जस्टिस अरुण मिश्रा के भूमि अधिग्रहण संबंधी फैसले पर चीफ जस्टिस ने उठाया सवाल

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उच्चतम न्यायालय में तत्कालीन न्यायाधीश जस्टिस अरुण मिश्रा नीत संविधान पीठ के फैसले पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने सोमवार को स्वयं भूमि अधिग्रहण मामले में आए संविधान पीठ के फैसले पर सवाल उठाए। उन्होंने मौखिक रूप से कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून (इंदौर डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम मनोहरलाल) पर दिए गए फैसले में कुछ सवाल अनुत्तरित रह गए हैं। इन सवालों की जांच करने की जरूरत है। कोर्ट ने कहा मान लीजिए, कोई संपत्ति है जिस पर सरकार ने कब्जा नहीं किया है और मुआवजा नहीं दिया है तब उसका अधिग्रहण खत्म हो जाएगा। कोर्ट  ने कहा कि यदि सरकार ने संपत्ति पर कब्जा कर लिया है और मुआवजे का भुगतान नहीं किया है, पांच न्यायाधीशों का कहना है कि अधिग्रहण खत्म नहीं होगा। पीठ ने कहा कि सवाल है कब तक अगर सरकार मुआवजे का भुगतान नहीं करती है तो कब तक अधिग्रहण जारी रहेगा।

उच्चतम न्यायालय ने इस फैसले में संविधान पीठ के सदस्य रहे जजों से भी राय मांगी है, साथ ही सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता से भी कहा है कि इस मामले में मदद के लिए तैयार रहें। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने यह फैसला इस वर्ष छह मार्च को दिया था। जस्टिस मिश्रा दो सितंबर को सेवानिवृत्त हो गए थे। इस मामले की सुनवाई के दौरान किसानों के वकील ने जस्टिस अरुण मिश्रा से इस सुनवाई से अलग हो जाने का आग्रह किया था पर उन्होंने इससे इनकार कर दिया था।

चीफ जस्टिस बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने कहा कि फैसले में सरकार को ढिलाई दी गई है, जबकि संसद सरकार को यह ढिलाई नहीं देना चाहती थी। उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि सरकार यदि मुआवजा नहीं देती है और जमीन का कब्जा ले लेती है तो यह अधिग्रहण कब तक बना रहेगा। आखिर इसकी कितनी सीमा होगी। सरकार कब तक पैसा नहीं देगी और कब तक अधिग्रहण रहेगा। संसद ने इसके लिए पांच वर्ष की सीमा तय की थी। यदि कब्जा ले लिया गया है और मुआवजा नहीं दिया गया है या किसान ने नहीं उठाया है तो फैसला कहता है कि अधिग्रहण निरस्त नहीं होगा। सवाल यह है कि यदि मुआवजा नहीं उठाया गया है तो अधिग्रहण कब तक निरस्त नहीं होगा। क्या ये हमेशा /अनंत काल तक के लिए बना रहेगा।

यह मामला कोर्ट में तब उठा जब भूमि अधिग्रहण के मामले सुनवाई पर आए। मेहता ने कहा कि इन मुकदमों को रोका गया था, क्योंकि मामला संविधान पीठ को सौंप दिया गया था। 600 मामले उच्चतम न्यायालय में ही लंबित हैं। चूंकि अब फैसला आ गया है इसलिए ये मामले संबद्ध हाईकोर्ट में भेज देने चाहिए, जो संविधान पीठ के फैसले में दी गई व्यवस्था के आलोक में निर्णय देंगे। पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे पर उचित निर्णय लेगी। यह कहकर कोर्ट ने मामले को दो हफ्ते के लिए स्थगित कर दिया। कोर्ट ने वकीलों से कहा कि वे अपने जवाब तैयार रखें।

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जज अरुण मिश्रा की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने फैसला दिया था भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 के तहत अधिग्रहीत भूमि का अधिग्रहण उस सूरत में निरस्त नहीं होगा, यदि सरकार ने जमीन का मुआवजा ट्रेजरी में जमा करवा दिया है, भले किसान ने उसे न उठाया हो। 2013 के नए भूमि अधिग्रहण (निष्पक्ष मुआवजा का अधिकार और पुनर्वास) कानून की धारा 24(2) में व्यवस्था थी कि अधिग्रहीत भूमि का मुआवजा किसान यदि पांच साल तक नहीं उठाता है/ सरकार कब्जा नहीं लेती है/ या मामला कोर्ट में लंबित है, तो यह अधिग्रहण लैप्स हो जाएगा। तब सरकार को नए कानून से अधिग्रहण करना होगा और बाजार रेट पर मुआवजा देकर किसान को पुनर्वासित करना होगा।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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