी, कुर्सी, रॉड और ईंटो से जानलेवा हमला किया। यह कायराना हमला मालिकों की बिलबिलाहट का ही नतीज़ा है जो चाहते है कि मज़दूर गुलामों की तरह उनके लिए खटे और अपने जायज़ हकों की मांग कत्तई न करे। इतने लम्बे समय तक चल रही हड़ताल और मजदूरों की एकता से मालिक बौखलाएं हैं। इस पूरे मामले ने पुलिस और मालिक के गठजोड़ को और नंगा कर दिया है। बार- बार पुलिस बुलाने के बावजूद पुलिस देरी से पहुची। गुण्डो को गिरफ़्तार करने की बजाय उल्टा मज़दूरों को डरा रही थी।

लगभग 2 दशक पहले बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से आकर बसीं 50 वर्षीय श्रमिक गायत्री देवी ने हमें बताया, “लगभग 20 साल पहले, जब बादाम को हाथ से तोड़ा जाता था, तो हम एक कट्टा तोड़ने और छांटने के लिए 20 रुपये कमाते थे। बाद में जब मशीनें आईं तो बादाम तोड़ने का काम मशीनों पर किया जाने लगा जिसके लिए पुरुष मजदूरों को काम पर रखा जाता था। छंटाई और सफ़ाई अभी भी हाथ से की जाती है और इस काम में महिलाएं शामिल हैं। हमने 2012 में करावल नगर मजदूर यूनियन के बैनर तले विरोध प्रदर्शन किया और मजदूरी 1 रुपये से बढ़ाकर 2 रुपये प्रति किलोग्राम कर दी। मालिकों ने यह भी वादा किया कि हर साल हमारी मज़दूरी में एक रुपया बढ़ाया जायेगा। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ। हमारे आस-पास हर चीज़-आटा, चावल, दाल, सब्जियां, तेल और गैस-की बढ़ती कीमतों के बावजूद हमारी मज़दूरी पिछले 12 वर्षों से स्थिर है।

2003 से गोदामों में काम कर रही एक अन्य मज़़दूर कुसुम सिंह ने हमें बताया, “हम मांग कर रहे हैं कि छंटाई में शामिल श्रमिकों की मजदूरी 12 रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ाई जाए और मशीन के काम में शामिल श्रमिकों की मजदूरी भी बढ़ाई जाए। 10 रुपये प्रति किलो।” साथ ही “हम यह भी मांग कर रहे हैं कि मालिक यह सुनिश्चित करें कि सभी श्रमिकों को हर महीने के पहले 5 दिनों के भीतर वेतन मिल जाए। और, उनके काम के घंटे पहले से तय होने चाहिए और प्रति दिन 8 घंटे से अधिक नहीं होने चाहिए।”

गायत्री बताती हैं, ”मेरे घर में 7 सदस्य हैं। हम किसी तरह अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजने का प्रबंध कर रहे हैं और मैं और मेरे पति, दोनों अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। दो रुपये प्रति किलो हमारा गुजारा चलाने के लिए काफी नहीं है।’ हमारी मांगें बहुत जायज़ हैं। हम सिर्फ अपना अधिकार मांग रहे हैं- अपने श्रम का उचित भुगतान।” वह पूछती है, “हम अपने बच्चों का पालन-पोषण कैसे करेंगे? क्या वे चावल से भरे कटोरे के लायक नहीं हैं?”

प्रकाश विहार की अनीता देवी ने बताया कि वो पिछले 15 वर्षों से बादाम के गोदामों में काम कर रही हैं, जब उनसे पूछा कि वह इतनी कम मज़दूरी पर अपना गुज़ारा कैसे करती हैं, तो वह उदास होकर मुस्कुराती हैं, “कुछ दिनों में हम 2 रोटियाँ खाते हैं। अधिकांश दिनों में, हम केवल एक वक्तह के भोजन पर गुजार कर रही है।”

गोदाम में स्टाीफ मजदूर सुनील कुमार लगभग 30 वर्ष का श्रमिक, उन मशीनों को चलाता है जिनका उपयोग बादाम के छिलके तोड़ने के लिए किया जाता है। उनके परिवार के सभी पांच सदस्य इन्हीं गोदामों में काम करते हैं। उन्होंने हमें बताया, “कभी-कभी, मालिक हमें रात में 12 बजे बुलाता है, कभी-कभी, सुबह 4 बजे। कई बार हम खाने के लिए बैठते थे और हमें बुलाया जाता था, इसलिए हमें खाना छोड़ना पड़ता था और गोदाम की ओर भागना पड़ता था। अगर हम एक बार भी देर करते हैं तो मालिक हमें नौकरी से निकालने की धमकी देता है। कई बार तो हमें गोदाम में लगातार 2-3 दिन तक काम करना पड़ता है।”

वह आगे कहते हैं, “जब से हमने विरोध प्रदर्शन शुरू किया है, मालिक ने हमारा पिछले महीने का वेतन रोक लिया है। जब हम मांगने जाते हैं तो वह कहते हैं- काम पर वापस आ जाओ। आपको पिछले महीने का वेतन तभी दिया जाएगा, जब आप काम पर वापस आएंगे।”

राम कुमार एक 20 वर्षीय व्यक्ति है जिसका परिवार बचपन में ही बिहार के नालंदा से आकर बस गया था, बताते हैं, “मैंने 10 साल की उम्र में इन गोदामों में काम करना शुरू कर दिया था। मेरे शामिल होने के बाद से मजदूरी समान है। लेकिन कमरे का किराया? वे 150-200 रुपये से बढ़कर 2000-2500 रुपये प्रति माह हो गये हैं। मैं हर महीने 6-7 हजार ही कमा पाता हूं।”

करावल नगर मजदूर यूनियन के संयोजक योगेश ने बताया कि बादाम मजदूर यूनियन का निर्माण 2009 में किया गया था लेकिन अन्यू पेशे के मजदूरों के संघर्ष के साथ यूनियन करावल नगर मजदूर यूनियन का स्व0रूप ले चुकी है। आज ये किसी एक पेशे या फैक्टरी की यूनियन नहीं हैं, बल्कि यह इलाकाई यूनियन हैं जिसका मकसद फैक्टरी कारखाने के संघर्ष से लेकर मज़दूरों तमाम नागरिक और मानव अधिकारों के संघर्ष को खड़ा करना है। यूनियन बादाम मजदूरों की हड़़ताल में अन्यं मजदूरों को भी शामिल होने की अपील कर रही है। ताकि इलाकाई हड़ताल को मजबूत बनाया जाए। हम सभी पेशें के मजदूरों से अपील करते हैं जिन्होनें गुलामों की तरह घुट-घुटकर जीने मंजूर नहीं है, तो अपने पूरे परिवार के साथ हड़ताल क इस सफल बनायें!

रोजना हड़ताल चौक पर मजदूरों की सभा, क्रान्तिकारी गीत व हड़ताल रैली का आयोजना किया जाता है। जिसमें माहिलाएं, बच्चे समेत शामिल होती है।

बादाम मज़दूरों की मांगें:

1. बादाम की गिरी छटाई को रेट 2 रुपये प्रति किलो से बढ़ाकर 12 रुपये किया जाये।

2. काम के घण्टेी 8 सख़्रती से लागू हो और ओवर टाइम का डबल रेट से भुगतान किया जाये।

3. मशीन से बादाम तुड़ाई का प्रति कट्टा 5 रुपये से बढ़ाकर 10 रुपये किया जाये।

4. हर माह के 1 से 5 तारीख तक काम का भुगतान करना ही होगा।

5. स्टाफ मज़दूर को न्यूनतम वेतन 25,000 रुपये प्रति महीना दिया जाये।

(विशाल सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

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