नौकरियों में लैटरल एंट्री के खिलाफ प्रमुख राजनीतिक दलों ने खोला मोर्चा

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नई दिल्ली। यूपीएससी ने कल प्राइवेट सेक्टर, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों तथा पीएसयू कर्मचारियों के बीच से संयुक्त सचिव, निदेशक और डिप्टी सेक्रेटरी स्तर के 45 पदों पर लैटरल प्रवेश के लिए आवेदन मांगा है। ये सारे पद 17 सितंबर तक 24 केंद्रीय मंत्रालयों में भरे जाने हैं।

संयुक्त सचिव की कुल 10 रिक्तियों को डिजिटल इकोनामी, फिनटेक, साइबर सिक्योरिटी और वित्तमंत्रालय में निवेश तथा गृहमंत्रालय के एनडीएमए समेत कई मंत्रालयों में भरा जाना है। 

केंद्र सरकार के कर्मचारी इन पदों के लिए योग्य नहीं है। ऐसा रिक्तियों के विज्ञापन में कहा गया है। संयुक्त सचिव के लिए आवेदन करने की जो शर्तें मांगी गयी हैं उनमें कम से कम 15 साल के अनुभव की जरूरत है। और उस शख्स की उम्र 40 से 55 के बीच होनी चाहिए। इसके अलावा संयुक्त सचिव के लिए कुल सैलरी 2.32 लाख रुपये प्रति महीने होगी। जबकि निदेशक और डिप्टी सेक्रेटरी के लिए किसी अभ्यर्थी को क्रमश 10 और 7 साल का अनुभव होना चाहिए। और इनकी उम्र सीमा 35 से 45 और 32 से 40 क्रमश: रखी गयी है।

विज्ञापन आने के बाद इस पर प्रतिक्रियाएं भी आने लगी हैं। ढेर सारे लोगों ने इसका विरोध किया है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा है कि नरेंद्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के ज़रिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के ज़रिए भर्ती कर खुलेआम SC, ST और OBC वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है।

उन्होंने कहा कि मैंने हमेशा कहा है कि टॉप ब्यूरोक्रेसी समेत देश के सभी शीर्ष पदों पर वंचितों का प्रतिनिधित्व नहीं है, उसे सुधारने के बजाय लैटरल एंट्री द्वारा उन्हें शीर्ष पदों से और दूर किया जा रहा है। यह UPSC की तैयारी कर रहे प्रतिभाशाली युवाओं के हक़ पर डाका और वंचितों के आरक्षण समेत सामाजिक न्याय की परिकल्पना पर चोट है।

राहुल गांधी का कहना था कि ‘चंद कॉरपोरेट्स’ के प्रतिनिधि निर्णायक सरकारी पदों पर बैठ कर क्या कारनामे करेंगे इसका ज्वलंत उदाहरण SEBI है, जहां निजी क्षेत्र से आने वाले को पहली बार चेयरपर्सन बनाया गया। प्रशासनिक ढांचे और सामाजिक न्याय दोनों को चोट पहुंचाने वाले इस देश विरोधी कदम का INDIA मजबूती से विरोध करेगा। ‘IAS का निजीकरण’ आरक्षण खत्म करने की ‘मोदी की गारंटी’ है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर आरजेडी चीफ लालू यादव तक ने इसका विरोध किया है। खड़गे ने एक्स पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि एक बिल्कुल सोची समझी साजिश के तहत बीजेपी जान बूझ कर नौकरियों में इस तरह की भर्ती कर रही है जिससे एससी, एसटी और ओबीसी हिस्से को आरक्षण से दूर कर दिया जाए।

उन्होंने सवालिया लहजे में पूछा कि क्या इनमें एससी, एसटी और ओबीसी या फिर ईडब्ल्यूएस का कोई रिजर्वेशन है। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने संविधान को दो टुकड़ों में फाड़ दिया है। और इस तरह से आरक्षण पर दोहरा हमला कर दिया है। इसके साथ ही उनका कहना था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद सरकार के आरक्षण घोटाले का पर्दाफाश हो गया है। वह कल इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिए गए 69000 अध्यापकों की भर्ती मामले में फैसले की बात कर रहे थे। 

आपको बता दें कि लैटरल प्रवेश की शुरुआत 2018 से हुई थी जब नीति आयोग और सेक्टोरल ग्रुप ऑफ सेक्रेटरीज ने सरकार को अपनी 2017 की रिपोर्ट में इसकी संस्तुति की थी। इसी 8 अगस्त को केंद्रीय राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा को बताया था कि लैटरल प्रवेश के तहत अब तक कुल 63 नियुक्तियां हो चुकी हैं। और ये सभी संयुक्त सचिव, निदेशक और डिप्टी सेक्रेटरी के स्तर की हैं। मौजूदा समय में 57 अफसर मंत्रालयों और विभागों में हैं।

आरजेडी मुखिया लालू यादव ने एक्स पर दिए गए अपने बयान में कहा है कि बाबा साहेब के संविधान एवं आरक्षण की धज्जियां उड़ाते हुए नरेंद्र मोदी और उसके सहयोगी दलों की सलाह से सिविल सेवा कर्मियों की जगह अब संघ लोक सेवा आयोग ने निजी क्षेत्र से संयुक्त सचिव, उप-सचिव और निदेशक स्तर पर नियुक्ति के लिए सीधी भर्ती का विज्ञापन निकाला है। 

उन्होंने कहा कि इसमें कोई सरकारी कर्मचारी आवेदन नहीं कर सकता। इसमें संविधान प्रदत कोई आरक्षण नहीं है। कॉरपोरेट में काम कर रहे बीजेपी की निजी सेना यानि खाकी पैंट वालों को सीधे भारत सरकार के महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों में उच्च पदों पर बैठाने का यह “नागपुरिया मॉडल” है। संघी मॉडल के तहत इस नियुक्ति प्रक्रिया में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलेगा। वंचितों के अधिकारों पर NDA के लोग डाका डाल रहे हैं। 

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा अपनी विचारधारा के संगी-साथियों को पिछले दरवाज़े से यूपीएससी के उच्च सरकारी पदों पर बैठाने की जो साज़िश कर रही है, उसके ख़िलाफ़ एक देशव्यापी आंदोलन खड़ा करने का समय आ गया है। 

ट्विटर पर अपने लंबे बयान में उन्होंने कहा कि ये तरीक़ा आज के अधिकारियों के साथ, युवाओं के लिए भी वर्तमान और भविष्य में उच्च पदों पर जाने का रास्ता बंद कर देगा। आम लोग बाबू व चपरासी तक ही सीमित हो जाएंगे। 

दरअसल से सारी चाल पीडीए से आरक्षण और उनके अधिकार छीनने की है। अब जब भाजपा ये जान गयी है कि संविधान को ख़त्म करने की भाजपाई चाल के ख़िलाफ़ देश भर का पीडीए जाग उठा है तो वो ऐसे पदों पर सीधी भर्ती करके आरक्षण को दूसरे बहाने से नकारना चाहती है। 

अखिलेश ने कहा कि भाजपा सरकार इसे तत्काल वापस ले क्योंकि ये देशहित में भी नहीं है। भाजपा अपनी दलीय विचारधारा के अधिकारियों को सरकार में रखकर मनमाना काम करवाना चाहती है। सरकारी कृपा से अधिकारी बने ऐसे लोग कभी भी निष्पक्ष नहीं हो सकते। ऐसे लोगों की सत्यनिष्ठा पर भी हमेशा प्रश्न चिन्ह लगा रहेगा। 

उन्होंने कहा कि देशभर के अधिकारियों और युवाओं से आग्रह है कि यदि भाजपा सरकार इसे वापस न ले तो आगामी 2 अक्टूबर से एक नया आंदोलन शुरू करने में हमारे साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर खड़े हों। सरकारी तंत्र पर कारपोरेट के क़ब्ज़े को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे क्योंकि कारपोरेट की अमीरों वाली पूंजीवादी सोच ज़्यादा-से-ज़्यादा लाभ कमाने की होती है। ऐसी सोच दूसरे के शोषण पर निर्भर करती है, जबकि हमारी ‘समाजवादी सोच’ ग़रीब, किसान, मजदूर, नौकरीपेशा, अपना छोटा-मोटा काम-कारोबार-दुकान करनेवाली आम जनता के पोषण और कल्याण की है। ये देश के विरूद्ध एक बड़ा षड्यंत्र है।

केंद्र की मोदी सरकार बाबा साहेब के लिखे संविधान और आरक्षण के साथ कैसा घिनौना मजाक एवं खिलवाड़ कर रही है, यह विज्ञापन उसकी एक छोटी सी बानगी है।

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि 𝐔𝐏𝐒𝐂 ने लैटरल एंट्री के ज़रिए सीधे 𝟒𝟓 संयुक्त सचिव, उप-सचिव और निदेशक स्तर की नौकरियां निकाली है लेकिन इनमें आरक्षण का प्रावधान नहीं है। अगर 𝐔𝐏𝐒𝐂 सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से 𝟒𝟓 𝐈𝐀𝐒 की नियुक्ति करती तो उसे 𝐒𝐂/𝐒𝐓 और 𝐎𝐁𝐂 को आरक्षण देना पड़ता यानि 𝟒𝟓 में से 𝟐𝟐-𝟐𝟑 अभ्यर्थी दलित, पिछड़ा और आदिवासी वर्गों से चयनित होते। 

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार बहुत ही व्यवस्थित, पद्धतिबद्ध, योजनाबद्ध और शातिराना तरीके से आरक्षण को समाप्त कर रही है। विगत चुनाव में प्रधानमंत्री समेत बिहार में उनकी पिछलग्गू पार्टियाँ और उनके नेता छाती पीट-पीटकर दावा करते थे कि आरक्षण को समाप्त कर कोई उनका हक-अधिकार नहीं खा सकता लेकिन उनकी आँखों के सामने, उनके समर्थन व सहयोग के बल पर वंचित, उपेक्षित और गरीब वर्गों के अधिकारों पर डाका डाला जा रहा है तथा कथित स्वयंभू 𝐎𝐁𝐂 𝐏𝐌 समेत उनके साथ यूपी-बिहार-झारखंड के 𝐒𝐂/𝐒𝐓 और 𝐎𝐁𝐂 नेता दुर्भाग्यपूर्ण रूप से ताली पीट ठहाके लगा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि देश की 𝟗𝟎 फ़ीसदी आबादी का हक़ खाने वालों को जनता माफ़ नहीं करेगी। 

जागो “दलित-पिछड़ा-आदिवासी और गरीब सामान्य वर्ग” जागो! हिंदू के नाम पर ये आपका हक़ खा रहे हैं तथा आपके अधिकारों की बंदरबांट कर रहे हैं।

(जनचौक डेस्क की रिपोर्ट।)

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