जमीन का मसला हल नहीं हुआ तो बार-बार होते रहेंगे “सोनभद्र कांड”: जांच रिपोर्ट

Estimated read time 1 min read

(27 जुलाई 2019 को बनारस से नागरिक समाज और सामजिक कार्यकर्ताओं की एक जांच टीम सोनभद्र पहुंची। जांच टीम ने घटनास्थल का दौरा किया और पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और फिर अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक की। पेश है पूरी रिपोर्ट-संपादक)

सोनभद्र। हाल में सोनभद्र के घोरावल तहसील में स्थित उम्भा गांव में हुए नरसंहार को दो पक्षों के बीच जमीनी विवाद बताने वाली योगी सरकार और कांग्रेस पार्टी के नेताओं द्वारा मारे गए और घायल हुए आदिवासियों के परिवारों को आर्थिक मदद देने की होड़ लगी हुई है। जबकि इस दर्दनाक घटना से सम्बंधित राष्ट्रीय वन नीति के अन्तर्गत आने वाली मुख्य वन संरक्षक एके जैन की महत्वपूर्ण रिपोर्ट पर सरकार आपराधिक चुप्पी अख्तियार किए हुए है? सरकार को सबसे अधिक राजस्व देने वाले जिले में से एक सोनभद्र क्षेत्रफल के हिसाब से उप्र का दूसरा सबसे बड़ा जिला भी है। यहां के गोंड आदिवासी कई पीढ़ियों से यहां की जमीनों पर खेती करके गुजर-बसर कर रहे हैं। आपको बता दें कि जमीन संबंधी एक विवाद को लेकर यहां 10 आदिवासी किसानों की गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी। इस कांड को इलाके के ग्राम प्रधान यज्ञदत्त के नेतृत्व में उसके आदमियों ने अंजाम दिया था।

नरसंहार के 10 दिन बाद उम्भा गांव:

घटना के 10 दिन बाद जांच टीम उम्भा गांव में गई तो अपनी आदिवासी परम्परानुसार यहां के लोग मृतकों की आत्मा की शांति के लिए किए जा रहे रीति रिवाजों में व्यस्त थे। बड़ी चाची के नाम से चर्चित कौशल्या ने हमें बताया कि जिस रोज हत्याएं हुईं (17 जुलाई) उसके दूसरे दिन सुबह ही पुलिस ने शव कब्जे में कर आनन-फानन में उनको जला दिया। जबकि हम लोग तो जमीन में दफनाकर अंतिम संस्कार पूरा करते हैं।

मृतकों के आखिरी संस्कार से जुड़े क्रिया कर्म के लिए नदी की तरफ जातीं महिलाएं।

घटना के दिन सुबह थाने से आया था फोन:

उम्भा पहाड़ी गांव के एक नौजवान ने जांच टीम को बताया कि नज़दीकी थाने से घटना वाले दिन ग्राम प्रधान के साथ हमारी जमीन के सम्बन्ध में समझौता करने के लिए फोन आया था लेकिन हमने वहां जाना उचित नहीं समझा। उसी दिन दोपहर में 32 ट्रैक्टर पर लगभग 200 बदमाशों ने हमारे गांव के 10 लोगों को गोलियों से भून दिया जिसमें 18 लोग घायल हो गए थे। इसी गांव की 14 साल की मृदालिनी ने रोते हुए कहा कि गोली लग जाने के बाद भी मेरे पिता के अन्दर जान बची थी लेकिन बदमाशों ने बंदूक के पिछले हिस्से को सर पर मार-मार कर उनकी जान ले ली। इस हादसे में घायल हुए 45 साल के रामपति सिंह गोंड तो इस नरसंहार की तुलना जलियांवाला बाग कांड से करते हैं।

आदीवासी समाज अपनी जमीन को लेकर एकजुट है:

हादसे में अपने सगे सम्बन्धियों को हमेशा के लिए खो चुके इस गाँव के गोंड आदिवासी समाज में चारों तरफ सन्नाटा पसरा था। उनका रुदन हमारी टीम के अंदर भी वेदना का संचार कर रहा था। सीता देवी के पति की भी इस हमले में हत्या कर दी गई थी। उनसे बात हुई तो गांव की अन्य महिलाएं भी निकट आ पहुंची। कहने लगीं कि कई पीढ़ियों से यह जमीन हमारी है। इसके लिए हमारे परिवार के लोगों ने जान दी है हमें इस जमीन पर किसी का कब्जा बर्दाश्त नहीं है। नेताओं द्वारा बांटे जा रहे लाखों के सहयोग के बारे में उनसे पूछा तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि यह नोट तो कागज हैं, हमें हमारी जमीन चाहिए। 

जांच टीम के सदस्य।

100 नम्बर की हकीकत:

ग्राम प्रधान यज्ञ दत्त के नेतृत्व में हमलावरों ने जब आदिवासियों पर हमला बोला तब पीड़ित पक्ष ने 100 नंबर डायल किया तो गाड़ी आई और घटनास्थल से बिना किसी हस्तक्षेप के लौट गई। घटना के एक घण्टे बाद पुलिस पहुंची। निकटतम थाना घोरावल तहसील में है और उम्भा गाँव से उसकी दूरी महज 25 किमी है। जिसे 30 मिनट में आसानी से तय किया जा सकता है।

मुख्यमंत्री के दौरे के साथ गांव को मिली सिर्फ़ दो दिन बिजली:

उम्भा में बिजली नहीं है। गुड्डी देवी ने हमें बताया और अपनी कच्ची झोपड़ी में ले जाकर दिखाया भी कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां आए तो प्रशासन ने रातों-रात तार डालकर दो दिन बिजली दे दी थी और उनके चले जाने पर बिजली भी चली गई। इसी तरह से गांव के बच्चों ने बताया कि किस तरह से मुख्यमंत्री के आने पर गांव के सामने से गुजर रही टूटी हुई सड़क रातों रात बना दी गई।

जमीन का पुराना विवाद और एके जैन की रिपोर्ट:

स्थानीय माफिया के कहने पर आईएएस अधिकारी ने 600 बीघा जमीन के राजस्व रिकार्ड में हेराफेरा की थी। इस जमीन की सरकारी कीमत लगभग 48 करोड़ रुपये आंकी गई है। उत्तर प्रदेश राजस्व अधिकारियों द्वारा की गई धोखाधड़ी की पड़ताल करने पर पता चला की पिछले दिनों सोनभद्र भ्रष्ट नौकरशाहों, राजनेताओं और भू-माफियाओं का केंद्र बना हुआ है जो औने पौने दाम में जमीन खरीद लेते हैं। 2012 में सोनभद्र के मुख्य वन संरक्षक एके जैन ने इस जिले में जमीन वितरण की इस धोखाधड़ी पर सवाल उठाते हुए एक रिपोर्ट दी। जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि पूर्व में सोनभद्र में 25 हजार हेक्टेयर भूमि को भारतीय वन अधनियम के प्रावधानों के विरुद्ध वन क्षेत्र से अलग कर गैर आदिवासियों तथा अन्य संस्थाओं के पक्ष में करने का अनुमान लगाया गया है। वर्तमान में प्राप्त जानकारी के अनुसार सोनभद्र में यह आंकड़ा एक लाख हेक्टेयर का हो गया है।

शोक में डूबी महिलाएं।

उम्भा गांव में ग्रामीण आदिवासियों के बयान और मौजूदा

तथ्यों के आधार पर जांच टीम ने यह निष्कर्ष निकाला है कि जिस जिले में हजारों एकड़ जमीन विवादित हो, भू माफियाओं का बोलबाला हो और उनके ही पक्ष में पुलिस प्रशासन खड़ा हो वहां यह समझने के लिए किसी रॉकेट साइंस की जरूरत नहीं है कि भविष्य में उम्भा जैसी घटनाएं कभी भी दुबारा हो सकती हैं। 

जांच टीम में शामिल थे:

भगतसिंह अम्बेडकर विचारमंच से एसपी राय, लोकमंच से संजीव सिंह, रिहाई मंच से राजीव यादव, भगतसिंह छात्र मोर्चा से आकांक्षा और अनुपम, ऑल इंडिया सेक्युलर फोरम से डॉ नूरफ़ातिमा, इतिहासकार डॉ. मोहम्मद आरिफ़, डॉ. प्रशांत शुक्ला, प्रो. असीम मुखर्जी, फिल्ममेकर प्रोo निहार भट्टाचार्य, ऐपवा से सुजाता भट्टाचार्य, विभा प्रभाकर, कुसुम वर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता सुशीला वर्मा, दीपक मिश्रा, नीरज पांडे, शिशिर त्रिपाठी, सुरेश शुक्ला, राकेश महरिया, राकेश, वीर और पवन।

(घटनास्थल से जांच करके लौटेने के बाद ऐपवा नेता कुसुम वर्मा और रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव की रिपोर्ट।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author