रांची। एक तरफ़ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार लगातार संसद में बयान दे रही है कि उनके पास बांग्लादेशी घुसपैठिये की संख्या से सम्बंधित कोई आंकड़ा नहीं है, वहीं दूसरी तरफ उनके नेता व मंत्री अपने भाषणों में यह कहते नहीं थकते कि झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों कि सख्या करीब 20 लाख है। सबसे मजेदार बात तो यह है कि उनका यह 20 लाख का आंकड़ा कभी 12 लाख तो कभी 15 लाख भी हो जाता है। जैसा नेता वैसा आंकड़ा।
पिछले 20 जुलाई 2024 को भाजपा के प्रमुख नेता व गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी पार्टी के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए झारखंडी समाज में नफ़रत और साम्प्रदायिकता फ़ैलाने वाला भाषण दिया। उन्होंने कहा कि झारखंड में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठी आ रहे हैं, आदिवासी लड़कियों से शादी कर रहे हैं, ज़मीन हथिया रहे हैं, लव जिहाद, लैंड जिहाद कर रहे हैं।
एक तरफ़ गृह मंत्री लव जिहाद जैसे शब्दों का प्रयोग कर साम्प्रदायिकता फैला रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उनकी सरकार ने संसद में जवाब दिया है कि कानून में लव जिहाद नामक कुछ नहीं है एवं केंद्रीय जांच एजेंसियों ने ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं किया है।
यह गौरतलब है कि किसी भी धर्म या समुदाय के व्यक्ति को किसी भी अन्य धर्म या समुदाय के व्यक्ति से शादी करने का कानूनी अधिकार है।
गृह मंत्री और भाजपा नेता यह भी कहते नहीं थकते हैं कि बांग्लादेशी घुसपैठी (मुसलमान) ‘लैंड जिहाद’ करके आदिवासियों की ज़मीन हथिया रहे हैं। जबकि तथ्य यह है कि कई दशकों से आसपास के राज्यों के गैर-आदिवासी, झारखंड के आदिवासी ज़मीन पर खास करके शहरों में बसे हैं। विशेष कर सीएनटी-एसपीटी कानूनों का खुला उल्लंघन कर आदिवासियों की ज़मीन को लूटा गया है। यह भी तथ्य है कि इसका एक बड़ा तबका भाजपा का समर्थक है। यह भी सोचने का विषय है कि भाजपा के कई गैर-आदिवासी विधायक व सांसद झारखंड के नहीं हैं, लेकिन यहां की ज़मीनों पर बसे हैं, उन्हें भी खाली करवाएं।
यह भी तथ्य है कि रघुवर दास सरकार के कार्यकाल में लैंड बैंक बनाकर आदिवासी-मूलवासियों का 22 लाख हेक्टेयर सामुदायिक ज़मीन को छीन लिया गया था। मोदी सरकार के कार्यकाल में बिना ग्राम सभा की सहमति के एक के बाद एक कोयला खदान की नीलामी कर आदिवासियों को विस्थापित करने की तैयारी की गयी। भाजपा सरकार ने तो भूमि अधिग्रहण कानून व सीएनटी-एसपीटी में संशोधन कर आदिवासियों की ज़मीन जबरन अधिग्रहण कर कंपनियों व पूंजीपतियों को देने के लिए आतुर थी। अब वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन कर जंगलों को लूटने की तैयारी है। अगर मोदी के एनडीए सरकार व भाजपा में हिम्मत है, तो ऐसे सभी आदिवासी-विरोधी परियोजनाओं व नीतियों को रद्द करके दिखाए।
उल्लेखनीय है कि असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा जिन्हें आगामी झारखंड विधान सभा चुनाव के लिए जिम्मा दिया गया है, पिछले एक महीने से लगातार इन मुद्दों पर जहर और नफरत फैला रहे हैं। भाजपा के स्थानीय नेता भी इसी तरह के वक्तव्य रोज दे रहे हैं। इनकी ये बातें न तो तथ्यों पर आधारित हैं और न ही झारखंड में अमन-चैन का वातावरण बनाये रखने के लिए उचित है। सबसे दुखद बात तो यह है कि स्थानीय मीडिया इनके इस मुहिम में बढ़-चढ़ कर अपनी हिस्सेदारी निभा रहा है। जो मुसलमानों के विरुद्ध साम्प्रदायिकता फैलाकर विधान सभा चुनाव के पहले धार्मिक ध्रुवीकरण की एक खतरनाक कोशिश है।
झारखंड में आदिवासियों की जनसंख्या के सवाल पर झूठी बातों को फैलाकर मुसलमानों के विरुद्ध नफ़रत फ़ैलाने की कोशिश हो रही है। जबकि सच्चाई यह है कि आज़ादी के बाद झारखंड के क्षेत्र में आदिवासियों का अनुपात कुल जनसंख्या में लगातार कम होता गया है। जिसका प्रमुख कारण आसपास के राज्यों से बड़ी संख्या में गैर-आदिवासियों का आकर बसना, बड़ी-बड़ी परियोजनाओं व कंपनियों के कारण हुआ व्यापक विस्थापन एवं स्थानीय रोज़गार व गरीबी के कारण आदिवासियों का पलायन करना रहा है। तथ्य यह है कि 2001 की जनगणना में आदिवासियों का अनुपात 26.3% था और 2011 में 26.2% था। वहीं, मुसलमानों की जनसंख्या का अनुपात 2001 से 2011 के बीच लगभग 0.7% बढ़ा।
मज़ेदार बात है कि नरेन्द्र मोदी की एनडीए सरकार ने 2021 में होने वाली जनगणना को अभी तक नहीं करवाया है जिसके कारण वर्तमान आंकड़े नहीं हैं और भाजपा के नेताओं के पास हवाई आंकड़े देने का मौका मिला हुआ है। यह भी तथ्य है कि जनसंख्या में बढ़ोतरी आर्थिक स्थिति व शिक्षा पर निर्भर करती है और न कि धर्म पर। बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में हिन्दुओं की जनसंख्या तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, और तेलंगाना के मुसलमानों की जनसंख्या की तुलना में ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रही है।
कहना होगा कि इन साम्प्रदायिक चर्चाओं के बीच राज्य का एक महत्त्वपूर्ण तथ्य कुपोषण, स्वास्थ्य सेवाएं आर्थिक गरीबी के कारण व आदिवासियों का मृत्यु दर छुप जाता है जो अन्य समुदायों से अधिक है, वहीं औसतन उम्र जो अन्य समुदायों से कम है।
एक तरफ़ भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर मोदी व रघुवर दास सरकार ने अडानी पावरप्लांट परियोजना के लिए आदिवासियों की ज़मीन का जबरन अधिग्रहण किया। झारखंड को घाटे में रख कर अडानी को फायदा पहुंचाने के लिए राज्य की ऊर्जा नीति को बदला और संथाल परगना को अंधेरे में रख कर बंग्लादेश को बिजली भेजा। झूठ बोलने से जनता के साथ किया गया धोखा छुप नहीं जाता है।
भाजपा का आदिवासी व झारखंड विरोधी चेहरा उजागर होता है कि भाजपा झारखंड सरकार द्वारा पारित सरना कोड, पिछड़ों के लिए 27% आरक्षण व खतियान आधारित स्थानीयता नीति पर न केवल चुप्पी साधी हुई है बल्कि इन्हें रोकने की पूरी कोशिश करती रही है। मोदी सरकार जाति जनगणना से भी भाग रही है जिससे समुदायों व विभिन्न जातियों की वर्तमान स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।
(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)