महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव : 5 महीने में वोटर लिस्ट में 48 लाख मतदाताओं के जुड़ने का करिश्मा आखिर हुआ कैसे ? 

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यह सवाल भले ही शिवसेना (उद्धव ठाकरे), शरद पवार या महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व भुला चुका है, लेकिन महाराष्ट्र के आम लोगों और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के प्रोफेशन एंड डेटा विंग के चेयरमैन प्रवीण चक्रवर्ती को साल रहा है।

जून 2024 लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र से भाजपा के नेतृत्व वाली महायुती गठबंधन को कुल 2.48 करोड़ वोट (43.55%) प्राप्त हुए थे, और राज्य में लोकसभा की कुल 48 सीटों में से उसे सिर्फ 17 सीटें हाथ लगी थीं।

जबकि दूसरी तरफ महाविकास अघाड़ी गठबंधन (कांग्रेस, शरद पवार और उद्धव ठाकरे गुट) को कुल 2.50 करोड़ वोट (43.71%) और 30 लोकसभा सीटें हासिल हुई थीं।

पूरे देश में यह महाराष्ट्र राज्य ही था, जहां से इंडिया गठबंधन को भारी जीत हासिल हुई थी, और माना जा रहा था कि महाविकास अघाड़ी विधानसभा में भी आसानी से अपनी सरकार बनाने में कामयाब रहेगी। लेकिन नवंबर में जब चुनाव परिणाम आये तो महाविकास अघाड़ी का सूपड़ा साफ़ हो चुका था। 

विधान सभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व में महायुती गठबंधन 3.18 करोड़ वोट (49.30%) के साथ 286 सीटों में से 235 सीट जीतकर रिकॉर्ड कायम कर चुकी थी, जबकि महाविकास अघाड़ी के खाते में 2.27 करोड़ वोट (35.16%) और 288 सीटों में से मात्र 50 सीट ही हाथ लगी।

दोनों गठबन्धनों के बीच लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मतों का आकलन करने से पता चलता है कि अगले 6 महीने के भीतर महाविकास अघाड़ी को कुल 24 लाख वोटों का नुकसान हो चुका था।

लेकिन उससे भी विचित्र वाकया यह हुआ कि भाजपा के नेतृत्ववाली महायुती की झोली में 24 लाख वोटों का इजाफ़ा न होकर इस बार 72 लाख वोट ज्यादा आ गये थे। 

ये एक्स्ट्रा 48 लाख वोट महायुती गठबंधन को कहां से प्राप्त हुए? यह सवाल चुनावी नतीजे आने के बाद से ही उठने लगे थे। पिछले एक माह से कांग्रेस के बुद्धिजीवी सेल के प्रमुख प्रवीण चक्रवर्ती लगातार इस प्रश्न को उठा रहे हैं।

इस सिलसिले में प्रवीण चक्रवर्ती ने 11 जनवरी 2025 को अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक वीडियो साझा करते हुए कुछ आंकड़े पेश किये थे। उनके अनुसार लोकसभा चुनाव से पूर्व 2019 से 2024 के बीच के 5 वर्षों के दौरान महाराष्ट्र में मतदाताओं की संख्या में कुल 32 लाख का इजाफ़ा किया गया था।

लेकिन अगले पांच माह बाद जब राज्य में विधानसभा चुनाव घोषित हुए तो अचानक से चुनाव आयोग 48 लाख नए मतदाताओं को मतदाता सूची में जोड़ चुका था, जो असल में 5 वर्षों की तुलना में 3000% का इजाफ़ा है। यह आंकड़ा वाकई में हैरतअंगेज है, और किसी भी सूरत में इसे स्वीकार कर पाना संभव नहीं है। 

केंद्र सरकार में परिवार एवं कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट का हवाला देते हुए प्रवीण चक्रवर्ती अपने दावे की पुष्टि करते नजर आते हैं।

उनके अनुसार, मंत्रालय की ओर से नवंबर 2019 में जारी रिपोर्ट में 2011-2036 के बीच महाराष्ट्र की जनसंख्या वृद्धि को अनुमानित करते हुए पृष्ठ संख्या 229 में बताया गया है कि वर्ष 2021 तक महाराष्ट्र में 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों की अनुमानित संख्या 9.14 करोड़ रहने वाली है।

वर्ष 2026 के लिए मंत्रालय की रिपोर्ट में अनुमान 9.81 करोड़ का दर्शाया गया है।

लेकिन 30 अक्टूबर 2024 को चुनाव आयोग अपनी अंतिम मतदाता सूची में महाराष्ट्र में मतदाताओं की संख्या को 9.70 करोड़ तक ले जाता है। प्रवीण चक्रवर्ती स्वास्थ्य मंत्रालय के डेटा से निष्कर्ष निकालते हैं कि मतदाता सूची में 100% पंजीकरण को भी यदि चुनाव आयोग संभव बना दे तब भी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अधिकतम 9.54 करोड़ वोटर्स ही होने चाहिए थे।

यहां पर प्रवीण चक्रवर्ती चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए पूछते हैं कि आखिर यह कैसे संभव है? वे केंद्र सरकार की ओर से जारी जनसंख्या के अनुमानित आंकड़े और महाराष्ट्र चुनाव आयोग की ओर से घोषित मतदाता संख्या को लेकर महत्वपूर्ण सवाल खड़े करते दिखते हैं।

लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच 5 महीने के अंतराल में 48 लाख नए वोटर्स को ढूंढ निकालने की दक्षता पर उनकी हैरानगी समझ में आती है। 

प्रवीण चक्रवर्ती आगे कहते हैं कि चुनाव आयोग 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के नागरिकों को आमतौर पर 90% और अधिक से अधिक 95% लोगों को ही मतदाता सूची में पंजीकृत करा पाने में सफल रहता है।

लेकिन सिर्फ महाराष्ट्र विधानसभा के लिए ही चुनाव आयोग शत-प्रतिशत या उससे ज्यादा लोगों का वोटर रजिस्ट्रेशन करने में सफल रहा?

इसके अलावा, उनका दूसरा सवाल भी समान रूप से काबिले गौर है। वे इसे चुनाव आयोग का चुनावी घपलेबाजी नाम देते हैं। महाराष्ट्र में आधार पंजीकरण के आधार पर वयस्क मतदाताओं की संख्या को लेकर भी प्रवीण चक्रवर्ती का तर्क समझ में आता है। उनका दावा है कि दिसंबर 2023 तक महाराष्ट्र आधार पंजीकरण के आंकड़े भी चुनाव आयोग के मतदाता पंजीकरण से काफी कम हैं।   

अंग्रेजी दैनिक द हिंदू में आज प्रवीण चक्रवर्ती ने इसी मुद्दे को दुहराते हुए याद दिलाया है कि कल चुनाव आयोग का 75 वां जन्मदिन है। अपने सोशल मीडिया हैंडल पर इस लेख का स्क्रीनशॉट लगाते हुए वे कहते हैं, “कल चुनाव आयोग का 75वां जन्मदिवस है। लेकिन डॉ अंबेडकर और संस्थापक निश्चित रूप से चुनाव आयोग को जन्मदिन की शुभकामनाएं नहीं देना चाहेंगे। 

क्यों?

क्योंकि यदि चुनाव आयोग का जन्मदिन भी मनाया जाये तो उसे कौन सा उपहार चाहिए होगा?” 

इसके लिए वे भाजपा के बजाय चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं, और उनका यह आरोप काफी हद तक सही प्रतीत होता है। हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी मतदाता सूची में नाम जोड़ने और काटने के सिलसिले को आम आदमी पार्टी (आप) ने संभव होने नहीं दिया है।

कांग्रेस की रणनीतिक भूल से सीख लेकर दिल्ली में आप पार्टी कई विधानसभा सीटों में 5-7000 वोटों की धांधली को रोकने में सफल रही है। अपने चुनाव अभियान में पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल साफ़ कहते सुने जा सकते हैं कि हरियाणा और महाराष्ट्र में वोटर लिस्ट में हेराफेरी कर भाजपा जीतने में सफल रही, लेकिन दिल्ली में वे इसे सफल नहीं होने देंगे। 

लेकिन सबसे दुखद पहलू यह है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम से बुरी तरह से आहत महाविकास अघाड़ी गठबंधन के तीनों दल कांग्रेस, एनसीपी (शरद) और शिवसेना (ठाकरे) गुट इस मुद्दे से किनारा कर अपने-अपने क्षेत्रीय अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं। इन दलों को अपने-अपने विधायकों को अपने खेमे में बनाये रखने की चिंता सता रही है। 

महाराष्ट्र के कई गांवों और कस्बों में आम मतदाता आज भी विधानसभा के नतीजों से असहज हैं। कई जगहों पर मशाल जुलूस और विरोध प्रदर्शन हुए। एक गांव में तो ग्रामीणों ने mock-polling कर विभिन्न राजनीतिक दलों को मिलने वाले वास्तविक मतों की संख्या जानने की कोशिश की थी, जिसे चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन ने अवैध बताकर निषेधाज्ञा लगाकर रुकवा दिया था। 

ऐसे में अहम सवाल यह है कि कांग्रेस नेतृत्व के पास महाराष्ट्र के प्रमाणिक आंकड़े होने के बावजूद उसकी ओर से कोई पहल क्यों नहीं हो रही है? प्रवीण चक्रवर्ती इस बहस को बौद्धिक चर्चा के लिए भले ही अंग्रेजीदां बौद्धिक वर्ग के बीच ला रहे हैं, लेकिन जब तक इंडिया गठबंधन की ओर से मजबूत पहल नहीं ली जाती, सत्ताधारी दल और चुनाव आयोग मिलकर कल ऐसे ही देशभर में लोकतंत्र का ऐसा ही मखौल उड़ाने के लिए आज़ाद रहने वाला है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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