जनसंगठनों ने बनाया ‘झारखंड जन मोर्चा’ नाम का साझा मंच

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बोकारो जिले में स्थित अमर शहीद स्टेन स्वामी हॉल में आज कल अक्टूबर 2021 को एक सम्मलेन में झारखंड के कई प्रांतीय – स्थानीय जन संगठनों द्वारा एक मंच के अधीन आकर एक दूसरे के सहयोग – समर्थन से झारखंड को लूटखण्ड नहीं बनने देने का संकल्प लिया। इसके तहत इन संगठनों ने सूबे में उत्पीड़न, दमन, और शोषण से मुक्त समाज स्थापित करने और लोकतांत्रिक संघर्ष को संचालित करने के लिए एक जन संगठन ”झारखंड जन संघर्ष मोर्चा” का गठन किया है।
यह जन संगठन महिलाओं, छात्र- छात्राओं, युवाओं, प्रगतिशील लेखकों, कवियों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों का एक साझा मोर्चा होगा।

स्थापना सम्मलेन की शुरुआत किसान आंदोलन की युवा साथी निक्की ने क्रांतिकारी गीत के साथ की। जन संघर्ष मोर्चा के आधार पत्र का पाठ दामोदर तुरी द्वारा किया गया। आधार पत्र में झारखण्ड की समस्या को वैश्विक साम्राज्यवाद से जोड़ कर उल्लेख किया गया, जो आज के दौर में केंद्र एवं राज्य सरकार पर हावी है और उनकी सभी नीतियों से साफ़ पता चलता है कि यह नीतियां भारत की जनता को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि देशी व विदेशी पूंजीपतियों के हित में हैं। झारखण्ड जन संघर्ष मोर्चा का आधार झारखण्ड के सभी आंदोलनों को एक मंच में लाने का प्रयास है, जो देश को बिकने नहीं देना चाहते हैं। मोर्चा में पंजाब के भारतीय किसान यूनियन के वरिष्ठ नेता सुरजीत सिंह और सुखविंदर कौर ने अपने संघर्ष के अनुभव को साझा किया। सुरजीत सिंह ने संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर होने वाले 26 नवम्बर के जन हड़ताल में झारखण्ड के संगठनों से जुड़ने की अपील की।

उन्होंने बताया की कृषि कानून के बदलाव सिर्फ किसान तक सीमित नहीं हैं बल्कि उसका प्रभाव खान पान की वस्तुओं के दामों पर पड़ रहे हैं और पड़ेंगे। गरीबों के लिए पेट भरना भी मुश्किल हो जायेगा। सम्मलेन को स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह, सामाजिक कार्यकर्त्ता ज्योति दा, दिल्ली यूनिवर्सिटी के फ़राज़, वरिष्ठ अधिवक्ता जे.एन पांडे, संयुक्त ग्राम सभा के विष्णु गोप, बोकारो विस्थापित समिति के सचिव दीपक कुमार, गोड्डा कॉलेज के सहायक प्रोफेसर रजनी मुर्मू, झारखण्ड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के रज़ाक अंसारी, उलगुलान बेरोज़गार मंच के अनीस कुमार, आदिवासी मूलनिवासी विकास मंच के अर्जुन मुर्मू, सामाजिक कार्यकर्त्ता रिषित नियोगी, अधिवक्ता श्याम, गिरिडीह के नीलाम्बर मरांडी, तेनुघाट विस्थापित समिति के अनिल हांसदा, धरमगढ़ रक्षा समिति समिति के भगवन किस्कू, सुचिता सिंह (वनाधिकार समिति), आदिम जनजाति परिषद के उमाशंकर बैगा ब्यास ने सम्बोधित किया। झारखण्ड की ज्वलंत समस्याओं, जैसे, विस्थापन, फर्जी गिरफ़्तारी, फर्जी एनकाउंटर, बेरोज़गारी, महिला हिंसा पर वक्ताओं ने अपनी बातें रखीं और आंदोलन को आगे ले जाने का आह्वान किया। युवा साथी विक्रम, शिवांगी, सोलोमन, तौफ़ीक़, अदिति, अंकिता, निधि ने ज़ोरदार नारों के साथ मोर्चे का हौसला बुलंद किया। जन सांस्कृतिक ग्रुप शहीद सुन्दर मरांडी स्मृति सांस्कृतिक दल ने झारखण्ड के पारम्परिक क्रन्तिकारी गीतों को सम्मलेन में प्रस्तुत किया।

वक्ताओं ने कहा कि झारखंड में पूर्व की भाजपा सरकार ने यहां के आदिवासी-मूलवासी जनता पर कहर बरपाया था। भाजपाई मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में झारखंड की अस्मिता व संस्कृति को नष्ट करने का अभियान प्रारंभ किया गया था। रघुवर दास ने सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधन, भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक, 6500 स्कूलों का विलय, देशी-विदेशी पूंजीपतियों के साथ 210 एम ओयू (MoU) , फर्जी मुठभेड़ में माओवादियों के नाम पर आदिवासियों की हत्या, माओवादियों के नाम पर गिरफ्तारी, हजारों जनता पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करना, रजिस्ट्रर्ड ट्रेड यूनियन मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध लगाना, मॉब लिंचिंग के जरिए मुसलमानों व ईसाइयों के हत्यारों के साथ खुल्लमखुल्ला एकता दिखाना, ग्रामीण क्षेत्रों में दर्जनों सीआरपीएफ कैंप लगाना, सभी कल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार से आंख मूंद, जनता की आवाज उठाने वालों को जेल में बंद करना, मानदेय पर कार्य कर रहे – पारा शिक्षक,आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका, आशा कार्यकर्ता, संविदाकर्मियों आदि के द्वारा अपनी जायज मांगों पर आंदोलन करने पर पुलिसिया हिंसा करवाना, विस्थापितों के आंदोलन पर गोली चलवाना, भूख से हो रही मौतों को बीमारी से हुई मौत बताना, आदि-आदि क‌ई कुकर्म किये, जिस कारण झारखंड की जुझारू -लडा़कू जनता ने 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया एवं झामुमो, कांग्रेस व राजद के “महागठबंधन “को सत्ता सौंपी।

29 दिसंबर,2019 को महागठबंधन की तरफ से झामुमो के हेमंत सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। हेमंत सोरेन का मुख्य मंत्री की कुर्सी संभाले हुए 21 महीने हो चुके हैं, लेकिन जिस वादे व दावे के साथ हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी, वह कहीं से पूरा होता नहीं दिख रहा है। आज भी झारखंड में फर्जी मुठभेड़ में आदिवासी- मूलवासी जनता की हत्या, माओवादियों के नाम पर गिरफ्तारी, कल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार, ग्रामीण क्षेत्रों में सीआरपीएफ कैंप का निर्माण,भूख से मौत,जमीन की लूट, मॉब लिंचिंग,देशी-विदेशी पूंजीपतियों के साथ एमओयू की कोशिश, आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज, कोयला-बालू-पत्थर की लूट, महिलाओं के साथ लगातार घट रही बलात्कार की घटनाएं आदि -आदि धड़ल्ले से हो रहे हैं। हेमंत सोरेन की सरकार नौकरशाही व अफसरशाही पर रोक लगाने में पूरी तरह से विफल साबित हुई है।

सम्मलेन में कहा गया कि उपरोक्त गंभीर परिस्थितियों को देखते हुए ही झारखंड के तमाम आंदोलनकारी ताकतों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि झारखंड की जुझारू जनता की एकजुट आवाज केन्द्र व राज्य सरकार को सुनाई दे।
अतः मोर्चा के नाम से ही स्पष्ट है कि संघर्षरत जन संगठनों, मानवाधिकार संगठनों, सामाजिक संगठनों, मेहनतकश जनता का संगठन है।
अवसर पर ईप्सा शताक्षी, प्रो. रजनी मुर्मू, सुमित्रा मुर्मू, उमाशंकर बैगा व्यास, अनूप महतो, डी. सी गोहाई, बच्चा सिंह, दामोदर तुरी मुख्य रूप से उपस्थित रहे।
(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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