धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस:आंबेडकर का बुद्ध से नाता जोड़ने का निहितार्थ

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आज धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस है। आज ही के दिन (14 अक्टूबर 1956) डॉ. आंबेडकर ने महामानव गौतम बुद्ध से अपना घोषित नाता जोड़ा था, हालांकि अघोषित तौर पर बुद्ध से उनका नाता बहुत पुराना था। गौतम बुद्ध इस तथ्य के ऐतिहासिक जीवन्त प्रतीक हैं कि मनुष्य अपनी मनुष्यता का किस हद तक विस्तार कर सकता है, किन मानवीय ऊंचाईयों को छू सकता है और मानवीय संवेदना किन गहराईयों को नाप सकता है। कैसे एक इंसान लाखों नहीं, करोड़ों लोगों को मनुष्यता का मार्ग दिखा सकता है, मानवीय ऊंचाईयों को छूने के लिए प्रेरित कर सकता है, मानवीय संवेदना की गहराईयों में डुबकी लगाने के लिए तैयार कर सकता है और कैसे एक ऐसे समाज की रचना के लिए प्रेरित कर सकता है, जहां मनुष्य-मनुष्य के बीच नातों का आधार मानवीय समता हो और दिलों को दिलों से जोड़ने का आधार बंधुता की भावना हो।

बुद्ध से नाता जोड़ने का मतलब है, कुछ चीजों को छोड़ना और कुछ चीजों को अपनाना। कुछ अपनाने के लिए कुछ छोड़ना पड़ता है। बुद्ध द्वारा दिखाए गए मार्ग को अपनाने का मतलब है, हर तरह की पारलौकिक शक्ति का नकार। ईश्वर का नकार, पैगंबर का नकार, देव-दूतों का नकार और मुक्तिदाताओं का नकार। परलोक में नहीं, बिल्कुल नहीं, लोक में विश्वास, पूरी तरह लोक में विश्वास। परमात्मा का नकार और उसके अंश के रूप में आत्मा का नकार। अंतिम सत्य का दावा करने वाली किताबों का नकार। पुनर्जन्म का नकार और पुनर्जन्म आधारित कर्मफल के सिद्धांत का नकार। स्वर्ग का नकार और नरक का नकार। जन्नत का नकार और जहन्नुम का नकार। स्वर्ग की अप्सराओं का नकार और जन्नत की हूरों का नकार।

वर्ण-जाति व्यवस्था और उस पर आधारित श्रेणीक्रम का पूरी तरह नकार। स्त्री-पुरुष के बीच अधीनता और वर्चस्व के रिश्ते के हर रूप का नकार। वर्ण-श्रेष्ठता या द्विज श्रेष्ठता के हर दावे का नकार। वर्ण-जाति व्यवस्था और पितृसत्ता को मान्यता प्रदान करने वाली हर धार्मिक-साहित्यिक किताब का नकार और हर उस व्यक्तित्व का नकार, जो अधीनता और वर्चस्व के किसी रूप का समर्थन करता हो। वर्ण-जाति व्यवस्था और स्त्रियों पर पुरुषों के वर्चस्व के किसी भी दावे का समर्थन करने वाले महान से महान कही जाने वाली शख्सियत का नकार। तर्कहीन आस्था एवं विश्वास का नकार और लोककल्याण की कसौटी पर खरा न उतरने वाले हर विचार एवं मूल्य का नकार। हर चमत्कार और अंधविश्वास का नकार। उन सभी संस्कारों और मूल्यों का नकार जो मनुष्य-मनुष्य के बीच समता और बंधुता के रिश्ते को कमजोर बनाते हों। अन्याय के हर रूप और हर तरीके का नकार, चाहे वह दुनिया के किसी कोने में हो और चाहे किसी के साथ हो, चाहे किसी रूप में हो।

बुद्ध से नाता जोड़ने का मतलब है कुछ चीजों को शिद्दत से अपनाना। जिसमें सबसे पहला तत्व है, मनुष्य-मनुष्य के बीच समता और बंधुता की भावना। सबके लिए न्याय यानि न्याय की सार्वभौमिक स्वीकृति। जिसके लिए प्राणी मात्र के प्रति प्रेम और करूणा जरूरी है। हर कहीं और हर स्तर पर न्याय, न्याय, न्याय। मनुष्य मात्र के साथ न्याय, प्राणी मात्र के साथ न्याय। सब कुछ नित परिवर्तनशील और सब कुछ नित प्रवाहमान है, कुछ भी स्थिर नहीं, कुछ भी अंतिम नहीं है, सृष्टि के इस तथ्य की पूर्ण स्वीकृति। हर चीज को तर्क और लोककल्याण की कसौटी पर भी कसना, यहां तक की बुद्ध और उनके वचनों को भी, स्वयं बुद्ध का भी ऐसा कहना था। कोई भी चीज तर्क की कसौटी से परे नहीं है। हर किताब, हर परंपरा और हर वचन-कथन को तर्क और लोककल्याण की कसौटी पर कसना। स्वयं बुद्ध, बुद्ध धम्म और बुद्ध के वचनों को भी तर्क और लोकल्याण की कसौटी पर कसना और जरूरत पड़ने उसमें परिवर्तन और संशोधन करना तथा उसे नया रूप देना, जैसे डॉ. आंबेडकर ने बौद्ध धम्म के जिस स्वरूप को अपननाया उसने नया नाम नवयान दिया और उसे अपनाया। कोई भी चीज तर्क और लोककल्याण की कसौटी से ऊपर नहीं है। न स्वयं बुद्ध और स्वयं डॉ. आंबेडकर।

बुद्ध की संवेदना, वैचारिक विरासत और उनकी सार्वभौमिक न्याय, समता और बंधुता की मानवीय विरासत से नाता जुड़े बिना भारत की न्याय की परंपरा, समता की परंपरा, बंधुता की परंपरा के साथ नाता नहीं जोड़ा जा सकता। भारत की प्रगतिशील परंपरा की जड़ों से नहीं जुड़ा जा सकता है। बुद्ध से नाता कायम किए बिना भारत को एक आधुनिक, लोकतांत्रिक, न्याय, समता और बंधुता आधारित भारत में तब्दील नहीं किया जा सकता है। मध्यकालीन बर्बर मूल्य-मान्यताओं और विचारों से पिंड नहीं छुड़ाया जा सकता है। बुद्ध से जुड़ने का मतलब है, न्याय की भारतीय विरासत की जड़ों के साथ जुड़ना, मनुष्य मात्र के प्रति बंधुता की गहरी भावना की विरासत के साथ जुड़ना और उस चिंतन एवं विचार प्रक्रिया के साथ जुड़ना पूरी तरह वैज्ञानिक है और तर्कों एवं तथ्यों पर आधारित और जिसके केंद्र में लोककल्याण है।

भारत का वह युग उन्नति और समृद्धि का युग रहा है, जो युग बुद्ध से जुड़ा हुआ था। भारत का हर वह क्षेत्र सापेक्षिक तौर पर न्यायपरक और प्रगतिशील था और है, जिसने बुद्ध के साथ अपना नाता कायम किया। भारत के सबसे न्यायप्रिय नायक वे हुए हैं, जिन्होंने बुद्ध से अपना नाता जोड़ा, चाहे डॉ . आंबेडकर हों या राहुल सांकृत्यायन। बुद्ध का मार्ग ही न्याय का मार्ग है, बुद्ध की विरासत ही समता की विरासत है, बुद्ध की परंपरा ही प्रगतिशील चिंतन परंपरा है, बुद्ध की बंधुता की भावना ही मानवीय इतिहास की सबसे बड़ी भावना है।

धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस पर हमें बुद्ध से नाता जोड़ने का संकल्प लेना चाहिए और उनके साथ गहरा नाता जोड़ना चाहिए, यही बुद्ध के प्रति और आधुनिक युग में उनके विचारों के सबसे बड़े प्रचारक-प्रसारक डॉ. आंबेडकर के प्रति सच्ची भावना के साथ श्रद्धा सुमन अर्पित करना होगा।

(डॉ. सिद्धार्थ जनचौक के सलाहकार संपादक हैं।)

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