लाशों के सौदागरों द्वारा कफ़न में दलाली!

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245 रुपये दर वाली खराब चीनी रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट (Rapid Antibody Test Kit) को मजबूत मोदी सरकार ने 600 रुपये प्रति किट खरीदा। इतना बड़ा स्कैम? जिम्मेवार कौन ?

एक तो वैश्विक आपदा के बीच नकली किट के जरिए आम जनमानस के जीवन मूल्य को खतरे में डालने जैसा आपराधिक कार्य और और दूजा पूँजीवादी लूट के लिए इस निम्न स्तर तक नैतिक पतन ।

जरा सोचिए ….

मजबूत मोदी सरकार की विदेश नीति का स्तर कितना लचर और बदहाल है ?

■ सबसे पहले तो उस चीन से कोरोना संक्रमण से बचने के लिए PPE किट एवं अन्य मेडिकल सामग्री आयात का फैसला करते हैं जिसके माल को पहले ही कई यूरोपीय देश खराब क्वालिटी वाला बता कर लेने से मना कर देते हैं या फिर उन सामग्रियों को वापस चीन को पहले ही भेज चुके होते हैं। भारत में बड़े पैमाने पर चीन से PPE किट मंगा तो लिया जाता है लेकिन उसकी गुणवत्ता और क्वालिटी इतनी खराब होती है कि वह बिल्कुल अनुपयोगी साबित होती है। हालात यहां तक पहुंच जाते हैं कि उसे वापस चीन को भेजने की बात होती है, ऊपर से चीन यह कहकर हमारी लचर विदेश नीति का मखौल उड़ाता है कि, “भारत को सामग्री देख कर लेनी चाहिए एवं ब्रांडेड माल ही लेने चाहिए थे”।

चीनी दूतावास ने अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा कि आयात करने से पहले सामान की गुणवत्ता और कंपनी की पड़ताल कर लेनी चाहिए। भारत को चीन की प्रमाणित कंपनियों से ही मेडिकल सामान लेना चाहिए। ऐसी कंपनियों से सामान खरीदा जाना चाहिए जिसे चीनी अधिकारियों ने सत्यापित किया हो। 

■ इसके बाद दूसरा बड़ा स्कैम कोरोना Covid-19 रैपिड टेस्ट किट को लेकर सामने आता है। देश मे लॉकडाउन की अवधि तो सरकार क्रमशः बढ़ाती चली गई लेकिन पर्याप्त मात्रा में कोविड-19 संक्रमण टेस्टिंग की सुविधा बढ़ाने में बिल्कुल नाकाम रही। जब विपक्षी दलों ने टेस्टिंग संख्या को लेकर सवाल खड़े किए तो आनन-फानन में चाइनीज कचरे ( खराब कोविड-19 रैपिड टेस्टिंग किट) को मंगा लिया गया। बाद में पता चला कि ये रैपिड टेस्टिंग किट सही नतीजे नहीं दे रही है जिसके कारण चीन से आयातित टेस्टिंग किट से कोविड-19 संक्रमण की जाँच रोक दी गई। हालांकि इस रैपिड किट की निर्माता कंपनी वोंडफो का दावा तो यह भी है कि उसकी किट में कोई खामी नहीं है।

■  लेकिन अब जो इस रैपिड किट के वितरक और आयातक के बीच एक कानूनी मुकदमे की वजह से जब मामला दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) में पहुंचा और इसके संदर्भ में जो खुलासा हुआ वो न केवल बेहद चौंकाने वाला है बल्कि शर्मसार करने वाला भी है। 

चीन से इन रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किटों (Rapid Antibody Test Kit) को इसकी आयातक कंपनी मैट्रिक्स ने 245 रुपये प्रति किट के हिसाब से खरीदा था और डिस्ट्रीब्यूटर रीयल मेटाबॉलिक्स और आर्क फार्मास्यूटिकल्स ने इसी किट को सरकार को 600 रुपये के भाव पर बेचा, यानी 145 फीसदी ज्यादा कीमत पर किट भारत सरकार ने खरीदा। ऐसे भीषण महामारी के वक्त इतनी असंवेदनशीलता और मुनाफाखोरी ? विशेषज्ञों के अनुसार इतना बड़ा स्कैम बगैर सरकार के संरक्षण में संभव ही नहीं हो सकता। इस पूरे मामले में सरकार की भूमिका बेहद संदिग्ध है। 

भारत सरकार ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research) यानी  ICMR के जरिये 27 मार्च को चीन की कंपनी वांडफो को 5 लाख रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट का ऑर्डर दिया था। चीन में भारतीय राजदूत विक्रम मिश्री ने 16 अप्रैल को अपने एक ट्वीट के जरिए जानकारी दिया कि रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट और आरएनए एक्सट्रेक्शन किट समेत 6.50 लाख किट्स को भारत भेज दिया गया है।

माल सप्लाई और रकम की अदायगी के बीच वितरक और डिस्ट्रीब्यूटर के बीच विवाद को लेकर मसला सामने न आता तो हमें लाशों के सौदागरों के काले धंधे की हकीकत को जानने का मौका भी न मिल पाता। मेरा सीधा मानना है कि सरकार की संलिप्तता और संरक्षण के बगैर पूँजीवादी मुनाफाखोरी का यह  घिनौना काला धंधा चल सकता है क्या ?

(दयानंद स्वतंत्र लेखक हैं और शिक्षा के पेशे से जुड़े हुए हैं।)

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