नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मार्कन्डेय काटजू ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिख कर संसद में धुआं फैलाने वाले युवकों को माफ कर देने का अनुरोध किया है।
जस्टिस काटजू ने लोकसभा अध्यक्ष को लिखे पत्र में कहा कि “मैं आपको यह अनुरोध करने के लिए लिख रहा हूं कि उन युवाओं (संभवत: सभी छात्र या बेरोजगार युवा) को माफ कर दें जिन्होंने कल लोकसभा में प्रवेश किया और हंगामा मचाया।”
काटजू ने कहा कि “मैंने इंटरनेट पर पढ़ा कि उनमें से 4 को गिरफ्तार किया गया है और यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि प्रतिरोधक अधिनियम) लगाया गया है जिसकी धारा 13 के तहत 7 साल की सजा लग सकती है।
पुलिस के पूछताछ करने पर युवाओं ने कहा कि वह बेरोजगारी, मणिपुर की घटनाओं, किसानों के संकट आदि के खिलाफ विरोध कर रहे थे।
उनके पास कोई हथियार नहीं थे, जिस गैस का इस्तेमाल उन्होंने किया वह नुकसान कारक नहीं थी। जाहिर है वह आतंकवादी या अपराधी नहीं थे, बल्कि सिर्फ सामाजिक मुद्दों के लिए विरोध कर रहे थे (हालांकि विरोध का उनका तरीका सही नहीं था)।“
जस्टिस काटजू ने कहा कि “इस संबंध में मैं आपको इंग्लैंड की एक घटना बताना चाहूंगा जिसका ज़िक्र जाने-माने अंग्रेज जज लॉर्ड डेनिंग ने अपनी किताब ‘द ड्यू प्रोसेस ऑफ लॉ’ में किया है।
वेल्स के कुछ छात्र वेल्श भाषा को लेकर काफी उत्साही थे और इससे खफा थे कि वेल्स में प्रसारित सभी रेडियो कार्यक्रम अंग्रेजी में होते थे, वेल्श में नहीं। वह लंदन में आए और उन्होंने उच्च अदालत में हंगामा किया। उच्च न्यायालय न्यायाधीश ने उन्हें अदालत की अवमानना का दोषी पाया और तीन महीने की सजा सुनाई। उन्होंने अपील कोर्ट में अपील दाखिल की।
अपील स्वीकार करते हुए, लॉर्ड डेनिंग ने निम्नलिखित टिप्पणी की-
‘मैं अब श्री वाटकिन पावेल के तीसरे बिन्दु पर आता हूं। वह कहते हैं कि सजाएं कठोर थीं। मुझे नहीं लगता जब और जिन हालत में सुनाई गईं, सजाएं कठोर थीं। यह न्याय के एक ऐसे मामले में सीधा हस्तक्षेप था, जिससे उनका कोई लेना-देना नहीं था। जज के लिए यह आवश्यक था कि उन्हें और सभी छात्रों को वह बताएं कि इस तरह की बात बर्दाश्त नहीं की जा सकती।
छात्रों को जिस मुद्दे पर प्रदर्शन करना है तो करें। अपनी मर्जी से विरोध करें। लेकिन यह कानूनी तरीकों से करना चाहिए, गैरकानूनी तरीके से नहीं। यदि वह देश की न्यायिक व्यवस्था पर चोट करेंगे- यहां मैं इंग्लैंड और वेल्स, दोनों के बारे में कह रहा हूं- तो वह समाज की जड़ों पर चोट कर रहे हैं और उसी पर वार कर रहे हैं जो उन्हें सुरक्षा देता है। केवल कानून और व्यवस्था के पालन से ही वह छात्र बने रह सकते हैं और अध्ययन कर सकते हैं और शांति से रह सकते हैं। इसलिए उन्हें कानून की मदद करनी चाहिए, कानून तोड़ना नहीं चाहिए।
लेकिन अब क्या किया जाए? पिछले सप्ताह न्यायाधीश ने सजा सुनाकर कानून को सही ठहराया। उन्होंने दिखा दिया कि कानून और व्यवस्था बनाए रखना आवश्यक है और बनाए रखा जाएगा। लेकिन इस अपील से चीजें बदल गई हैं। यह छात्र अब कानून का उल्लंघन नहीं कर रहे। इन्होंने इस अदालत में अपील की है और इसके प्रति सम्मान दर्शाया है। उन्होंने एक सप्ताह जेल में बिताया है। मुझे नहीं लगता कि इन्हें और अंदर रखना चाहिए।
यह युवा लोग कोई अपराधी नहीं हैं। इनमें हिंसा, बेईमानी या बुराई नहीं है। इसके विपरीत, बहुत कुछ ऐसा है जिसकी तारीफ की जानी चाहिए। वह वेल्श भाषा के सरंक्षण के लिए जो भी कर सकते हैं, करना चाहते हैं। उन्हें इसका गर्व भी हो सकता है। यह कवियों और गायकों की भाषा है, हमारी अंग्रेजी भाषा से भी मीठी है। वेल्स में यह अंग्रेजी के समान ही होनी चाहिए।
उन्होंने अति कर गलत किया, बहुत गलत किया। लेकिन, यह उन्हें बता दिया गया है, मुझे लगता है अब हम उन पर दया कर सकते हैं, दया करनी चाहिए। हमें उन्हें फिर से अपनी शिक्षा जारी रखने, अपने अभिभावकों के पास जाने और सही मार्ग, जिससे वह विचलित हो गए थे, पर चलने देना चाहिए।” (मॉरिस विरुद्ध क्राउन ऑफिस (1970) 2 क्यू. बी.)
न्यायाधीश मार्कन्डेय काटजू ने कहा कि “मेरी राय में, श्रीमान अध्यक्ष महोदय, आपको उसी सहृदयता का प्रदर्शन करना चाहिए जो लॉर्ड डेनिंग ने किया। युवा कभी-कभी ऐसी हरकतें करते हैं जिन्हें बड़े पसंद नहीं करते। पर आखिरकार, नौजवान नौजवान होते हैं। जो इन युवाओं ने किया, हत्या, डकैती या बलात्कार जैसा गंभीर अपराध नहीं था, इसलिए आपको इस मामले में नरमी बरतनी चाहिए।“
उन्होंने कहा कि इन युवाओं पर कड़े यूएपीए कानून के तहत आरोप लगाए गए हैं जिसकी धारा 13 के तहत 7 साल की सजा इन्हें दी जा सकती है।
यूएपीए की धारा 2(ओ) “गैरकानूनी गतिविधि” को इस तरह परिभाषित करती है-
“गैरकानूनी गतिविधि, एक व्यक्ति या संगठन के संदर्भ में, अर्थात व्यक्ति या संगठन की तरफ से की गई ऐसी गतिविधि (चाहे बोले या लिखित शब्दों से या ऐसे संकेतों से या दर्शनीय कार्य या अन्य तरीकों से)- (i) जिसका उद्देश्य, या जो ऐसे दावे को समर्थन करती हो, किसी भी आधार पर देश के क्षेत्र के किसी हिस्से को अलग करना चाहती हो या देश के किसी क्षेत्र के हिस्से को केंद्र से अलग करना चाहती हो, या किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को ऐसे अलगाव या विलगाव के लिए उकसाती हो या (ii) जो देश की संप्रभुता या क्षेत्रीय अखंडता के बारे में गलत दावा करती हो, सवाल उठती हो या बिगाड़ती हो या बिगाड़ने का इरादा रखती हो, या (iii) भारत के प्रति असंतोष पैदा करे या पैदा करने का इरादा रखती हो।”
जस्टिस काटजू ने कहा कि “इन युवाओं ने स्पष्ट रूप से यूएपीए में परिभाषित किसी “गैरकानूनी गतिविधि” को नहीं अंजाम दिया। उन्होंने भारत के किसी क्षेत्र के किसी हिस्से को अलग करने या भारत की क्षेत्रीय अखंडता को बिगाड़ने या भारत के प्रति असंतोष पैदा करने की कोशिश जैसा कुछ नहीं किया। उन्होंने कुछ सामाजिक मुद्दे उठाए हैं, जिनके लिए वास्तव में उन्हें सराहना चाहिए।
मैं, इसलिए, सम्मानपूर्वक कहना चाहता हूं कि आप उन्हें अपने कार्यालय बुलाएं, जलपान कराएं और उन्हें बताएं कि उनके मन्तव्य को समझा जा सकता है लेकिन इसे अभिव्यक्त करने का उनका तरीका स्वीकार्य नहीं है।
इसके बाद आपको इन्हें छोड़ देना चाहिए, इनके खिलाफ आरोप वापस लिए जाने चाहिए और चेतावनी देनी चाहिए कि वह कानूनी तरीके से विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं लेकिन जो उन्होंने किया उसकी पुनरावृति बर्दाश्त नहीं की जाएगी।“
(जस्टिस काटजू के पत्र का हिंदी अनुवाद- महेश राजपूत।)
+ There are no comments
Add yours